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गीताधर्म

गीता को अनेक महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं और बातों पर अभी प्रकाश डालना बाकी ही है। मगर यह काम करने के पहले उसके एक बहुत ही अपूर्व पहलू पर कुछ विस्तृत विचार कर लेना जरूरी है। गीता की कई अपनी निजी बातों में एक यह भी है। हालाँकि जहाँ तक हमें ज्ञात है, इस पर अब तक लोगों की वैसी दृष्टि नहीं पड़ी है जैसी चाहिए। यही कारण है कि यह चीज लोगों के सामने खूब सफाई के साथ आई न सकी है। उसी के सिलसिले में गीता की दो-एक और भी बातें आ जाती हैं। उनका विचार भी इसी प्रसंग में हो जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस बात का हम यहाँ विचार करने चले हैं उसका बहुत कुछ ताल्लुक, या यों कहिए कि बहुत कुछ मेलजोल, एक आधुनिक वैज्ञानिक मतवाद से भी हो जाता है - उस मतवाद से जिसकी छाप आज समस्त संसार पर पड़ी है और जिसे हम मार्क्सीवाद कहते हैं। यह कहने से हमारा यह अभिप्राय हर्गिज नहीं है कि गीता में मार्क्ससवाद का प्रतिपादन या उसका आभास है। यह बात नहीं है। हमारे कहने का तो मतलब सिर्फ इतना ही है कि मार्क्सदवाद की दो-एक महत्त्वपूर्ण बातें गीताधर्म से मिल जाती हैं और गीता का मार्क्स वाद के साथ विरोध नहीं हो सकता, जहाँ तक गीताधर्म की व्यावहारिकता से ताल्लुक है। यों तो गीता में ईश्वर, कर्मवाद आदि की छाप लगी हुई है। मगर उसमें भी खूबी यही है कि उसका नास्तिकवाद से विरोध नहीं है और यही है गीता की सबसे बड़ी खूबी, सबसे बड़ी महत्ता। यही कारण है कि हमें गीताधर्म को सार्वभौम धर्म - सारे संसार का धर्म - मानने और कहने में जरा भी हिचक नहीं होती।

गीताधर्म और मार्क्सवाद

स्वामी सहजानन्द सरस्वती
Chapters
गीताधर्म कर्म का पचड़ा श्रद्धा का स्थान धर्म व्यक्तिगत वस्तु है धर्म स्वभावसिद्ध है स्वाभाविक क्या है? मार्क्‍सवाद और धर्म द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और धर्म भौतिक द्वन्द्ववाद धर्म, सरकार और पार्टी दृष्ट और अदृष्ट अर्जुन की मानवीय कमजोरियाँ स्वधर्म और स्वकर्म योग और मार्क्‍सवाद गीता की शेष बातें गीता में ईश्वर ईश्वर हृदयग्राह्य हृदय की शक्ति आस्तिक-नास्तिक का भेद दैव तथा आसुर संपत्ति समाज का कल्याण कर्म और धर्म गीता का साम्यवाद नकाब और नकाबपोश रस का त्याग मस्ती और नशा ज्ञानी और पागल पुराने समाज की झाँकी तब और अब यज्ञचक्र अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव, अधियज्ञ अन्य मतवाद अपना पक्ष कर्मवाद और अवतारवाद ईश्वरवाद कर्मवाद कर्मों के भेद और उनके काम अवतारवाद गुणवाद और अद्वैतवाद परमाणुवाद और आरंभवाद गुणवाद और विकासवाद गुण और प्रधान तीनों गुणों की जरूरत सृष्टि और प्रलय सृष्टि का क्रम अद्वैतवाद स्वप्न और मिथ्यात्ववाद अनिर्वचनीयतावाद प्रातिभासिक सत्ता मायावाद अनादिता का सिद्धांत निर्विकार में विकार गीता, न्याय और परमाणुवाद वेदांत, सांख्य और गीता गीता में मायावाद गीताधर्म और मार्क्सवाद असीम प्रेम का मार्ग प्रेम और अद्वैतवाद ज्ञान और अनन्य भक्ति सर्वत्र हमीं हम और लोकसंग्रह अपर्याप्तं तदस्माकम् जा य ते वर्णसंकर: ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव सर्व धर्मान्परित्यज्य शेष बातें उत्तरायण और दक्षिणायन गीता की अध्‍याय-संगति योग और योगशास्त्र सिद्धि और संसिद्धि गीता में पुनरुक्ति गीता की शैली पौराणिक गीतोपदेश ऐतिहासिक गीताधर्म का निष्कर्ष योगमाया समावृत