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धर्म व्यक्तिगत वस्तु है

यहाँ तक के विवेचन ने यह बात साफ कर दी कि धर्म या कर्तव्याकर्तव्य सोलहों आना व्यक्तिगत चीज है। न कि वह सार्वजनिक वस्तु है, जैसा कि आमतौर से माना जाता है। जब अपनी-अपनी समझ के ही अनुसार श्रद्धापूर्वक धर्म या कर्म करने का सिद्धांत तय पा गया और उसका मतलब भी साफ हो गया कि दिल, दिमाग, जबान और हाथ-पाँव आदि कर्मेंद्रियों में सामंजस्य होने का ही नाम श्रद्धापूर्वक करना है, तो फिर सार्वजनिकता की गुंजाइश रही कहाँ? जब श्रद्धा, ईमानदारी और सच्चाई से (honestly and sincerely) कर्म करने का अर्थ साफ हो गया और जब पूर्वोक्त चारों के सामंजस्य को सच्चाई तथा ईमानदारी से अलग कोई चीज नहीं मान सकते; या यों कहिए कि सच्चाई और ईमानदारी इस सामंजस्य या मेल से भिन्न कोई चीज नहीं, तो यह कैसे होगा कि दो-चार की भी समझ, श्रद्धा या ईमानदारी एक ही हो। ये सब चीजें?, ये सब गुण तो पूर्णरूप से व्यक्तिगत हैं। जो समझ हममें है वही दूसरे में कैसे होगी? यदि एकाध बात में दोनों का मेल भी दैवात हो जाए तो भी क्या? एकता का तो अर्थ है हर बात में मिल जाना और यही चीज गैरमुमकिन है। जब श्रद्धा और समझ पर बात आ जाए तो क्या यह संभव है कि सभी हिंदू संध्या पूजा करें या चुटिया रखें, या सभी मुस्लिम दाढ़ी रखें और रोजा-नमाज मानें? लोगों को आजाद कर दीजिए और दबाव छोड़ दीजिए, पाप नरक आजाब, दोजख आदि का भय उनके दिमाग से हटा दीजिए और देखिए कि क्या होता है। एक संध्या करेगा तो दूसरा उसके पास भी न जाएगा। तीसरा कुछ और करेगा और चौथे की निराली ही दशा होगी। यही बात रोजा-नमाज़ में भी होगी।

गीताधर्म और मार्क्सवाद

स्वामी सहजानन्द सरस्वती
Chapters
गीताधर्म कर्म का पचड़ा श्रद्धा का स्थान धर्म व्यक्तिगत वस्तु है धर्म स्वभावसिद्ध है स्वाभाविक क्या है? मार्क्‍सवाद और धर्म द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और धर्म भौतिक द्वन्द्ववाद धर्म, सरकार और पार्टी दृष्ट और अदृष्ट अर्जुन की मानवीय कमजोरियाँ स्वधर्म और स्वकर्म योग और मार्क्‍सवाद गीता की शेष बातें गीता में ईश्वर ईश्वर हृदयग्राह्य हृदय की शक्ति आस्तिक-नास्तिक का भेद दैव तथा आसुर संपत्ति समाज का कल्याण कर्म और धर्म गीता का साम्यवाद नकाब और नकाबपोश रस का त्याग मस्ती और नशा ज्ञानी और पागल पुराने समाज की झाँकी तब और अब यज्ञचक्र अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव, अधियज्ञ अन्य मतवाद अपना पक्ष कर्मवाद और अवतारवाद ईश्वरवाद कर्मवाद कर्मों के भेद और उनके काम अवतारवाद गुणवाद और अद्वैतवाद परमाणुवाद और आरंभवाद गुणवाद और विकासवाद गुण और प्रधान तीनों गुणों की जरूरत सृष्टि और प्रलय सृष्टि का क्रम अद्वैतवाद स्वप्न और मिथ्यात्ववाद अनिर्वचनीयतावाद प्रातिभासिक सत्ता मायावाद अनादिता का सिद्धांत निर्विकार में विकार गीता, न्याय और परमाणुवाद वेदांत, सांख्य और गीता गीता में मायावाद गीताधर्म और मार्क्सवाद असीम प्रेम का मार्ग प्रेम और अद्वैतवाद ज्ञान और अनन्य भक्ति सर्वत्र हमीं हम और लोकसंग्रह अपर्याप्तं तदस्माकम् जा य ते वर्णसंकर: ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव सर्व धर्मान्परित्यज्य शेष बातें उत्तरायण और दक्षिणायन गीता की अध्‍याय-संगति योग और योगशास्त्र सिद्धि और संसिद्धि गीता में पुनरुक्ति गीता की शैली पौराणिक गीतोपदेश ऐतिहासिक गीताधर्म का निष्कर्ष योगमाया समावृत