स्वामी लाला
दोपहर का समय, फोन की घंटी बज रही है। निर्मला सो रही है। खाना खाने के बाद दोपहर आराम का समय है, हर रोज की तरह निर्मला सो गई। निर्मला क्या, घर की सारी औरते रसोई और दूसरे काम निबटा कर आराम कर रही हैं। निर्मला फोन के पास सो रही है। फोन की घंटी ने सबके आराम में बेआराम कर दिया।
“निम्मे, देख जरा, किसका फोन है। हाथ बढा कर उठा ले न।” बिल्लो ने निर्मला से कहा।
आधी नींद में निर्मला ने करवट बदली और थोडा खिसक के फोन को उठाया। “हेलो...” दूसरी ओर से कोई आवाज नही थी। निर्मला ने तीन, चार बार हेलो कहा, परन्तु फोन पर दूसरी तरफ चुप्पी थी। खामोश फोन को कान से लगाए हुए निर्मला ने कुछ देर बाद फिर से हेलो कहा। फोन पर कोई न तो बोलता था, न ही कोई उसे काटता था। फोन चालू था। फोन की घंटी और निर्मला की हेलो से बिल्लो की नींद भी खुल गई।
“कोई नही बोल रहा, तो फोन रख दे। कान से चिपका कर तेरी हेलो हेलो ने नींद खोल दी।”
“फोन लाला का होगा। दो तीन दिनों से फोन आता है, लेकिन बोलता कोई नही है। मुझे लगता है, लाला का होगा। मेरी आवाज सुनता रहता है। कुछ कहता नही है।.”
“लाला फोन करता है, तो बोलता क्यों नही है? घर आ जाए, किसी ने रोका तो है नही। अपने आप आ जाता है, फिर चला जाता है।”
“किस्मत की बात है, बिल्लो, जो लिखा है, वही होता है।”
तभी बिजली गुल हो जाती है। बिल्लो का पारा सातवे आसमान पर चला जाता है। “कोई आराम भी नही करने देता। पहले मरा फोन, फिर बिजली भी पूरी दुश्मनी निकाल रही है।”
बिल्लो की तीखी आवाज से निर्मला चिढ गई “बिल्लो, इसमे लाला को कोसने की क्या बात है। उसका क्या कसूर है, जो बिना वजह चिल्ला रही हो।”
“मैं चिल्ला रही हूं, जमाना ही खराब है, एक तो सच बोलो, और ताने भी सुनो।” कह कर बिल्लो ने करवट बदल कर दूसरी तरफ मुंह किया।
“मैं क्या समझती नही, ताने किसको मार रही है?” निर्मला की आवाज में तेजी थी। इतना सुनते ही बिल्लो गायब बिजली में भी गजब की बिजली वाली फुर्ती से चारपाई से उछली और निर्मला के बाल पकड लिए “क्या कह रही है, मैं ताने देती हूं? सच सुनने के लिए ताकत चाहिए। किस मुंह से सुनेगी। क्या है, तेरे में, कुछ भी नही। जो मर्द को पल्लू में बांध न रख सके। थू है उस पर। तेरे में कमी रही, तभी तो लाला घर छोड कर भाग गया। मुझे देख, दुकान से आते ही चिपक जाता है। मजाल है, कभी दूसरी को देखा हो।” अब बिल्लो ने जो बोलना शुरू किया, चुप न हुई। आज तो पूरी भडास निकाल दी। बिल्लो के तानो से परेशान निर्मला घर के दरवाजे पर बैठ गई। सुबकती निर्मला को देख दो चार पडोसने एकत्रित हो गई। दोपहर का समय था। बिजली गुल, ऊपर से निर्मला का रोना धोना, आस पडोस की औरतें जमा इकठ्टी हो गई। बिजली गुल थी, जिस कारण किसी को कोई काम नही था। समय व्यतीत करने की खातिर सभी निर्मला के सुर में सुर मिलाने लगी। “मेरे में क्या कमी है? क्या मैं औरत नही हूं?” कह कर निर्मला जोश में आ गई। उसको अपनी सुध नही थी। अपने स्थान पर खडी हो गई। कपडे इधर उधर हो रखे थे। शरीर संभाले नही संभल रहा था। अंग नजर आ रहे थे। पडोसने कुछ कह नही रही थी, परन्तु मजे पूरे ले रही थी। तभी उसकी पुत्री सुकन्या स्कूल से आई। उसके हाथ में चाकलेट और एक खिलौना देख कर निर्मला ने पूछा कि किसने दिया। पुत्री सुकन्या ने गली के मोड की ओर इशारा करते कहा, कि वहां एक अंकल खडे है, उन्होने दिया है।
“कितनी बार मना किया है, जिसको जानते नही, उससे कुछ नही लेते। फिर क्यूं लिया।”
“मम्मी, वो अंकल कह रहे थे, आपको जानते हैं, मुझे भी जानते हैं। देखो न मम्मी, गली के मोड पर छुप कर खडे हैं।”
इतना सुन कर निर्मला सतर्क हो गई। कहीं वो आदमी लाला तो नही। अवश्य़ ही लाला ही होगा। अभी फोन भी आया था। फटाफट गली के मोड की तरफ भागी। कोई सुध नही, कि शरीर कहां, कपडे कहां। साडी निकल कर अलग हो गई। पेटीकोट, ब्लाउज में सरपट दौडी। लाला लाला आवाज देती फर्राटे से भाग कर गली के मोड तक पहुंची। वह व्यक्ति लाला ही था। दाढी बढी हुई, अस्त वयस्त हुलिया। निर्मला को पास आते देख उसने भागने की कोशिश की, परन्तु निर्मला ने उसका कुर्ता पकड ही लिया। लाला गिर पडा और निर्मला उसके ऊपर। अपने लाला को एक ही नजर में पहचान लिया। लाला, लाला की आवाज सुन सभी पडोसने पीछे पीछे वहां पहुंच गई। बहुत सारी औरतों के बीच घिरे लाला को एक पहलवान की कुश्ती की तरह चित करके निर्मला लाला के ऊपर जीत का जश्न मना रही थी। मेरा लाला आ गया, मेरा लाला आ गया। पडोसने भी टुकर टुकर देख रही थी। हां हां, यह तो लाला ही है। कितने साल बाद आया है। सभी अटकले लगा रही थी। लाला कितने साल बाद आया है। लाला पूरे चार साल बाद आया है। निर्मला लाला के साथ घर आई और चिल्लाने लगी “बिल्लो, देख लाला आया है। कहती थी, मेरे में कमी है। मर्द को बांध नही सकती। लाला को खींच कर लाई हूं। बिल्लो, देख लाला आया है। कहां छुपी है। बिल्लो, किस बिल में छुपी है। बाहर आ, देख मेरा लाला आया है।”
शोरगुल सुन कर आंखे मलती बिल्लो बाहर आई और लाला को देख कर चुप हो गई। निर्मला जश्न मना रही थी। बिल्लो चुपचाप अपने कमरे में चली गई। निर्मला पुत्री सुकन्या को कह रही थी, देख तेरे पापा। सुकन्या चुपचाप देखती रही पर लाला के पास नही गई। पांच साल की सुकन्या पहली बार पापा लाला को देख रही है। वह चुपचाप मां की गोद में चढ गई। एक साल की थी सुकन्या, जब लाला घर छोड कर गया था। विवाह के दो साल बाद लाला घर छोड कर चला गया और आज चार वर्ष बाद आया है। लाला का नाम वैसे तो ललित है, पर घर में सब लाला कह कर पुकारते है। लाला का स्वाभाव बचपन से ही अंतर्मुखी था। अपनी ही धुन में रहने वाला और उसका छोटा भाई चरण का स्वाभाव बहिर्मुखी, चंचल और हरफनमौला। पिता की किराने की दुकान थी। खूब चलती थी। स्कूल की पढाई के बाद दोनों भाई दुकान पर बैठ गए। हरफनमौला चरण दुकान के हर काम में बढ चढ कर काम करता था और लाला ठीला ढाला रहता था। दुकान के कामों में चित नही लगता था। बुजर्गों ने सलाह दी, विवाह के बंधन में बांध दो। खूटे के बंधेगा। घूमना, फिरना बंद होगा। विवाह के बाद पत्नी काम काज में लगा देगी। विवाह के बाद बडे बडे कामचोर भी काम धंधे में लग जाते हैं। विवाह के बाद लाला निर्मला के बंधन में तो बंध गया। प्यार से निम्मो कहता था, परन्तु दुकान के काम काज में चित नही लगा पाया। पिता के ताने सुनने पढते। छोटा भाई चरण भी रौब डालने लगा। साल बाद सुन्दर सी कन्या सुकन्या ने लाला, निर्मला की जिन्दगी में पदार्पण किया। लाला निर्मला और सुकन्या के प्यार में डूबा रहता।
“अब तो बच्चा भी है गया। दुकान के काम में हाथ बटाया करो।”
“दुकान सही चल रही है। फिक्र क्यों करती है?”
“वो तो ठीक है, पर अपना हाथ जगन्नाथ होता है। काम से ध्यान हटाया तो बडे बडे साहूकार भी कंगाल हो जाते हैं।”
“तेरे को डरने की कोई आवश्कता नही है। मैं दुकान जाता हूं, शहर के मशहूर बाजार के चौराहे पर पहली दुकान है। सुबह से शाम तक ग्राहकों की कतार लगी रहती है। काम करने के लिए नौकर है, हमें तो सारा दिन गल्ले पर ही बैठना है।”
“देखो फिर भी पिता जी, चरण भाई आपको ताने मारते रहते है, कि आप काम नही करते।”
“वो खुद कौन सा काम करते है। दुकान पर बारी बारी से गल्ले पर ही बैठना है।”
लाला दुकान पर कम बैठता था। चरण दुकान से अधिक पैसे उठाते लगा। पिता जी भी चरण का अधिक पक्ष लेने लगे। लाला को सिर्फ जरूरत के से ही घर खर्च दिया जाता। निर्मला कुडती, पर कुछ कर नही सकी, क्योंकि लाला दुकान बहुत कम जाता था। बीवी, बच्चे, यार, दोस्तों के साथ अधिक समय बितता था। उसे काम की कोई परवाह नही थी। जरूरत के लिए पैसे मिल जाते थे। वह चरण के इरादे भांप नही सका। लाला को कम पैसे देता, खुद अधिक उठाता, परन्तु बही खातों में लाला के नाम अधिक दिखाता, अपने नाम कम लिखता। यह देख कर पिता जी ने लाला को खूब डांटा फटकारा। लाला ने अपनी सफाई दी, लेकिन कोई फायदा नही हुआ। आग में घी चरण ने डाल दिया। लाला को खलनायक बना दिया। लाला की कोई बात नही सुनी गई। एक तो दुकान पर बैठता नही है, ऊपर से पैसों को उडाने में लगा है। निर्मला ने भी चरण, पिताजी की बातों को यही समझ लिया, क्योंकि लाला दोस्तों के साथ ज्यादा रहता था। लाला का चित भटकने लगा। एक दिन चरण बीमार पड गया। पिताजी ने लाला को दूसरे शहर व्यापारियों से रकम वसूली के लिए भेजा। व्यापारियों ने चरण के साइन दिखा दिए, कि वे तो पूरी रकम का भुगतान कर चुके है। वास्तव में चरण ने रकम वसूल कर ली थी, परन्तु सारी रकम खुद रख ली और दुकान में जमा नही कराई। लाला ने यह बात बताई, तो चरण उलटे चोर कोतवाल की तरह लाला पर चढाई कर दी और चिल्ला चिल्ला कर लाला को चोर बना दिया, कि वह खुद रकम दबा कर चरण के मत्थे इलजाम लगा रहा है। यह सुन कर निर्मला ने खुद को कमरे में कैद कर लिया। लाला को सबने झूठा घोषित कर दिया। निर्मला को दूर पाता देख लाला का चित उखड गया और रात को घर छोड कर चला गया। तीन चार दिन तक तो किसी ने लाला की कोई सुध नही ली। फिर निर्मला को फिक्र हुई। पिताजी से कहा। चारों तरफ ढूंढा गया। सभी दोस्तों, रिश्तेदारों, ठिकानों पर तलाश हुई, परन्तु लाला का कोई पता नही चला।
चार महीने बाद वही दो व्यापारी दुकान पर सौदा लेने आए। उस समय चरण दुकान पर नही था। पिताजी ने कहा, कि पहले पुराना हिसाब चुकता करे, फिर नया सौदा मिलेगा। यह सुन कर दोनों व्यापारी चौंक गये, कि रकम का भुगतान तो चरण को कर दिया था। उन्होनें पिताजी को रसीद दिखा दी। पिताजी चौंक गए, कि य़ह क्या हो गया, कि लाला पर उन्होनें झूठा इलजाम लगाया। चरण की करतूत लाला के मत्थे मढ दी। पिताजी को गलती का एहसास हुआ। उन्होनें चरण को तो कुछ नही कहा, परन्तु दुकान में चरण का हिस्सा घटा कर पच्चीस पैसे कर दिया। लाला का पता नही था, निर्मला का हिस्सा पचास पैसे और बाकी पच्चीस पैसे खुद का रखा। अपनी मृत्यु के बाद पच्चीस पैसे सुकन्या के नाम कर दिया। चरण तिलमिला करके भी कुछ नही कर सका। गलती उसकी थी। दुकान की काफी रकम गलत तरीके से हडप रखी थी।
घर में किसी को लाला के बारे में नही पता था, कि वह कहां है, क्या कर रहा है। पिताजी ने आस छोड दी, परन्तु निर्मला पत्नी थी, उसने आस पूरी रखी। दो साल बीत गए। थोडे थोडे दिनों बाद टेलीफोन पर घंटी बजती, परन्तु कोई बोलता नही था। निर्मला को पूरा विश्वास था, कि लाला ही फोन करता है। आज उसका विश्वास पूरा सच बन गया, कि फोन के बाद लाला घर आ गया। पिताजी को जैसे लाला के घर आने की खबर लगी, दुकान छोड कर फटाफट लाला से मिलने घर आए। लाला को गले लगाया। चार वर्ष लाला कहां रहा, क्या किया? किसी ने कुछ नही पूछा। लाला ने थोडी देर आराम किया। शाम को नहाने के पश्चात संध्या अर्चना की। लाला की दाढी बढी देख निर्मला ने कटाने का कहा।
“निम्मे, दाढी को मेरी पहचान हो गई है। इसको कटाने को नही कह।”
“कौन सी पहचान। बिना दाढी के सुन्दर ज्यादा लगते थे।”
लाला बस मुस्कुरा दिया। लाला के वापिस आने से निर्मला चहकने लगी। पिताजी भी खुश थे, परन्तु चरण और बिल्लो के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। अब लाला घर से नही गया, पर चुप ही रहता था। पुत्री सुकन्या पर प्यार उडेला।
“क्या बात है, पुत्री को प्यार कर रहे हो, पर मेरे से दूर क्यो रह रहे हो?” एक दिन निर्मला ने पूछा।
शांत स्वाभाव में ललित ने कहा “चार साल घर से दूर रहा। कुछ पुरानी बाते याद आ रही है, कुछ चार सालों की बाते याद आ रही है। पुरानी बातों को भुलाने की कोशिश कर रहा हूं। बातें दिमाग से जाती नही हैं।”
“क्या नाराज हो, मुझसे?” निर्मला ने पति ललित के चेहरे को हाथों में लेकर प्रेम से पूछा।
ललित ने जवाब में प्यार बरसाते हुए निर्मला का चेहरा हाथों में लिया और माथा चूम लिया। निर्मला गदगद हो गई। उसकी खुशी का कोई ठिकना न रहा। वह झूम उठी। प्रफुल्लित हो कर सातवें आसमान पर विचरण कर रही थी। झूम कर नाच उठी। कुदरत का करिश्मा देखिए, उमस भरी गर्मी में बादल उमड आए। बूंदे बारिश की रिरने लगी। निर्मला आंगन में आकर नाचने लगी। बारिश तेज हो गई। पूरी भीग गई। पति ललित को खींचा। मंद मुस्कान के साथ ललित भी बारिश में निर्मला का साथ देने लगा। माता पिता का साथ सुकन्या भी देने लगी। निर्मला की सारी मुरादें पूरी हो रही थी। बिछुडे पति का साथ पाकर वह धन्य हो गई।
बारिश तेज हो गई। रमेश कुटिया में आया। लाईट जलाई। रानी को आवाज देकर चाय बनाने को कहा। आज लगभग बाईस दिन हो गए हैं। स्वामी जी लौट कर नही आए। कहां गए हैं। कुछ बताया भी नही कि कहां जा रहे हैं? जाने से पहले बस इतना कहा था, कि दो तीन दिनों में वापिस आ जाएगें। कुछ परिजनों से मिलना है। इतने में रानी चाय बना कर ले आई। चाय की चुस्कियों के बीच रमेश स्वामी जी के बारे में सोच रहा था, कि कहां गए? कुटिया रमेश का दो मंजिल का मकान है, जिसमें वह पत्नी रानी और तीन बच्चों के साथ रहता है। मकान की छत पर एक बरसाती नुमा छोटा सा कमरा है, जहां स्वामी जी पिछले दो साल से रह रहे है। स्वामी जी रमेश के परिवार का एक अहम हिस्सा बन गए थे। बिना स्वामी जी से पूछे कोई बडा काम नही करता था। रमेश का मसालों का थोक सप्लाई का काम था। दो साल पहले रमेश का व्यापार घाटे के कारण लगभग समाप्ति के कगार पर था। उधारी चुका नही पा रहा था। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया था। बच्चों की स्कूल फीस भी भरने की स्थिति में नही था। लेनदारों के लगातार बढते दबाव में एक दिन रमेश ने अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए नहर के पुल से छलांग लगा दी। वहां से गुजरते कुछ व्यक्तियों ने आवाज लगाई, देखो कूद गया, कूद गया। स्वामी जी पुल के नीचे नहर के किनारे ध्यान मुद्रा में बैठे थे। स्वामी ने पास रूकी हुई नाव में सवार होकर रमेश को डूबने से बचाया और नजदीक के अस्पताल में दाखिल कराया। रमेश बच गया।
“आपने मुझे क्यों बचाया?”
“जीवन जीने के लिए है, समाप्त करने के लिए नही बनाया ईश्वर ने। तुम क्यों जीना नही चाहते?”
रमेश की व्यथा सुन कर स्वामी ने ठहाका लगाया और उसे संतावना देते हुए क्या “बस घबरा गए, जीवन के संघर्ष से? तुम्हे अपने लिए नही, बल्कि परिवार के लिए जीना है। विवाह के बाद आदमी का जीवन उसका रह ही नही जाता, वह तो समर्पित हो जाता है, पत्नी और बच्चों के लिए। तुम मर गए, तो वे जीते जी मर जाएगें। क्या करेगें वे? उनके भविष्य का सोचों, छोटे बच्चों को किस के सहारे छोड कर जा रहे हो। तुम्हे जीना होगा अपने परिवार के लिए, उनको जीवित रखने के लिए।”
“मैं लेनदारों का पैसा वापिस करने की स्थिती में नही हूं। कैसे जीवन को जी सकूंगा?”
“चलो मैं तुम्हारे लेनदारों से मिलता हूं, यदि ईश्वर पर भरोसा रखो, तो एक मुसीबत दी हो, तो हल भी देगा।”
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद स्वामी जी रमेश के साथ उसके घर पहुंचे और समस्त लेनदारों को बुला कर कहा, कि वे रमेश को कुछ समय दे। अभी वह पैसे चुकता करने की स्थिती में नही है। सभी ने कहा, मकान बेच कर रकम वसूल करेंगे, तब स्वामी जी ने कहा कि एक बार रकम वसूल कर सकोगे। बार बार करना चाहते हो, तब मेरे बताए फॉरमूले से चलो, तब चारों खाने तुम्हारे और बार बार ब्याज कमा सकोगे और रकम बढेगी। लेनदार चुपचाप स्वामी जी का मुंह ताकने लगे। स्वामी जी ने आगे कहना शूरू किया, कि अभी रमेश की आर्थिक स्थिती खराब है, उसे उभरने का एक मौका दिया जाए, आप रमेश को कुछ रकम उधार और दें। वह व्यापार फिर से आरम्भ करेगा। और धीरे धीरे एक साल में आप सबका भुगतान कर देगा। यदि आप मुझे स्वानी समझते है, तब आप मेरी जुबाव पर विश्वास रखे। सिर्फ एक साल की मोहल्लत दीजिए।
आप तो यहां रहेंगे नही, और रमेश ने भुगतान नही किया, तब? यही प्रश्न सबने एक साथ किया। स्वामी जी ने कहा, मेरी जुबान पर आपको इतना विश्वास है, तब में रमेश के साथ इस मकान में रहूंगा, जब तक आपका लोन चुकता नही होता। स्वामी जी की बात पर भरोसा करके सभी ने कुछ और रकम रमेश को लोन पर दी। रमेश ने स्वामी जी से पूछा, कि वह कैसे व्यापार करेगा और लोन कैसे चुकाएगा।
“व्यापार की कमजोर कडी बताता हूं, कि तुम लाभ को निजी खर्च में अधिक लगाते हो, जिससे व्यापार की पूंजी व्यापार में न लग कर निजी खर्च में लग रही है। मेरा सिर्फ इतना मंत्र है, कि जितना लाभ हो, उसका सिर्फ पच्चीस प्रतिशत घर खर्च में उठाऔगे। पच्चीस प्रतिशत से लोन को वापिस करोगे, बाकी का पचास प्रतिशत व्यापार में लगाऔगे, जिससे पूंजी बढेगी। अधिक पूंजी से अधिक व्यापार और अधिक लाभ। आज तुम कर्ज के बोझ में हो, आने वाले दिनों में तुम दूसरों को लोन दे सकोगे।
रमेश को दूसरा जीवनदान स्वामी जी ने दिया था, जीने की प्रेरणा दी। रमेश स्वामी जी के दिए मूलमंत्र का पालन करता रहा। वह एर साल में तो नही, परन्तु दो साल में उसने सबका लोन चुका दिया। रमेश के साथ रमेश के लेनदार, रिश्तेदार, मित्र भी स्वामी जी के भक्त बन गए। रमेश के मकान की छत पर बने छोटे से कमरे में स्वामी जी रहने लगे. वे प्राय शान्त और ध्यान में रहते थे। उनकी कोई आय नही थी। जो भी श्रद्धा से समर्पित करता, वे बच्चों की पढाई और वृद्धों की मेडिकल हेल्प में खर्च कर देते थे। दो साल के बाद जब रमेश का सारा लोन चुकता हो गया, तब एक दिन स्वामी जी रमेश को यह कह कर चले गए, कि उन्होनें कुछ अधूरे काम पूरे करने हैं, अब वो यहां अधिक नही रूक सकते है। यहां रहने का उनका का कारण पूरा हो गया है। रमेश रोने लगा, कि वह उनके बिना अधूरा है। स्वामी जी ने रमेश को समझाया कि वह उनके बजाए हिसाब से जीवन बिताए, कोई समस्या आए, वो जरूर मिलने आएगें। वे रमेश से एक महीने बाद मिलने जरूर आएगें।
ललित अपनी पत्नी निर्मला और पुत्री सुकन्या के साथ जीवन बिता रहा था। निम्मो ने लाला से कुछ नही पूछा, कि वह पिछले चार साल कहां रहा, कैसे रहा। उसे डर था, कहीं लाला दुबारा न चला जाए। लाला अब भी दुकान पर कम जाता था। अधिक समय वह ध्यान में बिताने लगा। दुकान जा कर खाते जरूर देखता था। चरण के घोटालों से वह वाकिफ था, परन्तु टोकता नही था। जिस कारण उसके पिताजी ने उसे गलत समझा, इसलिए वह चुप रहता। पिताजी भी कुछ नही कहते, कहीं दुबारा लडका घर से न निकल जाए। दो महीने बाद उसने निर्मला से कहा।
“निम्मे, मैं कहां चार साल रहा, कभी पूछा नही।”
“आप मेरे साथ हो, उससे अधिक कुछ नही चाहिए। मैं आपको कष्ट नही देना चाहती।”
“चाहता हूं, कि मैं तुमको वो सारी जगह दिखाना चाहता हूं, जहां मैं चार साल रहा। उनको अपना परिवार दिखाना चाहता हूं।”
निर्मला और सुकन्या के साथ ललित लाला अपने अतीत के सफर पर निकल पढा। निम्मे बनिए के घर पैदा हुआ, पला बढा हुआ। मेरी नस नस में व्यापार बसा है। स्कूल की छुट्टियों में पिताजी दुकान ले जाते थे, वहीं से ट्रेनिंग शुरू हुई। मेरा और चरण का स्वाभाव अलग रहा। आम बोलचाल की भाषा में मैं सीधासाधा और चरण चालू माल। इसी फर्क के कारण मुझे घर छोडना पडा। मैंने कोई गलत काम नही किया था। खातों में कोई हेराफेरी नही की। चरण ने खुद रकम अपने पास रख कर इलजाम मेरे पर लगा दिया। मैं विचलित तब हुआ, जब तुमने मुझ पर एतबार करना छोड दिया। यदि तुमने मुझ पर एतबार किया होता, तब मैं सबसे लड जाता। जीवन साथी का भरोसा और साथ ही जीवन की कठिनाऔं से जूझना सिखाता है और कठिनाऔं का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है। तुम्हारा साथ न पाकर मैं विचलित हो गया और घर छोड कर दो साल भटकता रहा। पहले हरिद्वार, ऋषिकेष घूमता रहा, कुछ आश्रमों में रहा, परन्तु चैन नही मिला। कुछ आगे हिमालय की तली और पहाडों में भी गया। हर स्थान पर बैचेनी, राजनीति, राग, द्वेष, घृणा, ऩफरत ही देखी। जो साधू, संत, फकीर भाईचारे, शान्ति का संदेश देते हैं, उनको करीब से देखा। सब का नया चेहरा ही नजर आया। कुछ बताने के बदले रकम एठते है। अधिकतर नशे की लत से ग्रस्त है। गांजा, अफीम का नशा करते हैं। सुन्दर लडकियों को भजन मंडिलियों में शामिल कर शारीरिक और मानसिक शोषण करते है। उनके भक्त, अनुयायी अनगिनित, लाखों की तादात में होते है। नेता भी उनसे मिले हुए है। चुनावों में उनसे कहते है, कि उनका प्रचार करे, जिसके बदले उनको रकम, मुफ्त में आश्रम खोलने के लिए जमीन देते हैं। कईऔं को तो राजनैतिक पद भी दिये जाते है। किसी न किसी पार्टी से हर कोई जुडा हुआ है। मेरा मन उस दिन खिन्न हो गया, जब मैं एक बडे संत, जो अपने को भगवान का स्वरूप कहता फिरता है का घिनौना रूप देखा। मैं दोपहर को विश्राम करने के लिए उस संत के आश्रम के बाहर पेड के नीचे चादर बिछा कर लेटने लगा ही था, कि एक युवती लगातार रोते जा रही थी, वह अपने परिवार के साथ थी। परिवार उसको चुप करवा रहा था। युवती बौखलाई हुई गश खा रही थी और चिल्ला रही थी, मुझे यहां से ले जाऔ। तभी आश्रम के गार्डो ने उनको वहां से खदेडा, कि दुबारा नजर न आए, वरना जान भी जा सकती है। मैं यह सुन कर दंग रह गया। जान बचाने के लिए सभी वहां से भाग निकले। मुझे उत्सुक्ता हुई, कि आखिर सारा माजरा क्या है? मैं उनके पीछे बस अड्डे तक गया और उनसे बातचीत की। बात सुन कर मैं दंग रह गया और पांव नीचे जमीन खिसक गई। वह परिवार संत का अनुयायी था और बरसों से संत बाबा के आश्रम में आ रहे थे। परिवार के पुत्र के विवाह के बाद पुत्रवधू को संत बाबा का आश्रीवाद दिलवाने परिवार वहां आया था। वह युवती, जो रो रही थी, उस परिवार की पुत्रवधू थी और अत्यंत खूबसूरत थी। उसको देख कर ऐसा लग रहा था, कि भगवान ने उसे किसी सांचे में ठाल कर निकाला है।
जब युवती संत बाबा का अश्रीवाद लेने समीप गयी तब बाबा ने कहा कि गजब की सुंदर हो, पति को छोड़ मेरे पास आओ, रानी बना कर रखूंगा। इतना सुन कर युवती ढोंगी बाबा के मन में उमड़े गंदे विचारों को भांप गयी और तुरंत बिना कोई उत्तर दिए मुड गयी और बाहर आ कर रोने लगी। ढोंगी बाबा के धूर्त चेलों ने उस युवती को पकड़ कर खीचना चाहा पर वह उनकी पकड़ को छुडा कर भागने में सफल हुई। युवती को हाथ से निकलता देख उन्होंने उस परिवार को खदेड़ दिया और चुप रहने की सलाह दी वर्ना बुरे परिणाम हो सकते हैं।
मेरा मन खिन्न हो गया और उस समय मैंने सोच लिया कि मैं और नहीं भटकूगां और घर में अपने परिवार के साथ रहूँगा। मैं उस परिवार के साथ बस में बैठ गया। वह परिवार तो अपने गन्तव पर उतर गया। कुछ दूर बाद बस ख़राब हो गयी। जहां बस ख़राब हुई वहां एक नहर थी, मैं विश्राम करने के लिए नहर के किनारे बैठ गया और ध्यान मुद्रा मैं अवलोकन कर रहा था, तभी रमेश आत्महत्या के लिए नहर में कूद गया। लोगों ने शोर मचाया। मैं जहाँ बैठा था, वहीँ एक नाव थी, मैं नाव वाले के साथ उस स्थान पर गया, जहाँ रमेश कूदा था। उसको बचाया। बनिए की औलाद हूँ, व्यापार मैं कम रूचि रही पर सब दाव पेंच समझता हूं। फिर दो साल उसके पास रहा। मैं यह सोच कर वहां रहा की मैंने तुझे कष्ठ दिए है, रमेश का जीवन संवार कर कुछ प्रायश्चित कर लूं। आज रमेश ठीक है और मैं अपनी निम्मो के साथ हूँ।
सुबह के छ बज रहे थे। लाला निम्मो और सुकन्या के साथ रमेश के घर पहुंचा। दरवाजे की घंटी बजाई। रमेश नींद में था, घडी देखी छ बज रहे थे। सोचा कौन हो सकता है इतनी सुबह। उठ कर दरवाजा खोला।
“स्वामी जी, आप। आईये अन्दर आईये। आप कह कर गए थे, कुछ दिनों में आ जाएगें। तीन महीने बाद आप आए हैं। मैं रीना को कह कर नाश्ता बनवाता हूँ।”
“नहीं उसको मत जगाओ। मुझे पता है कि रविवार को आप सब देर से उठते हो। आज बच्चों का भी स्कूल बंद होगा। सबको आराम करने दो। हां, रमेश देखो, मेरे परिवार से मिलो। मेरी पत्नी निर्मला और पुत्री सुकन्या।”
“स्वामी जी आप ने कभी अपने परिवार के बारे में बताया ही नहीं और रीना को आवाज़ लगाई। देखो स्वामी जी आये हैं अपने परिवार के साथ।”
रीना फटाफट बिस्तर से उठी और बैठक में आ कर स्वामी जी को देख कर उनके चरण स्पर्श किये। रीना स्वामी जी के परिवार से मिलकर गदगद हो गयी। उनके लिए नाश्ता तैयार किया।
“स्वामी जी आप नाश्ता करके थोडा आराम कर लीजिये। सफ़र की थकान दूर हो जाएगी।” रीना ने अनुरोध किया।
“जी स्वामी जी रीना ठीक कर रही है। मैं तो बातों में भूल ही गया। बहुत दिनों के बाद आपसे मुलाकात हो रही है, इसीलिए ध्यान ही नहीं रहा।”
स्वामी जी ऊपर उसी कमरे में विश्राम करने गए, जहाँ वे पिछले दो सालो तक रहे। निर्मला और सुकन्या ने भी आराम किया। जब आराम के बाद वे बैठक में आये तब बैठक में स्वामी जी के अनुयाई एकत्रित हो गए। आंधी की तरह आने की खबर फैली और सभी एकत्रित हो गए। निर्मला हैरान हो गयी कि जिस पति को वो निखट्टू समझती थी, वह इन्सान देवता की तरह पूजा जा रहा है। स्वामी जी एक कुर्सी में बैठ गए और सबको सम्भोधन करते कहा।
“आप सब मुझे स्नेह से स्वामी जी कहते हैं। मैंने पहले भी कई बार आप से अनुरोध किया कि मैं कोई स्वामी नहीं परन्तु आप जैसा साधारण इन्सान हूँ। मेरा नाम ललित है। घर में सब मुझे लाला बुलाते है। कुछ हंसते हुए, मेरी पत्नीं निर्मला भी मुझे लाला कह कर पुकारती है। सबको अपना अतीत बताता। सब लोग चुपचाप स्वामी जी को सुनते रहे। सबकी आँखों में आंसू आ गए कि यही फर्क होता है एक आम और खास आदमी में। आम सिर्फ आपने लिए जीता है और खास आदमी स्वामी जी रमेश के लिए जिए। कौन लगता है रमेश स्वामी जी का, वह रमेश जो आत्महत्या करके खुद की जीवनलीला समाप्त कर रहा था, उसे जीने की राह दिखाई। आज रमेश खुद भी संपन है और दूसरों की भी मदद करता है। सबने एकमत निर्णय लिया कि स्वामी जी को पूरा अधिकार है कि वे अपने परिवार के साथ रहें। हमें स्वामी जी के बताये मार्ग पर चलना चाहिए क्योंकि हमारे सारे ऋषि मुनि गृहस्थ थे जिन्होंने गृहस्थी मैं रह कर तपस्या की और हमें जीने के लिए मार्ग बताया। हम अपने ऋषि मुनियों के मार्गों को भूल जाते है। ऐसे मौकों पर स्वामी जी जैसे इंसान जनम लेते हैं। स्वामी जी हमें आपकी ज़रुरत कदम कदम पर पड़ेगी।
“में आपको अपना फ़ोन नंबर दे रहा हूँ। जब चाहें फ़ोन कर सकतें हैं। मुझे अपने पास बुला सकते हो। मेरे पास आ सकते हो।"
स्वामी जी एक सप्ताह रहे। लोंगों का तांता लगा रहा। निर्मला लोगों के उसके पति ललित लाला पर अटूट विस्वास देख कर धन्य हो गयी। एक सप्ताह बाद जब स्वामी जी रवाना होगे लगे तो लोग फूटफूट कर रो रहे थे। हर किसी के हाथ में स्वामी जी के लिए तोफ्हा था। रमेश ने स्वामी जी के लिए नई कार खरीदी और सपरिवार स्वामी जी को उनके घर तक छोडा। स्वामी जी ने कार अपने पास रखने से मना कर दिया, कि उनको इसकी कोई जरूरत नही है, परन्तु रमेश ने कार सुकन्या को उपहार में दी, साथ ही साथ अपने व्यापार का पच्चीस प्रतिशत निर्मला और सुकन्या के नाम कर दिया, क्योंकि स्वामी जी ने उसे ग्रहण करने से मना कर दिया। लोग स्वामी जी से मिलने आते रहे। मिले उपहार और पैसे जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा और बुजुर्गों के चिकित्सा में खर्च करते। दुकान पर कभी कभी बैठते। रमेश हर महीने स्वामी जी से मिलने आता और विचार विमर्थ करता। उसने एक ऐजुकेशन और हेल्थ ट्रस्ट बनाया, जिससे स्वामी जी जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा और बुजुर्गों के चिकित्सा का खर्च उठाते। चरण की आदते सुधरी नही। ललित उसकी आदतों को नजरअंदाज करते रहे। लेकिन चरण ललित के विरूध कुछ बोलता नही था, क्योंकि उसको डर था, कि कहीं घर और दुकान से बाहर न कर दिया जाए।
वो ढोंगी बाबा, जो अपने को भगवान का स्वरूप कहते थे, जिन्होनें उस सुन्दर युवती को अपने हरम में आने की दावत दी थी। आज हवालात में बंद है। कोई सोच नही सकता था, कि वह बाबा, जिसे राजनितिक संरक्षण प्राप्त था, उसके पीछे कई राज्यों की पुलिस लगी थी। कई महिलाऔं ने यौन शोषण के आरोप लगाए। पहले पुलिस ने केस दबाया, परन्तु जनता के रोष के बाद ढोंगी बाबा जी हवालात में बंद है।
कल का ललित लाला आज के स्वामी जी बन गए, परन्तु किसी का शोषण नही किया। सब की मदद को तैयार रहते। ललित वास्तव में गृहस्थी के अंदर रहकर अपने ज्ञान को लोगों में बांट देते।