भाग्य
कुछ परेशान अनुराग आज घर से जल्दी निकला, आखिर कंपनी के मैंनेजिंग
डारेक्टर ने कल बीती शाम चेतावनी के साथ अल्टीमेटम दे दिया था, अगर बैंक का
लोन स्वीकृत नही हुआ तो आफिस में नही घुसना, हिसाब घर भेज दिया जाएगा। इसी
परेशानी में पूरी रात बिस्तर में करवटे बदलते बीती। रात को पूरी नींद नही
आई, आंखे बोझिल, दिमाग में परेशानी के कारण जल्दी नाश्ता करके बाईक स्टार्ट
की। पत्नी पूछती रह गई, कि उदासी की क्या वजह है, लेकिन अनुराग हिम्मत जुटा
नही पाया, कुछ कहने के लिए। काम का बोझ कह कर वह घर से निकल पडा। सुबह के
समय सड़क पर ट्रैफिक भी अपेक्षाकृत कम मिला, नतीजा यह हुआ कि बैंक खुलने से
पहले ही वह पहुंच गया। बैंक की औद्योगिक वित शाखा का खुलने का समय सुबह दस
बजे है। घड़ी देखी, नौ बज कर बीस मिन्ट। अनुराग बैंक की सीढ़ीयां चढने लगा,
बैंक के दरवाजे पर सफाई कर्मचारी सविता मुंह में पान चबा रही थी। अनुराग को
देख कर पान की पीक को पास रखे कूडेदान में फेंक कर बोली, " नमस्ते अनुराग
बाबू, आज तो बहुत जल्दी आ गए, क्या बात है, बीवी मायके गई लगती है।"
"एैसी कोई बात नहीं है।" अनुराग ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"हंसी तो¨ एकदम फीकी है, बाबू।" सविता ने बात आगे बढाते हुए कहा, कोई तो
बात है, इतनी जल्दी बैंक में आने का कोई तो कारण होगा। सबको मालूम है, चीफ
साब टाइम से आते हैं, बाकी तो सब मस्ती मारते हैं, कोई साढे़ दस आता है तो
कोई ग्यारह बजे। सरकारी बैंक है, सबकी पैंशन लगी हुई है यहां, आपको तो
मालूम है, फिर भी इतनी जल्दी आ गए।"
सविता बात तो ठीक कह रही थी, औद्योगिक वित शाखा में क्योंकि आम जनता के लिए
पर्सनल बैंकिंग नहीं होती हैं, उद्योगों और व्यापार से जुडे कार्य ही होते
हैं, इसलिए समय की सीमा में न बंध कर अपनी सुविधानुसार कार्यसमय स्टाफ ने
अपनाया हुआ था। शाम को देर तक रूकना और सुबह थोडा देरी से कार्य शुरू करना।
इसलिए बैंक कम और प्राईवेट ऑफिस अधिक लगता है। अनुराग एक प्राईवेट कंपनी
में अधिकारी हैं, जो बैंक से जुडे कार्य करता है। हर दूसरे दिन अनुराग बैंक
काम हेतु आता है, इसलिए बैंक का हर स्दस्य अनुराग को जानता है और घुलेमिले
है। कंपनी को एक नये प्रोजक्ट के लिए लोन की आवश्कता थी, जिसके लिए अनुराग
को बैंक के चीफ मैंनेजर से बात करनी थी। वैसे तो उसने ग्यारह बजे ही बैंक
आना था, लेकिन कंपनी के मैंनेजिंग डारेक्टर ने विशेष हिदायत दी कि सुबह
बैंक खुलने से पहले ही पहुंच कर सबसे पहले चीफ मैंनेजर से बात करके फोन
करना कि नये प्रोजक्ट में बैंक का क्या रूख है और कितना लोन मिल सकता है।
मैंनेजिंग डारेक्टर को मालूम है कि चाहे बैंक स्टाफ देरी से आए, लेकिन चीफ
मैंनेजर साढे नौ बजे बैंक आ जाता है। इसी कारण अनुराग समय से पहले बैंक
पहुंच गया।
अनुराग से सविता बतिया रही थी। वह तो अपना टाइम पास कर रही थी, लेकिन
अनुराग की मजबूरी थी, ना चाह कर भी वह हां हूं कर रहा था। तभी सीढ़ीयां चढते
हुए कैशियर त्रिलोक की गाना गुनगुनाने की आवाज आई "सजना जी वारी वारी जाऊं
मैं।"
"क्या बात है, त्रिलोक आज तो गाना गा रहा है।" सविता ने अब ठिठोली की तो
अनुराग को चैन आया कि अब सविता से पीछा छूटा।
"हम तो हमेशा ही गाना गाते हैं, आज कोई नई बात थोडे है।" कहते हुए जेब से
चाबी निकालते हुए कहा, "फटाफट बैंक खोल।" फिर अनुराग से कहा, "गुड मॉनिंग
अनुराग जी, आज तो कहीं मैं लेट तो नहीं हो गया।" फिर घडी देख कर कहा, "अभी
तो पौने दस है, औहो, आज आप जल्दी हैं, मैं भी कहूं, घर से तो टाइम से चला
था और आज तो ट्रैफिक भी कम मिला, लेट होने का तो मतलब ही नहीं।"
"आज चीफ साहब नहीं आए।" अनुराग ने त्रिलोक से पूछा।
"चीफ साहब को तेज ज्वर हो गया है, उनका फोन आया था। आज तो वे छुट्टी पर
हैं।"
"उनसे जरूरी काम था।"
"अनुराग जी आप बैठो, सीनियर मैंनेजर हरजीत से बात कर लेना। कल शाम को चीफ
साहब हरजीत से आपका प्रोजेक्ट डिसकस कर रहे थे, उनको सब मालूम है।"
इतने में सविता ने बैंक का गेट खोला। अनुराग कुर्सी में बैठ कर समाचार पत्र
पढ़ने लगा। तभी अनुराग का मोबाइल फोन बजा। देखा तो मैंनेजिंग डारेक्टर का
फोन था।
"जी सर।"
"क्या बात हुई।"
"सर आज चीफ मैंनेजर बीमार हैं, बैंक नही आ रहे है। अभी सीनियर मैंनेजर
आएगें, उनसे बात करता हूं।"
"क्या खटारा बैंक है, दस बजे हैं, किसी का अता पता नही है। जो बात हो, मुझे
फौरन फोन करना, बैंक बदलना पढेगा, बढा ठीला ठाला काम करते हैं।" कह कर फोन
काट दिया।
एक लम्बी सांस लेकर आंखे बंद करके अपने आप से मन ही मन अनुराग बातें करने
लगा। कंपनी के मालिक हैं, लेकिन बात करने की अक्ल नहीं है। एक सीनियर
मैंनेजर हूं, पिछले सोलह साल से नौकरी कर रहा हूं। जवान खून है। बाप की जमी
जमाई पूंजी और चली चलाई कंपनी मिल गई है। मुझसे क्या, सभी से एैसे बात करता
है कि जैसे आगे वाला कोई बंधुआ गुलाम हो। हम तो नौकर हैं, जब तक नौकरी कर
रहे हैं, सुन लेंगें, बरदास्त कर लेंगें, लेकिन और कोई कौन सुनेगा। बैंक पर
भी गुस्सा। यह तो शरीफ बैंक है, जो हर समय कंपनी को वितीय सहायता देता रहता
है। पिताजी की पुरानी साख है, जिस को बेटेजी भुना रहै हैं। दूसरे बैंक का
रोब मुझे देते है, बदल लो बैंक, मैं कब रोकता हूं। कंपनी मैं कोई ज्यादा
लाभ तो हैं नही, कि कोई दूसरा बैंक आराम से लोन दे देगा। यह तो बैंक के साथ
पुराने संबंध हैं कि जितना लोन चाहो, मिल जाता है। अनुराग इन्ही ताने बानो
में उलझा हुआ था कि सीनिजर मैंनेजर हरजीत ने बैंक में कदम रखा और अनुराग को
देख कर कहा,
"अरे अनुराग जी आज क्या खास बात है, इतनी सुबह।" और दोनों ने हाथ मिलाया।
दस पंद्रह मिन्टों में बैंक का पूरा स्टाफ आ गया। एक दूसरे के साथ नमस्ते
कह कर अपनी अपनी कुर्सियों पर काम में व्यस्त हो गए। अनुराग हरजीत के सामने
कुर्सी खींच के बैठ गया। अनुराग को सामने देख कर मुसकरा के हरजीत ने कहा,
"अनुराग बाबू, थोडा़ सा इंतजार करवाऊंगा, फिर आपके साथ बैठते हैं। आज चीफ
साहब को बुखार है, एक जरूरी रिपोर्ट हैड आफिस भेजनी है। आधा घंटा लग जाएगा,
उस में। चीफ के साइन भी होने है, एक आदमी चीफ के घर जाकर साइन करवाएगा, फिर
कुरियर होगी, रिपोर्ट। बैंक का मामला है, चाहे तबीयत ठीक हो या खराब, काम
समय से पूरा करना है। आप लोगों के मालिक ऊपर से प्रेशर भी बहुत लगवाते हैं।
छोडों इन बातों को, रिपोर्ट जरूरी है, तब तक आप अखबार पढो।" कह कर अनुराग
को अखबार थमा दिया। अनुराग समाचार पत्र पढने लगा। बैंक के कर्मचारी काम में
व्यस्त हो गए। लगभग आधे घंटे बाद हरजीत ने अनुराग से कहा, "अब आपके साथ
बैठते हैं। क्या हाल हैं, जोशी साहब के।" जोशी अनुराग की कंपनी के
मैंनेजिंग डारेक्टर हैं। अभी अनुराग कुछ कहता, हरजीत ने खुद ही कहा, "हाल
जैसे भी हों, अब तो बढिया हो जाने वाले हैं। कल चीफ साहब की हैड ऑफिस में
बात हो गई है। आप ने जो लोन ऐपलीकेशन लगा रखी हैं, उस पर आपको लोन की
मंजूरी हो गई है, बस आपको कुछ शर्तो की पालन करना है। लिखित मंजूरी भी दो
चार दिनों तक आ जाएगी। बस आप शर्त पालन की अपनी लिखित स्वीकृती दीजिए।"
हरजीत अनुराग को शर्तो के बारे में समझा रहे थे, तभी केबिन में एक युवक ने
प्रवेश किया।
युवक नें सफेद कुर्ता पजामा पहन रखा था, माथे पर एक लंबा चंदन का तिलक लगा
रखा था और हाथों में दो तीन पुस्तिकाएं पकडी हुई थी.
युवक को देख कर हरजीत नें उससे पूछा, "जी आपको मैंनें पहचाना नही, किससे
मिलना है, आपको।"
"बच्चा हम माथे की लकीरों को देख कर हाल बता देते हैं। भूत, वर्तमान,
भविष्य कुछ नही छिपा हैं, हमसे। पूछ क्या पूछना चाहता है, क्या समस्या हैं,
तेरी।"
ज्योत्षी युवक की बात सुन कर हरजीत एकदम हैरान हो गया, क्योंकि बीस सालों
की बैंक नौकरी में हरजीत ने आज तक बैंक में किसी ज्योत्षी को एैसे घुसते
नही देखा था। चार शहरों और सात ब्राचों में हरजीत ने कार्य किया हुआ था,
लेकिन आज तक एैसे किसी ज्योत्षी से पाला नही पढा था। अनुराग भी उस ज्योत्षी
युवक को ऊपर से नीचे तक घूर के देखने लगा।
"जो पूछना चाहता है, बिना झिझक के पूछ, तेरे सब प्रश्नों का जवाब है।"
"और लगता है, हर समस्या का हल भी होगा, आपके पास।" फाईलों में उलझा गुरदीप
ने हल्के से मुसकुरा कर उस ज्योत्षी युवक से व्यंग्यात्मक ठंग मे कहा।
"मूर्ख मत बन बालक।" ज्योत्षी युवक ने गुरदीप को देखते हुए कहा। "एैसी
नादानी मंहगी पढ़ सकती है।"
अब गुरदीप फाईलों को एक तरफ रख कर कुर्सी खींच कर बैठ गया और बात आगे बढाते
हुए बोला, "देखिए भाई साहब, नादानी वैगरह तो मैं नही जानता, लेकिन मैं
इनमें विश्वास नहीं करता हूं।"
"श्विश्वास नहीं करना ही नादानी है, आज जब समस्त विश्व ज्योत्ष शास्त्र के
आगे नमस्तक है, इसको नही मानना ही नादानी है।"
"नादानी तो महाशय आप कर रहे है, अभी आपने बैंक में घुसते ही कहा था, कि आप
माथे की लकीरों को पढ़ कर ही भूत, वर्तमान, भविष्य सब बता देते हैं।"
"बिल्कुल सही कहा था,और अपनी बात पर अभी भी अडिग हूं।"
"आप मुझे ध्यान से देखिए, मैं सिख हूं और मेरी पगडी बांधने का स्टाईल बडे
ध्यान से देखिए, मेरा माथा तो बिल्कुल नजर ही नही आता है। जब माथा ही नजर
नहीं आएगा, तो माथे की लकीरे कहां से आपको नजर आएगी। जब लकीरे ही नजर नही
आएगी, तब आप क्या पढ पाएगे।" गुरदीप ने कुछ गुस्से में कहा।"
"गुस्सा स्वास्थय के लिए हानिकारक है, मैं तुमहारे स्वाभाव से सब कुछ बता
सकता हूं।" युवक ने गुरदीप की बात काटते हुए कहा।
"माथे की लकीरों से अब स्वाभाव पर आ गए।"
गुरदीप का स्वभाव हरजीत को मालूम था, कि वह कुछ गर्म जल्दी हो जाता है,
इसलिए बात को संभालते हुए कहा। "देखिए जनाब आप गलत स्थान पर आए हैं। यह
बैंक की औद्योगिक वित शाखा है, यहां हम आम लोगों के खाते नही खोलते हैं।
हमारी शाखा में केवल उद्योगों के ही काम होते हैं और खाते भी उन्हीं
उद्योगों के खोले जाते हैं, जो हमारे से लोन लेते हैं। हमें यहां बैंक ने
उद्योगों के भविष्य बनाने और संवारने के लिए बैठा रखा है। हम बैंक के
कर्मचारी हैं, हमें अपना भाग्य और भविष्य मालूम हैं। अब जब बात शुरु हुई है
तो मैं आपको अपना खुद का भविष्य बताता हूं। मेरी अभी चैदह साल तीन महीने और
ऊंगलिऔ पर गणणा करके हरजीत ने कहा सात दिन की नौकरी बाकी है। फिर मैं
रिटायर हो जाऊंगा। अभी सीनियर मैंनेजर की पोस्ट है, दस साल बाद चीफ मैंनेजर
बन जाऊंगा और उसी पोस्ट पर रिटायर हो जाऊंगा। भविष्य निधी, रिटायरमेंट फंड
का कितना पैसा मिलेगा और कितनी पैंशन मिलेगी, अभी पांच मिन्टों में हिसाब
बता सकता हूं।"
"यह तो तुम जानते हो बच्चा, लेकिन बच्चों और फैमिली के बारे में कुछ नही
जानते हो।"
"बच्चे तो मेरे दो हैं। मेरी कोशिश है कि उनको अच्छे संस्कार दूं। वो खुद
अपनी लाईफ जिएगें। पुरानी कहावत सुनाता हूं। पूत सपूत काहे धन जोडे, पूत
कपूत काहे धन जोडे। उसके भविष्य के लिए मुझे चिन्ता की कोई जरूरत नही है।
रिटायरमेंट के बाद थोडी जरूरतें रह जाऐगीं, गुजारा पैंशन और फंड के पैसों
से हो जाएगा। अब मैं एक पते की बात बताता हूं। हम बैंक में लोगों का भविष्य
बनाते और संवारते हैं। आप लोग तो भविष्य बताने की बात करतो हो। हम भविष्य
बनाते है, ये सामने अनुराग बैठे हैं। हमारे बैंक ने इनकी कंपनी को लोन
दिया। अब ये नई फैक्टरी लगाएगें, बन गया न कंपनी का भविष्य। साथ में कंपनी
में काम करने वालों का भी, सब को तरक्की मिलेगी। नई फैक्टरी में नये रोजगार
निकलेगें, सौ दो सौ युवकों की नौकरी पक्की। यहां से आफिस जाएगा अनुराग,
मेरी बात गांठ बांध ले, कि अनुराग की प्रोमोशन पक्की है। क्यों मैं क्या
झूठ तो नही बोल रहा हूं।"
अनुराग ने गर्दन हिला कर स्वीकृति दी, "लगता है, हरजीत जी कि ज्योतिष
विद्या आप भी जानते हैं।" अनुराग ने हलके से मुसकुरा कर कहा।
"इसमें ज्योतिष क्या करेगा। साधारण सी बात है, जैसे मैं अपना भविष्य जानता
हूं, आप भी जानते हो। आप बैंक में कंपनी के नये प्रोजेक्ट के लिए आते हो।
अगर आपका लोन स्वीकृत नहीं होता तो गाज सबसे पहले आपके ऊपर गिरती। आप को
नौकरी से निकाला भी जा सकता था, क्योंकि अब आप खुशी से लोन की खबर मालिकों
को देंगे, आपकी प्रोमोशन पक्की है, क्यों ज्योतिष महाराज जी, आप अपनी राय
दीजिए अब।"
"तुम लोगों ने मेरा मजाक उडाया है।' भुनभनाते हुए युवक ने कहा।
"देखो, इसमे नाराजगी की कोई बात नही है, जो मैंने कहा है, सच है और सच
हमेशा कडवा होता है। आप गलत स्थान पर आए हैं, कहीं और जा कर आप अपनी
दुकानदारी कर सकते हैं और अपना सामान बेच सकते हैं। आपको खरीददार अनेकों
मिल जाएगें, लेकिन मैं आपकी बातों में हरजिग नहीं आ सकता हूं। जैसा मैनें
आपको पहले भी कहा कि हम यहां बैठ कर दूसरों का भाग्य बनाते और संवारते है।
अब आप मुझे जोशी साहब की कंपनी का भाग्य संवारने के लिए समय दीजिए। सबका
समय कीमती हैं, फाईल तैयार करके अनुराग को देते हैं, उसकी प्रोमोशन में आप
देरी मत होने दीजिए। आप यहां से प्रस्थान कीजिए और हमे बैंक के ग्राहकों का
भाग्य बनाने और संवारने के लिए काम करने दीजिए।" इतना कह कर हरजीत फाईलों
में उलझ गया और युवक बैंक की सीढीयां उतरने लगा।
अनुराग के दिल पर पडा भारी भरकम बोझ, परेशानी का पथ्थर हट चुका था। मोबाइल
निकाल कर पत्नी को फोन किया, कि परेशानी की कोई जरूरत नही हैं, पेंडिग काम
हो गया है।"
मनमोहन भाटिया