भिखारी
दोपहर के समय ताऊ हुक्का लेकर बैठा था। तभी ताऊ का लाड़ला भतीजा धरमू स्कूल
से वापस आया और बैग खाट पर प
टक कर गुस्से में बोला। ताई जिन्दगी में कभी नहीं सुधरेगी, तू बिल्कुल ठीक बोलते हो और आज मैंने अपने आंखों से देख लिया।
क्या हो गया धरमू, स्कूल में मास्टर ने पिटाई कर दी क्या, इतना नराज है? ताऊ तेरा भतीजा हूं, मास्टर की मजाल कि मुझे पीटे। कोई शैतानी नहीं की मैंने स्कूल में, हमेशा पढ़ाई में ध्यान लगाए रखता हूं, हर साल पास होता हूं, तुझे तो पता है ताऊ।
तो फिर गुस्सा क्यों रो रहे हो? ताई भिखारियों को मंदिर के बाहर खाना खिला रही थी और पैसे भी बांट रही थी। तूने इतनी बार मना किया है कि भिखारियों को कुछ न देना, लेकिन ताई के अकल में कोई बात ही नहीं घुसती।
बुढ़िया सठिया गई है धरमू, पूरी उमर बीत गई समझाते-समझाते, लेकिन कुछ समझे तब न ! अब तो मैंने कहना ही छोड़ दिया धरमू। नहीं इस बार तो कहना पड़ेगा ताऊ, ताई की खटिया खड़ी करनी है आज तुझे, नहीं तो मैं तेरे से बात नहीं करूंगा।
धरमू अगर तू नाराज हो गया तो मेरी जिन्दगी बरबाद समझ। जब से रिटायर हुआ हूं, ताई मुझे निक्कमा समझती है। एक तू ही है जो मेरी बात समझता है और मानता भी है। तभी ताई घर में आई। घर की चौखट में घुसते ही ताऊ भतीजे की बातें सुनकर उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसके बारे में ही दोनों बातें कर रहे थे। ध्यान दूसरी तरफ करने की खातिर ताई बोली, धरमू रोटी खा ले, तेरी मां आवाज लगा रही है।
ताई झूठ न बोलो, मैंने तो कोई आवाज न सुनी। वैसे भी घर की सारी रोटियां तो तू मंदिर में भिखारियों को बांट कर आ रही है। मेरे लिए कुछ बची भी होगी क्या? तो क्या हुआ, मंदिर जा कर पुण्य करना तो जरूरी है। कोई जरूरी नहीं है ताई। तू जिन भिखारियों को पूरियां खिला रही थी, वे खा नहीं रहे थे। सारे के सारे निक्कमें जमा कर रहे थे। बाद में सब जाकर उसी दुकानदार को वापस बेच देंगे।
हो ही नहीं सकता है, धरमू तू झूठ क्यों बोल रहा है? मैं क्यों झूठ बोलूंगा, मैंने तेरी जासूसी की है ताई। ताऊ सुन, मैं अभी स्कूल छुट्टी के बाद घर वापस आ रहा था तो मैंने देखा मंदिर के बाहर ताई पूरी सब्जी खरीद कर भिखारियों को खिला रही थी। मैं पेड़ के पीछे छिपकर तमाशा देख रहा था। ताई पांच-पांच रूपये का पूरी-सब्जी खरीद कर भिखारियों को बांट रही थी, उधर वहीं भिखारी उसे दुकानदार को 3 रुपये में बेच रहे थे, हो गया न 2 रुपये का शुद्ध प्रॉफिट। क्या कहते हैं ताऊ?
रोज तो स्कूल से आकर शोर मचाता था कि रोटी दे भूख लगी है, आज कहां गई तेरी भूख। मैं पूछ रही हूं मां के पास खाएगा या मेरे पास? तू तो भाषण देते जा रहा है, चुप ही नहीं रह रहा, ताई ने बौखला कर कहा। ताई तूने बात ही ऐसी कर दी है। मैं तो वैसे भी ताऊ के साथ मिलकर भिखारियों पर रिसर्च कर रहा हूं। ताई लगता है तूने अखबार पढ़ा नहीं कि आजकल के भिखारी भी लखपति और करोड़पति हो गए हैं।
झूठ क्यों बोलता है धरमू। यह सुन कर चुपचाप बैठा ताऊ बोला, धरमू तू किस अखबार के बारे में कह रहा है, जान का दुश्मन है अखबार तेरी ताई का। कहती है, मेरे से बात तब करें न जब मुई सौत से पीछा छूट जाए। अखबार को सौत बोले तेरी ताई।
ताऊ अखबार निकाल जरा, मैं पढ़कर सुनाता हूं। ताऊ ने दो-तीन अखबार निकाल कर धरमू को दिए और घरमू अपनी भूख की परवाह किए बिना ताई को खबरें सुनाने लगा। भिखारियों के बारे में कई किस्से सुनाने के बाद धरमू ने कहा, पचास लाख का बैंक फिक्सड डिपॉज़िट करवा रखा है ताई उस भिखारन ने। दस लाख की तो बीमा पालिसी ले रखी है,उसने। तू बता तेरे नाम है कोई बीमा पॉलिसी, कोई बैंक खाता?
ताई सुन ले, अब अगर ताऊ के खून-पसीने की पेंशन किसी भीखारी में बांटी,
तो...
ताऊ खाने की थाली देख कर बोला, धरमू रोटी खा ले, तेरी ताई क्या कभी सुधरने
वाली है। हमारी आदत ही गंदी हो गई है, इसका फायदा भिखारी उठाते हैं। लेकिन
ताऊ मैं तुझे वचन देता हूं, मैं कभी किसी भीखारी को पैसे नहीं दूंगा। शाबास
मेरे धरमू।
मनमोहन भाटिया