दो हंसों का जोडा
"हैलो ध्रुव, लुकिंग स्मार्ट।" दिव्या ने कुर्सी पर बैठते ही ध्रुव को
कहा।
"कुर्सी पर तो सही से बैठ जाऔ, फिर बात करना। सुबह सुबह आते ही मेरी खिचाई
में लग गई।" ध्रुव ने दिव्या की तरफ देखते हुए कहा।
"सच कह रही हूं। आज तो वाकई बहुत स्मार्ट, स्मार्ट नही क्यूट लग रहे हो।"
दिव्या ने कंप्यूटर चालू करते हुए कहा।
"थैंक यू, दिव्या। अच्छा बता, ऑफिस लेट क्यों आई।"
"लंच टाइम में बताऊंगी। पहले काम करते है।" कह कर दिव्या काम में व्यस्त हो
गई।
दिव्या और ध्रुव एक ही ऑफिस में पिछले दो साल से काम कर रह हैं। दोनों की
सीट भी साथ साथ, उपर से हम उम्र, जवान, खूबसूरत। साथ बैठते, काम करते करते
प्यार के प्यारे पवित्र बंधन में बंध गए। ऑफिस में उन दोनों का प्यार छुपा
नही था। दोनों ने कभी अपने प्यार के रिश्ते को छुपाने की जरूरत नही समझी।
हां एक बात अलग थी कि अभी घर पर अपने रिश्ते के बारे में दोनों ने कुछ नही
बताया था। लंच समय में कैफेटेरिया में साथ साथ खाना खाते हुए ध्रुव ने
दिव्या से पूछा, "आज लेट आई, क्या बात थी।"
"घर से निकलते समय मां ने पकड लिया, उसी वजह से लेट हो गई।"
"क्या हुआ।"
"शादी के बारे में कह रही थी, पुराना राग अलापने लगी। कर ले शादी। एक
रिश्ता आया है।"
"मां को क्या कहा।"
"अभी तो मना कर दिया, नही करनी शादी, पहले की थी, मुश्किल से एक साल भी नही
चली, टूट गई, अभी मत कहो। लेकिन आज तो दरवाजे पर रास्ता ही रोक लिया। कहने
लगी अभी तो अच्छा लडका मिल रहा है, फिर उम्र बढ जाएगी, तो मिलने मुश्किल हो
जाएगे। सारी उम्र अकेली रहना मुश्किल है। ध्रुव बडी मुश्किल से आज ऑफिस आई
हूं।"
"फिर क्या सोचा है।"
"किस बारे में।"
"उसी बारे में, जो मां कह रही थी।"
"मेरे सोचने से अधिक तुम्हारा निर्णय जरूरी है।"
"कोन सा निर्णय।"
"अगर तुम हमारे प्यार के संबंध को विवाह के बंधन में बदलने में अंतिम
निर्णय लेने में सक्षम हो।" दिव्या ने ध्रुव की आंखों में आंखे डालते हुए
पूछा।
"मेरा निर्णय तुम्हारा निर्णय एक ही होगा। लेकिन मुझे इतना घूर क्यों रही
हो। डर लग रहा है।"
"मेरे से डरने की कोई बात ही नही है। मेरी मां तो उस दिन से मेरे पीछे पडी
हुई है, जब मैं तलाक लेकर वापिस घर आई। शादी कर ले, शादी कर ले। आज सुबह भी
रास्ता रोक कर खडी हो गई थी। मैनें तो सिर्फ अपना निर्णय सुनाना है। उसकी
खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही होगा। क्या तुम अपने घर वालों को हमारी शादी
के लिए राजी कर सकोगे।" दिव्या के इस प्रश्न पर ध्रुव ने कहा। "तेरी बात
टीक है कि उनका मानना एक टेढी लकीर है, जिसको सीधी करना मुश्किल काम तो
जरूर है, लेकिन मेरा निर्णय तुम्हारे साथ है। विवाह हम अवश्य करेगें।
चिन्ता मत कर, थोडा विलम्ब होगा। लेकिन फैसला अडिग है, बदलेगा नही।" इसके
बाद दोनों कैफेटेरिया से बाहर आकर अपने डेक्स पर बैठ कर काम में जुट गए।
दिव्या और ध्रुव दोनों की उम्र लगभग सताईस साल। ग्रेजुएशन के फौरन बाद
दिव्या का विवाह एक संमपन्न परिवार में हुआ। दिव्या उस रूढीवादी परिवार में
विवाह के बाद निभा न पाई और एक महीने बाद माएके आई तो वापिस ससुराल नही गई।
शुरआत में दोनों पक्षों में बातचीत होती रही। मेल मिलाप के लिए सगे संबंधी
भी बीच में कूदे। एक बार ससुराल गई, लेकिन सास के ताने हर रोज सह नही पाई
और दुबारा फिर से माएके आ गई। एक साल बाद तलाक हो गया। दिव्या ने नौकरी कर
ली। मां दूसरे विवाह के लिए रिश्ते ढूंढ के लाती और दिव्या ठुकराती जाती।
नौकरी करते करते साथ साथ डेक्स पर काम करते हुए दिव्या ध्रुव पर दिल दे
बैठी।
ध्रुव का परिवार भी विवाह के लिए पीछे पडा हुआ था, लेकिन हिम्मत नही जुटा
पा रहा था कि दिव्या के बारे में परिवार में बात करे। एक बात उसके मन में
खटकती रहती है, क्या उसका परिवार एक ऐसी लडकी, जो तलाकशुदा है, अपनी बहू के
रूप में स्वीकार करेगा। जवाब वह जानता है, वह अकेला क्या पूरा समाज, या यूं
कहे कि पूरा देस जानता है, कोरी नही, नही, बिल्कुल नही। कोई मां बाप अपने
कुंवारे पुत्र के लिए एक तलाकशुदा लडकी कभी भी स्वीकार नही करेगा। यदि
पुत्र भी तलाकशुदा है, या पत्नी का देहान्त हो चुका है, तब तो कोई भी लडकी
चलेगी। एक कुंवारे योग्य, सुन्दर पुत्र के लिए तलाकशुदा लडकी, कभी नही, कभी
नही। परिवार में दूसरे विवाह योग्य पुत्र, पुत्रियों का तो भविष्य अंधकारमय
हो जाएगा। उनके विवाह में अनेको अडचने आगे मुंह खोल कर आ सकती हैं। इसका भी
ध्रुव को सोचना था, कि कैसे वो घर पर दिव्या से विवाह की बात शुरू करे। वह
कोई अमेरिका, यूरोप में तो रहता नही है, कि किसी से भी शादी कर ले। शादी से
पहले अनुमति की भी कोई जरूरत नही। शादी करो और बता दो, कि कर ली। जब मियां
बीबी राजी तो क्या करेगा काजी। लेकिन भारत में परिवार, समाज, संस्कृति,
सभयता, सब कुछ आडे आ जाती है। यहां मियां, बीबी तो राजी होते है, लेकिन
दुनिया भर के काजी उनका जीवन जीना दूभर कर देते हैं। यहां प्यार भरा दो
हंसों का जोडा, जब विवाह के पवित्र बंधन में बंधता है, तब परिवार की
प्रतिष्ठा आडे आ जाती है। ऑनर किलिंग, प्रतिष्ठा के नाम पर अपने बच्चों का
बेहरमी से कत्ल की खबरे आमतोर पर ध्रुव सुनता ही रहता है। हर मां बाप की
ख्वाहिश होती है, कि उनके बच्चे हर हाल में खुश रहे। लेकिन उनकी खुशी, यानी
के उनका प्रेम विवाह परिवार को फूटी आंख नही सुहाता है। या तो जबरदस्ती
दूसरे के पल्ले बांध देते है, जहां वे पूरी जिन्दगी घुट घुट कर, मौत का
सामना करके बिताए, या फिर ऑनर किलिंग। कहां गई बच्चों की खुशी, कोई नही
सोचता। यह तो एक फरेब है, जिसमें हम जी रहे हैं। कुछ पलो की झूठी शान
प्रतिष्ठा के लिए हर परिवार अपने जी के टुकडों की खुशी कुरबान करके उनके
दिल के हजार टुकडे कर देते हैं। रिश्तेदार, समाज तो केवल तमाशबीन है, कुछ
दिन हो हल्ला करके चुप हो जाएगा। देखा जाए, चुप तो नही होता, लेकिन अपना
ध्यान, फोकस एक परिवार से हटा कर किसी दूसरे परिवार पर कर देता है। जिन्दगी
तबाह हो जाती है, दो हंसों के जोडे की।
ध्रुव दो भाई हैं। उसका छोटा भाई है राहुल। दो साल का दोनों की उम्र में
अंतर। दोनों विवाह की उम्र में प्रवेश कर चुके थे। कुछ समय से उस पर भी
विवाह के लिए अनुरोध किया जा रहा था। अभी तक तो वह टालमटोल कर रहा था,
लेकिन अब समय आ गया था कि वो कुछ फैसला ले। आखिर एक दिन मां ने कह ही दिया।
बेटा ध्रुव शादी की उम्र हो गई है। लडकियों के रिश्ते भी आ रहे है। अब
ज्यादा देरी ठीक नही है। तुम्हारे बाद राहुल भी तैयार खडा है। मां की यह
बात सुन कर उसके मस्तिष्क में विचार अचानक से प्रविष्ठ हुआ, कि ध्रुव खुद
हैरान था, कि उसने पहले क्यों नही सोचा। मां के एक वाक्य ने उसकी सभी
मुश्किलें हल कर दी।
"मां मेरे लिए कोई लडकी मत देखो।"
"क्यो, सारी उम्र कुंवारा रहेगा क्या।" मां ने आश्चर्य से पूछा।
"नही मां, मैं अपनी पसंद की लडकी से शादी करूंगा।" ध्रुव ने स्पष्टीकरण
दिया।
"हम कोई जबरदस्ती तो कर नही रहे है। जो लडकी तू पसन्द करेगा, उसी से शादी
होगी।"
"इसीलिए मैं कह रहा हूं, कि तुम राहुल के लिए लडकी देखो। मैं अपनी पसन्द
बता दूंगा।"
"पहले बडे की शादी होगी, फिर छोटे की होग, यही परमपरा है।" मां ने जवाब
दिया।
"मेरे पीछे राहुल को क्यां कुंवारा बिठाना चाहती हो।"
"मैं तेरा मतलब नही समझी।"
मेरी शादी में तो समय लगेगा। राहुल की शादी कर दो, मैं बाद में कर लूंगा।"
"एैसे कैसे हो सकता है। समाज क्या कहेगा।" मां ने फिर प्रश्न किया।
"देखो मां, समाज कुछ नही बोलेगा। मेरी शादी में थोडा विलम्ब है।"
"वो क्यों।"
"अभी समाज की बात कर रही थी। वोही रोडे अटका रहा है।"
"वो कैसे।" मां ने आश्चर्य से प्रश्न किया।
"हां मां, दिव्या की बडी बहन की शादी होनी है। इधर राहुल की शादी हो जाएगी,
और तब तक दिव्या की बहन की भी शादी हो जाएगी। फिर मैं शादी कर लूंगा।"
ध्रुव ने सफेद झूठ बोल दिया। दिव्या की कोई बडी बहन नही थी।
"अच्छा, उसका नाम दिव्या है। कहां रहती है।" मां ने ध्रुव का चेहरा अपने
हाथों में लेकर एक हल्की सी चपत लगा कर कहा।
"हम दोनों एक साथ आफिस में काम करते हैं।"
"ठीक है, तेरी पंसन्द हमारी पसन्द, लेकिन मिलवा तो सही।"
"समय पर मिलवाऊंगा। तब तक राहुल का रिश्ता पक्का करो।" ध्रुव ने कहा।
राहुल का रिश्ता पक्का होने पर सोची समझी रणनीति के अन्दर दिव्या को
समझाया कि जैसे वह कहता जाए, वह उसका अनुसरण करती जाए। उसे पूरी उम्मीद थी
कि वह अपनी योजना में सफल रहेगा। उसको पूरा यकीन था कि उसका परिवार दिव्या
को अपनी बहू स्वीकार कर लेगा। यह कार्य किसी युद्ध जीतने से कम नही था।
राहुल के विवाह की तैयारियां शुरू हो गई। विवाह के सभी समारोह में ध्रुव ने
दिव्या को आमंत्रित किया। पहले समारोह में दिव्या को ध्रुव ने माता पिता से
मिलवाया। खूबसूरत डिजानर साडी ने दिव्या की सुन्दरता को चार चांद लगा दिए।
मां दिव्या की खूबसूरती से मंत्रमुग्ध हो कर कुछ पलों तक तो निहारती रही।
फिर उसे गले से लगा कर प्यार किया और आर्शीवाद दिया। दिव्या ने झुक कर
राहुल के माता पिता के चरण स्पर्श किए।
"अरे ध्रुव दिव्या को खडे खडे थका देगा। अंदर कमरे में जाकर आराम करे।" मां
ने कहा।
"मम्मी जी, मैं यहां शोपीस बन कर खाना खाने नही आई हूं। आपके साथ काम में
हाथ बटाने आई हूं। अब आप आराम कीजिए। सारा काम मुझे करने दीजिए। कह कर
दिव्या काम में हाथ बटाने लगी। सभी रिश्तेदार दिव्या की सुन्दरता के दिवाने
हो गए। साथ में हर किसी का हाथ बटाते देख रिश्तेदारों ने पूछ ही लिया।
परिचय तो करवाऔ।
ध्रुव के माता पिता ने गर्व से चोडी छाती फुला कर कहा। "यह मेरी बडी बहू
है। शादी पहले राहुल की हो रही है, तो इसको छोटी बहू का दर्जा देंगे।"
"ध्रुव लगे हाथो तू भी लगन मंडप में फेरे ले ले। देरी क्यों है।"
रिश्तेदारों ने कहा तो पलट कर मां ने कहा। "दुबारा तुम सबों को न्योता देना
है। थोडा रूको। इंतजार करो। जल्दी क्या है।"
राहुल का विवाह संपन्न हो गया। दिव्या ने सभी का दिल जीत लिया। थोडा समय
रूक कर ध्रुव के माता पिता ने ध्रुव को कहा। "अब तू देरी क्यों कर रहा है।
दिव्या के साथ बाहर घूमता रहता है। जल्दी से दिव्या को घर ले आ।"
इतना सुनते ही ध्रुव ने कहा," मुझे न तो कोई जल्दी है और न कोई देरी। आप जब
कहेगें, दिव्या इस घर की बहू बन जाएगी।"
"फिर उसके माता पिता से हमसे मिलने कa कह, ताकी विवाह की बाते हो सके।" मां
के इतना कहने की देर थी कि रविवार के दिन दिव्या के माता पिता ध्रुव के
माता पिता से मिलने पहुंचे। बातचीत बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में हो
रही थी। ध्रुव के माता पिता दिव्या के गुण गा रहे थे, वहीं दिव्या के माता
पिता ध्रुव के गुण गा रहे थे। दिव्या के पिता के मुख से बातो बातो में निकल
आया "ध्रुव की जितनी तारीफ की जाए, कम है, उसने संस्कार आपसे पाए हैं, जो
बेमिसाल हैं। दिव्या की दूसरी शादी आप खुशी खुशी स्वीकार कर रहै है। आपकी
तुलना किसी महान संत से की जा सकती है।"
"दूसरी शादी।" सकपका कर ध्रुव के पिता ने पूछा।
"आप सब जान कर अंजान बन रहे हैं।" दिव्या के पिता ने कहा।
"मैं कुछ समझा नही।" ध्रुव के पिता ने पूछा।
"तलाक के बाद पुत्री भारतीय समाज में एक बोझ हो जाती है। आपने सब जान कर
दिव्या को अपनी पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया है। आप
अतुलनीय हैं।" दिव्या के पिता की आंखों में आंसू छलक गए।
"दिव्या का तलाक, आप क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ समझ नही आ रहा है।" ध्रुव
के पिता ने झुंझला कर कहा।
अब ध्रुव को हस्तक्षेप करना पडा। उसने अपने परिवार से दिव्या के तलाक की
खबर छुपा रखी थी, और दिव्या के माता पिता समझ रहे थे, कि दिव्या के तलाक की
बात ध्रुव अपने परिवार को बता चुका है। "पापा बात यह है, कि दिव्या की शादी
मुश्किल से पांच महीने चली थी, फिर तलाक हो गया था। यह बात मैंने आपको नही
बताई थी।"
"इतनी बडी बात हमसे छुपा कर रखी।" कह कर ध्रुव के पिता ने दिव्या के माता
पिता को संबोधित करके कहा। "आप जा सकते है। इतना बडा झूठ। यह शादी नही हो
सकती है।"
दिव्या के माता पिता हैरान हो गए, कि अचानक क्या हो गया, जो शख्स दो मिन्ट पहले दिव्या के गुण गाण कर रहा था, वही अपनी बात से पलट गया कि शादी नही हो सकती। वे भी समझ गए कि ध्रुव ने अपने माता पिता को अंधकार में रखा। चुपचाप वे वहां से रुख्सत हुए। उनके जाते ही ध्रुव के घर में महाभारत का बिगुल बज गया।
"तूने इतनी बडी बात छुपाई। एक तलाकशुदा लडकी को हम कभी अपनी बहू नही मान
सकते। तेरी शादी एक तलाकशुदा से नही हो सकती।" ध्रुव के पिता की आवाज में
आक्रोश था।
"दिव्या आपको पसंद है।" ध्रुव के इतना कहते ही पिताजी बीच में ही चिल्ला कर
बोले, "तू कैसे कह सकता है, कि वह हमारी पसंद है।"
"अभी कुछ मिन्ट पहले तक वह एक सुशील कन्या थी जिसमें एक आदर्श बहू बनने के
सभी गुण थे। राहुल की शादी के समय सभी रिश्तेदारों के सामने आपने घोषित
किया था, कि दिव्या ही आपकी बहू बनेगी।" बहुत शान्त स्वर में ध्रुव ने
स्पष्ट किया।
"जो कहा था, नादानी में कहा था। तब मुझे यह बात नही मालूम थी, कि दिव्या
तलाकशुदा लडकी है। अब वह कभी भी इस घर की बहू नही बन सकती है।"
"आप यह समझ लीजिए कि वह तलाकशुदा नही है।"
"मैं यह नही समझ सकता हूं।"
"कुछ मिन्टों पहले तक आपको नही मालूम था, तो दिव्या गुणों की खान थी, इस घर
की बहू बन सकती थी। मालूम होने पर नही बन सकती। यह बात मुझे समझ नही आ रही
है।"
"उस लडकी ने जादू कर दिया है, तुझ पर। इसलिए बात समझ में नही आ रही है।"
"पापा बात जादू की नही है, प्यार की है। हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते
है। साथ रहना चाहते है। आपसे विवाह की अनुमति चाहता हूं।"
"अनुमति नही मिल सकती है। मेरा फैसला पत्थर की लकीर है।" पिता ने अंतिम
फैसला सुना दिया।
"मैं किसी और लडकी से विवाह नही करूंगा। आप मेरा भी अंतिम फैसला सुन लीजिए।
शादी केवल दिव्या से करूंगा।"
"मेरे से जुबान लडाता है। बाप से कैसे बात करते है। तमीज नही है।"
"मैं कोई जुबान नही लडा रहा हूं। जैसे आप अपनी बात पर टिके है। मैं भी अपने
फैसले पर अडिग हूं।"
ध्रुव के माता पिता बडबडाते हुए अपने कमरे में चले गए। मति मारी गई है।
चुडैल ने जादू कर दिया है। लडका होश में नही है। नाक काट दी। हमारी। किसी
को मुंह नही दिखा सकते है।
मां बाप की बडबडाहट सुन कर ध्रुव सोच में पड गया कि फरेब का जमाना है। अगर
वह सच्चाई छुपा जाता तो बडे धूम धाम से विवाह संपन्न हो जाता। दुनिया झूठ
पर इतराती है। सच्चाई कभी न कभी तो प्रकट हो ही जाती है। तब कोई समस्या हो,
उससे तो यही ठीक है कि पहले ही सच्चाई को बता दिया जाए। एक पल में सुशील,
गुणी कन्या चुडैल बन जाती है। सच्चे प्यार की राह कठिन है। दो हंसों के
जोडे का मिलन कोई बरदास्त नही कर सकता। उसका फैसला अडिग था। एक दिन ध्रुव
ने घर में ऐलान कर दिया। यदि परिवार की रजामंदी नही मिली तो कोर्ट मैरिज
करके अपनी दुनिया अलग बसा लेगा। इतना सुनते ही माता पिता सन्न रह गए, कि
क्या किया जाए।
"कभी सोचा नही था, कि औलाद नालायक निकलेगी।" पिता तमतमाते हुए बोले।
"तुमने सिर पर चढा रखा था। अब भुगतो।" मां ने भी गुस्से में कहा।
"हम आपस में झगडे, इससे अच्छा तो यह है, कि क्या किया जाए, जरा सोच विचार
किया जाए।" पिता ने मां को शान्त करते हुए कहा।
"फिर सोचो, मेरी बुद्धी काम नही कर रही है।"
दोनों युक्ति निकालने में जुट गए, लेकिन विफल रहे। पुत्र के आगे एक नही
चली। उसने तो अलग घर बसाने की सोच रखी हुई थी। इस विषय में किसी की भी कोई
बुद्धी काम नही कर सकती। जब एक तलाकशुदा पुरूष के दूसरे विवाह पर कोई आपति
नही तो तलाकशुदा महिला के दूसरे विवाह पर आपति क्यों। फिर जब इस बात का पता
नही था, कि दिव्या तलाकशुदा है, तब तक कोई आपति नही थी। बात का पता चलते ही
पता नही कहां के कायदे और कहां की मर्यादा आडे आ गए। कोई रास्ता परिवार ने
नही दिया, तो ध्रुव और दिव्या ने कोर्ट मैरिज कर ली और अपने अपने घर रहने
लगे। फिर कुछ दिनों की शान्ति के बाद एक दिन ध्रुव ने एक कागज अपने पिता के
सामने रखा।
"क्या है।" चिडचिडी सी आवाज में ध्रुव के पिता ने पूछा।
"मैने दिव्या के साथ कोर्ट मैरिज कर ली है। यह मैरिज सर्टीफिकेट है।" ध्रुव
ने उत्तर दिया।
अगले कुछ पल एक दम शान्ति रही। मां भी टुकुर टुकुर कभी ध्रुव को तो कभी
उसके पिता को देखती कि एटमबम तो गिर गया, तबाही कितनी होती है। वह उसका
अवलोकन कर रही थी।
इतने में पिता ने अखबार खोल लिया और ध्रुव से पूछा "कब की।"
"एक महीना हो गया है।"
"अब क्या सोचा है।" ध्रुव के पिता ने अखबार में नजरे गडाये हुए पूछा।
"यदि आप दिव्या को बहू स्वीकार करते है तो जब कहेगें, दिव्या को इस घर में
लाऊंगा, वरना...।"
"वरना क्या...।"ध्रुव के पिता ने अखबार से नजरे ऊपर करके पूछा।
"मुझे अलग घर बसाना पडेगा।"
इतना सुन कर ध्रुव के पिता कुछ देर तक खामोश रहे, फिर धीरे से बोले। "आज ही
ले आऔ।"
ध्रुव पिता की मंजूरी पाकर आश्चर्य चकित हो गया, धीरे से बोला "थैंकयू
पापा।"
ध्रुव के पिता की मंजूरी पर मां हैरान हो गई। पिता के हाथों से अखबार खींच
तमतमाते हुए कर पूछा। "यह क्या किया आपने।"
"सुन भाग्यवान, लडका अपना है। जब कोर्ट मैरिज हो ही गई है, तो रिश्ता को
थप्पा लगा ही दे। नही तो बगावत पर उतर ही चुका है। परिवार के टुकडे करने का
कोई फायदा नही। जो भी है, अपना खून है। स्वीकार करले। बच्चों के अरमानों के
आगे अपने ख्वाबों को कुचल दे तो ही अच्छा है। हम अपने हिसाब से जिन्दगी
जीना चाहते है, बच्चे बडे हो गए हैं, उनको भी उनके हिसाब से जिन्दगी जीने
का हक दे दे। परिवार को एक रखना है, तो किसी को तो कुरबानी देनी ही है।
अपना बच्चा दूर हो जाए, अच्छा नही लग रहा है। दिव्या तलाकशुदा है, सोच ले,
कि यह बात हमें मालूम ही नही है। अपना ले उसे। जब मियां बीबी राजी तो काजी
को भी राजी हो जाना चाहिए। विवाह से पहले बच्चों को सिर आंखों पर बिठाते
है, विवाह के बाद सिर पर नही तो कम से कम उन्हे घर में तो रहने दें। आंखों
के आगे रहेगें। दूर रखने का क्या फायदा।" कह कर ध्रुव के पिता चुप हो कर छत
पर चलते हुए पंखे को देखने लगे।
शाम को दिव्या ने गृह प्रवेश किया। सदा की भांती दिव्या खूबसूरत लग रही थी। साडी पहन रखी थी और सर पर पल्लू किया हुआ था। झुक कर दिव्या ने ध्रुव के माता पिता के चरण स्पर्श किए। बिना कुछ कहे ध्रुव के पिता ने दिव्या के सिर पर हाथ रख कर आर्शीवाद दिया। मां ने दिव्या को गले लगाया। मां की आंखे गीली थी। खूबसूरत ध्रुव और दिव्या की जोडी देख कर ध्रुव के पिता ने सिर्फ इतना कहा। आज मैनें दो हंसों के जोडे का मिलन करा दिया है।
मनमोहन भाटिया