बडी दादी
धडाम...की आवाज के बाद कुछ पल की शान्ति और फिर उसके बाद जोर से रोने की आवाज
आई। देवेन्द्र ने देविका को आवाज लगाई, “देखना देवी, यह किसके गिरने की आवाज है।“
तभी रोने की आवाज और अधिक तेज हो गई। “देख देवी कहीं शुभ तो नही रो रहा है, लगता है
गिर गया है, कहां है, शुभ।“ देविका तुरन्त भागी। चार वर्ष का शुभ देवेन्द्र और
देविका का प्यारा पोता बाथरूम में फिसल कर गिर गया था। रोते पौत्र को गोद में उठा
कर देविका चुप कराने लगी। “बेटे बाथरूम में धीरे धीरे जाते हैं, आप तेजी से भागते
हुए गये होगे, तभी फिसल कर गिर गए न, कोई बात नही, कहीं भी चोट नहीं आई, मेरा
बहादुर बेटा, कपडे गीले हो गए हैं, इनको जल्दी से बदलो, नही तो जुकाम लग जाएगा।“
दादी की गोद में दादी के प्यार के बाद शुभ चुप हो गया, फिर धीरे से गोद से उतर कर
बहुत धीरे धीरे बाथरूम की ओर जाने लगा।
“शुभ इतना धीरे धीरे क्यों चल रहे हो, क्या दर्द हो रहा है।“
“नहीं दादी, आपने कहा न, बाथरूम धीरे धीरे जाते हैं, इसलिए। बहुत जल्दी भूल जाती
हैं आप। अभी तो आपने कहा था न।“
नन्हे पौत्र की शैतानी भरी बातें सुन कर देविका हंसने लगी.
“दादी हंस क्यों रही हो। बडी दादी की पिटाई करो। उसने मेरे को बाथरूम में गिराया
है।“
“बडी दादी के बारे में एैसा नही बोलते हैं।“
“क्यों नही बोलते, अभी अभी ममता बाथरुम सुखा कर गई है। बडी दादी ने आगे बैठ कर शूशू
किया है। बाथरूम का दरवाजा भी बंद नही करती। खुले बाथरूम में बैठ कर शूशू करती हैं।
पॉट में भी नहीं बैठती हैं। बडी दादी शूशू करके निकली, मैं बाथरूम में शूशू पर फिसल
गया।“
नन्हे शुभ के मुंह से सच्ची बात सुन कर देविका सन्न रह गई, यह सोच कर कांप गई, कि
कहीं घर में महाभारत न छिड जाए। अगर बडी दादी अर्थात देवेन्द्र की मां और देविका की
सास ने शुभ की बातें सुन ली, तो शत प्रतिशत घर में तीसरा विश्वयुद्ध तो किसी भी
क्षण छिड सकता है। देवेन्द्र भी तब तक वहीं पहुंच गया। “क्या हुआ, शुभ गिर गया,
बहादुर बच्चे रोते नहीं हैं।“ देवेन्द्र ने शुभ को अपनी गोद में लिया और कमरे की
तरफ प्रस्थान करने ही वाला था, कि जिस बात की आशंका देविका को थी, वही हो गई। बडी
दादी ने शुभ की बात सुन ली थी, जो अभी ड्राईंग रूम में बैठी थी, वहीं से तेज स्वर
में बोली, “देखो कैसा जमाना आ गया है, छोटा, अभी छटांक भर का है नही, मेरे पर
इल्जाम लगा रहा है, मैने कब तेरे को धक्का दिया है।“
इतना सुन कर शुभ रोते हुए बोला, “आपने शूशू किया है। आपके शूशू पर फिसल गया।“ कह कर
और तेज स्वर में रोने लगा.
“हां हां और चीख कर सच्चा बन, शूशू बाथरुम में नहीं करूंगी तो क्या तेरे मुंह में
करूंगी।“ बडी दादी ने रौब से कहा।“
यह सुन कर देवेन्द्र और देविका सन्न रह गये कि मां आखिर क्या और क्यों शुभ को बोल
रही है। वे दोनो जानते थे कि मां और बुर्जुगों की तरह इंगलिश पॉट का इस्तेमाल नही
करती हैं और शू शू पॉट के बारह ही करती हैं। लेकिन छोटे शुभ ने पलटवार किया, “शूशू
पॉट में करते हैं।“
“बडा आया पॉट वाला, बाथरूम में किया है, कौन सा तेरे मुंह में कर दिया, जो रोए जा
रहा है, चुप कर छटांक।“
“मां, क्या बोले जा रही हो, शुभ छोटा बच्चा है, बहस करने की कोई जरूरत नही है, आप
चुप करो।“ देवेन्द्र ने मां को समझाते हुए कहा।“
“मैं भी आपके मुंह मे शूशू करूंगा, तब आपको पता चलेगा, मुंह में कैसे शूशू करते
हैं।“ शुभ बोल पडा।
“देख पिद्दी की हरकते, कैसे मुझ बुड्डी से लड रहा है। और सिखाऔ बच्चों को, बडों की
बेइज्जती कैसे करते हैं।“
मां के लडाके तेवर देख कर देविका शुभ के साथ कमरे में चली गई। देवेन्द्र ने मां को
कहा, “देखो, हमने शुभ को कुछ नही सिखाया, आप शान्ति रखे। आप ने गलत शुरूआत की तो
शुभ भी चुप नही रहा। आपको मालूम है, वह बहुत बातूनी है, हमसे भी सारा दिन प्रश्न
पूछता रहता है। आपको एैसा नहीं कहना चाहिए था, हम बडे तो किसी बात पर चुप रह जाएगे,
पर बच्चे कभी भी चुप नहीं रहते हैं, उलटा कुछ न कुछ जरूर बोलते हैं, बच्चों को सही
बात समझा कर चुप कर सकते है, यदि गलत बात पर बच्चों से बहस करेंगें तो हम खुद
बच्चों को गलत संस्कार देंगें। जैसा हम बोलेगें, वैसा ही बच्चे सीखेगें, बोलेगें,
जवाब देगें। आखिर हमे देख कर ही बच्चे बढे होते हैं। बच्चों को नकल करने की आदत
होती है, तभी हम उन्हे नकलची बंदर कहते है। आपने जो कहा, वैसा ही उसने उलटा जवाब
दिया।“
“अरे तू एक पिद्दी को संभाल नही सकता, मैने पांच बच्चों को पैदा किया, पाल पोस के
बडा किया, कह तो एैसा रहा है, जैसे तुम पांचों बच्चे थे ही नहीं, बडे पैदा हुए थे।“
“पांच भाई बहन तो हैं, लेकिन बनती किसी की नही है। जैसा तुम बहस कर रही हो, वैसा हम
आपस में करते हैं।“
“तू कहना क्या चाहता है, कि मैंनें तुमको गलत पाला।“
“मां बात को समझो, आप की बहस करने की आदतें हम भाई बहनों में भी हैं। यही आदतें
छोटे नन्हे शुभ में आ रही हैं। हमें बहस करता देख कर वह भी बहस करता है। देखा आपके
साथ कैसे बहस कर रहा था।“
“तू कहना क्या चाहता है, मैं गलत हूं, तुम सही हो।“
“मैं आज की बात करता हूं, आज तो आपने गलत बात की है।“
मां तमतमा गई। “अब तू मुझे सिखाएगा, मैं क्या बात करूं। उसको सिखाएगा, जिसने पाल
पोस कर बडा किया। आज तू दादा बन गया तो यह मतलब नही कि मेरा दादा बन गया है। तेरी
मां रहूंगी, बात करता है। अपनी मां की बेइज्जती करता है।“ कहते हुए मां घर के बाहर
मेन गेट पर बैठ गई। बैठ कर शोर मचाने लगी।
“क्या जमाना आ गया है, अब मुझे दो चार साल के बच्चों से सीखना पढेगा, किससे क्या
बात करूं। मेरा बेटा कहता है, मैं गलत हूं।“ मां अर्थात बडी दादी के विलाप से गली
की सफाई कर्मचारिनी, दो चार राहगीर और पडोसी जमा हो गए। उन्होनें तो केवल तमाशा
देखना था। वे हां में हां मिलाते गए। घर के गेट पर शोरगुल सुन कर देवेन्द्र ने बाहर
आ कर तमाशबीनों को हटने को कहा। जवाब में एक आदमी ने कमेन्ट कस दिया। “बूडी मां को
तंग करते हो, माफी मांग कर इज्जत से घर में ले जाऔ, वरना एक फोन घुमाने की देर है,
दर्जनों टीवी न्यूज चैनल वाले इक्कठे हो जाएगें। मिस्टर जेल की हवा खानी पड सकती
है।“ इतना सुन कर देवेन्द्र का माथा थनका। सब तमाशबानों से हाथ जोड कर माफी मांगी
और मां को मनाने में जुट गया। माफी मांगता देख मां के तेवर और तीखे हो गए। “मां कभी
गलत नही होती है, समझ ले।“ काफी ना नकुर के बाद मां घर के अंदर गई और तमाशबीनों की
भीड छट गई। देवेन्द्र एक हारे हुए जुआरी की तरह चुपचाप कमरे में आया, जहां देविका
रो रही थी। नन्हा शुभ भोचक्का सा देविका की गोद में समहा सा गुमसुम चिपका था। गंभीर
वातावरण को बदलने के लिए टीवी ऑन कर कार्टून चैनल लगाकर शुभ को अपनी गोद में लिया।
“शुभ उदास क्यों हो, देखो आपका प्यारा मनपसन्द कार्टून चैनल।“ देवेन्द्र ने नन्हे
शुभ के गाल पर एक प्यारा सा चुम्बन लेकर कहा.
“दादा, बडी दादी मेनगेट पर बैठ कर लडाई क्यों कर रही थी।“
“आप इसको भूल जाऔ और कार्टून चैनल देखो।“ देवेन्द्र ने शुभ को बहलाने की कोशिश की,
लेकिन उसने फिर प्रश्न किया “बताऔ न दादा, बडी दादी क्यों लडाई कर रही थी। बाहर लोग
क्या कह रहे थे।“ नन्हे शुभ की भोली बाते सुन कर देविका ने कहा, “आप जितना यत्न कर
लें, एक छोटे बच्चे को बहका नही सकते हैं। मां की गलत बात पर क्यों परदा डाल रहे
हैं।“
“बात परदे की नही है, घर में शान्ति रखने की है। लडाई झगडे से बच्चों के नाजुक
मस्तिषक पर गलत असर पडता है।“
“क्या घर की शान्ति का सारा जिम्मा आपने ले रखा है, मां का कुछ दायित्व नही है,
शान्ति बनाने में। एक छोटे नन्हे से बालक से एैसे लड रही थी, जैसे कोई हमउम्र हो।
बच्चे की सही बात भी नही मान रही थी। लड कर कोई मान मर्यादा बढ गया क्या। छोटे
बच्चे को दुश्मन समझ कर लड रही थी। क्यों आप हमेशा मां से दब जाते हो। आपके दूसरे
भाई बहन जमकर उलटे जवाब देते हैं। मां की हिम्मत नही होती किसी से बहस करने की।
भीगी बिल्ली की तरह उनके घर चुपचाप पडी रहती है। सारा भडास यहीं आप पर उतरती है।
सारी उम्र मां की बाते को सहा है, अब छोटे बच्चे पर मां की भडास नही सह सकूंगी।
क्यों नही बोलते मां को।“
“दादा भीगी बिल्ली क्या होता है। बडी दादी बिल्ली क्यों बन जाती हैं। बताऔ दादा।“
“भीगी बिल्ली एक मुहावरा है।“
“मुहावरा क्या होता है।“ शुभ ने फिर से प्रश्न किया। दादा, पोता थोडी देर तक
कार्टून चैनल देखते हुए बातें करते रहे। थोडी देर बाद शुभ को नींद आ गई, तो
देवेन्द्र और देविका का वार्तालाप फिर शुरू हो गया। “आप मां को समझाते क्यों नही
हो, बच्चों से बहस जिद उचित तो है नही।“
“तेरी बातें उचित हैं, समझाता बहुत हूं, लेकिन बुढापे में हर व्यक्ति समझने पर अपनी
तौहीन मानता है। जब पूरी उम्र बच्चों पर अपनी मरजी चलाई, तो बच्चों की सही बात भी
अखरती है। इसलिए हर घर में झगडे होते हैं, जिससे मैं कतराता हूं। आज भी मां को
समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन सामझने के बजाए गली में तमाशा खडा कर दिया, जिस
कारण बिना किसी बात के तमाशबीनों से माफी मांगनी पडी।“
“सब आप की कमजोरी है, मां को कुछ नही बोलते।“
“हम अपने बच्चों पर खुद अपने व्यवहार को विरासत में देते हैं। जैसा हमारा व्यवहार,
आदतें होती हैं, बच्चे उसी का अनुसरण करते हैं। मैंनें हमेशा कोशिश की है कि खुद
अच्छा व्यवहार करूं ताकि हक से बच्चों को कह सकूं कि वे भी अच्छी आदतें अपनाए। अपने
बच्चों को देख लो, प्रथम को कोई बुरी आदत नही है, बहू प्रतिमा को देखो, तुमहारा
कितना मान सम्मान करती है। बहू कम और बेटी अधिक है। हम बच्चों का ध्यान और ख्याल
रखेंगें तो उससे अधिक वो हमारा ध्यान और ख्याल रखेंगें। अब तुम खुद अपने बच्चों की
तुलना मेरे भाई बहनों के बच्चों से कर सकती हो। मां बाप को गाली निकाल कर बात करते
हैं, क्यों कि खुद मेरे भाई बहनों का उग्र स्वभाव है। विरासत में बच्चों को भी वही
स्वभाव मिला। जब बच्चे छोटे होते हैं, गाली निकालने, उनके झगडने पर हम खुश होते
हैं, देखो पिट के नही आया, दूसरे बच्चों को पीट कर आया है। बुनियाद बचपन में ही पड
जाती है। बङे हो कर झुकना, समझोता करना शानो शौकत के खिलाफ हो जाता है। मैं मानता
हूं कि मां का स्वभाव उग्र है, जो गलत है। आज जो शुभ के साथ किया और मेनगेट पर बैठ
कर तमाशा किया, बिल्कुल गलत है। यदि मां सिर्फ एक शब्द बोल देती कि शुभ आगे से
ख्याल रखूंगी तो एक पल में बात समाप्त हो जाती। बच्चा भी खुश हो जाता और अच्छे
संस्कारों के बीज पनपते। बुजुर्ग अपनी हठ नहीं छोडते, कि बच्चों से नीचा हो जाऐगें।
अपने बच्चों से तालमेल ही बडपन की निशानी है. इसी कारण अपना बेटा प्रथम कोई भी
कार्य करने से पहले हमारे से सलाह लेता है और हम अपने अनुभवों के अनुसार उसका मार्ग
दर्शन करते हैं। जबकि मैं मां को कुछ भी नही बताता, क्योंकि उसकी आदत मीनमेंख
निकालने की है, कि मेरे से पूछ के कोई काम करते हो, अब क्यों पूछ रहे हो। इसलिए न
बताने पर ही भलाई है। दुनियादारी बडी कठिन है। जो भी कर लो, कोई खुश नही होता।“
“हमने किसी का क्या करना है। अपने घर में शान्ति रहे, बस यही चाहा बै।“ देविका ने
कहा.
“इसी बात की कोशिश करता हूं।“
“एक कोशिश और करो, मां को कहो, कम से कम नन्ही जान शुभ को तो बक्श दे। उससे बहस न
किया करे। क्या कसूर है शुभ का, जो अपनी भडास आज बच्चे पर निकाली है।“
“देविका तेरे सामने ही बात बहुत शान्ति के साथ की थी, लेकिन खुद तुमने देखा कि गली
में तमाशबीन एकत्रित कर लिए। मैं एैसा मजबूर हुआ कि बिना गलती के माफी मांगनी पडी।“
“और मांग भी क्या सकते हो।“
“खाना, शुभ को भी भूख लगी होगी. कुछ बना दे, शान्ति के साथ भोजन करे।“
“माताश्री से भी पूछ लो, नही तो फिर शुरू हो जाऐगी, बहुऐं सास को भूखा रखती हैं,
किसी टीवी चैनल वाले को बुला लिया तो मुसीबत हो जाएगी।“
“ठीक कहती हो, देविका।“
“मैं तो हमेशा ठीक कहती हूं, लेकिन सुनता कौन है।“
“मैं तो सुनता ही हूं।“
“कहां सुनते हो, एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देते हो।“
“सफल गृहस्थी के लिए सब कुछ करना पडता है।“
“भारत में शरीफ पत्नियां होती हैं, अगर अमेरिका, यूरोप होता तो कब का तलाक हो जाता।
सास की कोई नही सुनता है। सब अलग अलग रहते हैं।“
“मैं कभी अमेरिका, यूरोप तो नही गया, लेकिन सुना है, वहां गृहस्थी नाम की कोई चीज
ही नही होती है। छोटी सी बात पर तलाक हो जाते हैं। अखबार में पढा, कि एक बार तो
शादी के कुछ घंटों बाद ही तलाक हो गया।“
“भारत में खाना खाना है, या यूरोप जाना है।“
“अपुन तो भारत में ही रह कर खुश हैं, जीवन के उतार चडाव, गृहस्थी के झमेलों में ही
खुश हैं।“
देविका ने खाना परोसते हुए पूछा, “एैसा गृहस्थी में कब तक।“
“अंतिम सांस तक, यही दुनिया है और गृहस्थी का सुख, आनन्द है। मिलजुल कर जिन्दगी के
उतार चडाव सहना और जीना ही गृहस्थी की सफल कुंजी है, जिसका परम आनन्द और सुख केवल
गृहस्थ इंसान ही प्राप्त करता है। जो डर कर भाग जाता है, शायद साधू बनता है। जो
निडरता से सामना करता है, वही सच्चा गृहस्थ इंसान होता है।“
देवेन्द्र और देविका खाना खाते हुए बाते कर रहे थे, तभी शुभ की नींद खुली और भोलेपन
से पूछा, “दादा, बडी दादी क्यों लडाई कर रही थी।“
“अब नही कर रही है, वो भी खाना खा रही है, आप भी खऔ।“
“कौन सी सब्जी बनाई हैश्।“ शुभ ने देविका की गोद में बैठते हुए पूछा।
“आपकी मनपसंद गाजर मटर” शुभ देविका के हाथों खाना खा रहा था और देविका मन ही मन में
सोच रही थी, मासूम बच्चो को भी बहलाया नही जा सकता। नींद से जागने के बाद भी सबसे
पहले बडी दादी की लडाई के बारे में पूछा और बडी दादी है, कि बुर्जुग हठ के कारण एक
बार भी कोप भवन से बाहर आ कर नही पूछा, कि नन्हे बालक शुभ ने कुछ खाया भी है या
नही। आखिर बुर्जुगों की बेकार हठ कब समाप्त होगी।