पहला सौदा
सुबह के छ: बज रहे थे। चिडियों के चहचाहने की आवाज आने लगी।सर्दियों के
दिन, अभी अंधेरा ही था। धर्मपाल रजाई ओढ कर खर्राटे भर रहा था। खर्राटों की
आवाज में तेजी से पत्नी ने बिस्तर ही छोड दिया। सुबह हो गई है, सर्दियों
में बिस्तर मरीज हो जाता है, हर आदमी। उठने का समय हो ही रहा है, यह सोच कर
वह उठी और फ्रेश होने बाथरूम चली। पत्नी दया बाथरूम में ही थी, कि फोन की
घंटी बजी।
ट्रिन, ट्रिन, ट्रिन......
दया बाथरूम से निकल नही सकती थी और धर्मपाल खर्राटे भर रहा था। फोन की घंटी
सुन कर धर्मपाल की नींद खुली। कच्ची पक्की नींद में उसने फोन उठाया।
“हेल्ल्लइयो”
“धर्म” फोन पर दूसरी ओर दौलतराम था।
दौलत की आवाज सुन कर धर्म ने पूछा। “क्या हुआ। आधी रात को फोन कर रहा है।“
“सत्तू मर गया, बिस्तर छोड। फटाफट अस्पताल पहुंच। आधी रात नही है, बिस्तर
छोड कर देख, दिन निकल आया है।“
“क्या बोल रहा है।“
“मरने की झूठी बात क्यो बोलूंगा। मैं भी अस्पताल जा रहा हूं, वहीं मिलते
हैं।“
दौलतराम ने फोन रख दिया। धर्मपाल ने रजाई छोडी। आंखे मल कर नींद खोली।
“किसका फोन था?” दया ने बाथरूम से बाहर आते पूछा।
“सत्तू सेठ मर गया। चाय बना दे। फटाफट निकलना है।“ कह कर धर्मपाल बिस्तर से
फुर्ती से निकला और फ्रेश होने बाथरूम में घुसा।
सेठ सत्यपाल अनाज मंडी के बादशाह थे। मंडी में जब भी माल पहुंचता था, पहला
सौदा सेठ सत्यपाल ही करते थे। यहां तक बात थी, कि अनाज का पहला ट्रक सेठ
सत्यपाल के गोदाम में आता था। सेठजी की इतनी धाक थी, बाकी व्यापारी औपचारिक
तौर पर पहला सौदा नही करते थे। सेठजी के हाथों ही पहला सौदा खुलता था।
पिछले तीस वर्षों से वे अनाज मंडी के प्रधान थे। कोई उन को प्रधान के पद से
हटा नही सका। मंडी में पीठ पीछे सब सेठ सत्यपाल को सत्तू कह कर चिढाया करते
थे। करीब चालीस वर्ष पहले सत्तू ने अनाज मंडी में दलाली करनी शूरू की, फिर
धीरे धीरे सफलता की सीडियां चढते चढते दस साल बाद मंडी में अपनी धाक जमा
दी। एक बार प्रधान बने तो कोई उन के बराबर नहीं पहुंच सका। जब सेठ जी दलाली
करते थे, तब सत्तू दलाल के नाम से मशहूर थे। प्रधान बनने पर मुंह पर तो
नही, परन्तु पीठ पीछे सत्तू कह कह गालियां निकाल कर अपनी भडास निकालते थे।
आज एक लम्बी बीमारी के बाद सेठ सत्यपाल का निधन हो गया। पिछले एक महीने से
अस्पताल में भरती थे। सुबह छ: बजे राउंड पर आए डाक्टर ने सेठ जी को मृत्य
घोषित किया। डाक्टर की घोषणा के बाद फोन पर फोन, सभी नजदीकियों को सूचना दी
गई। कुछ ही देर में मंडी के हर व्यापारी, दलाल को सेठ सत्यपाल की मौत का
समाचार मिल चुका था।
धर्मपाल और दौलतराम सेठ सत्यपाल के दूर के रिश्तेदार है और अनाज मंडी में
छोटे दुकानदार हैं। सेठ सत्यपाल ने दुकानदारी शूरू करने में मदद की और इसका
अहसान हमेशा सेठ सत्यपाल दोनों पर जताते थे। दोनों सेठ जी को सलामी करते
थे, मेहनत करते हुए तरक्की के रास्ते पर अग्रसर थे, इसीलिए दोनों सेठ जी का
कद्र करते थे, कभी कभी सेठ जी दबाते भी बहुत थे, फिर भी शिकायत नही करते
थे। एक ही बात करते थे, कोई बात नही, एक रास्ता दिखाया था सेठ जी ने,
अग्रसर हैं। रास्ता दिखाने का कर्ज चुकाना है, चुका रहे हैं।
दोनों अस्पताल पहुंचे। सेठ जी का पूरा परिवार थोडी देर में एकत्रित हो गया।
दोनों परिवार के हर सदस्य की बात सुन कर सारे काम करने में वय्स्त हो गए।
सेठ जी के बेटे रमाकांत और उमाकांत हुक्म चला रहे थे और दोनों फटाफट अपने
आका का हर हुक्म पूरा करने में वय्स्त थे। तभी मंडी के कुछ व्यापारी भी
अस्पताल पहुंचे। दोनों को भागमदौड करते देख एक ने कहा –“सत्तू ने सालों को
बंधुआ मजदूर बना रखा है। अपना तो दिमाग लगाते ही नही।“
दूसरा व्यापारी –“दिमाग हो तो लगाए न।“
कह कर मंद मंद मुसकाने लगे।
उनकी बाते सुन कर धर्मपाल और दौलतराम चुप रहे। धर्मपाल ने दौलतराम के कंधे
पर हाथ रख कर कहा –“अभी चुप, यह समय नही है, कुछ कहने का। बाद में
देखेंगे।“
दोनों धर्मपाल और दौलतराम काम में व्यस्त भी थे, साथ ही साथ उन दोनों के
चार कान सभी रिश्तेदारों और व्यापारियों की बातों पर भी थे।
मृत्य देह को अस्पताल से घर लाया गया। विचार विमर्श के बाद दोपहर तीन बजे
दाह संस्कार का समय तय हुआ।सेठ जी की कोठी पर मंडी के दूसरे पदाधिकारियों
ने चार दिनों के शोक की घोषणा की, कि कोई सौदा नही होगा। दुकानों के शटर
डाउन रहेंगें। मंडी सेठ जी के चौथे की रसम के बाद ही खुलेगी। थोडी देर में
सभी वयापारी रूकसत हुए। रमाकांत ने धर्मपाल और दौलतराम को हिदायत दी की वो
मंडी की हर गतिविधी पर उन को अवगत कराते रहे। उन दोनों को कोठी से अधिक
मंडी की हर गतिविधी पर नजर रखने के काम पर लगा दिया।
“भाई उन दोनों को तुम ने मंडी भेज दिया। यहां काफी काम हैं।“ उमाकांत ने
बडे भाई को अपनी नाराजगी जाहिर की।
“काम तो घर के नौकर कर लेंगें। हम मंडी जा नही सकते। हमारी गैरमौजूदगी में
मंडी के बाकी व्यापारी फायदा उठाने की कोशिश करेंगें। चावलों की नई खेप आज
कभी भी आ सकती है। मैनें फतेह सिंह की ड्यूटी गोदाम पर लगा दी है। ट्रक
ड्राईवर का फोन था, दोपहर तक वह ट्रक गोदाम में लगा देगा। पहला ट्रक हमारा
ही आएगा। ड्राईवर का इनाम दुगना देना है। पिता जी नही हैं तो क्या हुआ। उन
की हर बात को हमने आगे बढाना है। आज तक नए माल का पहला सौदा सेठ सत्यपाल ने
किया था, आज भी यह परमपरा निभाई जाएगी। उन के बेटे उन की परमपरा को जीवित
रखेगें।“ रमाकांत ने उमाकांत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“भाई हम तो मंडी चार दिन तक जा नही सकते। कैसे करेगें।“ छोटे भाई उमाकांत
ने आशंका जताई।
“दौलत और धर्म किस काम आएगें। नाम उम दोनों का होगा, परन्तु पहला सौदा
हमारा ही होगा, तभी उन दोनों को मंडी की टोह लेने भेजा है।यदि पहला सौदा
हमारा नहीं हुआ तब लानत है हम पर और हमें सेठ सत्यपाल की औलाद कहने का कोई
हक नही।“ रमाकांत ने फोन की घंटी बजने पर बात समाप्त की।
उधर मंडी में व्यापारी अलग अलग लामबंद हो चुके थे। सभी की निगाहें
चावलों की नई खेप के आने पर टिकी थी। हर किसी की कोशिश थी कि पहला ट्रक
उनका आए और पहला सौदा भी उनका हो। विभिन्न रणनितियां बनाई जा रहीथी।
धर्मपाल और दौलतराम दोनों अपनी ड्यूटी मुसतैदी से निभा रहे थे। पल पल की
खबर रमाकांत को दी जा रही थी। दोपहर एक बजे चावलों का ट्रक सेठ सत्यपाल के
गोदाम में पहुंच गया।
“ड्राईवर को तिगुना इनाम दो, किसी को खबर नही लगनी चाहिए, कि चावलों की
पहली खेप हमारी है। ड्राईवर की खूब खातिर करो। ड्राईवर पहले सौदे के बाद ही
गोदाम से बाहर आएगा।“ रमाकांत ने फतेह सिंह को हिदायत दी और धर्मपाल,
दौलतराम को कोठी पर पहुंचने का कहा।
रमाकांत के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी। जिस धर्रे पर सेठ सत्यपाल ने काम किया, आज रमाकांत उसी ओर चल रहा था। पहला सौदा हमारा ही होगा।
ठीक तीन बजे सेठ सत्यपाल के मृत्य देह को नगर के सबसे बडे शमशान लाया
गया। अंतिम संस्कार की सभी तैयारियां पूरी हो गई थी। शमशान में मंडी के सभी
व्यापारी एकत्रित थे। रिश्तेदार एक ओर जमा थे और व्यापारी अपना अपना गुट
बना कर मंडी की बातों पर चर्चा कर रहे थे। कुछ मन की भडास निकाल रहे थे।
एक व्यापारी –“भई, सत्तू में जो बात थी, उस के लौडों में नही है।“
दूसरा व्यापारी –“भई, ठीक कह रहे हो, साले सत्तू ने लौडों को अपने पल्लू
में बांध कर रखा था, कभी आगे आने नही दिया। शर्त लगा ले, बादशाहत खत्म
समझो।“
तीसरा व्यापारी –“कितने की लगा रहे हो। हजार की मेरी भी लगा लो।“
दूसरा व्यापारी –“साले, तू जिन्दगी भर टुच्चा रहेगा। सत्तू पर हजार की चाल,
लानत है। शर्म कर। कम से कम लाख की बात कर, तो लगाता हूं।“
तीसरा व्यापारी –“इतना मत एतराऔ। चाल उलटी न पर जाए।“
चौथा व्यापारी –“साले, तू छोटा है, छोटी बात ही करेगा। यहां बादशाहत की बात
हो रही है, अगला बादशाह कौन?”
तीसरा व्यापारी वहां से खिसक कर दूसरे दल के पास गया।
पांचवा व्यापारी –“तुम तो सब बच्चे हो। हमने तो सत्तू को उस जमाने से देखा
है, जब दलाली करता था। आज बादशाह कहलाता है। साला पक्का व्यापारी था। पढे
लिखों की छुट्टी करता था। कभी स्कूल नही गया, पर चाणक्य नीति पूरी जानता
था। साम, दंड, भेद से मंडी को अपने वश में कर रखा था।“
छटा व्यापारी –“देखते है, अब लौडे क्या करते है, मंडी का पहला सौदा किसका?“
सातवां व्यापारी –“सुना है, वर्मा और शर्मा इस बादशाहत को तोडने की पूरी
तैयारी करे बैठे हैं।“
पांचवा व्यापारी –“सुना तो है, पर देखते हैं।“
एक कोने में वर्मा और शर्मा अपने चेलों के साथ रणनीति में मशगूल थे।
वर्मा –“अपना ट्रक कब तक आ जाएगा?”
शर्मा –“रात तक आ जाएगा।“
वर्मा –“कल पहला सौदा अपना ही होगा।“
शर्मा –“कोई शक नही। इस बार पहला सौदा अपना है।“
कुछ व्यापारी –“पहले सौदे में कुछ हिस्सा मिल जाए, तो सोने पर सुहागा। बरकत
होती है, पहले सौदे में। चाहे एक बोरी मिल जाए। पूरा सीजन लाभ का होता है।“
वर्मा और शर्मा एक स्वर में –“हां, हां, बिल्कुल, हर किसी को हिस्सा दिया
जाएगा। हमें क्या सत्तू समझ रखा है? साला सारा हडप जाता था।“
एक व्यापारी –“सेठ जी मजा आ जाएगा, अब की बार।“
तभी मुखाग्नि दी गई। यह इशारा था, धर्मपाल और दौलतराम के लिए। दोनों वर्मा
और शर्मा के ग्रुप के समीप खडे हो गए।
धर्मपाल –“सेठजी पहले सौदे का रेट लगा रहा हूं। बोलो कौन ले रहा है।“
धर्मपाल के मुख से पहले सौदे के रेट सुन कर सब सतब्ध रह गए।
शर्मा –“क्या कह रहे हो?”
दौलतराम –“सही सुन रहे हो, सेठ जी। चावलों की पहली खेप गोदाम एक बजे ही
पहुंच गई थी। आप सेठ सत्यपाल के बेटो को कम मत आंको। रेट सुना दिया है। हम
धर्मपाल और दौलतराम बेच रहे हैं। क्या कहते हो?”
शर्मा और वर्मा सकते में आ गए। पहला सौदा हो गया। व्यापारियों झट से पाला
बदला, जो वर्मा और शर्मा के पाले में थे, झट से दल बदल कर धर्मपाल और
दौलतराम के दल में शामिल हो गए। सबने सौदा बुक कर लिया।
मृत्य देह अभी ठंडी भी नही हुई थी कि पहला सौदा हो चुका था। रमाकांत छोटे
भाई उमाकांत के साथ वहां से गुजरे। एक नजर वर्मा और शर्मा पर डाली और आगे
बढ गए। धर्मपाल और दौलतराम ने ईशारा किया कि पहला सौदा आपका ही हुआ है।
उधर पंडित ने अंतिम विधी की और सबको चौथे की सूचना दी। सुबह सात बजे शमशान
में फूल चुने जाएगें और उठाला शाम चार से पांच सांई मंदिर के परिसर में।
परिवार के सभी सदस्य एक तरफ खडे हो जाए और बिरादरी शोक प्रकट करते हुए अपने
घरों को प्रस्थान करें। बिरादरी रूकसत होने लगी। शर्मा और वर्मा रमाकांत,
उमाकांत के सामने शोक प्रकट करते गए। उनका सिर हार से झुका हुआ था और
रमाकांत, उमाकांत के चेहरों पर हर्षल्लास था।
मनमोहन भाटिया