आईना
सुरूची मस्ती में कंधे पर कालेज बैग लटकाए कान में मोबाइल फोन का ईयरफोन
लगा कर एफएम में गानें सुनते हुए मेट्रोसे उतरी। नीचे आकर इधर उधर देखा,
सुकेश कहीं नजर नही आया तोबालों में हाथ फेरते हुए अपने से बातें करने लगी।
कहां रूक गया होगा, सुकेश, कभी भी टाइम पर नहीं पहुंचता है। हमेशा इंतजार
करवाता है। आज फिर लेट। खबर लेती हूं बच्चू की। फोन मिला कर अपना गुस्सा
सुकेश पर उतार दिया। बेचारा सुकेश, जवाब भी नही दे सका, बस इतना कह पाया,
ट्रैफिक में फंस गया हूं।लेकिन सुरूचि उसे एक छोटा बालक समझ कर डांटती रही
और बेचारा सुकेश चुपचाप डांट सुनता रहा। उसकी हिमम्त नहीं हुई कि फोन काट
दे। तीन चार मिन्ट बाद उसकी कार ने सुरूची के पास आकर हलका सा हार्न बजाया।
गर्दन झटक कर सुरूची ने कार का दरवाजा खोल कर बैठ गई, लेकिन उसका गुस्सा
शान्त नहीं हुआ।
“जल्दी नहीं आ सकते थे, जानते हो, अकेली खूबसूरत जवान लड़की सड़क के किनारे
किसी का इंतजार कर रही हो, तोआते जाते लोग कैसे घूर कर देखते है, कितना
अजीब लगता है, लेकिन तुम्हे क्या, लड़के हो, कहीं अटक गये होगे किसी खूबसूरत
कन्या कोदेखने रास्ते में।“
“अरे बाबा शान्त होकर मेरी बात सुनो, दिल्ली शहर के ट्रैफिक का हाल
तोतुम्हे मालूम है, कहीं भी भीड़ में फंस सकते है।“
“ट्रैफिक का बहाना मत बनाऔ, मैं भी दिल्ली में रहती हूं।“
“तुम तोमेट्रोमें आ गई, ट्रैफिक का पता ही नही चला, लेकिन मैं तोनीचे सड़क
पर कार चला रहा था।“
“बहाने मत बनाऔ, सब जानती हूं, तुम लडकोको, कहीं भी कोई लड़की देखी, रूक गए,
धूरने या फिर छेडने के लिए।“
“तुम इतना विश्वास के साथ कैसे कह सकती हो।“
“विश्वास तोपूरा है और फुरसत में बताऊंगी भी, कैसे मुझे पक्का यकीन है।“
“तोअभी बता दो, फुरसत में।“
“इस टाइम तोकान खुजाने की फुरसत नहीं है, कार की रफ्तार बढाऔ, मैं शुरू से
फिल्म देखना चाहती हूं। देर से पहुंचे तोमजा ही नहीं आएगा।“
सिनेमाघर के अंधेरे में सुरूची फिल्म देखने में मस्त थी, तभी उसने सुकेश के
हाथ कोझटक दिया, जैसे ही उसने उसकी जाघों पर रखा।
”बाबू चुपचाप फिल्म देखो, याद हैं न मैंने कार में क्या कहा था, एकदम सच
कहा था, जीता जागता उद्हारण तुमने खुद ही दे दिया। जब तक मैं न कहूं, अपनी
सीमा में रहोबाबू, वरना कराटे का एक हाथ यदि भूले से भी लग गया न, फिर मेरे
से यह मत कहना कि बॉयफ्रेन्ड पर ही प्रेक्टिस।“
यह सुन कर बेचारे सुकेश बाबू अपनी सीट पर सिमट गए और सोचने लगे कि किस घडी
में कराटे चैंम्पियन लड़की पर दिल दे बैठे। फिल्म समाप्त होने पर सुकेश कुछ
अलग अलग सा चलने लगा तोसुरूची ने उसका हाथ पकडा़ और बोली “बाबू इस तरह बच
के कहां जा रहे हो, भूख बहुत लगी है, रेस्टोरेंट में चल कर खाना खाते हैं।“
दोनों पास के रेस्टोरेंट में खाना खाने और बातें करने में मस्त थे, सारी
दुनिया से बेखबर। तभी शहर के मशहूर व्यापारी सुन्दर सहगल भी उसी रेस्टारेंट
में अपने कुछ मित्रों के साथ आए और एक टेबल में बैठ कर बिजनेस की बाते करने
लगे। सुन्दर सुरूची के पिता। दोनों बाप बेटी अपनी दुनिया में व्यस्त। आज की
भाग दौड के समय में घर के सदस्य भी एक दूसरे के लिए एक पल का समय नहीं
निकाल पाते हैं, बाजार में कंधे से कंधा टकरा कर निकल जाते हैं, आज बाप
बेटी आमने सामने भी एक दूसरे कोइतने नजदीक नहीं देख सके। लगभग एक घंटे तक
रेस्टेरेंट में रूके रहे, पहले सुरूची जाने के लिए उठी, वह सुन्दर की टेबल
के पास से गुजरी और उसका पर्स टेबल के कोने से अटक गया। जल्दी से पर्स
छुडाया और सौरी अंकल कह कर सुकेश के हाथ में हाथ डाले निकल गई। उसे इस बात
का एहसास ही नहीं हुआ कि वोटेबल पर बैठे अंकल और कोई नही उसके पिता सुन्दर
थे। लेकिन सुन्दर की अनुभवी आंखों ने देख लिया कि वह उसकी पुत्री है। अपने
कोनियंत्रण में रख कर बिजनेस डील पर बातें करता रहा, लेकिन उसने यह जाहिर
नही होने दिया कि वह उसकी पुत्री थी। रेस्टेरेन्ट से निकल कर सुन्दर सीधे
घर पहुंचा। उसकी पत्नी सोनिया कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रही थी। मेकअप
करते हुए सुन्दर से पूछा
“क्या बात है, दोपहर में कैसे आना हुआ, तबीयत तोठीक हैं ना?“
“हां ठीक है।“
“तबीयत ठीक है तोइतनी जल्दी, कुछ बात तोहै, आप का घर लौटने का समय रात
ग्यारह बजे के बाद ही होता है। आज क्या बात है?”
“कहां जा रही हो?”
“किटी पार्टी में और कहां जा सकती हूं? एक सफल बिजनेसमैन की बीवी और क्या
कर सकती है?”
“किटी पार्टी के चक्कर कम करोऔर घर की तरफ ध्यान देना शुरू करो।“
“सुन्दर पति देव, आज अचानक घर की तरफ ध्यान कहां से आप कोआ गया? हमेशा
व्यापार में डूबे रहते हो।“
“अब समय आ गया है, कि तुम सुरूची की ओर ध्यान देना शुरू कर दो, आज उसने
मेरी नाक काट दी।“
“मैं समझी नही, उसने तुम्हारी नाक काट दी, खुल कर बताऔ।“
“क्या बताऊं, कहां से बात शुरू करूं, मुझे तोबताते शर्म आ रही है।“
“मेरी समझ में कुछ नही आ रहा हैं, कि तुम क्या बताना चाहते हो।“ सोनिया,
जोअब तक मेकअप में व्यस्त थी, सुन्दर की तरफ पलट कर उत्सुकतावश देखने लगी।
“सोनिया, सुरुची के रंगढंग आजकल सही नही हैं। खुल्लम खुल्ला लड़कों के हाथ
में हाथ डाले धूम रही है। लड़कों के साथ चिपक कर उसे इतना भी होश नही था कि
उसका बाप सामने खडा़ है।“ तमतमाते हुए सुन्दर ने कहा तोकुछ देर तक सोनिया
सुन्दर कोघूरती रही फिर उसके होथों पर ऊंगली रखते हुए बोली, “सुन्दर बाबू
इतनी नाराजगी और क्रोध सेहत के लिए अच्छा नही होता। थोड़ी शान्ति के साथ
सोचो।आवाज नीचीं रख कर बात करो, मुझसे इस विषय पर।“ इस पर सुन्दर का पारा
सातवें आसमान पर पहुंच गया। चेहरा लाल होगया और बल्डप्रेशर ऊपर होगया।
सोनिया ने सुन्दर कोदवा दी और सहारा देकर बिस्तर पर लिटाया। खुद का किटी
पार्टी का प्रोग्राम कैन्सल कर दिया। सुन्दर कोचैन नही था। उसने फिर से
सोनिया से सुरुची की बात शुरू कर दी। अब सोनिया, जोइस विषय कोटालना चाहती
थी, कहना शुरू किया।
“देखोसुन्दर, इस बात कोइतना तूल मत दो।मैं सुकेश से मिल चुकी हुं। आजकल
लड़के लड़की मे कोई अन्तर नही है। कॉलिज में एक साथ पढ़ते है। एक साथ रहना,
घूमने फिरने में कोई ऐतराज नही करता आज के समय में। मुझे सुरुची पर पूरा
भरोसा है। वह कोई गलत काम कर ही नही सकती है। मैनें उसे पूरी ट्रेनिंग दे
रखी है। आप कोमालूम भी नही है, वह कराटे जानती है। दोबार मनचलोपर कराटे का
इस्तेमाल भी कर चुकी है।“
“सोनिया तुम सुरुची के गलत काम में उसका साथ दे रही हो।“सुन्दर ने तमतमाते
हुए बीच में बात काटी।
“देखोजब तुम इतना गुस्सा होरहोहो, तोमुझे वोबात कहनी पडेगी, जोमैं कहना नही
चाहती हूं।“
“जब नाक कट ही चुकी है तोतुम कसर क्यों छोडना चाहती हो, अपनी तमन्ना पूरी
कर लो।“
सोनिया सब्र से बोली, “सच्चाई बहुत कड़वी होती है, सुन नही सकोगे। इसलिए नही
कहना चाहती थी, लेकिन अब जरूर बोलूंगी, चुप नही रहूंगी। अपनी जवानी याद
करो।पच्चीस साल पहले, तुम क्या थे। एक अमीर बाप की बिगडी औलाद। कॉलिज सिर्फ
मटरगस्ती करने जाते थे। कभी कोई क्लास भी अटेन्ड की थी, याद करके बता सकते
होमुझे।“
“क्या कहना चाहती हो।“
“बात मत काटोबीच में, जब जिक्र छिडा है, तोचुभन अंदर तक होगी। सारा समय
गर्ल कॉलिज के आगे नजर आते थे, कितनी लड़कियों कोछेडा था, तुम गिनती भी नही
कर सकते हो।मैं भी उनमें से एक थी। आते जाते छेडना, फबतियां कसना ही काम
था, तुम्हारी मंडली का। छटे हुए गुंडे थे। हर लड़की धबराती थी तुमसे। जीना
हराम कर दिया था, तुमने मेरा। तुम्हारी हर छेड कोनजरअंदाज करती रही, कर भी
क्या सकती थी। एक गुंडे मवाली का शरीफ लड़की कैसे मुकाबला कर सकती थी। हद
तोतब होगई थी, जब मेरे घर की गली में डेरा जमा लिया था, आते जाते मेरा हाथ
पकड़ लेते थे, कितना शर्मिन्दा होना पडता था, मुझे। मेरे मां बाप पर क्या
बीतती थी, तुमने कभी सोचा न था। मेरा हाथ पकड कर खीं खीं कर हंसते थे, पूरी
गुंडों की टोली के साथ। पूरे एक सप्ताह तक घर से नहीं निकली थी, और तुम उस
दिन मेरे घर में घुस आए थे। कभी सोचने की कोशिश भी शायद नही की होगी, तुमने
कि क्या बीती होगी, मेरे बाप पर, और आज तुम मुझसे कह रहे होकि अपनी बेटी
कोसंभाल। खून तुम्हारा भी है, सुन्दर, कुछ तोबाप के गुण बच्चों में जाएगें।
लेकिन मैं खुद सतर्क हूं, क्योंकि मैं खुद भुगत चुकी हूं, कि इस हालात में
लड़की और उसके माता पिता पर क्या बीतती है। इतिहास खुद कोदोहराता है, आज से
पच्चीस साल पहले जब उस दिन सब हदे पार करके मेरे घर घुसे थे, कि शरीफ बाप
क्या कर लेगा और तुम अपनी मनमानी कर लोगे, मैं अपने कमरे मे पढ़ रही थी और
तुमने कमरे में आ कर मेरा हाथ पकड लिया था। मैं चिल्ला पडी। पडोस में
शकुन्तला आंटी ने देख लिया था। उनके शोर मचाने पर आस पास की सारी औरते
इकठ्ठी होगई थी, जोजम कर तुम्हारी धुनाई हुई थी, शायद तुम भूल गए होगे,
लेकिन मैं आज तक नही भूली हूं। मुहल्ले की औरतों ने तुम्हारी चपप्लों,
जूतों, झाडू से जम कर पिटाई की थी, सारे कपडे फट गए थे, मुंह सूज गया था।
नाक से खून निकल रहा था। पिटता देख तुम्हारे सारे चमचे दोस्त भाग गए थे और
उस अधमरी हालात में धसीटते हुए सारी औरतें तुम्हे इसी घर में लाए थे।
ससुरजी भागते हुए दुकान छोड कर आए और तुम्हारी करतूतों पर सिर झुका लिया
था, लिखित माफी मांगी थी, कहोतोअभी वोमाफीनामा दिखाऊ, अभी तक संभाल कर रखा
है।“
सुन्दर कुछ नही बोल सका और धम से बिस्तर पर लेट गया। सोनिया ने आईना सामने
रख दिया था। सच कितना कडवा होता है, शायद इस बात का अंदाज आज हुआ। अपना
अतीत हर कोई भूल जाता है, आज इतिहास करवट बदल कर सामने खडा है। खुद अपना
चेहरा देखने की हिम्मत नही होरही है, सुधबुध खोकर सुन्दर शून्य में गुम
होचुका था, सोनिया क्या बोल रही है, शब्द उसके कान नही सुन रहे थे, लेकिन
सोनिया कहे जा रही थी।“सुन्दर सुन रहे होन, एक हफ्ते तक तुम चोटग्रस्त
बिस्तर से नही उठ सके थे। जोबदनामी तुम्हे आज याद आ रही है, वोमेरे पिता और
ससुरजी कोभी आई थी। बदनामी लडके वालों की भी होती है। एक गुंडे के साथ कोई
अपनी लडकी का ब्याह नही कर रहा था। चारों तरफ से नकारने के बाद सिर्फ दोही
रास्ते थे, या तोकि किसी गुंडे की बहन, लडकी से शादी करते या कुंवारे रह कर
सारी उम्र गुंडागर्दी करते। जिस बाप की लडकी के पीछे गुंडा लग जाए, वोकर भी
क्या सकता था, ससुरजी ने जब सब रास्ते बंद देख कर मेरा हाथ मेरे पिता से
मांगा, तोमजबूरी से दब कर एक गुंडे कोन चाहते हुए भी दामाद स्वीकार करना
पडा।“
कहते कहते सोनिया भी फभक कर रोपडी। पलंग का पाया पकड कर सुबक कर रोने
लगी।आंसुऔकी झडी लग गई।
बात तोसच है, जवानी की रवानी में जोकुछ किया जाता है, उसकोभूल कर हम सभी
बच्चों से एक आदर्श व्यवहार की उम्मीद करते है। क्या अपने और बच्चों केलिए
अलग आदर्श होने चाहिए, कदापि नही। कौन इसका पालन करता है, सुन्दर तोकेवल एक
पात्र है, जोहर व्यक्ति चरितार्थ करता है।
मनमोहन भाटिया