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हवेली

वोही भव्य इमारत, सूरज उस इमारत के पास रुक गया। सुबह के सात बज रहे थे। सड़क खाली थी, लोगों की भीड़ भाड़ बहुत ही कम थी। हां वोही बड़ा सा भारी भरकम मोटा दरवाज़ा और उसके अंदर एक छोटा सा दरवाज़ा। छोटा दरवाज़ा अभी खुला हुआ था। सूरज उस भव्य इमारत जिस पर लिखा था चन्दगी राम की हवेली के अंदर छोटे से दरवाज़े से प्रविष्ट हुआ। दालान के बीच में कुआं, जिसमे से एक व्यक्ति पानी निकाल रहा था। सूरज ने उस व्यक्ति से मांग कर पानी पिया। मीठा ठंडा जल, पानी पी कर सूरज का चित प्रसन्न हो गया। कुआं अभी भी ठंडा और मीठा जल दे रहा है, यह जान कर सूरज को प्रसन्ता हुई। कभी यह हवेली चन्दगी राम का निवास होती थी। आज एक ट्रांसपोर्ट कंपनी का ऑफिस और गोदाम बना हुआ है। सूरज ने पानी निकालने वाले व्यक्ति से पूछा कि ट्रांसपोर्ट कंपनी का ऑफिस कितने बजे खुलता है। दस बजे कह कर वह व्यक्ति अपने काम लग गया। कल जो जगह, भव्य हवेली शहर के मशहूर व्यापारी चन्दगी राम का निवास होती थी आज एक मशहूर ट्रांसपोर्ट कंपनी का गोदाम बना हुआ है। उसे कल की ही बात लगती थी कि यहां उसका बचपन बीता था, शादी हुई थी, पहले पुत्र का जन्म भी इसी हवेली में हुआ था। वह पिता माता और बहन के साथ रहा करता था। ऊपर नौकर रहते थे आज ट्रांसपोर्ट कंपनी के मजदूर रह रहे है और ऑफिस बना हुआ है। नीचे गोदाम में पेटियां, बोरियां और गांठे पड़ी हैं। मुआइना करने के बाद सूरज हवेली से बाहर आ गया। सड़क पार एक चाय की दुकान खुल गयी थी। सूरज चाय की दुकान पर रखे बेंच पर बैठ गया।

सूरज बीस साल बाद हवेली आया था। चाय वाले ने दुकान लगाई। सूरज को बेंच पर बैठा देख पुछा “बाबू चाय पिओगे?”
“कड़क सी बना दो।“
“बाबू पहले कभी देखा नहीं। परदेशी हो?”
“हां परदेशी ही समझ लो। पहले रहते थे। अब तो मुद्दत बाद आया हूं।“ सूरज ने मुस्कुराते हुए कहा। कहने के बाद सूरज आस पास का मुआयना करने लगा। हवेली ट्रांसपोर्ट कंपनी बन गयी। मेन रोड पर बने मकान कमर्शियल बन चुके थे। रिहाइस तो पूरी सड़क पर नज़र नहीं आ रही थी। सब जगह ऑफिस और दुकाने बन चुकी थी। सूरज को इधर उधर देखते हुए चाय वाले ने कहा “क्या खोज रहे हो?”
“उस हवेली को देख रहा हूं। ट्रांसपोर्ट कंपनी का ऑफिस दस बजे खुलेगा। वहीं कुछ काम है।“
“हां बाबू, बस अब तो पुरानी बातें ही याद हैं हवेली की। कभी की चमक धमक आज इतिहास की गर्द में डूबी हुई है।“
“क्या तुम इस हवेली के बारे में जानते हो?”
चाय बनाते हुए चाय वाले ने कहा “क्या बात करते हो बाबू, अपनी आंखों से हवेली को बनते उजड़ते देखा है।“

चाय वाले की बात सुन कर सूरज चौंक गया कि आखिर चाय वाला क्या कह रहा है। उसे अच्छी तरह याद है कि बीस साल पहले जब उसने हवेली छोड़ी थी तब चाय वाला यहां नहीं रहता था। वह झूठ बोलेगा, चलो इसकी गपशप ही सुन कर टाइम पास करते है।
“अरे बाबू क्या बताये। हवेली के मालिक थे चन्दगी राम, बड़े भले मानस थे। वो देखिये हवेली के दरवाज़े के ऊपर लिखा है चन्दगी राम निवास।“

सूरज ने गर्दन ऊपर करके देखा। नाम लिखा था पर धूल से सना हुआ। जब वे रहते थे, हर रोज़ सफाई होती थी। अब ट्रांसपोर्ट कंपनी के नौकर क्यों करेंगे सफाई। पहले तो मालिक का हुक्म होता था की हर रोज़ पूरी हवेली की सफाई होगी। लगभग तीन चार घंटे लग जाते थे सफाई में। पूरी नौकरों की पलटन ही हवेली के अन्दर ही रहते थी। सूरज चाय वाले की कहानी सुनने लगा।

“बाबू सेठ जी के नाम से जाना जाते थे। बड़े भले मानस थे। कोई आ जाये ज़रूरत मंद, उसकी झोली भर देते थे। बाबू मेरी चाय की दुकान उन्होंने ही चालू करवाई। गांव से आया था, फूटी कोडी नहीं थी जेब में। मैं तो सेठ जी के नाम की हर रोज़ माला जपता हूं। मैं सुबह की गाडी से आया था। भोजन के समय चिंता थी कि क्या खाऊ। एक पैसा जेब में नहीं था। घूमता घूमता यहां पहुंचा, देखा की लाइन लगी है, सेठ जी सबको अपने हाथों से भोजन करवा रहे थे। जब मेरा नंबर आया तो मैं रोने लगा। सेठ जी ने पूछा बोलो क्या बात है। मैंने कहा कि मैं भिखारी नहीं हूं। मेहनत करके अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ। बस फिर क्या सेठ जी ने मुझे यहां चाय की दुकान खुलवा दी। वो दिन था और आज का दिन है, हर रोज़ कितनी बार सेठ जी के नाम की माला जपता हूं बता नहीं सकता।“ कह कर उसने सूरज को चाय दी।

सूरज चाय की चुस्कियां लेते हुए हवेली की ओर देख रहा था। सूरज को हवेली की ओर देखता हुआ चाय वाले ने फिर से हवेली कथा शुरु कर दी।

“बाबू अब क्या बताये तुमको, सेठ जी जितने भले मानस थे उनकी औलाद एक दम उलटी निकली। पुराने जन्मों के कर्म होते है, उन्ही का इस जनम में भुगतना पड़ता है। दो औलादे थी एक लड़का और एक लड़की, क्या औलादे निकली भगवान बचाए ऐसी औलादों से, किसी को न दे ऐसी औलादे।“ कह कर उसने कानों को हाथ लगाये।

सूरज इतना सुन परेशान हो गया कि आखिर क्या कर दिया उसने और उसकी बहन ने। सूरज ने उत्सुकता से चाय वाले से पूछा “आखिर औलादों ने क्या कर दिया?”
“मत पूछो बाबू, मैं बता नहीं सकूंगा।“
“अब बता भी दो। सस्पेंस मत रखो।“
“कलेजे पे पत्थर रख कर बता रहा हूं। जिस परम आत्मा ने मुझे चाय की दुकान खुलवा दी, बेटे ने हवेली बेच दी। बेटी घर से भाग गई।“
यह सुनते ही सूरज को क्रोध आने लगा। परन्तु उसने धैर्य रखा कि चाय वाला कितनी गप सुनाता है। कम से कम सुन ले, कि क्या ज़हर यहाँ बैठ घोल रहा है।
चाय वाले ने कहना शुरु किया “सेठ जी का लड़का पूरा पियक्कड़। कोई काम नहीं करना। आंख बाद में खुलती थी, बोतल पहले खुलती थी। सुबह से रात तक नशे में डूबा रहता था। हर किस्म के नशे की आदत थी। शराब, अफीम, गांजा, चरस और तो हमें नाम भी नहीं पता। और लड़की भी कौन सी कम थी। यार के साथ भाग गई। इसी गम में सेठ जी स्वर्ग सिधार गए और हवेली बिक गई।“

चाय वाले की बात सुन कर सूरज के दिमाग का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। चाय का कप जमीन पर पटक कर क्रोधित हो कर कहा “मैं क्या शराबी नज़र आता हूं? हवेली बिक गई। सेठ जी परलोक सिधार गए। झूठ बोलते शर्म नहीं आती।“ कह कर चाय वाले को जोर से दो थप्पड़ रसीद कर दिए। चाय वाले का थप्पड़ खा कर सिर घूम गया। चाय की भट्टी पर गिरते गिरते बचा।

“बाबू एक तो कप तोड़ दिया, ऊपर से मार पीट करते हो।“
“मुझे शराबी, कबाबी कह रहा है। सेठ जी को मरा हुआ कह रहा है।“
कह कर सूरज चाय वाले से गुथ्थम गुथ्था हो गया। एक दूसरे के कपडे फट गए। पहले तो आस पड़ोस वाले तमाशा देखते रहे। जब लड़ कर दोनों ढीले पड़े तब पडोसी आये और दोनों को अलग किया।

चाय वाले ने शोर मचा कर कहा “छोडूगा नहीं पूरा हर्जाना लूंगा।“
“तो क्या मैं छोड़ दूंगा। अच्छे भले जिंदा आदमी को मार दिया। मान हानि का मुकदमा ठोकूंगा। अक्ल ठिकाने आ जाएगी।“
“क्या हुआ भाई साहब, बताओ तो सही।“ दो तीन आदमियों ने सूरज से पूछा।

सूरज ने उनको बताया कि वह सेठ चन्दगी राम का लड़का सूरज है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण हवेली गिरवी रख कर बैंक से लोन लिया था। लोन नहीं चुका पाने के कारण हवेली के नीचे का हिस्सा बिक गया जहां आज ट्रांसपोर्ट कंपनी है। थोडा सा लोन रह गया था, वो अब चुका दिया है और हवेली के ऊपर का हिस्सा आज बैंक से वापस लेना है। किसी को सूरज की बातों पर विश्वास न हुआ क्योंकि सभी उस चाय वाले की बातें सालों से सुनते आ रहे थे।

अब दस बज गए। दुकानें खुलनी शुरु हो गयी। सूरज के आने की खबर फ़ैल चुकी थी। सभी सूरज के इर्द गिर्द एकत्रित सूरज से बातें कर रहे थे। सूरज ने बैंक फ़ोन किया। सूरज कपडे बदल कर बैंक चला गया। बैंक में औपचारिकतायें पूरी करने के बाद सूरज एक बैंक अधिकारी के साथ हवेली आया। हवेली के दरवाज़े से सूरज ने चाय वाले को आवाज़ दी कि आकर खुद देख ले हवेली के ऊपर वाले हिस्से का कब्ज़ा मिल रहा है। चाय वाला तो नहीं आया पर आस पास के दुकानदार ज़रूर आ गए। सूरज ने हवेली के ऊपर बने कमरों का कब्ज़ा लेकर अपने ताले लगाये। सूरज कब्ज़ा लेने के बाद चाय वाले की दुकान पर बैठ गया। एक जोर की आवाज़ लगायी बना कड़क चाय। तभी एक बुजुर्ग वहां से गुजरे। सूरज ने उन्हें पहचान लिया।

सूरज ने आवाज़ दी “चाचा मैं सूरज, पहचाना।“
बुजुर्ग व्यक्ति आवाज़ सुन कर रुक गया। “अरे सूरज तुम। सालों बाद मिल रहे हैं। कैसे हो। चन्दगी कैसा है।“
“पिताजी भी ठीक हैं। थोडा बीमार चल रहे है।“
“कैसे आना हुआ।“
सूरज ने बताया कि हवेली के ऊपर वाले हिस्से का कब्ज़ा ले लिया है।
“यह काम बहुत अच्छा किया।“
“चाचा सब वक़्त करवाता है। हम तो उसके हुक्म के गुलाम हैं।“
“सच कहते हो बेटा।“ कह कर बुजुर्ग व्यक्ति चला गया। सूरज ने कड़क चाय पी और वापिस चला गया।

उस दिन के बाद चाय वाले की हवेली कथा पुराण समाप्त हो गयी।