बच्चों की भावना
“अकी, बेटा अकी, उठो, सुबह होगई, स्कूल जाना है। उठोप्यारी अकी।“ अनुभव
ने अपनी लाडली लडकी आकृति कोसुबह सुबह जगाने के लिए आवाज लगानी शुरू की।
हूं कह कर अकी ने करवट बदली और रजाई कोकानों तक खींच लिया।“अकी यह क्या,
रजाई में अब और ज्यादा दुबक गई हो, उठो, स्कूल कोदेर होजाएगी।“
“अच्छा पापा।“कह कर अकी और अधिक रजाई में छुप गई।
“यह क्या तुम अभी भी नही उठी, लगता है, रजाई कोहटाना पडेगा।“
“अभी उठती हूं।“
“नही अकी, अब फटाफट रजाई से बाहर आ।“कह कर अनुभव नें अकी की रजाई कोहलके
हलके धीरे से हटाना शुरू किया।
“नही पापा, अभी उठती हूं।“ बंद आंखों में ही अकी ने कहा।
“नही अकी अब देरी अच्छी नही, साढे पांच बज गये हैं, तुम्हे टायलेट में भी
अच्छा टाइम लग जाता है।“
यह सुन कर अकी ने धीरे से आंखें खोली, “अभी तोपापा रात है, अभी उठती हूं।“
अब अनुभव ने कुछ नही सुना और अकी कोउठाया और टुथब्रश हाथ में देकर टायलेट
में वाशबेसन के आगे खड़ा कर दिया। पापा ऊ हूं कह कर बेमन दांतोकोब्रश करने
लगी। आंखों में उसके अभी भी नींद थी। सर्दियों में रातें लम्बी होने के
कारण सुबह सात बजे के बाद ही उजाला होना शुरू होता है और ऊपर से घने कोहरे
के कारण लगता ही नही कि सुबह होगई। बस घड़ी देख कर दिनचर्या आरम्भ कर
दो।आकृति की स्कूल बस साढे छः बजे आ जाती है। वैसे तोस्कूल आठ बजे लगता है,
लेकिन घर से स्कूल की दूरी चौदह किलोमीटर तय करने में पूरा सवा घंटा बस
लेती है। रास्ते में हर चार कदम पर बस स्टाप और बच्चों कोलेते हुए सवा घंटा
बच्चों कोतोड़ देता है। एक तोसुबह सुबह आकृति की नींद नही खुलती और सवा घंटे
की बस यात्रा स्कूल पहुंचने से पहले ही आकृति कोथका देती थी। जैसे तैसे अकी
स्कूल के लिए तैयार हुई। फ्लैट से बाहर निकलते आकृति ने पापा से कहा, “अभी
तोरात है, दिन भी नही निकला। मैं आज स्कूल जल्दी क्यों जा रही हूं।“
“आज कोहरा बहुत अधिक है, इसलिए उजाला नही हुआ, एैसा लग रहा है, कि अभी रात
है, लेकिन अकी, घड़ी देखो, पूरे साढे छः बज गये है। बस आती ही होगी।“
कोहरा बहुत घना था। सात आठ फीट से आगे कुछ नजर नही आ रहा था। सड़क एक दम
सुनसान थी, इक्का दुक्का लोग आ जा रहे थे। सोसाइटी के गेट पर स्कूल बस आती
थी। आज आकृती के अलावा और कोई बच्चा नही था। बच्चों की अपनी एक अलग दुनिया
होती है। उनकी एक सोच होती है। अपनी सोच और समझ के मुताबिक वे सोचते
विचारते है, जिस कोहम बड़े नही समझते है या समझने की कोशिश ही नही करते है।
मस्तिष्क हम बडो़ में होता है तोवैसा मस्तिष्क बच्चों में भी होता है। हम
बच्चों के मस्तिष्क कोसमझने की कोशिश नही करते है।यह जरूर है कि उनकी एक
छोटी दुनिया होती है, जिसमें वे अपना ताना बाना बुनते है। उनकी बातों
कोबचपना कह कर टाल जाते है, लेकिन हमें उनकी बातों कोध्यान से समझना चाहिए।
उन की भावनाऔकी कद्र करनी चाहिए।
घने कोहरे के बीच सर्द हवा के झोकों से आकृती के शरीर में झुरझिरी सी होती
और इसी झुरझराहट ने उसकी नींद खोल दी। अपने बदन कोब्रेक डांस जैसे हिलाते
डुलाते वह बोली “पापा लगता है, आज बस नही आएगी।“
“आपकोकैसे मालूम अकी।“
“देखोपापा, आज स्टाप पर कोई बच्चा नही आया है, आप स्कूल फोन करके मालूम
करो, कहीं आज स्कूल में छुट्टी न हो?”
“आज छुट्टी किस बात की होगी?”
“ठंड की वजह से आज छुट्टी होगी। इसलिए आज कोई बच्चा नहीं आया। देखोपापा
इसलिए अभी तक बस भी नही आई है।“
“बस कोहरे की वजह से लेट होगई होगी।“
“पापा कल मोटी मैडम शकुन्तला राधा मैडम से बात कर रही थी कि ठंड और कोहरे
के कारण सर्दियों की छुट्टियां जल्दी होजाएगी।“
“जब स्कूल की छुट्टी होगी तोसब कोमालूम होजाएगा।“
“आप ने टीवी में न्यूज सुनी, शायद आज से छुट्टियां कर दी हैं।“
“नही, बेटे, अभी ऐसी कोई न्यूज नही है।“
आकृति ही क्या सारे बच्चे ठंड में यही चाहते है, कि स्कूल बंद रहे, लेकिन
स्कूल वाले इस बारे में कुछ सोचते है। चाहे ठंड पहले पड़े या बाद में,
छुट्टियों की तारीखें पहले से तय कर लेते है। ठंड और कोहरे के कारण न
तोछुट्टियां करते है ना स्कूल का टाइम बदलते है। सुबह के बजाए दोपहर का समय
कर दें, लेकिन हम बच्चों की कोई नहीं सुनता है। सुबह सुबह इतनी ठंड में
बच्चे कैसे उठे। आकृती मन मन में बडबड़ा रही थी।
“अकी क्या सोच रही हो।“
“कुछ नही, पापा।“
तभी दोतीन बच्चे स्टाप पर आ गये। सभी ठंड में कांप रहे थे, बच्चे आपस में
बतियाने लगे कि मजा आ जाएगा, बस न आए। तभी एक बच्चे की मां ने अनुभव
कोसम्बोधित करते हुए कहा, “भाभी जी के क्या हाल है? अब तोडिलीवरी की तारीख
नजदीक है। आप अकेले कैसे मैनेंज कर पाएगे। अकी की दादी या नानी कोबुलवा
लीजिए। वैसे कोई काम होतोजरूर बताइए।“
“अकी की नानी आज दोपहर की ट्रेन से आ रही है।“ अनुभव ने उत्तर दिया।
“पापा क्या नानी आ रही है?आपने मुझे क्यों नही बताया।“ अकी नाराज होकर
बोली।
तभी स्कूल बस ने हॉर्न बजाया, कोहरे के कारण रेंगती रफ्तार से बस चल रही
थी। किसी कोपता ही नही चला कि बस आ गई। बच्चे बस में बैठ गये, सभी पैरेन्ट
ने बस ड्राइवर कोबस धीरे चलाने की सलाह दी। बस ड्राइवर ने पलट के जवाब दिया
कि यह भी कोई कहने की बात है। बच्चों की सुरक्षा सबसे पहले, इस कारण रेंगती
रफ्तार से बस चला रहा हूं।
अनुभव बस के रवाना होने के बाद जल्दी से घर आया। स्नेह कोलेबर पेन शुरू
होगई थी, “अनु डाक्टर कोफोन करो।अब रहा नही जा रहा है।“ स्नेह के कहते ही
अनुभव नें डाक्टर से बात की। डाक्टर ने फौरन अस्पताल आने की सलाह दी। फौरन
फ्लेट कोताला लगा कर अनुभव कार में स्नेह कोनर्सिग होम ले गया। डाक्टर ने
चेकअप के बाद कहा। मिस्टर अनुभव आज ही आपकोखुशखबरी मिल जाएगी। अनुभव ने
अपने बॉस कोफोन करके स्थिती से अवगत कराया और ऑफिस से छुट्टियां ले ली।
अनुभव की चिन्ता अब रेलवे स्टेशन से आकृती की नानी कोघर लाने की थी, कि
नर्सिग होम में किसकोस्नेह के पास छोड़े। आज के समय एकल परिवार में ऐसे मौके
पर यह एक गंभीर परेशानी करती है कि अकेले कब क्या क्या और कहां क्या करे।
सुबह आकृती कोतैयार करके स्कूल भेजा और फिर स्नेह के साथ नर्सिग होम। स्नेह
कोअकेला छोड़ नही सकता, मालूम नही कब क्या जरूरत पड़ जाए। नानी अकेले स्टेशन
से कैसे घर आएगी। घर में ताला लगा है। सुबह पड़ोसी वर्मा जी के घर कालबेल
बजाई लेकिन सब व्यस्त, घर का दरवाजा खोलने में देरी कर दी और अनुभव इन्तजार
नही कर सका। नर्सिग होम के वेटिंगरूम में बैठ कर अनुभव का मस्तिष्क तेजी से
चल रहा था, कि कैसे सब कुछ मैनेंज किया जाए। वर्मा जी कोफोन लगाया और
स्थिती से अवगत कराया। नर्सिग होम घर के नजदीक था, आधे घंटे में मिसेज
वर्मा थर्मस में चाय, नाश्ता लेकर उपस्थित होगई।“बेटा पहले तोआप चाय और
नाश्ता लीजिए, मैं यहां स्नेह के पास बैठती हूं। आप आकृती की नानी जी
कोरेलवे स्टेशन से लाईए।“ अनुभव ने बिस्कुट के साथ चाय पी और रेलवे स्टेशन
रवाना हुआ। स्टेशन पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि गाड़ी दोघंटे लेट है। रेलवे
प्लेटफार्म के बैंच पर बैठा अनुभव सोचने लगा कि एकल परिवार के जहां एक तरफ
अपने सुख हैं तोदूसरी और दुःख भी। आज जब प्रसव के समय किसी अपने की जरूरत
है, तोअकेले सभी कार्य खुद कोकरने पड़ रहे है। लेकिन यह उसकी मजबूरी है।
नौकरी जहां मिलेगी, वही रहना पड़ेगा। अपने घर के पास नौकरी न मिले तब कोई
कुछ नही कर सकता है। घर से दूर रहना पड़ता है। कोई सगा तोपास नही होता। ऐसे
समय पड़ोस ही सगा होता है। पता नही डाक्टर भी डिलीवरी की गलत तारीख क्यों
बताते है, तारीख के हिसाब से नानी कोदस दिन पहले बुलाया है, लेकिन यह बातें
सोचने का समय तोनही है, फिर भी इन्तजार में समय व्यतीत करते हुए मस्तिष्क
में पता नहीं, कहां से क्या क्या विचार आ जाते हैं।
पडोसी वर्मा जी की भी कुछ ऐसी स्थिती है। दोनों बुजर्ग दंपति रिटायरमैंट
के बाद अकेले रह रहे है। एक पुत्र विदेश में नौकरी कर रहा है, दोतीन साल
बाद दोमहीनों के लिए मिलने आता है और दूसरा पुत्र बंगलूरू में आईटी कम्पनी
में नौकरी करता है। साल में दस एक दिनों के लिए मिलना होता है। दोपुत्रियां
हैं, एक अहमदाबाद में रहती है, लेकिन दूसरी पुत्री नोएड़ा में रहती है, जोहर
रविवार कोसपरिवार मिलने आती है। बाकी सप्ताह वर्मा दंपति अकेले। इसी कारण
एक दूसरे की पूर्ती के लिए अनुभव और वर्मा जी के बीच काफी नजदीकियां होगई
थी। अनुभव और स्नेह दोनोनौकरी करते थे। आकृति की वजह से वर्मा दंपति की
नजदीकियां बड़ी। दोपहर कोआकृति स्कूल से वापिस आती तोअधिक समय उसका वर्मा जी
के घर बीतता। घर के कार्य के लिए अनुभव ने दिन की नौकरानी रखी हुई थी,
लेकिन नौकरानियां आकृति का कम और अपना ध्यान अधिक रखती थी। एक छोटे से
बच्चे ने क्या खाना पीना था, उससे कई गुणा अधिक नौकरानियां हजम कर जाती थी,
इस कारण कई नौकरानियां आई और चली गई। लेकिन वर्मा परिवार से संबंध बढ़ता ही
गया। अकेलेपन कोदूर करने के लिए एक छोटे बच्चे का सहारा वर्मा जी कोअपने
खुद के बच्चों की दूरी भुला देता था। इसमे दोष किसी का नही है। सभी
परिस्थितियां ही कुछ ऐसी होजाती हैं कि किसी का कोई बस नही चलता है।
तभी रेलवे की घोषणा ने अनुभव कोविचलित कर दिया। गाड़ी दोघंटे और लेट है। उफ
ये रेलवे वाले कभी नही सुधरेगें। एक बार में क्यों नही बता देते कि गाड़ी
कितनी देर से आएगी। सुबह से एक एक घंटे बाद और अधिक देरी से आने की घोषणा
कर रहे है। सर्दियों में कोहरे के कारण गाड़ियां अक्सर देरी से चलती हैं।
लेकिन अनुभव आज और अघिक इंतजार नही कर सकता था, लेकिन इस समय वह केवल
झुंझला कर रेलवे प्लेटफार्म के एक छोर से दूसरे छोर के अनगिनत चक्कर लगा
चुका था। तीन घंटे से अधिक उसे इंतजार करते होगये। मालूम नहीं यह ट्रेन कब
आएगी। वर्मा जी नर्सिगहोम में हैं। अकी भी स्कूल से आने वाली होगी। तभी
मोबाइल की घंटी बजी। दूसरी तरफ वर्मा जी थे। मुबारक होअनु बेटे। अकी का भाई
आया है। स्नेह और छोटा काका एकदम ठीक हैं। तुम चिन्ता मत करो।मैं घर जा रहा
हूं। अकी के स्कूल से वापिस आने का समय होगया है। चिन्ता मत करना।
यह सुन कर अनुभव की जान में जान आई। अब तनाव से दूर शान्ती से बैंच पर बैठ
गया। निश्चिन्त होकर अब अनुभव ट्रेन का इंतजार करने लगा। गाड़ी पूरे छः घंटे
देरी से आई। बच्चे की खुशखबरी सुन कर नानी की सफर की सारी थकान मिट गई।
“अनु बेटे अब सीधा नर्सिगहोम ले चल। पहले छोटे काके कोदेख कर स्नेह से मिल
लूं।“
नर्सिगहोम में स्नेह के पास झूले में छोटा काका सोरहा था। नानी कोदेख कर
वर्मा दंपति ने बधाई दी। नानी ने नर्स और आया कोरूपये न्योछावर किये और
छोटे काके कोगोद में लिया। छोटे काके कोगोद में लेता देख आकृति बोली।“नानी
मैंने आपसे पहले छोटे काका को देखा। नानी कितना गोरा है। देखोकितना सॉफ्ट
है लेकिन एकदम गंजा है। सर पर एक भी बाल नही है।“ नानी ने लाड में कहा।“बाल
भी आ जाऐगें। अकी से भी ज्यादा। जब अकी तुम पैदा हुई थी, तुम्हारे भी सर
में बाल नही थे, अब देखो, कितने लम्बे बाल हैं।“
“नानी मुझे दोना छोटे काका को, मम्मी तोहाथ भी नही लगाने दे रही।“
नानी ने प्यार से कहा।“अभी बहुत छोटा है, मेरे पास बैठो, तुम्हारी गोदी में
देती हूं।“ गोदी में पा कर आकृति उल्लास से भर गई।“नानी देखो, अभी
आंखोकोखोला था, देखोकितना क्यूट तरीके से मुस्करा रहा है।“ ऐसे हंसते खेलते
शाम होगई। वर्मा आंटी ने घर जा कर रात के भोजन का प्रबंध किया। स्नेह ने
नानी कोघर जा कर आराम करने कोकहा। आकृति का मन जाने कोनही होरहा था।“नानी
थोडा रूक के चलते हैं। अभी काका जाग रहा है। जब सोजाएगा, तब चलेगें।“
“अकी अब घर चलो, होमवर्क भी करना होगा और फिर तुम सुबह उठने में देर कर
देती हो।“ अनुभव ने आकृति से कहा। लेकिन अकी का मन घर जाने कोनही था। घर
में होमवर्क करते समय उसका ध्यान छोटे काका में लगा हुआ था। जैसे तैसे
होमवर्क पूरा किया। रात कोएक बार फिर वह अनुभव के साथ नर्सिग होम गई और
काफी देर तक छोटे काका कोनिखारती रही, पुचकारती रही। रात कोघर आने में देरी
होगई। पूरे दिन की थकान के बाद स्नेह और छोटा काका कोसही देख कर सम्पूर्ण
निश्चिन्ता के साथ सोया तोसुबह उठने में देरी होगई। वर्मा आंटी ने जब
कालबेल बजाई तब अनुभव की आंख खुली।“बेटे क्या बात है, क्या अकी स्कूल नही
जाएगी। मैनें उसका नाश्ता भी बना दिया है।“
“आंटी मालूम नही आज घड़ी का अलार्म कैसे नही सुनाई दिया। अभी अकी कोउठाता
हूं। स्कूल की तोअगले सप्ताह से छुट्टियां हैं।“
“कोई बात नही। बेटा। मैं तुम्हारी चाय और अकी का नाश्ता रसोई में रख देती
हूं और हां स्नेह और नानी की चाय लेकर नर्सिगहोम जा रही हूं। तुम आराम से
अकी कोस्कूल के लिए तैयार करो।“ अनुभव नें अकी कोउठने के लिए आवाज देनी
शुरू की, लेकिन अकी रोज की तरह हूं हां कर के करवट बदल कर रजाई और अधिक
कानों तक खींच कर सोजाती। बड़ी मुश्किल से अकी स्कूल जाने के लिए तैयार हुई,
लेकिन स्कूल बस आज निकल गई। अनुभव कोघर वापिस आ कर कार उठानी पड़ी। स्कूल घर
से चैदह किलेमीटर दूर था। स्कूल के गेट पर प्रिसिंपल खड़ी थी और देरी से आने
वाले सब बच्चों को घर वापिस भेज रही थी। अनुभव ने काफी मिन्नत की लेकिन
प्रिसिंपल के ऊपर कोई असर नही पड़ा, उलटे वह अनुभव पर विफर पड़ी।“आप
अभिभावकों का कर्तव्य हैं कि बच्चों के नियमित समय पर स्कूल भेजे, उन
कोअनुशासित करे, लेकिन आप उनकोशह देकर और अधिक बिगाड़ रहे है। मैं स्कूल का
नियम किसी कोनहीं तोड़ने दूंगी। आप अपने बच्चे कोवापिस ले जाइये।“
“मैडम प्लीज आगे से देर नही होगी। आज अधिक सर्दी और धुन्ध के कारण देर हुई
है।“ अनुभव ने विनती की।
“अगर आप का घर दूर है तोआप घर के पास किसी स्कूल में बच्चे कोदाखिल करवाइए।
मुझे अपने स्कूल का अनुशासन नही तोड़ना।“ प्रिसींपल नें कड़क स्वर में कहा।
इसके आगे अनुभव कुछ नही कह सका और चुपचाप अकी के साथ कार स्टार्ट कर घर के
लिए रवाना होगया। अनुभव का मूड खराब होगया, कि कितने कठोर, निष्ठुर है
स्कूल वाले, बच्चोके साथ उनके अभिभावकों के साथ भी कितने गलत तरीके से पेश
आते हैं। इतनी ठंड में छोटे बच्चों कोसुबह उठाना, तैयार करना कितना मुश्किल
होता है। कभी कभी तोबड़े भी इतनी अधिक ठंड़ में घबरा जाते है। आफिस पहुंचने
में देर होजाती है। ठंड़ की परेशानी कोसमझना चाहिए। स्कूल के समय कोबदलना
चाहिए। यदि एक घंटा देरी से सर्दियों में स्कूल लगाया जाए तोसब समस्याऔसे
छुटकारा मिल सकता है। स्कूल में मोटी मोटी मैडमों का दिमाग भी लगता है,
मोटा होता है। छोटे बच्चों की भावनाऔकोकोई नही समझनें की कोशिश करता है।
मुझे इस बारे में स्नेह से बात करनी पड़ेगी। चाहे कुछ होजाए, इस साल अकी का
स्कूल बदलवा दूंगा। घर के पास जिस भी स्कूल में दाखिला मिलेगा, उसी में
करवा दूंगा। आखिर हम भी घर के पास सरकारी स्कूल में पड़े थे। क्या जिन्दगी
की दोड़ में पिछड़ गए है। सब स्कूल के बड़े नाम में क्या रखा है। सिविल
परीक्षाऔं में छोटे शहरों, कसबों के छात्र मेरिट लिस्ट में आते है।
जोजलीकटी स्कूल में सुनी है उसके बाद अब इस स्कूल में अकी कोपढा़ने का कोई
औचित्य नही बचता। अनुभव यह सोचता हुआ धीरे धीरे कार चला रहा था। अकी समझ गई
कि पापा प्रिसिंपल की बात से उदास और नाराज होगए है। तभी कार में सीडी
प्लेयर भी नही ऑन किया। अकी ने सीडी प्लेयर ऑन कर पापा की मन पसंद सीडी लगा
दी।“शोख नजर की बिजलियां दिल पर तू गिराए जा“ अपना मन पसंद गीत सुन कर
अनुभव का चित कुछ शांत हुआ। मुस्करा कर उसने अकी कोदेखा और कार की रफ्तार
तेज की। आखिर बच्चे भी सब समझते है। हमें कुछ कहते नही, शायद डरते है,
क्योंकि हम डांट मार कर उन्हे चुप करा देते है। अकी छोटा काका कोदेखना पसंद
करेगी, जब स्कूल की छुट्टी होगई है तब कुछ समय नानी, स्नेह और छोटा काका के
संग गुजारा जाए, इसीलिए अनुभव ने कार सीधे नर्सिगहोम की तरफ ले ली। अकी
बहुत खुश हुई कि छोटा काका के साथ उसे सारा दिन मिलेगा। स्कूल बैग के साथ
अकी कोदेख कर स्नेह कुछ नाराज हुई, “आपने अकी की छुट्टी क्यों करवाई” अनुभव
ने कहा कि इस विषय में घर चल कर बात करेगें। शाम कोस्नेह कोनर्सिगहोम से
छुट्टी मिल गई। अनुभव ने अकी से कहा कि आज स्कूल की छुट्टी होगई तोवह अपनी
फ्ररेंड से होमवर्क पूछ के कर ले। अकी का ध्यान छोटा काका में लगा हुआ था,
जैसे तैसे होमवर्क किया और फिर नानी के पास सट के बैठ गई कि किस बहाने छोटा
काका के पास वह रहे। रात काफी होगई थी, खुशी में बातों बातों में आंखों से
नींद गायब थी, घड़ी देख कर स्नेह ने अकी कोसोने कोकहा, कि कल सुबह भी आज
वाली बात कहीं न होजाए। अकी का दिल सोने कोनही होरहा था, लेकिन बिस्तर में
दुबकना पड़ा। रजाई से मुंह निकाल कर पूछती रहती, नानी छोटा काका क्या सोगया
या जाग रहा है।
अभी अकी कोएक सप्ताह स्कूल और जाना था, ठंड इस साल कुछ अधिक थी। रोज सुबह
जबरदस्त कोहरा होने लगा। रोज सुबह अकी कोइतने जल्दी स्कूल के लिए तैयार
होते देख कर नानी ने स्नेह कोकहा, कि किसी पास के स्कूल में अकी कोदाखिल
करवा दे। इतना अधिक परिश्रम छोटे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए
घातक है।
“मां मैं स्कूल चेंज नही करवाउगी। बहुत नामी और बढिया स्कूल है।“
इसका जवाब अनुभव ने दिया, “स्नेह नानी ठीक कह रही हैं। मैंनें सोच लिया है,
कि इस साल रिजल्ट निकलने पर अकी का स्कूल पास के स्कूल में करवा दूंगा।“और
फिर उसने पूरी बात स्नेह कोविस्तार पूर्वक बताई कि कैसे फटकार लगा कर
अपमानित किया। बारबार अनुरोध करने पर भी प्रिंसीपल नें निर्दयता के साथ
किसी दूसरे स्कूल में दाखिले की सलाह दी थी। ऐसी बात सुन कर स्नेह उदास
होगई कि उसका अरमान अकी कोएक नामी स्कूल में पढानें का साकार नही होपाएगा।
लेकिन अनुभव केदृढ़ निश्चय और नानी के सहयोग के आगे स्नेह कोझुकना पड़ा।
आकृति सुन सुन कर बहुत खुश हुई कि अब उसे नये सत्र में पास के स्कूल में
जाना होगा। इतनी जल्दी भी नही उठना पडेगा। स्कूल बस में वह बहुत अधिक
परेशान होती थी। बड़े बच्चे बस सीट में छोटे बच्चों कोबैठने नही देते थे।
सीट पर बैठे बच्चों कोउठा देते थे। स्कूल टीचर भी उन्हे कुछ नही कहती थी।
उलटे सबसे आगे की सीटों पर बैठ जाती थी। कितनी ज्यादा भीड़ होजाती थी।
गर्मियों में तोइतने ज्यादा पसीने आते थे और बहुत ज्यादा घबराहट होती थी,
इसी से तोतबीयत खराब होजाती थी, लेकिन पापा मम्मी तोइस बारे में सोचते ही
नही। सर्दियों में कितनी ज्यादा ठंड होती है।स्कर्ट पहन कर जाना पड़ता है।
ऊपर से कोट पहना देते है, लेकिन स्कर्ट पहनने से टांगों में बहुत ज्यादा
ठंड लगती है। छोटे बच्चों की परेशानी कोई नही समझता। लेकिन आकृति की
परेशानी कोनानी ने समझा। रोज सुबह आकृति का बेमन स्कूल जाना अच्छा नही लगता
था। ठंड बढती जा रही थी। तापमान ने तेजी से गिरावट दर्ज की। प्रशासन ने
सरकारी स्कूलों की छुट्टी समय से पहले घोषित कर दी। अभिभावकों के दबाव में
आ कर निजी स्कूलों में भी निर्धारित समय से पहले सर्दियों की छुट्टियां
घोषित कर दी। जिस दिन छुट्टियों की घोषणा की, आकृति बहुत अधिक खुशी के साथ
झूमती हुई, नाचती हुई स्कूल से वापिस आई। जैसे नानी ने फ्लेट का दरवाजा
खोला, आकृति नानी से लिपट गई।
“नानी, मेरी प्यारी लवली नानी, आज मैं आजाद पंछी हूं।“
“क्या बात है, गुडिया रानी बहुत खुश है।“
“नानी हमारी कल से पूरे बीस दिन की छुट्टी। अब मैं रोज छोटा काका के संग
खेलूंगी।“और अपना स्कूल बैग एक तरफ पटक दिया और आइने के सामने कमर मटकाते
हुए गीत गाने लगी, मितवा।
तभी स्नेह ने आवाज लगाई, “अकी काका सोरहा है, शोर मत मचाऔ।“
गाना भी नही गाने देते और कह कर अकी बाथरूम में मुंह धोने के लिए चली गई।
अकी बाथरूम में वाशबेसन के आगे आइनें में अपने कोदेख कर फिर गीत गाने
लगी।“मैंनें जिसे अभी देखा है, कौन है वोअन्जानी वोहै कोई कली या कोई किरण
या है कोई कहानी, उसे जितना देखूं उतना सोचूं क्या मैं उसे कह दूं, प्रीटी
वूमन, देखोदेखोन प्रीटी वूमन, तुम भी कहोन प्रीटी वूमन।“ अकी वाशबेसन के नल
पर बड़े आराम से हाथों पर साबुन लगाए जा रही है और मजे में प्रीटी वूमन गीत
गाती जा रही थी। अकी का गाना सुन कर स्नेह ने नानी कोकहा।“मम्मी जा कर अकी
कोबाथरूम से निकालो, वरना वह दोघंटे से पहले बाहर नही आएगी।“ नानी ने अकी
कोबाथरूम में जा कर कहा, “प्रीटी वूमन बहुत बन संवर लिए। अब बाहर आ जाइए।
छोटा काका आपकोबुला रहा है।“
“सच्ची”कह कर अकी ने फर्राटे की दोड़ लगाई।“यह क्या नानी, छोटा काका तोसोरहा
है, आप भी मेरा मजाक उडा़ती हैं।“
“गाना तोबहुत अच्छा गा रही थी। आवाज बहुत सुरीली है। फिर से सुनाऔअकी।“
“मैं नही सुनाती नानी। आपने मेरा मूड खराब कर दिया।“ अकी ने मुंह बनाते हुए
कहा।
“मूड कैसे आएगा, मेरी लाडोका।“ नानी ने अकी कोअपनी गोद में बिठाते हुए
पूछा।
“जब पापा गाना गाएगें तब मैं पापा के साथ मिल कर गाऊंगी।“
“वोक्यो?”
“क्योंकि नानी आपकोनही पता, कि पापा कोयह गाना बहुत अच्छा लगता है। मम्मी
कोदेख कर गाते है।“ अकी ने बड़े भोलेपन से कहा तोनानी कोहंसी आ गई। वाकई
मासूम और भोले बच्चों कोकई बार मालूम नही होता कि कहां क्या बात करनी है।
“अच्छा अकी, पापा का गाना तोबता दिया, मम्मी कौन सा गाना गाती है, पापा
कोदेख कर।“ इस से पहले अकी कुछ कहती, स्नेह तुनक कर बोली, “मां तुम ये क्या
बाते ले कर बैठ गई। बच्चों कोबिगाडनें का काम कर रही हो।बेकार की बातों
कोले कर बैठ गई हो।“
यह सुनते ही अकी नानी के कान में धीरे से बोली।‘नानी मम्मी कोथोड़ा
समझाऔ।हमेशा डांटते रहती है।“ नानी हंसने लगी। डांट में भी प्यार होता है।
अकी कोचूमते हुए नानी ने लाड से कहा।
छुट्टियों में अकी कोबेफ्रिक देख कर नानी ने स्नेह से कहा, कि बच्चों के
कुदरती विकास के लिए जरूरी है कि उन्हे पूरा समय मिले कि पढने के साथ खेलने
का मौका मिले। क्या तू भूल गई, किस तरह बचपन में तू पडोस की लडकियों के साथ
खेलती थी और पूरा मुहल्ला शोर से सर पर उठाती थी। हम अपना बचपन भूल जाते है
कि हमने भी शैतानिया की थी। बच्चों पर आदर्श थोपते है, जोएक दम अनुचित है।
“मां तुम तोभाषण पर आ गई हो।“ स्नेह ने तुनक कर कहा।
“तुम खुद देखोकि अकी आजकल कितनी खुश है, जितने दिन स्कूल गई, एकदम थकी सी
रहती थी, अब एकदम चुस्त रहती है। इसलिए कहती हूं कि अनुभव की बात मान ले।“
“मम्मी तुम और अनु एक जैसे हो, एक दूसरे की हां में हां मिलाते रहते
हो।हमेशा अपनी मनमानी करते हो, मेरी भावनाऔकी तरफ सोचते भी नही हो।आखिर
आपने मुझे इतना क्यों पढ़ाया। एमबीए के बाद शादी कर दी। मेरा कैरियर भी नही
बनने दिया। मुश्किल से एक साल भी नौकरी नही की, शादी होगई। शादी के बाद शहर
बदल गया, फिर अकी के जन्म के कारण नौकरी नही की। अकी स्कूल जाने लगी, तब
बडी़ मुश्किल से अनु कोराजी किया। तीन चार साल ही नौकरी की, अब फिर छोटा
काका के जन्म पर नौकरी छोड़नी पर रही है।“
“स्नेह एक बात तुम समझ लो, परिवार के लालन पालन और बच्चों में अच्छी आदतोकी
नींव डालने के लिए मां बाप कोअपनी कई इच्छायों कोमारना पड़ता है। परिवार
कोसही तरीके से पालना नौकरी करने से अधिक कठिन हैं। जोगी बनना असान है,
लेकिन गृहस्थ बनना बहुत मुश्किल है। गृहस्थी की कठिन राह से परेशान लोग
सन्यास लेते है, लेकिन दर दर भटकने पर भी ना तोशान्ति मिलती है और ना ही
सुख। कठिन गृहस्थी में ही सच्चा सुख है।‘
स्नेह मां के आगे निरूतर होगई और आकृति कोघर के पास स्कूल में दाखिले
कोराजी होगई।
सर्दियों की छुट्टियों में वर्मा जी की लड़की भी अपने परिवार के साथ रहने आ
गई। वर्मा जी की नाती वृन्दा आकृति की हम उम्र थी। दोनों सारा दिन एक साथ
धमा चैकड़ी करती रहती और नानी स्नेह छोटा काका और वर्मा परिवार के साथ
सोसाइटी के लॉन में धूप सेंकते। एक दिन धूप सेंकते वर्मा जी ने अपनी लड़की
कोसलाह दी कि वह भी वृन्दा कोपास के स्कूल में दाखिल करवा दे। वों नानी के
गुण गाने लगे कि उन्होने स्नेह कोराजी कर लिया है आकृति के स्कूल बदलने के
लिए।
स्नेह मुंह बना कर बोली, “क्या अंकल आप भी स्कूल पुराण की कथा लेकर बैठ गए।
बड़ी मुश्किल से तोनानी की कथा बंद की है।“
“बेटे इस का जिक्र बहुत जरूरी है। देखोजब हम स्कूल में पढ़ते थे तब गर्मियों
और सर्दियों में स्कूल का अलग समय होता था। गर्मी में सुबह सात बजे और
सर्दियों में दस बजे स्कूल लगता था। गर्मी में बारह बजे घर वापिस आ जाते थे
और सर्दी में धूप में बैठ कर पड़ते थे।“
अच्छा, वृन्दा ने हैरान होकर पूछा।“आप कुर्सी मेज क्लास से रोज बाहर लाते
थे और फिर अन्दर करते थे। अपने सर पर उठाते थे, क्या नाना जी।“
“नहीं बेटे, हमारे समय तोमेज कुर्सी नही होते थे। जमीन पर दरी बिछा कर
बैठते थे। धूप निकलते ही मास्टर जी हुक्म देते थे और सारे बच्चे फटाफट
दरियां उठा कर क्लास रूम के बाहर धूप में बैठ जाते थे। पंखे भी नही होते
थे, जब गर्मी लगती थी, तब भी बाहर बैठ जाते थे। मजे की बात तोबरसातों में
होती थी। स्कूल की छत टपकती थी। जिस दिन बारिश होती थी, उस दिन छुट्टी
होजाती थी। मास्टर जी कहते थे, रेनी डे, होलीडे। बच्चों आज की छुट्टी।“
यह सुन कर वृन्दा और आकृति जोर जोर से हंसने लगी, रेनी डे, होलीडे, कहते
कहते और हंसते हंसते दोनों लोटपोट होगई। दोनों के पेट में बल पड गये।
“अच्छा और सुनो, जब सुबह बारिश होती थी, तब हम खुद ही स्कूल नही जाते
थे।“वर्मा अंकल की बातों पर अब बच्चों के साथ सभी हंसने लगे। अब अनुभव कहने
लगा, “वर्मा अंकल के बाद मेरी भी सुनो, मेरा स्कूल तोदोशिफ्टों में लगता
था। छटी क्लास तक दूसरी शिफ्ट में स्कूल लगता था। खाना खा कर एक बजे स्कूल
जाते थे, छः बजे वापिस आते थे, मजे में सुबह सात आठ बजे उठते थे, सुबह
स्कूल जाने की कोई जल्दी नही होती थी।“ आकृति और वृन्दा कोस्कूल की बातों
में बहुत अधिक रस आ रहा था और हंसते हंसते लोटपोट होती जा रही थी।
अकी के छुट्टियों में इतना अधिक खुश देख कर स्नेह ने पास के स्कूल का महत्व
समझा और फाइनल परीक्षा के बाद नये सत्र में घर के पास स्कूल में दाखिला अकी
का करा दिया। घर से स्कूल का पैदल रास्ता सिर्फ पांच मिन्ट का था। दोदिनों
में अकी इतनी अधिक खुश हुई और स्नेह से कहा, “मम्मी यह स्कूल बहुत अच्छा
है, मेरी दोदोस्त साथ वाली सोसाइटी में रहती है, मम्मी आपकोमालूम है,
वोसाइकिल पर स्कूल आती हैं, मुझे भी साइकिल ले दो, दोमिन्टों में स्कूल
पहुंच जाउगीं।“ अनुभव नें आकृति कोसाइकिल ले दी। अब अकी कोकोई टेंशन थी, ना
तोसुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाने की और नाआने जानें की, ना ही स्कूल बस मिस
होजाने की। सारा दिन वह खुश रहती थी। होमवर्क करने के बाद काफी समय छोटा
काका के साथ खेलती और बेफिक्र चहकती रहती। छः महीनों मे एकदम लम्बा कद पा
गई आकृति कोदेख कर स्नेह खुशी से फूली नहीं समाती थी, जोअकी कल तक सारा दिन
थकी थकी रहती थी, आज वह कहने लगी, मम्मी मुझे चाय बनाना सिखाऔ, मैं
आपकोसुबह बैड टी पिलाया करूंगी। सुन कर स्नेह को नानी की बातें बारबार याद
आती, बच्चों के बहुमुंखी विकास के लिए उनका बेफिक्र होना बहुत जरूरी है, उन
पर उनकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए। बच्चों की खुशी में ही हमारी
खुशी होती है।
मनमोहन भाटिया