शोक सभा
महानगरों की जिन्दगी पूरी तरह से बदल गई है, हर इंसान अपने में ही
व्यस्त है। कसूर किसी का भी नही है, वक्त की कमी सभी कोहैऔर हर कोई दूसरे
से न मिलने की शिकायत करता है। उचित तोकदापि नही है, लेकिन अपनी मजबूरी
दूसरे पर थोप कर हर व्यक्ति सन्तुष्ट होना चाहता है। अपनी शिकायत सुनना ही
नही चाहता और दूसरों के व्यवहार की शिकायत करना चाहता है। क्या खुद अपने
गिरेबान में झांक कर स्वयं कोदेखता है, कि वह खुद जोकि शिकायत कर रहा है,
कितना समय दूसरों के लिए निकाल पाता है। शिकायत करना अनुचित है, लेकिन अपनी
झेंप मिटाने के लिए दूसरों पर दोष थोप देना वह अपना उचित अधिकार समझता है।
सुबह के सवा सात बजे ऑफिस जाने के लिए सुभाष तैयार होरहा था। ठीक आठ बजे
दफ्तर के लिए घर से हर हालत में निकलना है। साढ़े नौ बजे तक ऑफिस पहुंचना ही
है। दिल्ली महानगर के ट्रैफिक का कुछ नही पता, कब फंस जाए, इसलिए भलाई इसी
में है, कि घर से आधा घंटा पहले ही निकला जाए। नहाने के बाद समाचारपत्र की
सुर्खियों पर सुभाष नजर डाल रहा था, तभी फोन की घंटी बजी। फोन उठा कर जैसे
ही हेलोकहा, दूसरी तरफ से आवाज आई, क्या भाषी है। एक अरसे के बाद भाषी शब्द
सुन कर अच्छा लगा, और सोचने लगा, कि कौन है भाषी कहने वाला, नजदीकी
रिश्तेदार ही उसे भाषी कहते थे, तभी दूसरी तरफ की आवाज ने उसकी सोच कोतोडा।
क्या भाषी है।“हां मैं भाषी बोल रहा हूं, आप कौन, मैं आवाज पहचान नही सका।“
सुभाष ने प्रश्न किया।
“भाषी मेरे कोनही पहचाना, क्या बात करता है, मैं मेशी।“
“अरे मेशी, कितने सालों के बाद तेरी आवाज सुनाई दी है, कहां होता है, तू
आजकल, तेरी आवाज ही बिल्कुल बदल गई है।“
“थोडा सा जुकाम होरहा है, और कोई बात नही है। लेकिन तू कहां होता है, कभी
नजर ही नही आया।“
“मेशी तेरे से मिले एक जमाना होगया। क्या कर रहा है।“
“तेरे से यह उम्मीद न थी, एक दम बेगाना होगया है। मैने सोचा कहीं विदेश
तोनही चला गया तू। लेकिन शुक्र है कि तू बदल गया पर तेरा टेलीफोन नंबर नही
बदला।“
“क्या बात है मेशी, सालों बाद बात होरही है और तू जली कटी सुना रहा है।“
“भाषी तू तोहरी के अंतिम संस्कार पर भी नही पहुंचा, आज उसकी उठावनी है,
इसलिए फोन कर रहा हूं, शाम कोतीन से चार का समय है।“
“क्या बात करता है, हरी का देहान्त होगया, कब ,कैसे हुआ, मुझे तोकिसी ने
बताया ही नही।“
“चार दिन होगए हैं, आज तोउसकी शोक सभा, चौथाऔर उठावनी शाम कोतीन से चार बजे
है। आईऔजरूर।“
“कहां आऊं, पता तोबता, तू तोराकेट पर सवार है। आज दस साल बाद बात होरही
होगी। न पता बता कर राजी है, न पहले बताया। बस गिले शिकवे कर रहा है। बात
ढंग से कर। कोई बताएगा तब कुछ मालूम होकिकौन मर खप गया, कौन जिन्दा
है।“भाषी ने तीखे शब्दों में अपनी नाराजगी जाहिर की तब फोन के दूसरे ओर
मेशी शान्त हुआ और उठावनी कहां होनी है, सभागार का पता बताया।
सुभाष की पत्नी सारिका रसोई मे थी, टिफिन हाथ में ला कर कहा, “यह लोखाना,
नाश्ता तैयार है, फौरन डायनिग टेबल पर आ जाऔ।“
“टिफिन से खाना निकाल लो, आज ऑफिस नही जा रहा हूं।“
“क्यों तबीयत तोठीक हैं न?”
“हां, मेशी का फोन आया था, अभी, उसी से बात कर रहा था, हरी का देहान्त
होगया है, वहां जाना है।“
“क्या?” सारिका ने हैरानी से पूछा।
“आज चार दिन होगए, आज शाम कोउठावनी है।“
“चार दिन होगए और हमें पता ही नही। किसी ने बताया ही नहीं।“ सारिका इससे
पहले कुछ कहती सुभाष ने कहा, “रहने दे, इस विषय को, क्यों अपना दिमाग और
समय खराब करें। जब पता चल गया है, तोअच्छा यही है, अभी हरी के घर चलते हैं
और शाम कोउठावनी में।“
“ठीक है, मैं भी नहा कर तैयार होजाती हूं फिर चलते हैं।“
सारिका नहाने बाथरूम में चली गई और सुभाष अतीत में गुम होगया। हरी, भाषी और
मेशी तोघर में प्यार के नाम थे। तीनों ताऊ, चाचे के लडके, बचपन में सब के
मकान एक साथ दीवार से सटे हुए पास पास थे। लगभग हमउम्र एक दोसाल का तीनों
में अंतर था। एक साथ स्कूल जाना, पढना, खेलना। एक दम घनिष्टा थी। भाई कहें
या दोस्त कहें, जोकुछ कहना चाहें, तीनों के बारे में कह सकते हैं। हरी यानी
बिहारी, मेशी यानी रमेश और भाषी यानी सुभाष। बढे होगए लेकिन बचपन के नाम
नही गए, बाहरी दुनिया के लिए भले ही बिहारी, रमेश, सुभाष हो, लेकिन अपने
लिए हरी, मेशी और भाषी ही थे।कॉलेज की पढाई के बाद हरी ताऊजी की दुकान पर
बैठ गया, रमेश चाचाजी की दुकान पर और सुभाष ने नौकरी कर ली, क्योंकि उसके
पिताजी का व्यापार नुकसान की वजह से बंद होचुका था और बहनों की शादी के
खर्च के बाद मकान भी बिक गया। सुभाष मां बाप के साथ किराये के मकान में
रहने लगा। दूर होगए फिर भी आपसी नजदीकियां और मेलजोल पहले जैसा ही रहा।
सुभाष की शादी सबसे पहले हुई, माली हालात सही नही थे, इसलिए हैसियत के
मुताबिक साधारण घराने में साधारण शादी संपन्न हुई। फिर रमेश की और सबसे बाद
में बिहारी की। जहां सुभाष की पत्नी सारिका गरीब परिवार की थी वहां रमेश और
बिहारी की शादियां बडे व्यापारियों की बेटियों के साथ बहुत धूम धाम के साथ
हुई। अमीर घर की बेटियां सारिका से दूरियां ही रखती थी, लेकिन घर के
बुर्जुगों के रहते कुछ बोल नही पाती थी। समय बीतता गया। घर के बुर्जुगों के
गुजर जाने के बाद रमेश और बिहारी की पत्नियां सेठानी की पदवी पा गई, उनके
सामने सारिका का कोई पद न था, नतीजन सुभाष और सारिका का बचपन के लंगोटिया
मेशी, हरी का साथ छूट गया। एक शहर में रहते हुए अनजाने होगए। आज के
भौतिकवाद में हैसियत सिर्फ रूपये, पैसों से तोली जाती है। सुभाष ऊंगलियों
पर गिनने लगा, कि शायद दस साल बीत गए होंगें, मेशी और हरी से मिले हुए,
शायद क्या, पूरे दस साल बीत गए हैं। रुपयों, पैसों की दोस्ती यारी रुपये,
पैसे वालों के साथ ही होती है, नाते, रिश्ते भी सिर्फ पैसा देखते है। एक
चुम्बक्यी शक्ति पैसों कोरिश्ते से दूर करती है। एक छोटी सी नौकरी करते हुए
सुभाष बिहारी और रमेश के नजदीक न आ सका। तभी सारिका की आवाज ने सुभाष
कोवर्तमान में ला दिया।
“कब चलना है, मैं तैयार हूं।“
सुभाष ने बाईक स्टार्ट की और बिहारी के मकान की ओर चल पढा। रमेश से बिहारी
के नये मकान का पता ले लिया था। पता एक तिमंजली आलिशान कोठी का था। सुभाष
और सारिका जिसकी भव्यता देख कर कुछ देर के लिए हैरान होगए और उसके सामने
अपना दोकमरे का फ्लैट का कोई वजूद ही नही नजर आ रहा था। जब आ ही गए
तोहिम्मत करके अंदर जाने लगे तोगेट पर गार्ड ने रोक लिया और विजिटर रजिस्टर
पर नाम पता लिखवाया और अंदर जाने के लिए पहले इंटरकाम करके इजाजत ली, फिर
एक गार्ड बरामदे में छोड आया। जहां कुछ लोग पहले से बैठे थे। सुभाष जिन्हें
नही जानता था, शायद व्यापार से सम्बंध रखते होगे। कोई रिश्तेदार नजर नही
आया। काफी देर तक बैठे रहे। जोलोग मिलने आ रहे थे, उनके डिजीटल कैमरे से
फोटोखींच कर एक लडका अंदर जाता और फिर मिलने की इजाजत लेकर बरामदे में आता
और अपने साथ अंदर छोड कर आता। सुभाष ने बैठे बैठे नोट किया कि उस लडके के
पास रिवाल्वर था। अपने भाई के देहान्त पर अफसोस करने आया और अफसोस का यह
सिस्टम उसकी समझ के बाहर था, कि क्यों एक एक करके अफसोस जाहिर करने के लिए
अंदर भेजा जा रहा है। आखिर एक घंटे बाद उनकों अंदर भेजा गया। एक आलिशान
कमरे में उसकी भाभी डौली सोफे पर अपने दोभाईयों के साथ बैठी थी। सोफे के
दोनों कोनों पर दोखूंखार विदेशी नस्ल के कुत्ते जीभ लपलपा रहे थे। कुत्तों
कोदेख कर सुभाष और सारिका ठिठक गए और दूर से हाथ जोड कर सिर झुका कर अफसोस
जाहिर किया। कुछ घबराया देख कर डौली बोली, “सारिका इतनी दूर क्यों खडी हो,
मेरे नजदीक आऔ।“
“इन कुत्तों की वजह से थोडा डर....” सुभाष के कुछ आगे कहने से पहले ही डौली
कुछ मुसकुरा कर बोली, “डरोमत, कुछ नही कहेगें।“ सारिका नजदीक गई और दोनों
देवरानी जेठानी गले मिल कर रोपडी। सुभाष ने डौली के भाईयों से पूछा, “कि
अचानक से क्या होगया, कोई खबर ही नही मिली। सब कैसे हुआ।“
“बस क्या बोले, समझ लिजिए, कि समय आ गया था, रुक्सत लेने का। हम भी कोई
कारण नही जान पाए। जब समय आता है तोजाना ही पढता है।“
यह उत्तर सुन कर सुभाष ने आगे कुछ नही पूछा। लेकिन देवरानी जेठानी आपस में
कुछ फुसफुसा रही थी। तभी डौली के छोटे भाई का मोबाइल फोन बजा। भाई किसी
कोकह रहा था, देख यह हमारी इज्जत का सवाल है, हर कीमत पर वोप्रोपटी चाहिए।
जीजा मर गया उस के पीछे, मालूम है न तुझे, या समझाना पडेगा। देख टिन्डे
खोपडी में उतार दूंगा, नाम के अनुसार खोपडी कोटिन्डा बना दूंगा। हांलाकि
भाई काफी धीरे बोल रहा था लेकिन सुभाष सब कुछ समझ गया कि उसका भाई बिहारी
किस राह पर चला गया और उसकी मौत कैसे हुई। भाई के फोन पर वार्तालाप पर डौली
बाथरुम का बहाना बना कर दूसरे कमरे में चली गई और सुभाष, सारिका ने मौके की
नजाकत समझ कर विदा ली। चुपचाप दोनों घर वापिस आ गए। सुभाष ने टीवी चलाया,
लेकिन मन कहीं और विचरण कर रहा था।
“क्या सोच रहे हो।“
एक फीकी सी मुस्कान के साथ सुभाष ने सारिका से पूछा, “क्या बातें कर रही थी
देवरानी जेठानी?”
“बात क्या करनी थी, बस इतना ही पूछा था, कि क्या हुआ था। फूड पाईजिनिंग बता
रही थी।“
“सोचा था कि डौली के भाईयों से कुछ पूछू, मगर इतनें में वोफोन पर कुछ अजीब
किस्म की सी बातें कर रहा था, तूने तोपूछ लिया, मेरी तोहिम्मत ही नही हुई,
उसके बाद। रुपया पैसा काफी बना लिया हरी ने, किले नुमा सा मकान और उस पर
पूरी सुरक्षा। एैसा लग रहा था, कि किसी भाई नही, बल्कि नेता के घर गए थे।“
सुभाष ने पानी का गिलास हाथ में लिया, होंठों के आगे गिलास ला कर भी पानी
नही पिया, “सारिका मुझे लगता है, कि बिहारी ने काम तोकाफी फैला रखा था, और
डौली के भाई भी उसके साथ थे। आशंका लगती है, कि कहीं कोई गैर कानूनी धंधे
में न लिप्त रहा हो।जिस तरह से फोन पर धमकाया जा रहा था।“
सुभाष की बात कोकाटते हुए सारिका ने कहा।“छोडोइन बातों को, पहले पानी पी
लो।हाथों में अभी भी गिलास थामा हुआ है।“
पानी पी कर सुभाष ने बात आगे जारी करते हुए कहा।“आखिर भाई था, जानने की
उत्सुक्ता होती है, कि हुआ क्या था?”
“जिस गली जाना नही, वहां के बारे में क्या सोचना। भाई था, लेकिन एक भी दिन
याद किया क्या उसने। दस साल से ज्यादा होगए, मिले हुए।“ सारिका ने कुछ
व्यंग्यातमक मुद्रा में कहा।
सुभाष अपनी सोच में डूबा था, उसने सारिका का अभिप्राय नहीं समझा।“ठीक है,
भाई था नहीं मिलते थे, लेकिन क्या रिश्ते खत्म होजाते हैं, आखिर रिश्ता
तोरहेगा न, चाहे मेल जोल समाप्त होजाए, दुश्मनी होजाए।“
“छोडों इन बातों को, मैं खाना बनाता हूं, थोडा आराम करले। फिर दोपहर
कोउठावनी में भी जाना है।“
ठीक है, इतना सुन कर सारिका किचन में चली गई, लेकिन सुभाष का मन शान्त होने
का नाम ही नही ले रहा था। क्या रिश्ते केवल रुपये पैसों तक ही सिमट कर रह
गया है। बचपन का खेल क्या सिर्फ एक खेल ही था, शायद खेल ही था, जोअब समझ
में आ रहा है, समझ में तोकाफी साल पहले आ चुका था, लेकिन दिल मानता नही।
“खाना लग गया, अभी तक किन ख्यालों में गुम हो, हकीकत में आ जाऔ।“सारिका की
आवाज सुन कर सुभाष वर्तमान में आ गया। खाना खाते हुए उसने कहा, “उठावनी में
हमें बच्चों कोभी ले चलना चाहिए।“
“क्यो?”सारिका ने आश्चर्य से पूछा।
“बच्चे अब बडे होगए हैं। शादियों में हमारे साथ जाते हैं, गमी में भी जाना
सीखना चाहिए। संसार और समाज के नियम हैं, आज नही तोकल कभी तोगमी में शरीक
होना पढेगा, जब परीवार में एक गमी का मौका है, तोहमारे साथ चल कर कुछ नियम,
कायदे सीख लेंगें।“
“हमारे जाने से पहले आ गए तोजरूर साथ चलेगें।“
दोनों बच्चे साक्षी और समीर कॉलेज से एक बजे ही आ गए। सुभाष कोदेख कर बोले,
“क्या पापा, आप घर में, तबीयत तोठीक हैं न?”
“तबीयत ठीक है, तुम्हारे बिहारी ताऊ का देहान्त होगया, आज दोपहर कोउठावनी
में जाना है, इसलिए आज ऑफिस नही जा सका। सुनो, खाना खा लो, फिर हम सबने
उठावनी में जाना है।“
“क्या हमने भी?” दोनों बच्चे एक साथ बोले।
“हां बेटे, आप दोनों भी चलो।“
“हम क्या करेंगे।“ साक्षी ने पूछा।
“शादी विवाह में हमारे साथ चलते हो, अब बढे होगए हो, गमी में भी जाना
सीखो।“
“वहां होगा क्या?” समीर ने पूछा।
“बेटे एक घंटे की बात है, हमारे साथ बैठ कर आ जाना। पंडितजी कथा करेगें, बस
और कुछ अधिक नही।“
“पापा वोतोठीक है, लेकिन ये बिहारी ताऊ हैं कौन?” साक्षी के पूछने पर
सारिका ने कहा, “बेटे, मोटी डौली ताई याद है, उसी के पति बिहारी ताऊ।“
“कुछ याद नही आ रहा है।“
समीर ने कहा, “पापा मोटी डौली ताई वोवाली, जहां बचपन में जाते थे, हमें
खिलौनों से खेलने भी नही देती थी, वोई वाली न पापा।“
“ठीक पहचाना, वोई मोटी।“
“पापा अब कुछ पतली हुई या वैसे की वैसी मोटी है, ताई।“
सारिका ने पलट के कहा, “पतली, खुद देख लेना, पहले से तिगनी मोटी होगई लगती
है। अब तोसूमोपहलवान से कम नहीं लगती है।“
यह सुन कर समीर और साक्षी दोनों खिलखिला के हंस पडे।
“अच्छा कैसे कपडे पहन के जाना है।“
“जोपहने है, उन्ही में चलो।खास कोई नहीं होते हैं।“
“पापा फिल्मों, टीवी सीरियल में तोसफेद कपडे दिखाई देते हैं, ऐसी जगह में।“
“बेटे, टीवी सीरियलों में कोरी बनावट होती है, हकीकत से कोई सरोकार नहीं
होता है। वहां देख लेना, क्या होता है।“
सुभाष परिवार सहित समय से पहले ही शोक सभा स्थल पहुंच गया। जैसा सुबह
स्कुरिटी चेकअप हुआ था, ठीक वैसा ही अब हुआ, स्कुरिटी जांच के बाद हाल के
अंदर गए, अंदर अभी कोई नहीं था, सुभाष का परिवार सबसे पहले पहुंचा था।कमाल
है, घर वाले ही नदारत हैं, शोक सभा तोसमय पर शुरू होजाती है, कम से कम डौली
और उसके भाईयों कोतोयहां होना चाहिए था,सुभाष अभी अवलोकन कर ही रहा था, तभी
रमेश परिवार सहित पहुंचा। दोनों भाई गले मिले।
“मेशी तू तोबहुत मोटा होगया है, लाला बन गया है। क्या तोंद बना रखी है। कौन
सा महीना चल रहा है।“सुभाष की बाते सुन कर समीर और साक्षी हैरान होकर
सारिका से पूछने लगे, “मां एैसे मौके पर भी मजाक चलता है, क्या?”
“बस देखते रहो, चुपचाप।“
रमेश ने उसका उत्तर तोनही दिया, समीर, साक्षी कोदेख कर पूछा, ‘बच्चों से
तोमिलवा यार, कितने सालों बाद मिल रहे है, बच्चे तोहमे पहचानते भी नहीं
होंगें। बडे स्वीट, समार्ट बच्चे हैं, तेरे भाषी, अपने कोमैन्टेन करके रखा
है, तूने। भाभीजी आप भी स्लिम ट्रिम हैं, कुछ बबीता कोभी टिप्स दो, देख
मेशी मोटापा कहां जा रहा है, कमर तोनजर ही नही आती है।“ पत्नी की तरफ ईशारा
करके कहा।“ले बच्चों कोदेख, मेरे से मुकाबला कर रहे हैंअभी से मोटापे का,
मेरे बाप बनने की फिराक में हैं।“ यह सुन कर सभी हंस पडे। तभी डौली, भाई और
परिवार के दूसरे सदस्यों ने हॉल मे प्रवेश किया। हंसी रोक कर सबने हाथ जोड
कर संतावना प्रकट की।डौली समीर साक्षी कोदेखकर गले मिली।
”सारिका के बच्चे कितने स्वीट हैं, मेरे बच्चे, किसी की नजर न लगे, क्यूट
बच्चों को।“ साक्षी दस मिन्टों में परेशान होसोचने लगी, कैसी औरत है, जिसका
पति मर गया, उसकी शोक सभा में क्यूटनेस देखनें में लगी है। पापा सही कह रहे
थे, फिल्मों, टीवी सीरियलों में सब बनावट होती हैं, कुछ असली जिन्दगी भी
देखनी चाहिए।
तभी डौली के बडे भाई ने कहा, ‘बहना, यह कुत्ते का बच्चा टिन्डा कहां मर
गया, गधे कोपंडित लाने भेजा था, सुअर का फोन भी नहीं लग रहा।“
यह सुन कर सुभाष तोमुस्कुरा दिया, समीर, साक्षी एकदम सन रह गये, कि मौके की
नजाकत ही खुद मृतक की पत्नी, साले ही नहीं समझ रहे हैं। तभी डौली के छोटे
भाई का मोबाइल फोन बजा, फोन उसी टिन्डे नाम के आदमी का था, जिसकोअभी गंदी
से गंदी गालियां निकाली जा रही थी, “हरामी की औलाद कहां मर गया, टिन्डे।“
छोटे भाई ने अभी इतना ही कहा था, कि बडे भाई ने छोटे भाई के हाथ से फोन
खींच लिया और चीख कर कहा, “कुत्ते यहीं से ट्रिगर दबा दूं।“ लेकिन दूसरे पल
उसी टिन्डे कोबधाई देने लगा, “वेलडन टिन्डा, तू जीनियस है, तेरा मुंह
मोतियों से भर दूंगा, आज तूने जीजे की शहादत बेकार नहीं जाने दी, वेलडन
टिन्डा, अच्छा, पंडित...ठीक है, ठीक है।“ फोन काट कर बडा भाई डौली के गले
लग गया, बहना, उस हवेली का काम होगया, वोहमने खरीद ली, टिन्डे ने हवेली
खाली करवा ली है।
“शाबास भाई, टिन्डे नें आज जिन्दगी में पहला कोई काम किया है, मैं तोउसे
तेरा चमचा समझती थी, खोटे सिक्के ने तोकमाल कर दिया।“
“बहना, छोटा भाई भी बोला, अच्छा, बडे, पंडित कोकौन ला रहा है?”
“चिन्ता न कर, आलू पंडित ला रहा है, बस पहुंचता ही होगा।“
इतने में एक मोटा आदमी पंडितजी के साथ आया। समीर और साक्षी उस मोटे आदमी
कोदेख कर सोचने लगे, यही मोटा ही आलू होगा। पापा हमें कहां लेकर आए हैं।
पंडित के आने पर शोक सभा शुरू होगई, रिवाज के अनुसार सभा स्थल दोभागों में
बट गया, पुरूष एक भाग में और महिलाएं दूसरे भाग में। जोडौली अभी स्वीटनेस,
क्यूटनेस ढूंढ रही थी, वही ढहाडे मार कर रोरही थी, यह क्या मात्र दिखावा
दुनिया के लिए, पति मर गया, पत्नी कोकोई अफसोस नही। सिर्फ बिरादरी के आगे
झूठे आंसू। एक घंटे तक पंडित की कथा चली, लेकिन समीर, साक्षी केवल डौली
आंटी और उसके भाईयों के आचरण पर अवलोकन ही करते रहे, पंडित ने क्या कथा की,
उनकों कुछ नही सुनाई दी। सुभाष का मन भी उचाट था। वह भी बिहारी के बारे में
सोचता रहा, कि उसकी मृत्यु समान्य थी या कुछ और, खैर एक घंटे बाद शोक सभा
समाप्त हुई। बिरादरी रूकसत होने लगी। सुभाष सभा स्थल के बाहर आ गया, वहां
कुछ पुराने परिचित वर्षोबाद मिले। थोडी थोडी जानकारी बिहारी के बारे में
मिलती रही, कि बिहारी वोबचपन वाला नही रहा था, कई गैरकानूनी धंधों में
लिप्त था, दोबार जेल की हवा भी खा चुका था, जहां उसकी मुलाकात शातिर
अपराधियों से हुई और एक पुरानी हवेली पर कब्जे के कारण विरोधियों ने खाने
मे जहर दे दिया, जिसे फूड पाइजनिंग का नाम दे कर बिरादरी में छुपाया गया।
उसी हवेली पर कब्जे का समाचार किसी टिन्डे ने दिया था, जोसुभाष ने सुना था।
एक तरफ सुभाष पुरुषगणों के साथ व्यस्त था, समीर खडा खडा बोर होरहा था, तभी
किसी अंकल ने समीर से हाथ मिलाते हुए पूछा, “जूनियर सुभाष, मुझे नहीं
पहचाना, यार तुम भी कैसे पहचानोगें, जब तुम छोटे थे, मैं तुम्हारे घर बहुत
आया करता था। याद आया क्या?”
“चन्दर यार इसकोक्या याद आएगा ऐसे, अभी याद दिलाता हूं, समीर तुम्हे याद
है, जब तुम छोटे थे, एक अंकल आते थे और चाय के साथ नमकीन रखते थे, वोअंकल
ड्राईफ्रूट चुन चुन कर खा जाते थे, और नमकीन वहीं की वहीं पडी रहती थी, अब
याद आया न।“, यह सुन कर समीर हल्के से हंस पडा, क्यों कि यह बात आज भी
फुरसत के पलों में याद करके हंसी मजाक चलता था। चन्दर थोडा झेप गया, “भाषी
तू तोसबके सामने मेरी इज्जत का फलूदा निकाल रहा है।“
“यार चन्दर इसमें फलूदे की क्या बात है। कोई झूठ तोबोल नही रहा हूं। सच
से क्या डरना।“ चन्दर ने भी बात पलटी, “लडका तोगबरू जवान होगया है, शादी कर
न इसकी।“
“चन्दर तू नही बदलेगा, अभी तोकॉलेज में है, पढाई तोकरने दे, अभी शादी की
उम्र नही हुई। पांच सात साल सब्र कर।“
“भाषी, बुढापे में शादी करेगा लडके की।“
“बीस साल में शादी, चन्दर पागलों की सी बाते मत कर। कुछ अक्ल की बात कर।“
इधर सुभाष पुरूषों के बीच और उधर सारिका महिलाऔं में व्यस्त थी, जहां
गहनों, डिजाइनों की बातें चल रही थी। शोक प्रकट कर दिया तोदुनियादारी की
बातों का सिलसिला चल रहा था।“सारिका तूने तोअपने कोमेंनटेन करके रखा है,
उम्र का पता ही नही चलता है, तेरे साथ तेरी लडकी, साक्षी नाम है न, बडा
प्यारा नाम है, बहुत सुंदर बेटी, एकदम मलाई की तरह। बेटी कोदेख कर लगता है,
हमारी देवरानी हमारी उम्र की है।“, बबीता ने साक्षी का हाथ पकड कर कहा,
“शादी कब कर रही है।“
शादी के नाम पर साक्षी एकदम चौंक गई, जेठ की शोक सभा पर शादी के रिश्तों की
बात कर रही है। लोग क्या कुछ पल भी चुप नहीं रह सकते, वही राग, लेकिन
सारिका धीरे से मुस्कुरा कर बोली, “अभी उम्र ही क्या है, फस्ट ईयर में पढ
रही है, पहले पढाई करे, फिर नौकरी, फिर शादी की सोचेगें, अभी कोई जल्दी नही
है।“
“पढने से कौन रोक रहा है, अच्छा रिश्ता आए तोआंख बंद करके हां कर देनी
चाहिए, बाद में उम्र ज्यादा होजाए, अच्छे लडके नही मिलते, मेरे भाई का लडका
एक दम तैयार है, अब तोऑफिस जाना शुरू कर दिया है। हमारे से भी ज्यादा काम
है। कह तोबात चलाऊं।“
“बबीता कौन से भाई का लडका,बडे या छोटे का।“
साक्षी मन ही मन जलभुन गई, जब शादी का कोई ईरादा ही नहीं है तोमम्मी लडके
के बारे में क्यों पूछ रही है। सारिका ने इधर बबीता से पूछा
“बडे वाले का बडा लडका। बचपन में गोलू कहते थे। याद होगा।“
“अरे हां, याद आया, गोलू, जैसा नाम था, वैसा फुटबाल की तरह था, गोलू मोलू।“
सारिका की बात बीच में काटते हुए बबीता ने कहा, “अब तोजिम जाकर हैंडसम बन
गया है, मिलेगी, तोगश खा जाएगी।“
“अभी नही बबीता, पहले पढाई पूरी कर ले, फिर, अभी सुभाष कोकोई जल्दी नही है।
आजकल लडकियां जॉब भी करती है, पढाई बहुत जरूरी है।“
“हां हां, हमने कौन सी नौकरी करवानी है।“
“नही बबीता, लडकियों कोस्वाभलंबी होना बहुत जरूरी है, अपने पैरों पर खडा़
करना है, फिर शादी की सोचेगें।“
इतनें में रमेश कुछ और रिश्तेदारों के साथ आया, “भाभीजी, आज हम कितने सालों
बाद मिलें हैं, भाषी कहां है, देख, कोने में खडा है, भाषी, इधर आ।“ रमेश की
जोरदार आवाज सुनकर समीर और साक्षी सोचने लगे, आज पापा ने एक अलग दुनिया
दिखाई है, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी।“यार भाषी, देख आज सभी भाई, भाभी
बच्चों सहित एकत्रित हैं, यह एक यादगार लहमा है, हमसब की इकठ्ठी
फोटोहोजाए।“कह कर रमेश ने अपने बेटे कोआवाज लगाई, “जिम्मी, निकाल अपना नया
मोबाइल और खींच फोटो, क्या चीज निकाली है, छोटा सा मोबाइल और दुनिया भर के
फीचर्स।“ जिम्मी फोटोके साथ विडीयोभी खींचने लगा। सभागार के बाहर शोक का
कोई माहौल नही था, एक पिकनिक सा माहौल था। कुछ देर बाद सबने विदा ली।
घर आकर सुभाष टीवी पर न्यूज चैलन देख रहा था, समीर ने कहा, “पापायह अनुभव
जिन्दगी भर नही भुला पाऊंगा।“
“बेटे, मृत्यु जीवन का कटु सत्य है, किसी के जाने से संसार का कोई काम नही
रूकता, हर किस्म के लोग दुनिया में तुम्हे मिलेगें, आज तुमने देखा, कि
पत्नी कोपति की मृत्यु का कोई दुख नही था, शोक सभा एक पार्टी लग रही थी,
कहीं देखोगें कि पत्नी पति की मृत्यु पर टूट जाती है, जितने लोगों के
व्यवहार का विश्लेषण करोगें, उतनी दुनिया की गहराई कोजान पाऔगे। हर इंसान
अपनी सुविधा के अनुसार जीने के मांपदंड स्थापित करता है, अपने लिए कुछ और
दूसरों के लिए कुछ और। बेटे मैं आज तक दुनियादारी नही पहचान सका, यह एक
विस्तृत विषय है, पूरा जीवन भी कम है, इसकोजानने के लिए। किताबों से बाहर
निकल कर कुछ व्यवहारिक ज्ञान मिले, इसी उद्देश से तुम्हे वहां लेकर गए
थे।कॉलेज के बाद असली जिन्दगी शुरू होती है, जोएक रहस्य से भरपूर है,
जिसकोमुझे लगता है, कि बढे से बढा ज्ञानी भी नहीं जान पाया है, हां अपनी एक
परिभाषा जरूर दे जाता है।“
मनमोहन भाटिया