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भक्ति

रहमत अली शाह नवगांव के सम्पन्न जमीदार हैं। सब उनकों शाहजी कहते थे। सब सुखों से युक्त रहमत को बस एक ही चिन्ता थी। उनके इकलौते पुत्र रशीद की कोई संतान नही थी। घर मे बस यही एक कमी थी। पुत्रवधु सलमा को शहर के सभी बडे डाक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई फायदा नही। सास ने बहुत ताजीब आदि कराए, लेकिन कोई उपाय सफल न हो सका।
नवगांव से कुछ दूरी पर एक फकीर बाबा की कुटिया थी। बाबा का सारा समय ईश्वर की भक्ति में बीतता था। दूर दराज से भक्त उनकी सेवा में लगे रहते थे। रहमत ने भी बाबा की प्रशंसा सुनी थी। जब चारों तरफ से निराशा हाथ लगी तब बाबा का दरवाजा खटखटाने की सोची। अब सलमा ने हर बृहस्पतिवार को मंहगे जरदे से युक्त मीठे चावल बाबा की कुटिया में ले जाने शुरू किए। यह क्रम कई महीनों तक चलता रहा। बाबा स्त्रियों से बहुत कम बात करते थे, इसलिए सलमा चावल बाबा के चरणों में रख कर चली आती थी। एक दिन फकीर बाबा के दिल में चुपचाप सेवा करने वाली सलमा पर कृपा करने की बात आई और सेवा का अभिप्राय जानना चाहा।
बाबा – “बेटी कई महीनों से हमारी खिदमत कर रही हो, कहो क्या चाहती हो।“
सलमा – “बाबा मेरे कोई संतान नही है, बस एक बालक चाहती हूं, जिससे मेरे अंधेरे घर में भी उजाला हो जाए।“
बाबा – “खुदा से तुम्हारे लिए संतान मांगूगा।“
अगले बृहस्पतिवार को जब सलमा बाबा की कुटिया गई तो बाबा ने सलमा के चावल ग्रहण नही करते हुए कहा “मुझे अफसोस है, मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सका। तुम्हारे भाग्य में संतान नही है।“ फकीर बाबा के वचन सुन कर सलमा का दिल टूट गया। कुछ समय तक वह पत्थर की मूरती बन गई। कुछ नही सूझ रहा था। वह मुंह लटकाए ठंढी आहें भरती हुई धीरे धीरे अपने घर की ओर वापिस चली। रास्ते में नहर के पास एक साधू बैठा था। कई दिनों से उसने वहां डेरा डाल रखा था। वह हमेशा चुप रहता था। इसलिए सब उसे मौनी साधू कहते थे। सलमा रोती हुई घर जा रही थी, जैसे ही वह उस साधू के पास से गुजरी, उस साधू ने कहा “माई भूख लगी है, कुछ खाने के दे दे।“ सलमा क्या किसी ने भी उसे पहली बार बोलते देखा था। वह साधू उसके आगे रास्ता रोक कर खडा़ हो गया। “ माई भूख लगी है। कुछ खाने को दे दे। सलमा घबरा गई। उसके हाथ से थाली गिर गई। खुशबूदार चावल गिर गए। साधू जमीन पर गिरे चावल उठा कर खाने लगा।
“बहुत स्वादिष्ट चावल हैं माई, बोल माई तू रो क्यों रही है। तू इतने बढिया चावल बनाती है, तुझमें कोई कमी नही है।“ सलमा ने सारी बात बताई. बात सुन कर साधू खिलखिला कर हंस पढा, “बस इतनी सी छोटी बात पर रो रही है, जा माई, तू घर जा। तू एक बालक की चाह कर रही है. मैं दो बालकों का वायदा करता हूं। तेरे घर दो बालक जन्म लेंगें।“
सलमा को इस पर कोई विश्वास नही हुआ, लेकिन वह गर्भवती हो गई। सलमा ने दो जुडवा लडकों को जन्म दिया।
इधर सलमा के जिस दिन जुडवां बच्चे हुए, उससे एक रात पहले रहमत अली शाह को स्वपन आया। सर्दियों की रात में पसीने से तरबतर रहमत अली शाह उठ गए। गला सूखा जा रहा था। बदन थर थर कांप रहा था। हिम्मत करके शाहजी उठे और मटके से पानी पीने लगे। पानी पीकर गिलास हाथ से छूट गया। आवाज सुन कर बेगम की नींद खुली। शाहजी की हालात देख कर बेगम भी परेशान हो गई और कारण पूछा.
शाहजी – “बेगम, गोपी आ रहा है।“
बेगम – “शाहजी यह गोपी कौन है और क्या करने आ रहा है।“
शाहजी – “बेगम, तुम शायद गोपी को नहीं जानती। बचपन में मेरा देस्त था। छुटपन में अमीरी गरीबी दोस्ती के बीच नही आती है। हमारा घर शुरू से अमीर जमींदारों का रहा है। गोपी गरीब घर से था। मां मर गई तो उसके बाप ने दूसरी शादी करली। सौतेली मां उस पर बहुत जुल्म करती थी। उसको भूखा रखती थी। मैं उसे खेलते खेलते घर ले आता और खाना भी खिलाता था। सौतेली मां का जुल्म बढता गया और एक दिन वह फकीरों की टोली में शामिल हो गया। बेगम हमारी शादी पर वह आर्शीवाद देने पूरी टोली के साथ आया था। फिर उसके बाद कभी गोपी नहीं मिला। आज जब सलमा के बच्चों का जन्म होना है। गोपी का सपने में आकर कहना कि वह मेरे घर आ रहा है। वह मेरी गोद में खेलेगा। मुझे इसलिए डर लग रहा है।“
बेगम – “फकीरों की बातों में एक रहस्य होता है। हम आम आदमी नही समझ सकते। आप फ्रिक न करे। खुदा सब ठीक करेगा।“
सुबह सलमा ने दो जुडवां बच्चों को जन्म दिया। पूरी शाही हवेली जश्न में डूब गई। शाहजी को एक बात समझ नही आ रही थी, जब सभी डाक्टरों और फकीर बाबा ने मना कर दिया तो एक साधू के कहने पर एक नही, दो संताने हुई और फिर गोपी का सपने में आ कर कहना कि मैं तेरे घर आ रहा हूं रहमत। पूरा नवगांव उसे शाहजी कहता है। शाहजी को आज भी याद है, बचपन में घर में भी सभी शाहजी कहते थे। मां बाप भी लाड में शाहजी पुकारते थे। एक गोपी ही उसे रहमत कहता था। शाहजी के मां बाप गोपी को कहते थे कि वह रहमत की बजाए शाहजी कहे। उस पर गोपी हमेशा हंसता हुआ करता था, मेरा रहमत है, आपका शाहजी।
बच्चों के जन्म को तीन महीनें बीत गए। मथ्था टेकने फकीर बाबा की कुटिया शाहजी सपरिवार गए। फकीर बाबा ने सलमा की गोद में दो बच्चे देखकर कहा, “ये किसके बच्चे हैं।“ शाहजी मे कहा “ये सलमा के हैं।“ यह सुन कर तो बाबा हैरान हो गए। यह कैसे हो सकता है। यह मेरी बात नही थी। खुद ईश्वर का फरमान था। यह चमत्कार कैसे हुआ। सलमा ने मौनी साधू की बात बताई, तो फौरन फकीर बाबा बोले, “मुझे अभी उस साधू के पास ले चलो।“
शाहजी सपरिवार और फकीर बाबा के साथ मौनी साधू के स्थान पहुंचें. पता चला कि मौनी साधू ने नौ महीने पहले शरीर छोड दिया था। अब तो उनकी समाधी है।
अगले बृहस्पतिवार को खुद फकीर बाबा शाहजी के घर पहुंचे। शाहजी हैरान हो गए, कि बाबा खुद चल कर उनके घर आए हैं। बाबा ने दो¨नों बच्चों के पैर छुए और फिर गोद में उठा कर शाहजी से बोले “जब मैंने ईश्वर से सलमा के लिए बच्चा मांगा तो खुद उन्होनें मना कर दिया था। आज मेरे इस सवाल पर खुद बोले, पागल, वो मौनी साधू मेरा भक्त था, मैं अपने भक्त को भला कैसे मना कर सकता था। जब खुद उसने शरीर छोड कर दूसरा शरीर धारण करने की इच्छा जाहिर की तो मैं कैसे भला मना कर सकता था। ईश्वर एक सच्चे भक्त की जिद के आगे झुक गए। उस भक्त ने एक शरीर छोड कर दूसरा शरीर धारण किया है। वो और कोई नहीं, तुमहारा बच्पन का दोस्त गोपी था। ईश्वर सही कहते है, आत्मा एक है, शरीर ने नया रूप धारण किया है।“ कह कर फकीर बाबा चले गए और शाहजी बच्चों को गोद में खिलाने लगे।

मनमोहन भाटिया