पिटाई
मनुष्य के जिस्म में ऑटोमेटिक घडी फिट होती है। सुबह सुबह नींद अपने आप ही खुल जाती है, एक बार तो नींद खुल जाती है, लेकिन आलस नाम की भी एक चीज होती है, उसकी गिरफ्त से बाहर कोई विरला ही होता है। नींद खुलती है, चलो पांच मिन्ट के लिए लेटे रहते है। यही पांच मिन्ट घंटों में बदल जाते हैं। फिर क्या, नींद है कि खुलती ही नहीं। सभी के जैसा नही है, सूरज। ठीक साढे पांच हर सुबह सूरज बिस्तर छोड देता है। पत्नी रौशनी भी सूरज का साथ पिछले पच्चीस वर्षों से निभा रही है। विवाह के सुखद पच्चीस वर्ष, दो जिस्म एक जान, यही भारतीय संस्कृति है।
गर्मियों के दिन, काली रात को सुबह की रौशनी ने पांच बजे ही विदा कर दिया। सूरज और रौशनी की दिनचर्या शुरू हो गई। रौशनी रसोई में चाय बना रही थी, तभी कॉल बेल बजी।
“देखो, कौन है।“ रौशनी ने रसोई से आवाज लगाई।
सूरज ने दरवाजा खोला। लगभग चौदह वर्ष का एक लडका दरवाजे पर खडा था।
“ अंकल, कार हटानी है।“
लडके की बात सुन कर सूरज ने कार की चाबी उठाई।
“रौशनी, कार हटा कर आ रहा हूं।“ कह कर सूरज उस लडके के साथ नीचे आया और कार
के दरवाजे में चाबी लगाई, तभी एक कर्कश आवाज ने सूरज को सन्न और सतब्ध कर
दिया।
“अबे हरामखोर, गदर मचा रखा है, पूरी सोसाइटी में। खडा खडा क्या देख रहा है,
कार हटा फटाफट। नाक में दम कर रखा है।“
सूरज ने देखा, एक व्यक्ति, उम्र कोई चालीस के आसपास एक कार के पास खडा
चिल्ला कर बकवास कर रहा था, शायद उसी ने कार निकालनी थी और उसी के लडके ने
कॉल बेल बजाई थी। गाली गलौच की भाषा सुन कर सूरज ने कार का दरवाजा बंद कर
दिया।
“भाई साहब, आप गाली गलौच बंद करिए, मैं कार नही हटाता।“ सूरज मे नम्रता से
कहा।
सूरज के इतना कहते ही वह व्यक्ति आगबबूला हो गया और सूरज के मुंह पर एक
जोरदार घूंसा लगाया। घूंसे में दम था, सूरज गिर पडा। सूरज का चश्मा टूट
गया, पिटने के बाद सूरज लडखडाते हुए खडा हुआ और उस गाली गलौच करने वाले
आदमी की शर्ट का कॉलर पकड कर उसकी छाती पर दो घूंसे लगाए। सूरज के घूंसों
में दम कम था, उस आदमी ने फिर सूरज को घूंसा मारा। सूरज ने उस आदमी की शर्ट
का कॉलर पकड रखा था, घूंसे बाजी में उस आदमी की शर्ट फट गई, सूरज का कुर्ता
फट गया। वह आदमी और सूरज एक दूसरे में गुथम गुथ्था हो गए। उस आदमी का
गुस्सा सातवें आसमान पर था। ऊपर अपने फ्लैट की ओर देख कर बोला, लठ्ठ फैंक,
साले का सर फोड दूं। लठ्ठ फैंक। ऊपर उसकी पत्नी बॉलकनी में खडी थी। उसने
कोई लठ्ठ तो नही फेंका, अपितु एक नई शर्ट फैंकी। उस आदनी ने शर्ट बदली। शोर
सुन कर आसपास के फ्लैटों की बॉलकनियों पर लोग तमाशे का मजा लेने लगे। कोई
मदद को नही आया। शोर सुन कर रौशनी दोडती हुए आई और सूरज को पकड कर दूर
किया। लडाई में रौशनी तो पति सूरज के बचाव में आई, परन्तु उस आदमी की पत्नी
सिर्फ अपने फ्लैट की बॉलकनी तक सीमित रही। उसका चौदह साल का लडका भी एक
कोने में शान्त खडा रहा। उस आदमी ने 100 नम्बर पर फोन कर के चिल्ला कर कहा।
साले को थाने में बंद करवाता हूं।
“छोडो, तुम झगडा आगे नही बडाऔगे। हमने पुलिस में नही जाना। आपको पता नही,
वह खुद पुलिस है।“ रौशनी ने सूरज को एक तरफ कोने में करते हुए कहा। वैसे
शान्त रहने वाला सूरज बिना किसी कारण पिटने पर पचास डिग्री में आग उगलने
वाला सूरज बना हुआ था। “पुलिस है, तो क्या एक शान्ति प्रिय इन्सान को जेल
में बंद करेगी।“
पुलिस की जीप दस मिन्ट में आ गई। पुलिस के आने पर वह आदमी शान्त हो गया,
ऐसा एक कोने में खडा था, जैसे कुछ हुआ ही नही। धीरे धीरे पुलिस को कहने
लगा, कि सूरज कार नही हटा रहा है, उसे सुबह की सैर जाना है।
“गाडी हटाने में क्या दिक्कत है।“एक पुलिस वाले ने सूरज से पूछा।
“मैं तो कार चुपचाप हटा रहा था, उसने गाली गलौच की और मारा।“ सूरज ने टूटा
चश्मा और फटा कुर्ता पुलिस वाले को दिखाया।
“आपका नाम।“ पुलिस वाले ने सूरज से पूछा।
“मैं क्यों अपना नाम बताऊं। उससे पूछो, जिसने आपको फोन किया। एक तो मार
खाऔ, ऊपर से नाम भी बताऔ।“ सूरज ने नाराजगी जाहिर की।
पुलिस वाला उस आदमी का नाम पूछने लगा। उसका नाम सतपाल था। वह नगर निगम में
जूनियर इंजीनियर निकला, जिसे रौशनी पुलिस वाला समझ रही थी। पुलिस के आगे
भीगी बिल्ली बना खडा था। उसने कोई शिकायत दर्ज नही कराई। सतपाल के ठंडै रूख
पर रौशनी के कहने पर सूरज ने भी कोई शिकायत दर्ज नही कराई। पुलिस के दोबारा
विनम्र अनुरोध पर सूरज ने चुपचाप कार को हटाया। सतपाल कार लेकर चला गया और
सूरज, रौशनी घर आ गए। सूरज ने फटे कपडे बदले। चाय ठंडी हो गई थी। रौशनी ने
गर्म किया। चाय पीते पीते सूरज से पूछा “आज क्या हो गया था, तुमको। हमेशा
शान्त रहने वाले आज झगडे में उलझ गए?”
“मैं तो चुपचाप कार हटा रहा था, पता नही वह तेजाब पी कर उठा था, या बीवी की
मार खा कर, कार हटा रहा था, गालियां बकने लगा, मैंने भी कह दिया, अब कार
नही हटाऊंगा, बस मारने लगा। इसी कारण मैंने कार हटाने के लिए मना किया।“
“आजकल हर रोज अखबार में पढते हैं, कि पार्किंग के चक्कर में गोलिंयां तक चल
जाती है। सुना नहीं, कैसे कह रहा था, लठ्ठ से सिर फोड दूंगा।“
“मालूम है, झगडे में कुछ नही सूझता है, कुछ भी हो सकता है, लेकिन बिना किसी
बात के, बिना कोई कारण के पिटाई हो गई। बदन दुख रहा है।“
“रूको, सिकाई कर देती हूं।“
“थोडे गर्म पानी से नही लेता हूं। ऑफिस का टाईम हो रहा है।“
“आज आराम कर लो, ऑफिस से छुट्टी ले लो।“
“नही, जरूरी काम है आज, छुट्टी नही ले सकता।“ कह कर सूरज नहाने चला गया।
रौशनी ने लंच का टिफिन तैयार किया। सूरज तो ऑफिस चला गया, लेकिन रौशनी पति
की बेइज्जती बर्दास्त नही कर सकी। शाम को पडोस की महिलाऔ से बात की, सबने
सलाह दी कि सोसाइटी की वेलफेयर कमेटी में शिकायत दर्ज की जाए। सतपाल बहुत
बतममीजी से बात करता है। जब से कमेटी का सदस्य बना है, दिमाग सातवे आसमान
पर पहुंचा हुआ है। किसी को अपने सामने कुछ समझता ही नही। सोसाइटी की सात
सदस्यों की कमेटी में एक महिला सीट पर सुनीता थी। सुनीता ने बतलाया कि हर
शनिवार रात नौ बजे वेलफेयर कमेटी की बैठक होती है। वह इस मीटिंग नें यह
मुद्दा उठाएगी।
शनिवार रात नौ बजे सोसाइटी का गार्ड मीटिंग में शामिल होने के लिए बुलाने
आया। सूरज सोसाइटी के ऑफिस पहुंचा, वहां वेलफेयर कमिटी के सातों सदस्य
मौजूद थे। नंदवानी ने सूरज को समबोधित करते कहा, आपकी शिकायत पर पहले चर्चा
करते है, सोसाइटी वेलफेयर की बाकी बातों पर बहस बाद में होगी। सतपाल भी एक
कोने में पगले से कुर्सी पर विराजमान था।
सूरज ने अपना पक्ष रखा। उसका ऐतराज बिना बात के सतपाल का गालियां बकना और
पिटाई करना था।
“सूरज हर रोज कार गलत पार्क करता है, उसे कार निकालने में देरी होती है।“
सतपाल ने सफाई देते हुए अपना पक्ष रखा।
“सतपाल झूठ बोल रहा है। मेरी कार दीवार के साथ सटी खडी थी। सतपाल की कार
आराम से निकल सकती थी, फिर भी मैने एक मिन्ट की देरी नही की, चुपचाप कार
हटा रहा था, लेकिन फिर भी गालियां बकने लगा। बिना किसी बात के गालियां सुन
कर मैंने कार हटाने से मना किया, तो सतपाल ने मारना शुरू कर दिया, जो एक दम
गलत है।“ सूरज की आवाज में तेजी और आक्रोश था।
सूरज की बात का समर्थन वेलफेयर कमिटी के मेंबर नंदवानी, ढीगडा, सेठी और सुनीता ने किया। सतपाल के समर्थन में केवल एक सदस्य शेखावत थे, कि सूरज को कार सही लगानी चाहिए थी। तनेजा चुप रहे। शेखावत की बात को काटते हुए ढीगडा और सुनीता ने कहा ,कि सूरज सोसाइटी में पिछले बीस सालों से रह रहे हैं। वह एक शान्तिप्रिय मेम्बर है। हमेशा विनम्रता से सबसे बातचीत करते है, सूरज। हमने कभी उंची आवाज में किसी से बात करते नही सुना है। सतपाल जो वेलफेयर कमेटी के मेंबर भी है, उन्हे मारपीट शोभा नही देती। सतपाल को यदि सूरज से कोई शिकायत थी तो उसे वेलफेयर कमेटी में रखना था। मारपीट करने का कोई अधिकार नही है। सतपाल और शेखावत अकेले पढ कर चुप रह गए। सतपाल ने आखिरी पत्ता फेंटा कि वेलफेयर कमिटी के बाकी सदस्य एक किराएदार की तरफ हो कर सोसाइटी के मेंबर और वेलफेयर कमेटी के सदस्य की बेइज्जती की है। इस बात पर तनेजा भी ढीगडा, सुनीता, सेठी और नंदवानी के साथ एक स्वर में बोले कि सूरज पिछले बीस वर्षो से सोसाइटी के मेंबर है और इस सोसाइटी में रह रहे है। शुरू के वर्षो में वेलफेयर कमिटी के मेंबर भी रहे है। पिछले कुछ वर्षो से ट्रांसफर के कारण दिल्ली से बाहर थे और माकन किराए पर दे रखा था, अब खुद वापिस आ गए है। आप नगर निगम में जूनियर इंजीनियर है, लेकिन सूरज भी इंजीनियर है भारत की नव रत्न कंपनी में जरनल मैनेजर प्रोजक्टस है। इतना सुन कर सतपाल चारो खाने चित गिर पडा। पिटाई तो उसने सूरज की थी, लेकिन लुटा पिटा खुद को महसूस कर रहा था। वह मीटिंग छोड कर चला गया। वेलफेयर ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि सोसाइटी के अंदर हर मेंबर की एक एक कार खडी होगी, जिसकी एक से ज्यादा कारें है, उन्हे बाहर दीवार के पास खडी करनी होगी। सतपाल की दो कारे थी, नियम के कारण उसे भी एक कार को बाहर खडी करनी पडेगी। अगले दिन वेलफेयर कमेटी के सदस्यों ने सोसाइटी के अंदर कारों की पार्किंग की व्यवस्था की और एक से अधिक कार रखने वालों की कारों को सोसाइटी के बाहर दीवार के साथ रखने की व्यवस्था की।
अगले दिन रात को सूरज ऑफिस से आया और जानबूझ कर सतपाल की कार के पीछे
चिपका कर लगा दी, ताकि उसकी कार निकल सके। सुबह सूरज उठा तो बॉलकनी में
कुर्सी डाल कर बैठ गया। रौशनी ने मॉर्निंग टी की ट्रे टेबल पर रखी।
“क्या बात है, नीचे कुछ बात है, जो वहीं नजरे गडाये बैठे हो।“
“चुपचाप तमाशा देख। मजा आएगा।“
रौशनी चाय की चुसकी लेते हुए देखा, कि सतपाल कार निकालने के लिए इधर उधर
देख रहा था, बिना सूरज की कार हिलाए वह अपनी कार निकाल नही सकता था। चुपचाप
उसने कार की चाबी जेब में रखी और पत्नी को आवाज दे कर दूसरी कार की चाबी
ली, जो बाहर खडी थी। आज उसने न तो सूरज को कार हटाने को कहा, न ही कोई
हो-हल्ला किया।
“आप ने जानबूझ कर कार को उसकी कार के पीछे क्यों लगाई।“
“मैं उसकी प्रतिक्रिया देखना चाहता था।“ सूरज ने चाय की चुसकी लेते हुए
कहा। “देखो, आज उसकी हिम्मत नही है, मुझसे उलझने की। चुपचाप चला गया।“
“पिटाई लगता है, भूल गए, उस दिन की, फिर से पिटने को बदन सुगल रहा है।“
“ऐसी बात नही है, मैं चाहता हूं, कि उसे भूल का एहसास हो। कम से कम
शर्मिंदा तो हो।“
“कोई जरूरत नही है, रोज रोज पंगे लेने की। बात अब समाप्त हो गई है। वेलफेयर
कमेटी में उसको खरी खोटी सुनने को मिली, यही काफी है। कोई जरूरत नही है,
बात को आगे बडाने की। कल से कार को अडा कर खडा नही करोगे।“ रोशनी ने सूरज
को अल्टीमेटम देते हुए कहा। परन्तु अगले दिन सुबह फिर रौशनी ने देखा कि
सूरज की कार फिर से सतपाल की कार के पिछे चिपक कर खडी है। सतपाल फिर मायूस
हो कर बाहर खडी दूसरी कार के लिए बाहर चला गया। रात को जब सूरज ऑफिस से
लोटा, तो पहला प्रश्न रौशनी का यही था, कि कार कहां खडी की है।
“जनाब, आपकी आज्ञा का पालन पूरा हुआ है, कार को आज बाहर ही खडा किया है।“
सूरज ने तो सतपाल की कार से दूर कार पार्क करनी शुरू की, लेकिन सोसाइटी के
दूसरे सदस्य, जो सतपाल के रवैये से दुखी थे, उन्होने सतपाल की दोनों कारों
के आगे पीछे चिपका के खडी करनी शुरू कर दी। सदस्यों का सिर्फ एक ही मकसद
था, सतपाल की हेकडी दूर करने की।
बेचारा सतपाल मायूस हो कर कर भी क्या सकता था, जब वेलफेयर कमेटी में भी अलग
थलक हो गया। सूरज की पिटाई करने के बाद खुद को पिटा हुआ महसूस कर रहा था।
मनमोहन भाटिया