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सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६०

दोहा

सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह ।

प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ॥५१॥

चौपाला

प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ । अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ ॥

रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने । सकल बाँधि कपीस पहिं आने ॥

कह सुग्रीव सुनहु सब बानर । अंग भंग करि पठवहु निसिचर ॥

सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए । बाँधि कटक चहु पास फिराए ॥

बहु प्रकार मारन कपि लागे । दीन पुकारत तदपि न त्यागे ॥

जो हमार हर नासा काना । तेहि कोसलाधीस कै आना ॥

सुनि लछिमन सब निकट बोलाए । दया लागि हँसि तुरत छोडाए ॥

रावन कर दीजहु यह पाती । लछिमन बचन बाचु कुलघाती ॥

दोहा

कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार ।

सीता देइ मिलेहु न त आवा काल तुम्हार ॥५२॥

चौपाला

तुरत नाइ लछिमन पद माथा । चले दूत बरनत गुन गाथा ॥

कहत राम जसु लंकाँ आए । रावन चरन सीस तिन्ह नाए ॥

बिहसि दसानन पूँछी बाता । कहसि न सुक आपनि कुसलाता ॥

पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी । जाहि मृत्यु आई अति नेरी ॥

करत राज लंका सठ त्यागी । होइहि जब कर कीट अभागी ॥

पुनि कहु भालु कीस कटकाई । कठिन काल प्रेरित चलि आई ॥

जिन्ह के जीवन कर रखवारा । भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा ॥

कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी । जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी ॥

दोहा

की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर ।

कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥५३॥

चौपाला

नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें । मानहु कहा क्रोध तजि तैसें ॥

मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा । जातहिं राम तिलक तेहि सारा ॥

रावन दूत हमहि सुनि काना । कपिन्ह बाँधि दीन्हे दुख नाना ॥

श्रवन नासिका काटै लागे । राम सपथ दीन्हे हम त्यागे ॥

पूँछिहु नाथ राम कटकाई । बदन कोटि सत बरनि न जाई ॥

नाना बरन भालु कपि धारी । बिकटानन बिसाल भयकारी ॥

जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा । सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा ॥

अमित नाम भट कठिन कराला । अमित नाग बल बिपुल बिसाला ॥

दोहा

द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि ।

दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि ॥५४॥

चौपाला

ए कपि सब सुग्रीव समाना । इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना ॥

राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं । तृन समान त्रेलोकहि गनहीं ॥

अस मैं सुना श्रवन दसकंधर । पदुम अठारह जूथप बंदर ॥

नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं । जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं ॥

परम क्रोध मीजहिं सब हाथा । आयसु पै न देहिं रघुनाथा ॥

सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला । पूरहीं न त भरि कुधर बिसाला ॥

मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा । ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा ॥

गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका । मानहु ग्रसन चहत हहिं लंका ॥

दोहा

सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम ।

रावन काल कोटि कहु जीति सकहिं संग्राम ॥५५॥

चौपाला

राम तेज बल बुधि बिपुलाई । तब भ्रातहि पूँछेउ नय नागर ॥

तासु बचन सुनि सागर पाहीं । मागत पंथ कृपा मन माहीं ॥

सुनत बचन बिहसा दससीसा । जौं असि मति सहाय कृत कीसा ॥

सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई । सागर सन ठानी मचलाई ॥

मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई । रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई ॥

सचिव सभीत बिभीषन जाकें । बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें ॥

सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी । समय बिचारि पत्रिका काढ़ी ॥

रामानुज दीन्ही यह पाती । नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती ॥

बिहसि बाम कर लीन्ही रावन । सचिव बोलि सठ लाग बचावन ॥

दोहा

बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस ।

राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस ॥५६ -क॥

की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग ।

होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग ॥५६ -ख॥

चौपाला

सुनत सभय मन मुख मुसुकाई । कहत दसानन सबहि सुनाई ॥

भूमि परा कर गहत अकासा । लघु तापस कर बाग बिलासा ॥

कह सुक नाथ सत्य सब बानी । समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी ॥

सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा । नाथ राम सन तजहु बिरोधा ॥

अति कोमल रघुबीर सुभाऊ । जद्यपि अखिल लोक कर राऊ ॥

मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही । उर अपराध न एकउ धरिही ॥

जनकसुता रघुनाथहि दीजे । एतना कहा मोर प्रभु कीजे ।

जब तेहिं कहा देन बैदेही । चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही ॥

नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ । कृपासिंधु रघुनायक जहाँ ॥

करि प्रनामु निज कथा सुनाई । राम कृपाँ आपनि गति पाई ॥

रिषि अगस्ति कीं साप भवानी । राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी ॥

बंदि राम पद बारहिं बारा । मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा ॥

दोहा

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति ।

बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति ॥५७॥

चौपाला

लछिमन बान सरासन आनू । सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू ॥

सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती । सहज कृपन सन सुंदर नीती ॥

ममता रत सन ग्यान कहानी । अति लोभी सन बिरति बखानी ॥

क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा । ऊसर बीज बएँ फल जथा ॥

अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा । यह मत लछिमन के मन भावा ॥

संघानेउ प्रभु बिसिख कराला । उठी उदधि उर अंतर ज्वाला ॥

मकर उरग झष गन अकुलाने । जरत जंतु जलनिधि जब जाने ॥

कनक थार भरि मनि गन नाना । बिप्र रूप आयउ तजि माना ॥

दोहा

काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच ।

बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच ॥५८॥

चौपाला

सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे । छमहु नाथ सब अवगुन मेरे ॥

गगन समीर अनल जल धरनी । इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ॥

तव प्रेरित मायाँ उपजाए । सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए ॥

प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई । सो तेहि भाँति रहे सुख लहई ॥

प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही । मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही ॥

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी ॥

प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई । उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई ॥

प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई । करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई ॥

दोहा

सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ ।

जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ ॥५९॥

चौपाला

नाथ नील नल कपि द्वौ भाई । लरिकाई रिषि आसिष पाई ॥

तिन्ह के परस किएँ गिरि भारे । तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ॥

मैं पुनि उर धरि प्रभुताई । करिहउँ बल अनुमान सहाई ॥

एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ । जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ ॥

एहि सर मम उत्तर तट बासी । हतहु नाथ खल नर अघ रासी ॥

सुनि कृपाल सागर मन पीरा । तुरतहिं हरी राम रनधीरा ॥

देखि राम बल पौरुष भारी । हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी ॥

सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा । चरन बंदि पाथोधि सिधावा ॥

छंद

निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ ।

यह चरित कलि मलहर जथामति दास तुलसी गायऊ ॥

सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना ॥

तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना ॥

दोहा

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान ।

सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ॥६०॥

मासपारायण , चौबीसवाँ विश्राम

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने

पञ्चमः सोपानः समाप्तः ।

- सुन्दरकाण्ड समाप्त

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०