Get it on Google Play
Download on the App Store

बालकाण्ड दोहा ९१ से १००

दोहा

लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान।
होहि सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान ॥९१॥

चौपाला

सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा । जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा ॥
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला । तन बिभूति पट केहरि छाला ॥
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा । नयन तीनि उपबीत भुजंगा ॥
गरल कंठ उर नर सिर माला । असिव बेष सिवधाम कृपाला ॥
कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा । चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा ॥
देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं । बर लायक दुलहिनि जग नाहीं ॥
बिष्नु बिरंचि आदि सुरब्राता । चढ़ि चढ़ि बाहन चले बराता ॥
सुर समाज सब भाँति अनूपा । नहिं बरात दूलह अनुरूपा ॥

दोहा

बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज।
बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज ॥९२॥

चौपाला
बर अनुहारि बरात न भाई । हँसी करैहहु पर पुर जाई ॥
बिष्नु बचन सुनि सुर मुसकाने । निज निज सेन सहित बिलगाने ॥
मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं । हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं ॥
अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे । भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे ॥
सिव अनुसासन सुनि सब आए । प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए ॥
नाना बाहन नाना बेषा । बिहसे सिव समाज निज देखा ॥
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू । बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू ॥
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना । रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना ॥

छंद

तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें।
भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें ॥
खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै।
बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै ॥

सोरठा

नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब।
देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि ॥९३॥
जस दूलहु तसि बनी बराता । कौतुक बिबिध होहिं मग जाता ॥
इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना । अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना ॥
सैल सकल जहँ लगि जग माहीं । लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं ॥
बन सागर सब नदीं तलावा । हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा ॥
कामरूप सुंदर तन धारी । सहित समाज सहित बर नारी ॥
गए सकल तुहिनाचल गेहा । गावहिं मंगल सहित सनेहा ॥
प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए । जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए ॥
पुर सोभा अवलोकि सुहाई । लागइ लघु बिरंचि निपुनाई ॥

छंद

लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही।
बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही ॥
मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं ॥
बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं ॥

दोहा

जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ।
रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ ॥९४॥

चौपाला
नगर निकट बरात सुनि आई । पुर खरभरु सोभा अधिकाई ॥
करि बनाव सजि बाहन नाना । चले लेन सादर अगवाना ॥
हियँ हरषे सुर सेन निहारी । हरिहि देखि अति भए सुखारी ॥
सिव समाज जब देखन लागे । बिडरि चले बाहन सब भागे ॥
धरि धीरजु तहँ रहे सयाने । बालक सब लै जीव पराने ॥
गएँ भवन पूछहिं पितु माता । कहहिं बचन भय कंपित गाता ॥
कहिअ काह कहि जाइ न बाता । जम कर धार किधौं बरिआता ॥
बरु बौराह बसहँ असवारा । ब्याल कपाल बिभूषन छारा ॥

छंद

तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा।
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा ॥
जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही।
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही ॥

दोहा

समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं।
बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं ॥९५॥

चौपाला
लै अगवान बरातहि आए । दिए सबहि जनवास सुहाए ॥
मैनाँ सुभ आरती सँवारी । संग सुमंगल गावहिं नारी ॥
कंचन थार सोह बर पानी । परिछन चली हरहि हरषानी ॥
बिकट बेष रुद्रहि जब देखा । अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा ॥
भागि भवन पैठीं अति त्रासा । गए महेसु जहाँ जनवासा ॥
मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी । लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी ॥
अधिक सनेहँ गोद बैठारी । स्याम सरोज नयन भरे बारी ॥
जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा । तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा ॥

छंद

कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई।
जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई ॥
तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं ॥
घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं ॥

दोहा

भई बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि।
करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि ॥९६॥

चौपाला
नारद कर मैं काह बिगारा । भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा ॥
अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा । बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा ॥
साचेहुँ उन्ह के मोह न माया । उदासीन धनु धामु न जाया ॥
पर घर घालक लाज न भीरा । बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा ॥
जननिहि बिकल बिलोकि भवानी । बोली जुत बिबेक मृदु बानी ॥
अस बिचारि सोचहि मति माता । सो न टरइ जो रचइ बिधाता ॥
करम लिखा जौ बाउर नाहू । तौ कत दोसु लगाइअ काहू ॥
तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका । मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका ॥

छंद

जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं।
दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं ॥
सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं ॥
बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं ॥

दोहा

तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत।
समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत ॥९७॥

चौपाला
तब नारद सबहि समुझावा । पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा ॥
मयना सत्य सुनहु मम बानी । जगदंबा तव सुता भवानी ॥
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि । सदा संभु अरधंग निवासिनि ॥
जग संभव पालन लय कारिनि । निज इच्छा लीला बपु धारिनि ॥
जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई । नामु सती सुंदर तनु पाई ॥
तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं । कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं ॥
एक बार आवत सिव संगा । देखेउ रघुकुल कमल पतंगा ॥
भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा । भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा ॥

छंद

सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं।
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं ॥
अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया।
अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया ॥

दोहा

सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद।
छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद ॥९८॥

चौपाला
तब मयना हिमवंतु अनंदे । पुनि पुनि पारबती पद बंदे ॥
नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने । नगर लोग सब अति हरषाने ॥
लगे होन पुर मंगलगाना । सजे सबहि हाटक घट नाना ॥
भाँति अनेक भई जेवराना । सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा ॥
सो जेवनार कि जाइ बखानी । बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी ॥
सादर बोले सकल बराती । बिष्नु बिरंचि देव सब जाती ॥
बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा । लागे परुसन निपुन सुआरा ॥
नारिबृंद सुर जेवँत जानी । लगीं देन गारीं मृदु बानी ॥

छंद

गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं।
भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहीं ॥
जेवँत जो बढ़्यो अनंदु सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो।
अचवाँइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको रह्यो ॥

दोहा

बहुरि मुनिन्ह हिमवंत कहुँ लगन सुनाई आइ।
समय बिलोकि बिबाह कर पठए देव बोलाइ ॥९९॥

चौपाला
बोलि सकल सुर सादर लीन्हे । सबहि जथोचित आसन दीन्हे ॥
बेदी बेद बिधान सँवारी । सुभग सुमंगल गावहिं नारी ॥
सिंघासनु अति दिब्य सुहावा । जाइ न बरनि बिरंचि बनावा ॥
बैठे सिव बिप्रन्ह सिरु नाई । हृदयँ सुमिरि निज प्रभु रघुराई ॥
बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाई । करि सिंगारु सखीं लै आई ॥
देखत रूपु सकल सुर मोहे । बरनै छबि अस जग कबि को है ॥
जगदंबिका जानि भव भामा । सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा ॥
सुंदरता मरजाद भवानी । जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी ॥

छंद

कोटिहुँ बदन नहिं बनै बरनत जग जननि सोभा महा।
सकुचहिं कहत श्रुति सेष सारद मंदमति तुलसी कहा ॥
छबिखानि मातु भवानि गवनी मध्य मंडप सिव जहाँ ॥
अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकरु तहाँ ॥

दोहा

मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।
कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि ॥१००॥

चौपाला

जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई । महामुनिन्ह सो सब करवाई ॥
गहि गिरीस कुस कन्या पानी । भवहि समरपीं जानि भवानी ॥
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा । हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा ॥
बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं । जय जय जय संकर सुर करहीं ॥
बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना । सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना ॥
हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू । सकल भुवन भरि रहा उछाहू ॥
दासीं दास तुरग रथ नागा । धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा ॥
अन्न कनकभाजन भरि जाना । दाइज दीन्ह न जाइ बखाना ॥

छंद

दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो।
का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो ॥
सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो।
पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०