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अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३०


सोरठा
रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि ।
अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन ॥२१ -क ॥
दोहा
सभा माझ परि ब्याकुल बहु प्रकार कह रोइ ।
तोहि जिअत दसकंधर मोरि कि असि गति होइ ॥२१ -ख ॥
चौपाला
सुनत सभासद उठे अकुलाई । समुझाई गहि बाहँ उठाई ॥
कह लंकेस कहसि निज बाता । केँइँ तव नासा कान निपाता ॥
अवध नृपति दसरथ के जाए । पुरुष सिंघ बन खेलन आए ॥
समुझि परी मोहि उन्ह कै करनी । रहित निसाचर करिहहिं धरनी ॥
जिन्ह कर भुजबल पाइ दसानन । अभय भए बिचरत मुनि कानन ॥
देखत बालक काल समाना । परम धीर धन्वी गुन नाना ॥
अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता । खल बध रत सुर मुनि सुखदाता ॥
सोभाधाम राम अस नामा । तिन्ह के संग नारि एक स्यामा ॥
रुप रासि बिधि नारि सँवारी । रति सत कोटि तासु बलिहारी ॥
तासु अनुज काटे श्रुति नासा । सुनि तव भगिनि करहिं परिहासा ॥
खर दूषन सुनि लगे पुकारा । छन महुँ सकल कटक उन्ह मारा ॥
खर दूषन तिसिरा कर घाता । सुनि दससीस जरे सब गाता ॥
दोहा
सुपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति ।
गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति ॥२२ ॥
चौपाला
सुर नर असुर नाग खग माहीं । मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं ॥
खर दूषन मोहि सम बलवंता । तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता ॥
सुर रंजन भंजन महि भारा । जौं भगवंत लीन्ह अवतारा ॥
तौ मै जाइ बैरु हठि करऊँ । प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ ॥
होइहि भजनु न तामस देहा । मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा ॥
जौं नररुप भूपसुत कोऊ । हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ ॥
चला अकेल जान चढि तहवाँ । बस मारीच सिंधु तट जहवाँ ॥
इहाँ राम जसि जुगुति बनाई । सुनहु उमा सो कथा सुहाई ॥
दोहा
लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद ।
जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद ॥२३॥
चौपाला
सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला । मैं कछु करबि ललित नरलीला ॥
तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा । जौ लगि करौं निसाचर नासा ॥
जबहिं राम सब कहा बखानी । प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी ॥
निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता । तैसइ सील रुप सुबिनीता ॥
लछिमनहूँ यह मरमु न जाना । जो कछु चरित रचा भगवाना ॥
दसमुख गयउ जहाँ मारीचा । नाइ माथ स्वारथ रत नीचा ॥
नवनि नीच कै अति दुखदाई । जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई ॥
भयदायक खल कै प्रिय बानी । जिमि अकाल के कुसुम भवानी ॥
दोहा
करि पूजा मारीच तब सादर पूछी बात ।
कवन हेतु मन ब्यग्र अति अकसर आयहु तात ॥२४॥
चौपाला
दसमुख सकल कथा तेहि आगें । कही सहित अभिमान अभागें ॥
होहु कपट मृग तुम्ह छलकारी । जेहि बिधि हरि आनौ नृपनारी ॥
तेहिं पुनि कहा सुनहु दससीसा । ते नररुप चराचर ईसा ॥
तासों तात बयरु नहिं कीजे । मारें मरिअ जिआएँ जीजै ॥
मुनि मख राखन गयउ कुमारा । बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा ॥
सत जोजन आयउँ छन माहीं । तिन्ह सन बयरु किएँ भल नाहीं ॥
भइ मम कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ मैं देखउँ दोउ भाई ॥
जौं नर तात तदपि अति सूरा । तिन्हहि बिरोधि न आइहि पूरा ॥
दोहा
जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड ॥
खर दूषन तिसिरा बधेउ मनुज कि अस बरिबंड ॥२५॥
चौपाला
जाहु भवन कुल कुसल बिचारी । सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी ॥
गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा । कहु जग मोहि समान को जोधा ॥
तब मारीच हृदयँ अनुमाना । नवहि बिरोधें नहिं कल्याना ॥
सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी । बैद बंदि कबि भानस गुनी ॥
उभय भाँति देखा निज मरना । तब ताकिसि रघुनायक सरना ॥
उतरु देत मोहि बधब अभागें । कस न मरौं रघुपति सर लागें ॥
अस जियँ जानि दसानन संगा । चला राम पद प्रेम अभंगा ॥
मन अति हरष जनाव न तेही । आजु देखिहउँ परम सनेही ॥
छंद
निज परम प्रीतम देखि लोचन सुफल करि सुख पाइहौं ।
श्री सहित अनुज समेत कृपानिकेत पद मन लाइहौं ॥
निर्बान दायक क्रोध जा कर भगति अबसहि बसकरी ।
निज पानि सर संधानि सो मोहि बधिहि सुखसागर हरी ॥
दोहा
मम पाछें धर धावत धरें सरासन बान ।
फिरि फिरि प्रभुहि बिलोकिहउँ धन्य न मो सम आन ॥२६ ॥
चौपाला
तेहि बन निकट दसानन गयऊ । तब मारीच कपटमृग भयऊ ॥
अति बिचित्र कछु बरनि न जाई । कनक देह मनि रचित बनाई ॥
सीता परम रुचिर मृग देखा । अंग अंग सुमनोहर बेषा ॥
सुनहु देव रघुबीर कृपाला । एहि मृग कर अति सुंदर छाला ॥
सत्यसंध प्रभु बधि करि एही । आनहु चर्म कहति बैदेही ॥
तब रघुपति जानत सब कारन । उठे हरषि सुर काजु सँवारन ॥
मृग बिलोकि कटि परिकर बाँधा । करतल चाप रुचिर सर साँधा ॥
प्रभु लछिमनिहि कहा समुझाई । फिरत बिपिन निसिचर बहु भाई ॥
सीता केरि करेहु रखवारी । बुधि बिबेक बल समय बिचारी ॥
प्रभुहि बिलोकि चला मृग भाजी । धाए रामु सरासन साजी ॥
निगम नेति सिव ध्यान न पावा । मायामृग पाछें सो धावा ॥
कबहुँ निकट पुनि दूरि पराई । कबहुँक प्रगटइ कबहुँ छपाई ॥
प्रगटत दुरत करत छल भूरी । एहि बिधि प्रभुहि गयउ लै दूरी ॥
तब तकि राम कठिन सर मारा । धरनि परेउ करि घोर पुकारा ॥
लछिमन कर प्रथमहिं लै नामा । पाछें सुमिरेसि मन महुँ रामा ॥
प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा । सुमिरेसि रामु समेत सनेहा ॥
अंतर प्रेम तासु पहिचाना । मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना ॥
दोहा
बिपुल सुमन सुर बरषहिं गावहिं प्रभु गुन गाथ ।
निज पद दीन्ह असुर कहुँ दीनबंधु रघुनाथ ॥२७ ॥
चौपाला
खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा । सोह चाप कर कटि तूनीरा ॥
आरत गिरा सुनी जब सीता । कह लछिमन सन परम सभीता ॥
जाहु बेगि संकट अति भ्राता । लछिमन बिहसि कहा सुनु माता ॥
भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई । सपनेहुँ संकट परइ कि सोई ॥
मरम बचन जब सीता बोला । हरि प्रेरित लछिमन मन डोला ॥
बन दिसि देव सौंपि सब काहू । चले जहाँ रावन ससि राहू ॥
सून बीच दसकंधर देखा । आवा निकट जती कें बेषा ॥
जाकें डर सुर असुर डेराहीं । निसि न नीद दिन अन्न न खाहीं ॥
सो दससीस स्वान की नाई । इत उत चितइ चला भड़िहाई ॥
इमि कुपंथ पग देत खगेसा । रह न तेज बुधि बल लेसा ॥
नाना बिधि करि कथा सुहाई । राजनीति भय प्रीति देखाई ॥
कह सीता सुनु जती गोसाईं । बोलेहु बचन दुष्ट की नाईं ॥
तब रावन निज रूप देखावा । भई सभय जब नाम सुनावा ॥
कह सीता धरि धीरजु गाढ़ा । आइ गयउ प्रभु रहु खल ठाढ़ा ॥
जिमि हरिबधुहि छुद्र सस चाहा । भएसि कालबस निसिचर नाहा ॥
सुनत बचन दससीस रिसाना । मन महुँ चरन बंदि सुख माना ॥
दोहा
क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ ।
चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि न जाइ ॥२८ ॥
चौपाला
हा जग एक बीर रघुराया । केहिं अपराध बिसारेहु दाया ॥
आरति हरन सरन सुखदायक । हा रघुकुल सरोज दिननायक ॥
हा लछिमन तुम्हार नहिं दोसा । सो फलु पायउँ कीन्हेउँ रोसा ॥
बिबिध बिलाप करति बैदेही । भूरि कृपा प्रभु दूरि सनेही ॥
बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा । पुरोडास चह रासभ खावा ॥
सीता कै बिलाप सुनि भारी । भए चराचर जीव दुखारी ॥
गीधराज सुनि आरत बानी । रघुकुलतिलक नारि पहिचानी ॥
अधम निसाचर लीन्हे जाई । जिमि मलेछ बस कपिला गाई ॥
सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा । करिहउँ जातुधान कर नासा ॥
धावा क्रोधवंत खग कैसें । छूटइ पबि परबत कहुँ जैसे ॥
रे रे दुष्ट ठाढ़ किन होही । निर्भय चलेसि न जानेहि मोही ॥
आवत देखि कृतांत समाना । फिरि दसकंधर कर अनुमाना ॥
की मैनाक कि खगपति होई । मम बल जान सहित पति सोई ॥
जाना जरठ जटायू एहा । मम कर तीरथ छाँड़िहि देहा ॥
सुनत गीध क्रोधातुर धावा । कह सुनु रावन मोर सिखावा ॥
तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू । नाहिं त अस होइहि बहुबाहू ॥
राम रोष पावक अति घोरा । होइहि सकल सलभ कुल तोरा ॥
उतरु न देत दसानन जोधा । तबहिं गीध धावा करि क्रोधा ॥
धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा । सीतहि राखि गीध पुनि फिरा ॥
चौचन्ह मारि बिदारेसि देही । दंड एक भइ मुरुछा तेही ॥
तब सक्रोध निसिचर खिसिआना । काढ़ेसि परम कराल कृपाना ॥
काटेसि पंख परा खग धरनी । सुमिरि राम करि अदभुत करनी ॥
सीतहि जानि चढ़ाइ बहोरी । चला उताइल त्रास न थोरी ॥
करति बिलाप जाति नभ सीता । ब्याध बिबस जनु मृगी सभीता ॥
गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी । कहि हरि नाम दीन्ह पट डारी ॥
एहि बिधि सीतहि सो लै गयऊ । बन असोक महँ राखत भयऊ ॥
दोहा
हारि परा खल बहु बिधि भय अरु प्रीति देखाइ ।
तब असोक पादप तर राखिसि जतन कराइ ॥२९ -क ॥
नवान्हपारायण , छठा विश्राम
जेहि बिधि कपट कुरंग सँग धाइ चले श्रीराम ।
सो छबि सीता राखि उर रटति रहति हरिनाम ॥२९ -ख ॥
चौपाला
रघुपति अनुजहि आवत देखी । बाहिज चिंता कीन्हि बिसेषी ॥
जनकसुता परिहरिहु अकेली । आयहु तात बचन मम पेली ॥
निसिचर निकर फिरहिं बन माहीं । मम मन सीता आश्रम नाहीं ॥
गहि पद कमल अनुज कर जोरी । कहेउ नाथ कछु मोहि न खोरी ॥
अनुज समेत गए प्रभु तहवाँ । गोदावरि तट आश्रम जहवाँ ॥
आश्रम देखि जानकी हीना । भए बिकल जस प्राकृत दीना ॥
हा गुन खानि जानकी सीता । रूप सील ब्रत नेम पुनीता ॥
लछिमन समुझाए बहु भाँती । पूछत चले लता तरु पाँती ॥
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी । तुम्ह देखी सीता मृगनैनी ॥
खंजन सुक कपोत मृग मीना । मधुप निकर कोकिला प्रबीना ॥
कुंद कली दाड़िम दामिनी । कमल सरद ससि अहिभामिनी ॥
बरुन पास मनोज धनु हंसा । गज केहरि निज सुनत प्रसंसा ॥
श्रीफल कनक कदलि हरषाहीं । नेकु न संक सकुच मन माहीं ॥
सुनु जानकी तोहि बिनु आजू । हरषे सकल पाइ जनु राजू ॥
किमि सहि जात अनख तोहि पाहीं । प्रिया बेगि प्रगटसि कस नाहीं ॥
एहि बिधि खौजत बिलपत स्वामी । मनहुँ महा बिरही अति कामी ॥
पूरनकाम राम सुख रासी । मनुज चरित कर अज अबिनासी ॥
आगे परा गीधपति देखा । सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा ॥
दोहा
कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रधुबीर ॥
निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर ॥३० ॥
चौपाला
तब कह गीध बचन धरि धीरा । सुनहु राम भंजन भव भीरा ॥
नाथ दसानन यह गति कीन्ही । तेहि खल जनकसुता हरि लीन्ही ॥
लै दच्छिन दिसि गयउ गोसाई । बिलपति अति कुररी की नाई ॥
दरस लागी प्रभु राखेंउँ प्राना । चलन चहत अब कृपानिधाना ॥
राम कहा तनु राखहु ताता । मुख मुसकाइ कही तेहिं बाता ॥
जा कर नाम मरत मुख आवा । अधमउ मुकुत होई श्रुति गावा ॥
सो मम लोचन गोचर आगें । राखौं देह नाथ केहि खाँगेँ ॥
जल भरि नयन कहहिँ रघुराई । तात कर्म निज ते गतिं पाई ॥
परहित बस जिन्ह के मन माहीँ । तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीँ ॥
तनु तजि तात जाहु मम धामा । देउँ काह तुम्ह पूरनकामा ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०