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अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४०

दोहा

लोभु न रामहि राजु कर बहुत भरत पर प्रीति।
मैं बड़ छोट बिचारि जियँ करत रहेउँ नृपनीति ॥३१॥

चौपाला

राम सपथ सत कहुउँ सुभाऊ । राममातु कछु कहेउ न काऊ ॥
मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछें । तेहि तें परेउ मनोरथु छूछें ॥
रिस परिहरू अब मंगल साजू । कछु दिन गएँ भरत जुबराजू ॥
एकहि बात मोहि दुखु लागा । बर दूसर असमंजस मागा ॥
अजहुँ हृदय जरत तेहि आँचा । रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा ॥
कहु तजि रोषु राम अपराधू । सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू ॥
तुहूँ सराहसि करसि सनेहू । अब सुनि मोहि भयउ संदेहू ॥
जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला । सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला ॥

दोहा

प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु।
जेहिं देखाँ अब नयन भरि भरत राज अभिषेकु ॥३२॥

चौपाला

जिऐ मीन बरू बारि बिहीना । मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना ॥
कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं । जीवनु मोर राम बिनु नाहीं ॥
समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना । जीवनु राम दरस आधीना ॥
सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई । मनहुँ अनल आहुति घृत परई ॥
कहइ करहु किन कोटि उपाया । इहाँ न लागिहि राउरि माया ॥
देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं । मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं।
रामु साधु तुम्ह साधु सयाने । राममातु भलि सब पहिचाने ॥
जस कौसिलाँ मोर भल ताका । तस फलु उन्हहि देउँ करि साका ॥

दोहा होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं।
मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं ॥३३॥

चौपाला

अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी । मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी ॥
पाप पहार प्रगट भइ सोई । भरी क्रोध जल जाइ न जोई ॥
दोउ बर कूल कठिन हठ धारा । भवँर कूबरी बचन प्रचारा ॥
ढाहत भूपरूप तरु मूला । चली बिपति बारिधि अनुकूला ॥
लखी नरेस बात फुरि साँची । तिय मिस मीचु सीस पर नाची ॥
गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी । जनि दिनकर कुल होसि कुठारी ॥
मागु माथ अबहीं देउँ तोही । राम बिरहँ जनि मारसि मोही ॥
राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती । नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती ॥

दोहा

देखी ब्याधि असाध नृपु परेउ धरनि धुनि माथ।
कहत परम आरत बचन राम राम रघुनाथ ॥३४॥

चौपाला

ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता । करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता ॥
कंठु सूख मुख आव न बानी । जनु पाठीनु दीन बिनु पानी ॥
पुनि कह कटु कठोर कैकेई । मनहुँ घाय महुँ माहुर देई ॥
जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ । मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ ॥
दुइ कि होइ एक समय भुआला । हँसब ठठाइ फुलाउब गाला ॥
दानि कहाउब अरु कृपनाई । होइ कि खेम कुसल रौताई ॥
छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू । जनि अबला जिमि करुना करहू ॥
तनु तिय तनय धामु धनु धरनी । सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी ॥

दोहा

मरम बचन सुनि राउ कह कहु कछु दोषु न तोर।
लागेउ तोहि पिसाच जिमि कालु कहावत मोर ॥३५॥ û

चौपाला

चहत न भरत भूपतहि भोरें । बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें ॥
सो सबु मोर पाप परिनामू । भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू ॥
सुबस बसिहि फिरि अवध सुहाई । सब गुन धाम राम प्रभुताई ॥
करिहहिं भाइ सकल सेवकाई । होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई ॥
तोर कलंकु मोर पछिताऊ । मुएहुँ न मिटहि न जाइहि काऊ ॥
अब तोहि नीक लाग करु सोई । लोचन ओट बैठु मुहु गोई ॥
जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी । तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी ॥
फिरि पछितैहसि अंत अभागी । मारसि गाइ नहारु लागी ॥

दोहा

परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु।
कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु ॥३६॥

चौपाला

राम राम रट बिकल भुआलू । जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू ॥
हृदयँ मनाव भोरु जनि होई । रामहि जाइ कहै जनि कोई ॥
उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर । अवध बिलोकि सूल होइहि उर ॥
भूप प्रीति कैकइ कठिनाई । उभय अवधि बिधि रची बनाई ॥
बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा । बीना बेनु संख धुनि द्वारा ॥
पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक । सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक ॥
मंगल सकल सोहाहिं न कैसें । सहगामिनिहि बिभूषन जैसें ॥
तेहिं निसि नीद परी नहि काहू । राम दरस लालसा उछाहू ॥

दोहा

द्वार भीर सेवक सचिव कहहिं उदित रबि देखि।
जागेउ अजहुँ न अवधपति कारनु कवनु बिसेषि ॥३७॥

चौपाला

पछिले पहर भूपु नित जागा । आजु हमहि बड़ अचरजु लागा ॥
जाहु सुमंत्र जगावहु जाई । कीजिअ काजु रजायसु पाई ॥
गए सुमंत्रु तब राउर माही । देखि भयावन जात डेराहीं ॥
धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा । मानहुँ बिपति बिषाद बसेरा ॥
पूछें कोउ न ऊतरु देई । गए जेंहिं भवन भूप कैकैई ॥
कहि जयजीव बैठ सिरु नाई । दैखि भूप गति गयउ सुखाई ॥
सोच बिकल बिबरन महि परेऊ । मानहुँ कमल मूलु परिहरेऊ ॥
सचिउ सभीत सकइ नहिं पूँछी । बोली असुभ भरी सुभ छूछी ॥

दोहा

परी न राजहि नीद निसि हेतु जान जगदीसु।
रामु रामु रटि भोरु किय कहइ न मरमु महीसु ॥३८॥

चौपाला

आनहु रामहि बेगि बोलाई । समाचार तब पूँछेहु आई ॥
चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी । लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी ॥
सोच बिकल मग परइ न पाऊ । रामहि बोलि कहिहि का राऊ ॥
उर धरि धीरजु गयउ दुआरें । पूछँहिं सकल देखि मनु मारें ॥
समाधानु करि सो सबही का । गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका ॥
रामु सुमंत्रहि आवत देखा । आदरु कीन्ह पिता सम लेखा ॥
निरखि बदनु कहि भूप रजाई । रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई ॥
रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं । देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं ॥

दोहा

जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु ॥
सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु ॥३९॥

चौपाला

सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू । मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू ॥
सरुष समीप दीखि कैकेई । मानहुँ मीचु घरी गनि लेई ॥
करुनामय मृदु राम सुभाऊ । प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ ॥
तदपि धीर धरि समउ बिचारी । पूँछी मधुर बचन महतारी ॥
मोहि कहु मातु तात दुख कारन । करिअ जतन जेहिं होइ निवारन ॥
सुनहु राम सबु कारन एहू । राजहि तुम पर बहुत सनेहू ॥
देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना । मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना।
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू । छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू ॥

दोहा

सुत सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु।
सकहु न आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु ॥४०॥

चौपाला

निधरक बैठि कहइ कटु बानी । सुनत कठिनता अति अकुलानी ॥
जीभ कमान बचन सर नाना । मनहुँ महिप मृदु लच्छ समाना ॥
जनु कठोरपनु धरें सरीरू । सिखइ धनुषबिद्या बर बीरू ॥
सब प्रसंगु रघुपतिहि सुनाई । बैठि मनहुँ तनु धरि निठुराई ॥
मन मुसकाइ भानुकुल भानु । रामु सहज आनंद निधानू ॥
बोले बचन बिगत सब दूषन । मृदु मंजुल जनु बाग बिभूषन ॥
सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी । जो पितु मातु बचन अनुरागी ॥
तनय मातु पितु तोषनिहारा । दुर्लभ जननि सकल संसारा ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०