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२०

(पद : ललत, त्रिताल)
सखे शशिवदने । किती रुचिर, बिंबसम अधर परम सुकुमार ॥धृ०॥
अमरसुधा तव पिउनि कसें गे ॥
अयशोविष मी सेविन सांगे । विधुकर शुचि वदने ॥१॥