कविता १६
ख्वाब जो कभी पूरे हो जाते तो फिर ख़्वाब वो कैसे कहलाते,
जीने दो कुछ पल शब् को इन बंद निगोहों से
हकीकत में जो हम सब पा पाते तो फिर मेरे ये ख़्वाब, ख़्वाब न कहलाते |
जीने दो कुछ पल शब् को इन बंद निगोहों से
हकीकत में जो हम सब पा पाते तो फिर मेरे ये ख़्वाब, ख़्वाब न कहलाते |