कविता ६
इश्क के परिंदों की उड़ान देखता हूँ,
उनके पंखों का मै फैलाव देखता हूँ,
कैसे रोकती हैं उसे मादक कुछ वृछों की शाखाएं,
छोड़ कर आगोश में स्वप्नों की प्रियतम को,
मै नयी नीड़ों को खोजते उन परिंदों की पिपास देखता हूँ !!
उनके पंखों का मै फैलाव देखता हूँ,
कैसे रोकती हैं उसे मादक कुछ वृछों की शाखाएं,
छोड़ कर आगोश में स्वप्नों की प्रियतम को,
मै नयी नीड़ों को खोजते उन परिंदों की पिपास देखता हूँ !!