कविता १४
शब् भी कुछ यूँ बेवफाई करती है मुझसे 'साहिल',
वो नज़दीक होती है तो पल भर में गुज़र जाती है !
वो नज़दीक होती है तो पल भर में गुज़र जाती है !
कैसी कशिश है तुम्हारी इन आँखों में हम पिए बिना ही लड़खड़ा चले,
रोकना है तो कोई उनकी मुस्कुराहट को रोको,
हम कैसे रोकें उन्हें जो उनकी इसी अदा पे हमारी साँस चले ||