कविता ८
पेड़ों की शाखों से झरते रहे वो मासूम पत्ते,
बिछड़ते रहे, रोते रहे, बिखर गए राहों पे,
फिर कोई अपना घरोंदा न मिल सका उनको,
नहीं गए मगर फिर भी छोड़ के अपने तरुवर की ओट,
पड़े रहे, निहारते रहे नए पत्तों से झूलती डालियों को,
खुश थे उसकी खुशी से, और खुशी मन में समेटे चले गए,
मुस्कुराते वो मासूम पत्ते ||
बिछड़ते रहे, रोते रहे, बिखर गए राहों पे,
फिर कोई अपना घरोंदा न मिल सका उनको,
नहीं गए मगर फिर भी छोड़ के अपने तरुवर की ओट,
पड़े रहे, निहारते रहे नए पत्तों से झूलती डालियों को,
खुश थे उसकी खुशी से, और खुशी मन में समेटे चले गए,
मुस्कुराते वो मासूम पत्ते ||