कविता ११
कुछ इस तरह से रोती मिली मुझे जिंदगी,
अपने आंसुओं से खेलती मिली मुझे जिंदगी,
उस तक पहुचती हर डगर पे थे अनगिनत शूल बिखरे,
हर शूल से रक्त रंजित,
अपने घावों में दुःख को समेटती मिली थी मुझे जिंदगी |
अपने आंसुओं से खेलती मिली मुझे जिंदगी,
उस तक पहुचती हर डगर पे थे अनगिनत शूल बिखरे,
हर शूल से रक्त रंजित,
अपने घावों में दुःख को समेटती मिली थी मुझे जिंदगी |