कविता १५
मोहब्बत ये मुख्तसिर रह न जाये,
तू मुझसे मिलके कहीं खो न जाये,
खोल दे बाहें सनम के खो जाऊँ तुझमे,
मौत भी आए कभी तो मुझे छू न पाए |
तू मुझसे मिलके कहीं खो न जाये,
खोल दे बाहें सनम के खो जाऊँ तुझमे,
मौत भी आए कभी तो मुझे छू न पाए |