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2006 नॉएडा सीरियल मर्डर्स

नॉएडा सीरियल मर्डर्स (निठारी सीरियल मर्डर्स या निठारी काण्ड नामों से भी जाना जाने वाले) २००५ और २००६ में निठारी में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंधेर के घर में घटित हुए थे | वर्तमान में उनके नौकर सुरिंदर कोली को पांच कत्लों के लिए दोषी मान मौत की सजा सुनायी गयी थी, लेकिन अपील करने पर ये सजा उम्र कैद में बदल दी गयी | ११ क़त्ल अभी भी अनसुलझे हैं जब तक आगे की न्यायिक जांच पूरी नहीं होती | सुरिंदर कोली की मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने ७ सितम्बर २०१४ को उम्र कैद में बदल दिया |

दिसम्बर २००६ में निठारी के दो निवासियों ने ये दावा किया की उन्हें पिछले दो साल में गुमशुदा हुआ बच्चों का पता मालूम है :  हाउस डी 5 के पीछे वाली पानी की टंकी | दोनों की बेटियां थीं जो गायब हो गयी थी और उन्हें डी 5 में रह रहे कोली पर शक था | पुलिस उनकी बात को अनसुना कर रही थी और इसी लिए उन्होनें रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख एस .सी .मिश्रा से मदद माँगी | उस सुबह मिश्रा और दोनों निवासियों द्वारा टंकी की सफाई करने पर उन्हें एक सड़ा हुआ हाथ मिला जिसके बाद उन्होनें पुलिस को खबर कर दी |

खोये हुए बच्चों के चिंतित माँ बाप अपने बच्चों की तसवीरें ले निठारी पहुंचे | कोली ने बाद में सतीश के उपनाम से 6 बच्चों और एक २० साल की पायल नाम की औरत का योन शोषण कर हत्या कर देने की बात को कबूल लिया |

सितम्बर २००५ में एक एनडीटीवी के पत्रकार ओंकार सिंह जनोती ने इस मुद्दे पर रिपोर्ट करना शुरू किया | उन्होंने गुमशुदा बच्चों पर कहानियों की एक श्रृंखला बनाई | इसमें उन्होनें कई परिवारों से पूछताछ की | गुमशुदा बच्चों के परिवार वालों ने पुलिस पर लापरवाही का इलज़ाम लगाया | शुरू में कई पुलिस अधिकारीयों ने जिसमें नॉएडा शहर के एसपी शामिल हैं ने इसमें कोई आपराधिक हाथ होने से इनकार किया | उन्होनें माँ बाप पर बच्चों की गलत उम्र बताने का इलज़ाम लगाया | पुलिस ने कहा की गुमशुदगी के केस बच्चों से सम्बंधित नहीं थे | वह सब किशोर थे जो माँ बाप से लड़ कर घर छोड़ कर चले गए थे | निवासियों ने कहा की पुलिस भ्रष्ट है और अमीर लोगों से मिली हुई है | एक स्वतंत्र जांच की मांग की गयी | एक निवासी ने बताया की पुलिस शव ढूँढने का श्रेय ले रही है जबकि निवासियों ने शवों को खोद कर निकाला था | पुलिस ने 15 शव मिलने की बात से इनकार किया | उन्होनें इस बात पर जोर दिया की उन्हें खोपड़ी, हड्डियाँ और अन्य शरीर के अंग मिले थे लेकिन वो पीड़ितों की सही संख्या बताने में असमर्थ है | पीड़ितों की पहचान और संख्या सिर्फ डीएनए टेस्ट से संभव थी | पुलिस ने घर बंद कर  दिया और मीडिया को आस पास न आने के निर्देश दे दिए |

केंद्र सरकार ने उन कंकालों के मिलने के पीछे के सच और उसके अंतर राज्य असर के बारे में जानने की कोशिश की | कानून और व्यवस्था एक राज्य का मामला है लेकिन गुनाह की हद देख  गृह मंत्रालय ने भी पूछताछ शुरू की |

बाद में सामने आया की कोली के मालिक मोनिंदर सिंह पंधेर को पुलिस ने २६ दिसम्बर को और कोली को २७ दिसम्बर को पायल की गुमशुदगी के सिलसिले में पकड़ा था | कोली के गुनाह कबूलने के बाद  पुलिस ने आसपास के इलाके को खोज कर बच्चों के शरीर खोद कर निकालने का दावा किया |

३१ दिसम्बर को जब गुस्साई जनता ने आरोपी के घर का घेराव किया तो २ पुलिस वालों को इन सीरियल कत्लों के सिलसिले में निलंबित कर दिया गया | पुलिस वालों को स्थानीय लोगों द्वारा  बार बार बच्चों के गुमशुदी के बारे में बताने पर भी कोई कारवाई नहीं करने की वजह से निलंबित किया गया |

निठारी की हालत और ख़राब हो गई जब गाँव वालों की एक टोली आरोपी के घर के सामने पुलिस से भिड गयी और उन पर पत्थर फैकने लगी | पुलिस ने माया नाम की एक कामवाली जिसपर उन्हें शक था की वो व्यवसायी को लड़कियां पहुंचाती थी से भी इस सिलसिले में पूछताछ की | जैसे जैसे और शरीर के अंग मिलने लगे कई स्थानीय लोगों ने ये दावा किया की बच्चों की निर्मम हत्याओं के पीछे अंग व्यापर को उद्देश्य है | पंधेर के घर के नज़दीक रह रहे चिकित्सक नविन चौधरी  कुछ सालों पहले गुर्दा व्यापार में शामिल होने के लिए शक के घेरे में रहे थे | उनके घर की भी तलाशी की गयी लेकिन जांचकर्ता कोई पुख्ता सबूत नहीं ढूँढ पाए |

१ जनवरी २००७  को रिमांड मजिस्ट्रेट ने दोनों की पुलिस हिरासत १० जनवरी २००७ तक बड़ा दी क्यूंकि जांचकर्ताओं ने कहा की पीड़ितों के शवों की शिनाख्त के लिए और जांच की ज़रुरत है | कोर्ट ने नार्को एनालिसिस की भी इजाज़त दे दी | पंधेर के बीवी और बेटे से पूछताछ की गयी और उसकी आदतों के बारे में सवाल पूछे गए  | पुलिस के सूत्रों ने बताया की उनके सम्बन्ध अच्छे नहीं थे लेकिन बाद में इस बात को गलत पाया गया | उसका व्यव्हार सामान्य था | एक वरिष्ट पुलिस इंस्पेक्टर ने बताया की पंधेर के लुधिअना के फार्महाउस और आस पास के इलाकों में भी तलाशी ली जायेगी | पंधेर के निवास स्थान चंडीगढ़ के बच्चों के अपहरण से जुड़े केसों को खुलवाया गया पर कुछ ख़ास जानकारी हासिल नहीं हुई |

अगले दिन मिली हुई १७ कंकालों में से १५ की पहचान कर ली गयी | दस की पहचान कोली ने खुद की जब उसे गुमशुदा बच्चों की तसवीरें दिखाई गयीं | पांच और को उनके परिवार जनों ने वहां से मिले सामन को देख पहचान लिया | इन शवों के धड गायब थे और जांच करने वाली समिति ने अंग वयापार को भी एक उद्देश्य मान तहकीकात शुरू की | पुलिस ने बताया की कम से कम ३१ बच्चे थे |

पंधेर के निवास के पास दो दिन हुई हिंसा के बाद पुलिस ने और हिंसा के डर से सुरक्षा बड़ा दी | एक प्रेस विज्ञप्ती में भारत के चीफ जस्टिस वाय के सभरवाल ने कहा की जांच शुरुआती दौर में थी और न तो कोर्ट और न ही सी बी आई इसमें शामिल  थे |

केंद्र सरकार ने एक एक उच्च  जांच समिति बनाई जो पुलिस की जांच के दौरान हुई गलतियों का मुआयना करेगी | उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा की वह समिति की रपोर्ट का इंतज़ार करेंगे और फिर फैसला करेंगे की क्या इस केस में सी बी आई जांच होनी चाहिए | समिती की प्रमुख थी संयुक्त सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, मंजुला कृष्णन | संदर्भ की शर्तों के तहत,

  • ये समिति लापता हुए बच्चों का पता लगाने में नोएडा पुलिस द्वारा किए गए प्रयासों का जायजा लेगी ।
  • यह लापता बच्चों का पता लगाने और उनके परिवारों के साथ उन्हें एकजुट करने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गयी सहयोग और सहायता के स्तर का विश्लेषण करेगी ।
  • वह कातिलों के मारने के तरीके और उद्देश्य का आंकलन करेगी |

समिती ने पीड़ितों के माँ बाप से उनका बयान लेने के लिए मुलाक़ात की , इसी बीच पुलिस ने बताया की १७ मरने वालों में से १० लड़कियां थीं | उनमें से योन शोषण से पीड़ित 8 बच्चों के माँ बाप को 12 लाख का मुआवजा दिया गया | अवशेषों से मिले डीएनए सैंपल को हैदराबाद की फॉरेंसिक लैब में पहचान के लिए भेजा गया और कुछ फॉरेंसिक सैंपल को आगरा में एक लेबोरेटरी में उम्र , मौत का कारण और अन्य जानकारी पाने के लिए भेजा गया | ये पता चला की सिर्फ पायल किशोर थी और बाकी ११ पीड़ित १० साल से कम उम्र के थे | आठ में से सात परिवार जिन्हें ३ जनवरी २००७ को २ लाख का मुआवजा दिया गया ने विरोध में चेक वापस कर दी | लेकिन ये चेक उन्हें वापस लौटा दिए गए | उन्होनें मुआवज़े में घर और नौकरी की मांग भी की थी |

काफी  दबाव और सार्वजनिक गुस्से से जूझने  के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस के दो अधीक्षकों को निलंबित कर दिया और कर्तव्य में लापरवाही बरतने के लिए छह पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया । इसके पीछे से वो समिती की रिपोर्ट भी सामने आ गयी | १७ जनवरी २००७ को जांच समिति ने लापता व्यक्तियों के मामलों से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को गंभीर रूप से  लापरवाह मान कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । समिती ने कहा की स्थानीय प्रशासन लापरवाह और गैर ज़िम्मेदार थी और उन्होंने अंग व्यापर के उद्देश्य को भी इन हत्याओं का एक संभावित कारण माना |

दोनों आरोपी पुलिस हिरासत में थे जब पंधेर के घर के आसपास से अवशेष और कंकाल निकाले जा रहे थे | ७ अक्टूबर २००६ को ऍफ़ आई आर फाइल की गयी | जांच से पता चला की पायल का मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल में हैं जबकि उसका सिम कार्ड निष्क्रिय था | डिजिटल निगरानी के माध्यम से, जांचकर्ता काफी लोगों तक पहुंचे और अंत में उस आदमी तक भी जिसने फ़ोन बेचा था | उस रिक्शा चलाने वाले ने माना की फ़ोन पंधेर निवास से किसी का है | गवाह के बयान के बाद मोनिंदर सिंह को पूछताछ के लिए बुलाया गया जिससे कुछ सामने नहीं आया | उसके नौकर सुरिंदर कोली को अगले दिन पकड़ा गया और उसने औरत को मार उसके शरीर को घर के पीछे दफ़नाने की बात को माना | पुलिस ने खुदाई शुरू की और पायल के बजे बाकी बच्चों के कंकाल हाथ लगे |

पायल उर्फ़ दीपिका के पिता नन्दलाल ने इलज़ाम लगाया की पुलिस उसे डरा धमका रही है | उसने कहा की कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने ऍफ़ आई आर फाइल की थी |

अंग व्यापार और नरभक्षण का शक

शुरुआत में पुलिस ने अंग व्यापार को एक  सम्भावना मान पास में रहने वाले एक डॉक्टर को शक के घेरे में लिया और उससे पूछताछ की | फोरेंसिक विशेषज्ञों की एक टीम , अधिकारियों की एक टीम के साथ परीक्षण और संभव सबूत लाने के  लिए चले गए । पुलिस ने माना की उस  डॉक्टर पर १९९८ में ऐसा इलज़ाम लगा था लेकिन उसी साल उसको बरी कर दिया गया था | कुछ दिनों बाद एक बार फिर तलाशी ली गयी | पुलिस लेकिन पॉलीग्राफ टेस्ट से पहले ही उन ख़बरों से चौकन्नी हो गयी  की अभियुक्त नरभक्षक थे | वे तब भौचक्के रह गए जब एक आरोपी ने कुछ पीड़ितों के लिवर और अन्य अंग खाने की बात स्वीकारी | ऐसी सम्भावना जांच समिति ये जान कर की कितने वहशीपन से बच्चों को मारा गया था ख़ारिज नहीं की थी |

ब्रेन मैपिंग और नार्को विश्लेषण

दोनों अभियुक्तों को टेस्ट के लिए फोरेंसिक विज्ञान निदेशालय, गांधीनगर लाया गया | ४ जनवरी को ब्रेन मैपिंग टेस्ट और उसके पांच दिन बाद नार्को एनालिसिस किया गया | पुलिस निदेशक ने बताया की दोनों अभियुक्तों ने टेस्ट के दौरान अपना पूरा सहयोग दिया था | संस्थान के एक वरिष्ठ निदेशक ने व्यापक परीक्षण के समापन की घोषणा की और निश्कर्ष के बारे में बताया | सुरेंदर कोली ने अपने गुनाह कबूल लिए थे और अपने मालिक को इन सब से बेदखल कर दिया था | उसने बताया की सब क़त्ल गला घोट के किये गए थे | उसके बाद वो उनका बलात्कार करता और फिर अपने शौचालय में उन्हें ले जाके काट देता था | पंधेर को भी परेशान और औरतों में अत्यधिक रूचि लेने वाला माना गया |

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