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चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2

जब दोनों ऐयार उस कमरे में अकेले रह गये तब थोड़ी देर तक अपनी अवस्था और भूल पर गौर करने के बाद आपस में यों बातें करने लगे –

देवी - यद्यपि तुम मुझसे और मैं तुमसे छिपकर यहां आये मगर यहां आने पर वह छिपना बिल्कुल व्यर्थ गया। तुम्हारे गिरफ्तार हो जाने का तो ज्यादे रंज न होना चाहिए क्योंकि तुम्हें अपनी जान की फिक्र पड़ी थी, अतएव अपनी भलाई के लिए तुम यहां आये थे और जो कोई किसी तरह का फायदा उठाना चाहता है उसे कुछ-न-कुछ तकलीफ भी जरूर ही भोगनी पड़ती है, मगर मैं तो दिल्लगी ही दिल्लगी में बेवकूफ बन गया। न तो मुझे इन लोगों से कोई मतलब ही था और न यहां आए बिना मेरा कुछ हर्ज ही होता था।

भूत - (मुस्कुराकर) मगर आने पर आपका भी एक काम निकल आया, क्योंकि यहां अपनी स्त्री को देखकर अब किसी तरह भी जांच किए बिना आप नहीं रह सकते।

देवी - ठीक है! मगर भूतनाथ तुम बड़े ही निडर और हौसले के ऐयार हो जो ऐसी अवस्था में भी हंसने और मुस्कुराने से बाज नहीं आते!

भूत - तो क्या आप ऐसा नहीं कर सकते?

देवी - अगर बनावट के तौर पर हंसने या मुस्कुराने की जरूरत न पड़े तो मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं इस बात को खूब समझता हूं कि तुम्हारे जीवट और हौसले की इतनी तरक्की क्योंकर हुई मगर वास्तव में तुम निराले ढंग के आदमी हो, सच तो यह है कि तुम्हारी ठीक-ठीक अवस्था जानना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है।

भूत - आपका कहना बहुत ठीक है, मगर तभी तक मेरे जीवट और मर्दानगी का अन्दाजा मिलना कठिन है जब तक कि मैं अपने को मुर्दा समझे हुए हूं, जिस दिन मैं अपने को जिन्दा समझूंगा उस दिन यह बात न रहेगी।

देवी - तो क्या तुम अभी तक भी अपने को मुर्दा ही समझे हुए हो?

भूत - बेशक, क्योंकि अब मैं बेइज्जती और बदनामी के साथ जीने को मरने के बराबर समझता हूं। जिस दिन मैं राजा वीरेन्द्रसिंह का विश्वासपात्र बनने योग्य हो जाऊंगा उस दिन समझूंगा कि जी गया। मैं आपसे इस किस्म की बातें कदापि न करता अगर आपको अपना मेहरबान और मददगार न समझता। आपको जैपाल या नकली बलभद्रसिंह की पहिली मुलाकात का दिन याद होगा जब आपने मुझ पर मेहरबानी रखने और मुझे अपनाने का शपथपूर्वक इकरार किया था।

देवी - बेशक मुझे याद है, जब तुम घबराये हुए और बेबसी की अवस्था में थे तब मैंने तुमसे कहा था कि 'यदि मुझे यह मालूम हो जायगा कि तुम मेरे पिता के घातक हो जिन पर मेरा बड़ा स्नेह था तब भी मैं तुम्हें इसी तरह मुहब्बत की निगाह से देखूंगा जैसे कि अब मैं देख रहा हूं।' कहो है न यही बात?

भूत - बेशक यही शब्द आपने कहे थे।

देवी - और अब भी मैं उसी बात का इकरार करता हूं।

भूत - (प्रसन्नता से) आपकी सचाई पर भी मुझे उतना ही विश्वास है जितना एक और एक दो होने पर!

देवी - यह बात तो तुम सच नहीं कहते!

भूत - (चौंककर) सो कैसे?

देवी - इसी से कि तुमने भेद की कोई बात आज तक मुझसे नहीं कही, यहां तक कि इस जगह आने की इच्छा भी मुझ पर प्रकट न की।

भूत - (शरमिन्दगी से सिर नीचा करके) बेशक यह मेरा कसूर है जिसके लिए (हाथ जोड़कर) मैं आपसे माफी मांगता हूं, क्योंकि मैं इस बात को अच्छी तरह देख चुका हूं कि आपने अपनी बात का निर्वाह पूरा-पूरा किया।

देवी - खैर अब भी अगर तुम मुझे अपना विश्वासपात्र समझोगे तो मेरे दिल का रंज निकल जायगा, असल तो यों है कि इस मौके पर तुमसे मिलने के लिए ही मैंने यहां आने का इरादा

भी किया क्योंकि मुझे विश्वास था कि तुम यहां जरूर आओगे। खैर अब तुम अपने कौल और इकरार को याद रक्खो और इस समय इन बातों को इसी जगह छोड़कर इस बात पर विचार करो कि अब हम लोगों को क्या करना चाहिए। मैं समझता हूं कि तुम्हारे पास तिलिस्मी खंजर मौजूद है।

भूत - जी हां, (खंजर की तरफ इशारा करके) यह तैयार है।

देवी - (अपने खंजर की तरफ बताके) मेरे पास भी है।

भूत - आपको कहां से मिला?

देवी - तेजसिंह ने दिया था। यह वही खंजर है जो मनोरमा के पास था, कम्बख्त ने इसके जोड़ की अंगूठी अपनी जंघा के अन्दर छिपा रखी थी जिसका पता बड़ी मुश्किल से लगा और तब से इस ढंग को मैंने भी पसन्द किया।

भूत - अच्छा तो अब आपकी क्या राय होती है यहां से निकल भागने की कोशिश की जाय या यहां रहकर कुछ भेद जानने की?

देवी - इन दोनों खंजरों की बदौलत शायद हम यहां से निकल जा सकें मगर ऐसा करना न चाहिए। अब जब गिरफ्तार होने की शरमिन्दगी उठा ही चुके तो बिना कुछ किये चले जाना उचित नहीं है, जिस पर यहां आकर मैंने अपनी स्त्री को और तुमने अपनी स्त्री को देख लिया, अब क्या बिना उन दोनों का असल भेद मालूम किये यहां से चलने की इच्छा हो सकती है!

भूत - बेशक ऐसा ही है...।

इतना कहते-कहते भूतनाथ यकायक रुक गया क्योंकि उसके कान में किसी के जोर से हंसने की आवाज आई और यह आवाज कुछ पहिचानी हुई-सी जान पड़ी। देवीसिंह ने भी इस आवाज पर गौर किया और उन्हें भी इस बात का शक हुआ कि इस आवाज को मैं कई दफे सुन चुका हूं। मगर इस बात का कोई निश्चय वे दोनों नहीं कर सके कि यह आवाज किसकी है।

देवीसिंह और भूतनाथ दोनों ही आदमी इस बात को गौर से देखने और जांचने लगे कि यह आवाज किधर से आई या हम उसे किसी तरह देख भी सकते हैं या नहीं जिसकी यह आवाज है। यकायक उन दोनों ने दीवार में ऊपर की तरफ दो सूराख देखे जिनमें आदमी का सिर बखूबी जा सकता था। ये सूराख छत से हाथ भर नीचे हटकर बने हुए थे और हवा आने-जाने के लिए बनाए गए थे। दोनों को खयाल हुआ कि इसी सूराख में से आवाज आती है और उसी समय पुनः हंसने की आवाज आने से इस बात का निश्चय हो गया।

फौरन ही दोनों के मन में यह बात पैदा हुई कि किसी तरह उस सूराख तक पहुंचकर देखना चाहिए कि कुछ दिखाई देता है या नहीं मगर इस ढंग से कि उस दूसरी तरफ वालों को हमारी इस ढिठाई का पता न लगे।

हम लिख चुके हैं कि इस कमरे में दो चारपाइयां बिछी हुई थीं। देवीसिंह ने उन्हीं दोनों चारपाइयों को उस सूराख तक पहुंचने का जरिया बनाया अर्थात् बिछावन हटा देने के बाद एक चारपाई दीवार के सहारे खड़ी करके दूसरी चारपाई उसके ऊपर खड़ी की और कमन्द से दोनों के पावे अच्छी तरह मजबूती के साथ बांधकर एक प्रकार की सीढ़ी तैयार की। इसके बाद देवीसिंह ने भूतनाथ के कन्धे पर चढ़कर कन्दील की रोशनी बुझा दी और तब उस चारपाई की अनूठी सीढ़ी पर चढ़ने का विचार किया। उस समय मालूम हुआ कि उस सूराख में से थोड़ी-थोड़ी रोशनी भी आ रही है। भूतनाथ ने नीचे खड़े रहकर चारपाई को मजबूती के साथ थामा और बिछावन के सहारे अंगूठा अड़ाते हुए देवीसिंह ऊपर चढ़ गये। वे सूराख टेढ़े अर्थात् दूसरी तरफ को झुकते हुए थे। एक सूराख में गर्दन डालकर देवीसिंह ने देखना शुरू किया। उधर नीचे की मंजिल में एक बहुत बड़ा कमरा था जिसकी ऊंची छत इस कमरे की छत के बराबर पहुंची हुई थी जिसमें देवीसिंह और भूतनाथ थे। उस कमरे में सजावट की कोई चीज न थी सिर्फ जमीन पर साफ सफेद फर्श बिछा हुआ और दो शमादान जल रहे थे। वहां पर देवीसिंह ने दो नकाबपोशों को ऊंची गद्दी के नीचे बैठे हुए पाया और एक तरफ जिधर कोई मर्द न था अपनी और भूतनाथ की स्त्री को भी देखा। ये लोग आपस में धीरे-धीरे बातें कर रहे थे। इनकी बातें साफ समझ में नहीं आती थीं, जो कुछ टूटी-फूटी बातें सुनने में आईं उनका मतलब यही था कि सुरंग का दरवाजा बन्द करने में भूल हो जाने के सबब से भूतनाथ और देवीसिंह वहां आ गये अस्तु अब ऐसी भूल न होनी चाहिए जिससे यहां तक कोई आ सके इत्यादि। इसी बीच में एक और भी नकाबपोश वहां आ पहुंचा जो इस समय अपने नकाब को उलटकर सिर के ऊपर फेंके हुए था। इस आदमी की सूरत देखते ही देवीसिंह ने पहिचान लिया कि भूतनाथ का लड़का और कमला का सगा बड़ा भाई हरनामसिंह है। देवीसिंह ने अपनी जिन्दगी में हरनामसिंह को शायद एक या दो दफे किसी मौके पर देखा होगा इसलिए उसको पहिचान तो लिया मगर ताज्जुब के साथ ही साथ शक बना रहा, अस्तु इस शक को मिटाने के लिए देवीसिंह नीचे उतर आये और चारपाई को खुद पकड़कर भूतनाथ को ऊपर चढ़ने और उस सूराख के अन्दर झांकने के लिए कहा।

जब भूतनाथ चारपाई की बिनाव के सहारे ऊपर चढ़ गया और उस सूराख में झांककर देखा तो अपने लड़के हरनामसिंह को पहिचानकर उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह बड़े गौर से देखने तथा उन लोगों की बातें सुनने लगा।

पाठक, ताज्जुब नहीं कि आप इस हरनामसिंह को एकदम ही भूल गये हों क्योंकि जहां तक हमें याद है इसका नाम शायद चन्द्रकान्ता सन्तति के दूसरे भाग के पांचवें बयान में आकर रह गया और फिर कहीं इसका जिक्र तक नहीं आया। यह वह हरनामसिंह नहीं है जो मायारानी का ऐयार था बल्कि यह कमला का बड़ा भाई तथा खास भूतनाथ का पहिला और असल लड़का हरनामसिंह है। इसे बहुत दिनों के बाद आज यहां देखकर आप निःसन्देह आश्चर्य करेंगे परन्तु खैर अब हम यह लिखते हैं कि भूतनाथ ने सूराख के अन्दर झांककर क्या देखा।

भूतनाथ ने देखा कि उसका लड़का हरनामसिंह गद्दी के ऊपर बैठे हुए दोनों नकाबपोशों के सामने खड़ा है और सदर दरवाजे की तरफ बड़े गौर से देख रहा है। उसी समय एक आदमी लपेटे हुए मोटे कपड़े का बहुत बड़ा लम्बा पुलिन्दा लिए हुए आ पहुंचा और इस पुलिन्दे को गद्दी पर रखके खड़ा हो हाथ जोड़कर भर्राई हुई आवाज में बोला, “कृपानाथ, बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूंगा।”

गद्दी के नीचे बैठे हुए दो आदमियों ने इशारा पाकर लपेटे हुए कपड़े को खोला और तब भूतनाथ ने भी देखा कि वह एक बहुत बड़ी और आदमी के कद के बराबर तस्वीर है।

उस तस्वीर पर निगाह पड़ते ही भूतनाथ की अवस्था बिगड़ गई और वह डर के मारे थर-थर कांपने लगा। बहुत कोशिश करने पर भी वह अपने को सम्हाल न सका और उसके मुंह से एक चीख की आवाज निकल ही गई अर्थात् वह चिल्ला उठा। उसी समय यह भी देखा कि उसकी आवाज उन लोगों के कानों में पहुंच गई और इस सबब से वे लोग ताज्जुब के साथ ऊपर की तरफ देखने लगे।

भूतनाथ जल्दी के साथ चारपाई के नीचे उतर आया और कांपती हुई आवाज में देवीसिंह से बोला, “ओफ, मैं अपने को सम्हाल न सका और मेरे मुंह से चीख की आवाज निकल ही गई जिसे उन लोगों ने सुन लिया। ताज्जुब नहीं कि उन लोगों में से कोई यहां आये, अस्तु आप जो उचित समझिये कीजिये, कुछ देर बाद मैं अपना हाल आपसे कहूंगा।” इतना कह भूतनाथ जमीन पर बैठ गया।

देवीसिंह ने झटपट अपने बटुए में से सामान निकालकर मोमबत्ती जलाई, दो-तीन डपट की बातें कह भूतनाथ को चैतन्य किया और उसके मोढ़े पर चढ़कर कन्दील जलाने के बाद मोमबत्ती बुझाकर बटुए में रख ली और इसके बाद दोनों चारपाई उसी तरह दुरुस्त कर दीं जिस तरह पहिले थीं, इसके बाद एक चारपाई पर भूतनाथ को सुलाकर पेट दर्द का बहाना करने और हाय-हाय करके कराहने के लिए कहकर आप उसी समय चारपाई के सहारे बैठे गये, उसी वक्त कमरे का दरवाजा खुला और तीन-चार नकाबपोश अन्दर आते हुए दिखाई पड़े।

उन आदमियों ने पहिले तो गौर से कमरे के अन्दर की अवस्था देखी और तब उनमें से एक ने आगे बढ़कर देवीसिंह से पूछा, “क्या अभी तक आप लोग जाग रहे हैं?'

देवी - हां (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनके पेट में यकायक दर्द पैदा हो गया और बड़ी तकलीफ है, अक्सर दर्द की तकलीफ से चिल्ला उठते हैं।

नकाब - (भूतनाथ की तरफ देखके) आज यहां कुछ खाने में भी तो नहीं आया।

देवी - पहिले ही कुछ कसर होगी।

नकाब - फिर कुछ दवा वगैरह का बन्दोबस्त किया जाय?

देवी - मैंने दो दफे दवा खिलाई है, अब तो कुछ आराम हो रहा है पहिले बड़ी तेजी पर था।

इतना सुनकर वे लोग चले गये और जाती समय पहिले की तरह दरवाजा पुनः बन्द करते गये।

अब फिर उस कमरे में सन्नाटा हो गया और भूतनाथ तथा देवीसिंह को धीरे-धीरे बातचीत करने का मौका मिला।

देवी - हां बताओ तुमने पिछले कमरे में क्या देखा और तुम्हारे मुंह से चीख की आवाज क्यों निकल गई?

भूत - ओफ, मेरे प्यारे दोस्त देवीसिंह, क्योंकि अब मैं आपको खुशी और सच्चे दिल से अपना दोस्त कह सकता हूं चाहे आप मुझसे हर तरह पर बड़े क्यों न हों, उस कमरे में जो कुछ मैंने देखा वह मुझे दहला देने के लिए काफी था। पहिले तो वहां मैंने अपने लड़के को देखा जिसे उम्मीद है कि आपने भी देखा होगा।

देवी - बेशक उसे मैंने देखा था मगर शक मिटाने के लिये तुम्हें दिखाना पड़ा, चाहे वह कोई ऐयार ही सूरत बदले क्यों न हो मगर शकल ठीक वैसे ही थी।

भूत - अगर उसकी सूरत बनावटी नहीं है तो वह मेरा लड़का हरनामसिंह ही है, खैर उसके बारे में न तो मुझे कुछ ज्यादे तरद्दुद हुआ मगर उसके कुछ ही देर बाद मैंने एक ऐसी चीज देखी कि जिससे मुझे हौल हो गया और मेरे मुंह से चीख की आवाज निकल पड़ी।

देवी - वह क्या चीज थी?

भूत - एक बहुत बड़ी तस्वीर थी जिसे एक आदमी ने पहुंचकर उन नकाबपोशों के आगे रख दिया जो गद्दी पर बैठे हुए थे और कहा, “बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूंगा।”

देवी - वह किसकी तस्वीर थी, किसी मर्द की या औरत की?

भूत - (एक लम्बी सांस लेकर) वह औरत, मर्द, जंगल, पहाड़, बस्ती, उजाड़ सभी की तस्वीर थी, मैं क्या बताऊं किसकी तस्वीर थी। एक यही बात है जिसे मैं अपने मुंह से नहीं निकाल सकता! मगर अब मैं आपसे कोई बात न छिपाऊंगा चाहे कुछ ही क्यों न हो। आप यह तो अच्छी तरह जानते ही हैं कि मैं उस पीतल की सन्दूकड़ी से कितना डरता हूं जो नकली बलभद्रसिंह की दी हुई अभी तक तेजसिंह के पास है।

देवी - मैं खूब जानता हूं और उस दिन भी मेरा खयाल उसी सन्दूकड़ी की तरफ चला गया था जब एक नकाबपोश ने दरबार में खड़े होकर तुम्हारी तारीफ की थी और तुम्हें मुंहमांगा इनाम देने के लिए कहा था।

भूत - ठीक है, बलभद्रसिंह ने भी मुझे यही कहा था कि 'ये नकाबपोश तुम्हारे मददगार हैं और तुम्हारा भेद ढके रहने के लिए महाराज से यह सन्दूकड़ी तुम्हें दिलाया चाहते हैं।' मैं भी यह सोचकर प्रसन्न था और चाहता था कि मुकद्दमा फैसला होने के पहिले ही इनाम मांगने का मुझे मौका मिल जाय, मगर इस तस्वीर ने जिसे मैं अभी देख चुका हूं मेरी हिम्मत तोड़ दी और मैं पुनः अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो गया हूं।

देवी - तो उस सन्दूकड़ी से और इस तस्वीर से क्या सम्बन्ध है?

भूत - वह सन्दूकड़ी अपने पेट में जिस भेद को छिपाये हुए है उसी भेद को यह तस्वीर प्रकट करती है। इसके अतिरिक्त मैं सोचे हुए था कि अब उसका कोई दावेदार नहीं है मगर अब मालूम हो गया कि उसका दावेदार भी आ पहुंचा और उसी ने यह तस्वीर नकाबपोश के आगे पेश की!

देवी - क्या तुम यह नहीं बता सकते कि उस सन्दूकड़ी और इस तस्वीर में क्या भेद है।

भूत - (लम्बी सांस लेकर) अब मैं आपसे कोई बात छिपा न रखूंगा मगर इतना समझ रखिए कि उस भेद को सुनकर आप अपने ऊपर एक तरद्दुद का बोझा डाल लेंगे।

देवी - खैर जो कुछ होगा सहना ही पड़ेगा और तुम्हारी मदद भी करनी ही पड़ेगी, मगर सबके पहिले मैं यह जानना चाहता हूं कि उस भेद से हमारे महाराज का भी कुछ सम्बन्ध है या नहीं।

भूत - अगर कुछ सम्बन्ध है भी तो केवल इतना ही कि उस भेद को सुनकर वे मुझ पर घृणा करेंगे, नहीं तो महाराज से और उस भेद से कुछ सम्बन्ध नहीं। मैंने महाराज के विपक्ष में कोई बुरा काम नहीं किया, जो कुछ बुरा किया है वह सिर्फ अपने और अपने दुश्मनों के साथ।

देवी - जब महाराज से उस भेद का कोई सम्बन्ध ही नहीं है तो मैं हर तरह पर तुम्हारी मदद कर सकता हूं, अच्छा तो अब बताओ कि वह कौन-सा भेद है?

भूत - इस समय न पूछिए क्योंकि हम लोग विचित्र स्थान में कैद हैं, ताज्जुब नहीं कि हम दोनों की बातें कोई किसी जगह पर छिपकर सुनता हो, हां मैदान में निकल चलने पर जरूर कहूंगा।

देवी - अच्छा यह तो बताओ कि उस आदमी की सूरत भी तुमने अच्छी तरह देख ली या नहीं जिसने यह तस्वीर नकाबपोश के आगे पेश की थी!

भूत - हां उसकी सूरत मैंने बखूबी देखी थी। मैं उसे खूब पहिचानता हूं, क्योंकि दुनिया में मेरा सबसे बड़ा दुश्मन वही है और उसे अपनी ऐयारी का भी घमंड है।

देवी - अगर वह तुम्हारे कब्जे में आ जाये तो?

भूत - जरूर उसे फंसाने बल्कि मार डालने की फिक्र करूंगा! मैं तो उसकी तरफ से बिल्कुल बेफिक्र हो गया था, मुझे इस बात की रत्तीभर उम्मीद न थी कि वह जीता है।

देवी - खैर कोई चिन्ता नहीं जैसा होगा देखा जायगा, तुम अभी से हताश क्यों हो रहे हो!

भूत - अगर वह सन्दूकड़ी मुझे मिल जाती और उसके खुलने की नौबत न आती तो...।

देवी - वह सन्दूकड़ी मैं तुम्हें दिला दूंगा और उसे किसी के सामने खुलने भी न दूंगा, उसकी तरफ से बेफिक्र रहो।

भूत - (मुहब्बत से देवीसिंह का पंजा पकड़के) अगर ऐसा करो तो क्या बात है!

देवी - ऐसा ही होगा। खैर, अब यह सोचना चाहिए कि इस समय हम लोगों को क्या करना उचित है। मैं समझता हूं कि सुबह होने के साथ ही हम लोग इस हद के बाहर पहुंचा दिये जायेंगे।

भूत - मेरा खयाल भी यही है। लेकिन अगर ऐसा हुआ तो आपकी और मेरी स्त्री के बारे में किसी बात का पता न लगेगा।

देवीसिंह और भूतनाथ इस विषय पर बहुत देर तक बातचीत और राय पक्की करते रहे, यहां तक कि सबेरा हो गया। कई नकाबपोश उस कमरे को खोलकर भूतनाथ तथा देवीसिंह के पास पहुंचे और उन्हें बाहर चलने के लिए कहा।

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 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चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8