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चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10

अब हम अपने पाठकों को काशीपुरी में एक चौमंजिले मकान के ऊपर ले चलते हैं। यह निहायत संगीन और मजबूत बना हुआ है। नीचे से ऊपर तक गेरू से रंगे रहने के कारण देखने वाला तुरंत कह देगा कि यह किसी गुसाईं का मठ है। काशी के मठधारी गुसाईं नाम ही के साधु या गुसाईं होते हैं, वास्तव में उनकी दौलत, उनका व्यापार, उनका रहन-सहन और बर्ताव किसी तरह गृहस्थों और बनियों से कम नहीं होता बल्कि दो हाथ ज्यादे ही होता है। अगर किसी ने धर्म और शास्त्र पर कृपा करके गुसाईंपने की कोई निशानी रख भी ली तो केवल इतना ही कि एक टोपी गेरुए रंग की सिर पर या गेरुए रंग का एक दुपट्टा कन्धे पर रख लिया सो भी भरसक रेशमी और बेशकीमत तो होना ही चाहिए बस, अस्तु इस समय जिस मकान में हम अपने पाठकों को ले चलते हैं देखने वाले उस मकान को भी किसी ऐसे ही साधु या गुसाईं का मठ कहेंगे पर वास्तव में ऐसा नहीं है। इस मकान के अन्दर कोई विचित्र मनुष्य रहता है और उसके काम भी बड़े ही अनूठे हैं।

यह मकान कई मंजिल का है। नीचे वाली तीनों मंजिलों को छोड़कर इस समय हम ऊपर वाली चौथी मंजिल पर चलते हैं जहां एक छोटे से कमरे में तीन औरतें बैठी हुई आपस में बातें कर रही हैं। रात दो पहर से कुछ ज्यादे हो चुकी है। कमरे के अन्दर यद्यपि बहुत से शीशे लगे हैं मगर रोशनी सिर्फ एक शमादान और एक दीवारगीर की ही हो रही है। शमादान फर्श के ऊपर जल रहा है जहां तीनों औरतें बैठी हैं। उनमें एक औरत तो निहायत हसीन और नाजुक है और यद्यपि उसकी उम्र लगभग चालीस वर्ष के पहुंच गई होगी मगर नजाकत, सुडौली और चेहरे का लोच अभी तक कायम है, उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में अभी तक गुलाबी डोरियां और मस्तानापन मौजूद है, सिर के बड़े-बड़े और घने बालों में चांदी की तरह चमकने वाले बाल दिखाई नहीं देते और न अलग से देखने में ज्यादे उम्र की ही मालूम पड़ती है, साथ ही इसके बाली-पत्ती, गोप सिकरी, कड़े, छन्द और अंगूठियों की तरफ ध्यान देने से वह रुपये वाली भी मालूम पड़ती है। उसके पास बैठी हुई दोनों औरतें भी उसी की तरह कमसिन तो हैं पर खूबसूरत नहीं हैं। जो बहुत हसीन और इस मकान की मालिक औरत है उसका नाम बेगम1 है और बाकी की दोनों औरतों का नाम नौरतन और जमालो है।

बेगम - चाहे जैपालसिंह गिरफ्तार हो गया हो मगर भूतनाथ उसका मुकाबला नहीं कर सकता और न भूतनाथ उसे अपनी हिफाजत ही में रख सकता है।

जमालो - ठीक है, मगर जब लक्ष्मीदेवी और राजा वीरेन्द्रसिंह को यह मालूम हो गया कि यह असली बलभद्रसिंह नहीं और इसने बहुत बड़ा धोखा देना चाहा था तो वे उसे जीता कब छोड़ेंगे!

बेगम - तो क्या वह खाली इतने ही कसूर पर मारा जायेगा कि उसने अपने को बलभद्रसिंह जाहिर किया?

जमालो - क्या यह छोटा-सा कसूर है! फिर असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए भी तो लोग उसे दिक करेंगे।

बेगम - अगर इन्साफ किया जायेगा तो जैपालसिंह गदाधरसिंह से ज्यादे दोषी न ठहरेगा, ऐसी अवस्था में मुझे यह आशा नहीं होती कि राजा वीरेन्द्रसिंह उसे प्राणदण्ड देंगे।

नौरतन - राजा वीरेन्द्रसिंह चाहे उसे प्राणदण्ड की आज्ञा न भी दें मगर इन्द्रदेव उसे कदापि जीता न छोड़ेगा और यह बात बहुत ही बुरी हुई कि राजा वीरेन्द्रसिंह ने उसे इन्द्रदेव के हवाले कर दिया।

बेगम - जो हो मगर जिस समय मैं उन लोगों के सामने जा खड़ी होऊंगी उस समय जैपाल को छुड़ा ही लाऊंगी, क्योंकि उसी के बदौलत अमीरी कर रही हूं और उसके लिए नीच से नीच काम करने को भी तैयार हूं।

जमालो - सो कैसे क्या तुम असली बलभद्रसिंह के साथ उसका बदला करोगी?

बेगम - हां मैं इन्द्रदेव और लक्ष्मीदेवी से कहूंगी कि तुम जैपालसिंह को मेरे हवाले करो तो असली बलभद्रसिंह को तुम्हारे हवाले कर दूंगी। अफसोस तो इतना ही है कि गदाधरसिंह की तरह जैपालसिंह दिलावर और जीवट का आदमी नहीं है। अगर जैपालसिंह के कब्जे में बलभद्रसिंह होता तो वह थोड़ी ही तकलीफ में इन्द्रदेव या लक्ष्मीदेवी को उसका हाल बता देता।

जमालो - ठीक है मगर जब बलभद्रसिंह तुम्हारे कब्जे से निकल जायगा तब जैपालसिंह तुम्हारी इज्जत और कदर क्यों करेगा और क्यों दबेगा सिवाय इसके अब तो दारोगा भी स्वतन्त्र नहीं रहा जिसके भरोसे पर जैपाल कूदता था और तुम्हारा घर भरता था।

बेगम - (कुछ सोचकर) हां बहिन, सो तो तुम सच कहती हो। और बलभद्रसिंह को छोड़ने से पहिले ही मुझे अपना घर ठीक कर लेना चाहिए, मगर ऐसा करने में भी दो बातों की कसर पड़ती है।

जमालो - वह क्या?

बेगम - एक तो वीरेन्द्रसिंह के पक्ष वाले मुझ पर यह दोष लगावेंगे कि तूने बलभद्रसिंह को क्यों कैद कर रक्खा था, दूसरे जब से मनोरमा के हाथ तिलिस्मी खंजर लगा है तब से उसका दिमाग आसमान पर चढ़ गया है, वह मुझसे कसम खाकर कह गई है कि 'थोड़े ही दिनों

1. बेगम नाम से मुसलमान न समझना चाहिए।

में राजा वीरेन्द्रसिंह और उनके पक्ष वालों को इस दुनिया से उठा दूंगी'। अगर उसका कहना सच हुआ और उसने फिर मायारानी को जमानिया की गद्दी पर ला बैठाया तो मायारानी मुझ पर दोष लगावेंगी कि तूने जैपाल को इतने दिनों तक क्यों छिपा रक्खा और दारोगा से मिलकर मुझे धोखे में क्यों डाला।

नौरतन - बेशक ऐसा ही होगा, मगर इस बात को मैं कभी नहीं मान सकती कि अकेली मनोरमा एक तिलिस्मी खंजर पाकर राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का मुकाबला करेगी और उनके पक्ष वालों को इस दुनिया से उठा देगी। क्या उन लोगों के पास तिलिस्मी खंजर न होगा?

जमालो - मैं भी यही कहने वाली थी, मैंने इस विषय पर बहुत गौर किया मगर सिवा इसके मेरा दिल और कुछ भी नहीं कहता कि राजा वीरेन्द्रसिंह, उनके लड़के और उनके ऐयारों का मुकाबला करने वाला आज दिन इस दुनिया में कोई भी नहीं है, और एक बड़े भारी तिलिस्म के राजा गोपालसिंह भी प्रकट हो गये हैं। ऐसी अवस्था में मायारानी और उनके पक्ष वालों की जीत कदापि नहीं हो सकती।

बेगम - ऐसा ही है, और गदाधरसिंह भी किसी न किसी तरह अपनी जान बचा ही लेगा देखो इतना बखेड़ा हो जाने पर भी लोगों ने गदाधरसिंह को जिसने अपना नाम अब भूतनाथ रख लिया है और अब वह चारों तरफ उपद्रव मचा रहा है ताज्जुब नहीं कि वह जमीन की मिट्टी सूंघता हुआ मेरे घर में भी आ पहुंचे! यद्यपि उसे मेरा पता कुछ भी मालूम नहीं है मगर वह विचित्र आदमी है, मिट्टी और हवा से मिल गई चीज का भी पता लगा लेता है। (ऊंची सांस लेकर) अगर मुझसे और उससे लड़ाई न हो गई होती तो आज मैं भी तीन हाथ की ऊंची गद्दी पर बैठने का साहस करती, मगर अफसोस, भूतनाथ ने मेरे साथ बहुत ही बुरा सलूक किया! (कुछ सोचकर) यदि बलभद्रसिंह को लेकर मैं राजा वीरेन्द्रसिंह के पास चली जाऊं और भूतनाथ के ऊपर नालिश करूं तो मैं बहुत अच्छी रहूं! मेरे मुकद्दमे की जवाबदेही भूतनाथ कदापि नहीं कर सकता और राजा साहब उसे जरूर प्राणदण्ड की आज्ञा देंगे। बलभद्रसिंह को छिपा रखने का यदि मुझ पर दोष लगाया जायगा तो मैं कह सकूंगी कि जिस जमाने में जो राजा होता है प्रजा उसी का पक्ष करती है, अगर मैंने मायारानी और दारोगा के जमाने में उन लोगों का पक्ष किया तो कोई बुरा नहीं किया। मैं इस बात को बिल्कुल नहीं जानती थी बल्कि दारोगा भी नहीं जानता था कि राजा गोपालसिंह को मायारानी ने कैद कर रक्खा है। अस्तु अब आपका राज्य हुआ है तो मैं आपकी सेवा में उपस्थित हुई हूं।

जमालो - बात तो बहुत अच्छी है, फिर इस बात में देर क्यों कर रही हो इस काम को जहां तक जल्द करोगी तुम्हारा भला होगा।

बेगम - (कुछ सोचकर) अच्छी बात है, ऐसा करने के लिए मैं कल ही यहां से रवाना हो जाऊंगी।

इतने ही में दरवाजे के बाहर से आवाज आई, “मगर भूतनाथ को भी तो अपनी जान प्यारी है, वह ऐसा करने के लिए तुम्हें जाने कब देगा?'

तीनों ने चौंककर दरवाजे की तरफ निगाहें कीं और भूतनाथ कमरे के अन्दर आते हुए देखा।

बेगम - (भूतनाथ से) आओ जी मेरे पुराने दोस्त, भला तुमने मेरे सामने आने का साहस तो किया!

भूतनाथ - साहस और जीवट तो हमारा असली काम है।

बेगम - (अपनी बाईं तरफ बैठने का इशारा करके) इधर बैठ जाओ। मालूम होता है कि पुरानी बातों को तुम बिल्कुल ही भूल गये।

भूतनाथ - (बेगम की दाहिनी तरफ बैठकर) हम दुनिया में आने से भी छः महीने पहिले की बात याद रखने वाले आदमी हैं, आज वह दिन नहीं है जिस दिन तुम्हें और जैपाल को देखने के साथ ही डर से मेरे बदन का खून रगों के अन्दर ही जम जाता था बल्कि आज का दिन उसके बिल्कुल विपरीत है।

बेगम - अर्थात् आज तुम मुझे देखकर खुश होते हो!

भूतनाथ - बेशक!

बेगम - क्या आज तुम मुझसे बिल्कुल नहीं डरते?

भूतनाथ - रत्ती भर नहीं!

बेगम - क्या अब मैं अगर राजा वीरेन्द्रसिंह के यहां तुम पर नालिश करूं तो मेरा मुकद्दमा सुना न जायगा और तुम माफ छूट जाओगे?

भूतनाथ - मगर अब तुम्हें राजा वीरेन्द्रसिंह के सामने पहुंचने ही कौन देगा?

बेगम - (क्रोध से) रोकेगा ही कौन?

भूतनाथ - गदाधरसिंह, जो तुम्हें अच्छी तरह सता चुका है और आज फिर सताने के लिए आया है!

बेगम - (क्रोध को पचाकर और कुछ सोचकर) मगर यह बताओ कि तुम बिना इत्तिला कराये यहां चले क्यों आये और पहरे वाले सिपाहियों ने तुम्हें आने कैसे दिया?

भूतनाथ - तुम्हारे दरवाजे पर कौन है जिसकी जुबानी मैं इत्तिला करवाता या जो मुझे यहां आने से रोकता?

बेगम - क्या पहरे के सिपाही सब मर गये?

भूतनाथ - मर ही गये होंगे!

बेगम - क्या सदर दरवाजा खुला हुआ और सुनसान है?

भूतनाथ - सुनसान तो है मगर खुला हुआ नहीं है, कोई चोर न घुस आवे इस ख्याल से आती समय मैं सदर दरवाजा भीतर से बन्द करता आया हूं। डरो मत, कोई तुम्हारी रकम उठाकर न ले जायगा।

बेगम - (मन ही मन चिढ़के) जमालो, जरा नीचे जाकर देख तो सही कम्बख्त सिपाही सब क्या कर रहे हैं।

भूतनाथ - (जमालो से) खबरदार, यहां से उठना मत, इस समय इस मकान में मेरी हुकूमत है बेगम या जैपाल की नहीं! (बेगम से) अच्छा अब सीधी तरह से बता दो कि बलभद्रसिंह को कहां पर कैद कर रक्खा है?

बेगम - मैं बलभद्रसिंह को क्या जानूं?

भूतनाथ - तो अभी किसको लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास जाने के लिये तैयार हो गई थी?

बेगम - तेरे बाप को लेकर जाने वाली थी!

इतना सुनते ही भूतनाथ ने कसके एक चपत बेगम के गाल पर जमाई जिससे वह तिलमिला गई और कुछ ठहरने के बाद तकिये के नीचे से छुरा निकालकर भूतनाथ पर झपटी। भूतनाथ ने बाएं हाथ से उसकी कलाई पकड़ ली और दाहिने हाथ से तिलिस्मी खंजर निकालकर उसके बदन में लगा दिया, साथ ही इसके फुर्ती से नौरतन और जमालो के बदन में भी तिलिस्मी खंजर लगा दिया जिससे बात की बात में सभी बेहोश होकर जमीन पर लम्बी हो गईं। इसके बाद भूतनाथ ने बड़े गौर से चारों तरफ देखना शुरू किया। इस कमरे में दो आलमारियां थीं जिनमें बड़े-बड़े ताले लगे हुए थे, भूतनाथ ने तिलिस्मी खंजर मारकर एक आलमारी का कब्जा काट डाला और आलमारी खोलकर उसके अन्दर की चीजें देखने लगा। पहिले एक गठरी निकाली जिसमें बहुत से कागज बंधे हुए थे। शमादान के सामने वह गठरी खोली और एक-एक करके कागज देखने और पढ़ने लगा, यहां तक कि सब कागज देख गया और शमादान में लगा-लगाकर सब जलाकर खाक कर दिये। इसके बाद एक सन्दूकड़ी निकाली जिसमें ताला लगा हुआ था। इस सन्दूकड़ी में भी कागज भरे हुए थे। भूतनाथ ने उस कागजों को भी जला दिया, इसके बाद फिर आलमारी में ढूंढ़ना शुरू किया मगर और कोई चीज उसके काम की न निकली।

भूतनाथ ने अब उस दूसरी आलमारी का कब्जा भी खंजर से काट डाला और अन्दर की चीजों को ध्यान देकर देखना शुरू किया। इस आलमारी में यद्यपि बहुत-सी चीजें भरी हुई थीं मगर भूतनाथ ने केवल तीन चीजें उसमें से निकाल लीं। एक तो दस-बारह पन्ने की छोटी-सी किताब थी जिसे पाकर भूतनाथ बहुत खुश हुआ और चिराग के सामने जल्दी-जल्दी उलट-पलटकर दो-तीन पन्ने पढ़ गया, दूसरी एक ताली का गुच्छा था, भूतनाथ ने उसे भी ले लिया, और तीसरी चीज एक हीरे की अंगूठी थी जिसके साथ एक पुर्जा भी बंधा हुआ था। यह अंगूठी एक डिबिया के अन्दर रक्खी हुई थी। भूतनाथ ने अंगूठी में से पुरजा खोलकर पढ़ा और इसके पाने से बहुत प्रसन्न होकर धीरे से बोला, “बस अब मुझे और किसी चीज की जरूरत नहीं है।”

इन कामों से छुट्टी पाकर भूतनाथ बेगम के पास आया जो अभी तक बेहोश पड़ी हुई थी और उसकी तरफ देखकर बोला, “अब यह मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकती, ऐसी अवस्था में एक औरत के खून से हाथ रंगना व्यर्थ है।”

भूतनाथ हाथ में शमादान लिए निचले खण्ड में उतर गया जहां उसके साथी दो आदमी हाथ में नंगी तलवार लिये हुए मौजूद थे। उसने अपने साथियों की तरफ देखकर कहा, “बस हमारा काम हो गया। बलभद्रसिंह इसी मकान में कैद है, उसे निकालकर यहां से चल देना चाहिए।” इतना कहकर भूतनाथ ने शमादान अपने एक साथी के हाथ में दे दिया और एक कोठरी के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ जिसमें दोहरा ताला लगा हुआ था। तालियों का गुच्छा जो ऊपर से लाया था उसी में से ताली लगाकर ताले खोले और अपने आदमियों को साथ लिये हुए कोठरी के अन्दर घुसा। वह कोठरी खाली थी मगर उसमें से एक दूसरी कोठरी में जाने के लिए दरवाजा था और उसकी जंजीर में भी ताला लगा हुआ था। ताली लगाकर उस ताले को भी खोला और दूसरी कोठरी के अन्दर गया। इसी कोठरी में लक्ष्मीदेवी और कमलिनी और लाडिली का बाप बलभद्रसिंह कैद था।

दरवाजा खोलते समय जंजीर खटकने के साथ ही बलभद्रसिंह चैतन्य हो गया था। जिस समय उसकी निगाह यकायक भूतनाथ पर पड़ी वह चौंक उठा और ताज्जुब भरी निगाहों से भूतनाथ को देखने लगा। भूतनाथ ने भी ताज्जुब की निगाह से बलभद्रसिंह को देखा और अफसोस किया क्योंकि बलभद्रसिंह की अवस्था बहुत ही खराब हो रही थी। शरीर सूख के कांटा हो गया था, चेहरे पर और बदन में झुर्रियां पड़ गई थीं, सिर-मूंछ और दाढ़ी के बाल तथा नाखून इतने बढ़ गये थे कि जंगली मनुष्य में और उसमें कुछ भी भेद न जान पड़ता था, अंधेरे में रहते-रहते बदन पीला पड़ गया था, सूरत-शक्ल से भी बहुत ही डरावना मालूम पड़ता था। एक कम्बल, मिट्टी की ठिलिया और पीतल का लोटा बस यही उसकी बिसात थी, कोठरी में और कुछ भी न था। भूतनाथ को देखकर यह जिस ढंग से चौंका और कांपा उसे देख भूतनाथ ने गर्दन नीची कर ली और तब धीरे से कहा, “आप उठिये और जल्दी निकल चलिये, मैं आपको छुड़ाने के लिए आया हूं।”

बलभद्र - (आश्चर्य से) क्या तू मुझे छुड़ाने के लिए आया है! क्या यह बात सच है?

भूतनाथ - जी हां।

बलभद्र - मगर मुझे विश्वास नहीं होता।

भूत - खैर इस समय आप यहां से निकल चलिये, फिर जो कुछ सवाल-जवाब या सोच-विचार करना हो कीजियेगा।

बलभद्र - (खड़े होकर) कदाचित् यह बात सच हो! और अगर झूठ भी हो तो कोई हर्ज नहीं, क्योंकि मैं इस कैद में रहने के बनिस्बत जल्द मर जाना अच्छा समझता हूं!

भूतनाथ ने इस बात का कुछ जवाब न दिया और बलभद्रसिंह को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया। बलभद्रसिंह इतना कमजोर हो गया था कि उसे मकान के नीचे उतरना कठिन जान पड़ता था इसलिये भूतनाथ ने उसका हाथ थाम लिया और नीचे उतारकर दरवाजे के बाहर ले गया। मकान के दरवाजे के बाहर बल्कि गली-भर में सन्नाटा छाया हुआ था क्योंकि यह मकान ऐसी अंधेरी और सन्नाटे की गली में था कि वहां शायद महीने में एक दफे किसी भले आदमी का गुजर नहीं होता होगा। दरवाजे पर पहुंचकर भूतनाथ ने बलभद्रसिंह से पूछा, “आप घोड़े पर सवार हो सकते हैं'

इसके जवाब में बलभद्रसिंह ने कहा, “मुझे उचककर सवार होने की ताकत तो नहीं हां अगर घोड़े पर बैठा दोगे तो गिरूंगा नहीं!”

भूतनाथ ने शमादान मकान के भीतर चौक में रख दिया और तब बलभद्रसिंह को आगे बढ़ा ले गया। थोड़ी ही दूर पर एक आदमी दो कसे-कसाये घोड़ों की बागडोर थामे बैठा हुआ था। भूतनाथ एक घोड़े पर बलभद्रसिंह को सवार कराके दूसरे घोड़े पर आप जा बैठा और अपने तीन आदमियों को कुछ कहकर वहां से रवाना हो गया।

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8