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चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4

कमलिनी को देखकर दोनों कुमार शर्माए और मन में तरह-तरह की बातें सोचने लगे। देखते-देखते कमलिनी उनके पास आ गई और प्रणाम करके बोली, “आप यहां जमीन पर क्यों बैठे हैं उस कमरे में चलकर बैठिए जहां फर्श बिछा है और सब तरह का आराम है।”

इन्द्र - मगर वहां अंधकार तो जरूर होगा?

कम - जी नहीं, वहां बखूबी रोशनी हो रही होगी, (मुस्कराकर) क्योंकि यहां की रानी के मर जाने से यह बाग एक सुघड़ रानी के अधिकार में आ गया है और उसने आपकी खातिर में रोशनी जरूर कर रक्खी होगी।

इन्द्र - (कुछ शर्मिन्दगी के साथ) बस रहने दीजिए, मैं यहां की रानियों का मेहमान नहीं बनता, जो कुछ बनना था सो बन चुका, अब तो तुम्हारी दिल्लगी का निशाना बनूंगा।

कमलिनी - (हाथ जोड़के) मेरी क्या मजाल जो आपसे दिल्लगी करूं, अच्छा आप मेरे मेहमान बनिए और यहां से उठिये।

इन्द्र - क्या तुम नहीं जानतीं कि यहां अपने भी पराए होकर दुःख देने के लिए तैयार हो जाते हैं?

भैरो - (कमलिनी से) आपने खयाल किया या नहीं यह मेरी पूजा हो रही है।

कम - होनी ही चाहिए, आप इसी योग्य हैं। (इन्द्रजीतसिंह से) मगर आप मुझ लौंडी पर किसी तरह का शक न करें। यदि आप यह समझते हों कि मैं वास्तव में कमलिनी नहीं हूं तो मैं बहुत-सी बातें उस जमाने की आपको याद दिलाकर अपने पर विश्वास करा सकती हूं जिस जमाने में तालाब वाले तिलिस्मी मकान में आप मेरे साथ रहते थे। (उस समय की दो-तीन गुप्त बातों का इशारा करके) कहिए अब भी मुझ पर शक है?

इन्द्र - (बनावटी मुस्कुराहट के साथ) नहीं, अब तुम पर शक तो किसी तरह का नहीं है मगर रंज जरूर है।

कम - रंज! सो किस बात का?

इन्द्र - इस बात का कि यहां आने पर तुमने जान-बूझके अपने को मुझसे छिपाया और मुझे तरद्दुद में डाला!

कम - (हंसकर और कुमार का हाथ पकड़के) अच्छा आप यहां से उठिये और उस कमरे में चलिए तो मैं आपकी सब बातों का जवाब दूंगी। आप तो जरा-सी बात में रंज हो जाते हैं। अगर आपके साथ किसी तरह का मसखरापन किया या हम लोगों को आपसे मिलने नहीं दिया तो आपकी भावज साहेबा ने, अस्तु आपकी ऐसी बातों का जवाब भी वे ही देंगी और उनसे भी उसी कमरे मे मुलाकात होगी।

इन्द्र - मेरी भावज साहेबा! सो कौन, क्या लक्ष्मीदेवी!

कम - जी हां, वे उसी कमरे में बैठी आपका इन्तजार कर रही हैं, चलिए।

इन्द्र - हां, उनसे तो मैं जरूर मिलूंगा। जब से मैंने यह सुना है कि 'तारा वास्तव में लक्ष्मीदेवी है' तभी से मैं उनसे मिलने के लिए बेताब हो रहा हूं।

यह कहकर इन्द्रजीतसिंह उठ खड़े हुए और अपने सूखे हुए कपड़े पहिरकर कमलिनी के साथ उसी कमरे की तरफ चले जिसमें पहिले भी कई दफे आराम कर चुके थे। उनके पीछे-पीछे आनन्दसिंह और भैरोसिंह भी गए।

इस समय कमलिनी मामूली ढंग में न थी बल्कि बेशकीमत पोशाक और गहनों से अपने को सजाए हुए थी। एक तो यों ही किशोरी के मुकाबिले की खूबसूरत और हसीन थी तिस पर इस समय की बनावट और शृंगार ने उसे और भी उभाड़ रक्खा था। यद्यपि आज उससे मिलने के पहिले कुमार तरह-तरह की बातें सोच रहे थे और इन्द्रानी तथा आनन्दी वाले मामले से शर्मिन्दा होकर जल्दी उससे मिलना नहीं चाहते थे मगर जब वह सामने आकर खड़ी हो गई तो सब बातें एक तरह पर थोड़ी देर के लिए भूल गये और खुशी-खुशी उसके साथ चलकर उस कमरे में जा पहुंचे।

इस कमरे का दरवाजा मामूली ढंग पर बन्द था जो कमलिनी के धक्का देने से खुल गया और ज्यादे रोशनी के सबब भीतर के जगमगाते हुए सामान तथा कई औरतों पर दोनों कुमारों की निगाह पड़ी जो उन्हें देखते ही उठ खड़ी हुईं और जिनमें से एक को छोड़ बाकी की सभी ने कुंअर इन्द्रजीतसिंह को और कई ने आनन्दसिंह को भी प्रणाम किया।

यह औरत जिसने कुमार को सलाम नहीं किया लक्ष्मीदेवी थी और वह राजा गोपालसिंह की जुबानी सुन चुकी थी कि दोनों कुमार उनके छोटे भाई हैं अस्तु दोनों कुमारों ने स्वयं लक्ष्मीदेवी को सलाम किया और उनकी पिछली अवस्था पर अफसोस करके पुनः जमानिया की रानी बनने पर प्रसन्नता के साथ मुबारकबाद देने के बाद और विषयों में देर तक उससे बातें करते रहे। इसके बाद किशोरी, कामिनी इत्यादि से बातचीत की नौबत पहुंची। किशोरी और इन्द्रजीतसिंह में तथा कामिनी और आनन्दसिंह में सच्ची और बढ़ी-चढ़ी मुहब्बत थी परन्तु धर्म-लज्जा और सभ्यता का पल्ला भी उन लोगों ने मजबूती के साथ पकड़ा हुआ था, इसलिए यद्यपि यहां पर कोई बड़ी-बूढ़ी औरत मौजूद न थी जिससे विशेष लज्जा करनी पड़ती तथापि इन चारों ने इस समय बनिस्बत जुबान के विशेष करके आंखों के इशारों तथा भावों ही में अपने दुःख-दर्द और जुदाई के सदमे को झलकाकर उपस्थित अवस्था तथा इस अनोखे मेल-मिलाप पर प्रसन्नता प्रकट की। कमलिनी, लाडिली, कमला, सर्यू और इन्दिरा आदि से भी कुशल-क्षेम पूछने के बाद इन लोगों में यों बातें होने लगीं –

इन्द्र - (लक्ष्मीदेवी से) आपको इस बात की शिकायत तो जरूर होगी कि आपको हद से ज्यादे दुःख भोगना पड़ा मगर यह जानकर आप अपना दुःख जरूर भूल गई होंगी कि भाई साहब ने कम्बख्त मायारानी की बदौलत जो कुछ कष्ट भोगा उसे भी कोई साधारण मनुष्य सहन नहीं कर सकता।

लक्ष्मीदेवी - निःसन्देह ऐसा ही है, क्योंकि मुझे तो किसी-न-किसी तरह आजादी की हवा मिल भी रही थी मगर उन्हें अंधेरी कोठरी में जिस तरह रहना पड़ा वैसा ईश्वर न करे किसी दुश्मन को भी नसीब हो।

इन्द्र - (मुस्कुराकर) मगर मैंने तो सुना था कि आप उनसे नाराज हो गई हैं और जमानिया जाने में...।

कम - (हंसकर) ये बनिस्बत उनके जिन्न को ज्यादे पसन्द करती थीं।

लक्ष्मी - वास्तव में उन्होंने बड़ा भारी धोखा दिया था।

इन्द्र - जैसाकि आपने तारा बनकर कमलिनी को धोखा दिया था।

कमला - आपने ठीक कहा, क्योंकि ऐयारी दोनों ही ने की थी।

कम - ओफ, जब मैं वह समय याद करती हूं जब ये तारा बनकर मेरे यहां रहती और ऐयारी का काम करती थीं तो मुझे आश्चर्य होता है। वास्तव में इनकी ऐयारी बहुत अच्छी होती थी और ये दुश्मनों का पता खूब लगाती थीं, रोहतासगढ़ पहाड़ी के नीचे जब मायारानी का ऐयार कंचनसिंह को मारकर आपको रथ पर सुलाके ले गया था तब भी इन्होंने मुझे खबर कुछ ही देर पहिले पहुंचाई थी।

इन्द्र - (ताज्जुब से) हां! तब तो इनका बहुत बड़ा अहसान मेरी गर्दन पर भी है! ओफ, वह जमाना भी कैसा भयानक था! मजा तो यह था कि दुश्मन लोग आपस में लड़ मरते थे पर एक की दूसरे को खबर नहीं होती थी। देखो रोहतासगढ़ में मायारानी की चमेली ने तो माधवी पर वार किया और माधवी को मरते दम तक इस बात का पता न लगा। अगर पता लग जाता तो क्या आज दिन माधवी मायारानी के साथ मिलकर यहां के तिलिस्मी बाग में आने की हिम्मत कभी करती?

कम - कदापि नहीं, (हंसकर) मगर आश्चर्य तो यह है कि जिस माधवी और मायारानी ने इतना ऊधम मचा रक्खा था उन्हीं दोनों से आपने शादी कर ली। अफसोस तो यही है कि उनके पापों ने उन्हें बचने न दिया और हम लोगों को मुबारकबाद देने का मौका न मिला!

इन्द्र - (शर्माकर) तुम तो...!

लक्ष्मी - (कुमार की बात काटकर कमलिनी से) बहिन, तुम भी कैसी शोख हो! कई दफे तुमसे कह चुकी कि इस बात का जिक्र न करना मगर आखिर तुमने न माना! खैर अगर कुमार ने शादी किया तो किया फिर तुम्हें क्या तुम ताना मारने वाली कौन और फिर भूलचूक की बात ही क्या है। इन्होंने कुछ जान-बूझके तो शादी की ही नहीं धोखे में पड़ गये। खबरदार, अब इस बात का जिक्र कोई करने न पाये। (कुमार से) हां तो बताइए कि हम लोगों का हाल आपको कुछ मालूम हुआ या नहीं?

इन्द्र - मैं तो बहुत दिनों से तिलिस्म के अन्दर हूं मगर बाहर का हाल जिसमें आप लोगों का हाल भी मिला हुआ था भाई साहब (गोपालसिंह) बराबर सुना दिया करते थे और जो कुछ नहीं मालूम वह अब मालूम हो जायगा, क्योंकि ईश्वर की कृपा से आप लोगों का बहुत अच्छा समागम हुआ है, एक-दूसरे की बीती कहने-सुनने का मौका आज से बढ़कर फिर न मिलेगा। साथ ही इसके मैं यह भी कहूंगा कि आप (कमलिनी की तरफ इशारा करके) इन्हें बात-बात में डांटने या दबाने की तकलीफ न करें, ये जितना और जो कुछ मुझे कहें कहने दीजिए क्योंकि मैं इनके हाथ बिका हुआ हूं। इन्होंने हम लोगों के साथ जो कुछ सलूक किया है वह किसी से छिपा नहीं है और न उसका बोझ हम लोगों के सिर से कभी उतर सकता है।

कम - बस-बस-बस, ज्यादे तारीफों की भरमार न कीजिए। अगर आप... (सर्यू की तरफ देखके) चाची क्षमा कीजिए और जरा इस कमरे में जाकर (दोनों कुमारों और भैरोसिंह की तरफ बताकर) इन लोगों के लिए खाने का इन्तजाम कीजिए।

सर्यू कमलिनी का मतलब समझ गई कि उसके सामने हंसी-दिल्लगी की बातें करने में इन लोगों को शर्तें मालूम होती है और उचित भी यही है, अस्तु वह उठकर दूसरे कमरे में चली गई और तब कमलिनी ने पुनः इन्द्रजीतसिंह से कहा, “हां, अगर आप मेरे हाथ बिके हुए हैं तो कोई चिन्ता नहीं, मैं आपको बड़ी खातिर के साथ अपने पास रक्खूंगी।”

किशोरी - (मुस्कुराती हुई) इनकी तावीज बनाके गले में पहिर लेना।

कम - जी नहीं, गले तो ये तुम्हारे मढ़े जायंगे, मैं तो इन्हें हाथों पर लिए फिरूंगी।

लक्ष्मीदेवी - बल्कि चुटकियों पर, क्योंकि तुम ऐसी ही शोख और मसखरी हो! (कुमार से) आज हम लोगों के लिए बड़ी खुशी का दिन है, ईश्वर ने बड़े भागों से यह दिन दिखाया है, अतएव अगर हम लोग हंसी-दिल्लगी में कुछ विशेष कह जायं तो रंज न मानिएगा।

इन्द्रजीत - ताज्जुब है कि आप रंज होने का जिक्र करती हैं! क्या आप इस बात को नहीं जानतीं कि इन्हीं बातों के लिए हम लोग कब से तरस रहे हैं! (कमलिनी की तरफ देखके और मुस्कराके) मगर आशा है कि अब तरसना न पड़ेगा।

कमलिनी - यह तो (किशोरी की तरफ बताके) इन्हें कहिए, तरसने की बात का जवाब तो यही दे सकेंगी।

किशोरी - ठीक है, क्योंकि आदमी जब किसी के हाथ बिक जाता है तो आजादी की हवा खाने के लिए उसे तरसना ही पड़ता है।

इन्द्रजीत - (बात का ढंग दूसरी तरफ बदलने की नीयत से कमलिनी की तरफ देखकर) हां, यह तो बताओ कि नानक से और तुम लोगों से मुलाकात हुई थी या नहीं?

कमलिनी - जी नहीं, उस पर तो आपको बड़ा रंज होगा!

इन्द्रजीत - हां इसलिये कि उसने अपनी चाल-चलन को बहुत बिगाड़ रक्खा है। (कमला से) तुमने यह तो सुना ही होगा कि नानक भूतनाथ का लड़का है और भूतनाथ तुम्हारा पिता है!

कमला - जी हां, मैं सुन चुकी हूं, मगर वे (लम्बी सांस लेकर) आज-कल अपनी भूलों के सबब आप लोगों के मुजरिम बन रहे हैं!

इन्द्रजीत - चिन्ता मत करो, पिछले जमानों में अगर भूतनाथ से किसी तरह का कसूर हो गया तो क्या हुआ, आजकल वह हम लोगों का काम बड़ी खूबी और नेकनीयत के साथ कर रहा है और तुम विश्वास रक्खो कि उसका सब कसूर माफ किया जायगा।

कमला - यदि आपकी कृपा हो तो सब अच्छा ही होगा, (कमलिनी की तरफ इशारा करके) इन्होंने भी मुझे ऐसी ही आशा दिलाई है।

लक्ष्मीदेवी - इनका तो वह ऐयार ही ठहरा, इन्हीं के दिए हुए तिलिस्मी खंजर की बदौलत उसने बड़े-बड़े काम किए और कर रहा है। हां, खूब याद आया, (इन्द्रजीतसिंह से) मैं आपसे एक बात पूछूंगी।

इन्द्रजीत - पूछिये।

लक्ष्मीदेवी - तालाब वाले तिलिस्मी मकान से थोड़ी दूर पर जंगल में एक खूबसूरत नहर है और वहीं पर किसी योगिराज की समाधि है।

इन्द्रजीत - हां-हां, मैं उस स्थान का हाल जानता हूं। यद्यपि मैं वहां कभी गया नहीं, मगर 'रक्तग्रन्थ' की बदौलत मुझे वहां का हाल बखूबी मालूम हो गया है, (कमलिनी की तरफ देखकर) इन्हें भी तो मालूम ही होगा क्योंकि वह 'रक्तग्रन्थ' बहुत दिनों तक इनके पास था।

कम - जी हां, उसी रक्तग्रन्थ की बदौलत मुझे उसका कुछ हाल मालूम हुआ था और उसी जगह से वह तिलिस्मी खंजर और नेजा मैंने निकाला था। मगर मैं उस रक्तग्रन्थ की लिखावट अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी इसलिए उसका ठीक-ठीक और पूरा हाल मैं न जान सकी।

लक्ष्मी - इसी सबब से मेरी बातों का ठीक जवाब न दे सकी तब मैंने सोचा कि आपसे मुलाकात होने पर पूछूंगी कि क्या वहां भी कोई तिलिस्म है?

इन्द्र - जी नहीं, वहां कोई तिलिस्म नहीं है। जिस दार्शनिक महात्मा की वह समाधि है, उन्होंने यह तिलिस्म तथा रोहतासगढ़ का तहखाना, तालाब वाला तिलिस्मी खंडहर जिसमें मैं मुर्दा बनकर पहुंचाया गया था अथवा जिसमें किशोरी, कामिनी और भैरोसिंह वगैरह फंस गये थे बनवाया है, और चुनारगढ़ वाला तिलिस्म उनके गुरु का बनवाया हुआ है। यहां के राजा जिन्होंने यह तिलिस्म बनवाया था उन्हीं के शिष्य थे। उन महात्मा ने जीते-जी समाधि ले ली थी और उन्होंने अपना योगाश्रम भी उसी स्थान में बनवाया था। कमलिनी ने तिलिस्मी खंजर उसी योगाश्रम से निकाला होगा क्योंकि वहां भी बड़ी-बड़ी अनूठी चीजें हैं।

कम - जी हां, और उसी जगह मैंने इस बात की कसम भी खाई थी कि 'भूतनाथ और नानक को अपना भाई समझूंगी, अगर ये लोग हम लोगों के साथ दगा न करेंगे।' यद्यपि यह आश्चर्य की बात है कि अभी तक भूतनाथ के भेदों का सही-सही पता नहीं लगता फिर भी चाहे जो हो यह तो मैं जरूर कहूंगी कि भूतनाथ ने हम लोगों के साथ बड़ी नेकियां की हैं।

इन्द्र - इसमें किसी को क्या शक हो सकता है भूतनाथ वास्तव में बड़ा भारी ऐयार है। हां यह तो बताओ कि नानक यहां कैसे आ पहुंचा?

कम - भला मैं इस बात को क्या जानूं?

आनन्द - (मुस्कुराते हुए) अपनी रामभोली को खोजता हुआ आया होगा।

लाडिली - उसे मालूम हो चुका है कि उसकी रामभोली को मरे मुद्दत हो गई।

आनन्द - खैर उसकी तस्वीर खोजने आया होगा!

लाडिली - या किसी की बारात में आया होगा!

लाडिली की इस आखिरी बात ने सभों को हंसा दिया और आनन्दसिंह शर्माकर चुप हो रहे।

इन्द्र - (कमलिनी से) इस बात का कुछ पता न लगा कि अग्निदत्त को किसने मारा था! (किशोरी से) शायद इसका जवाब तुम दे सकती हो?

किशोरी - अग्निदत्त को मायारानी के ऐयारों ने मारा था और उन्हीं लोगों ने मुझे ले जाकर उस तिलिस्मी खंडहर में कैद किया था।

भैरो - (कमलिनी से) हां खूब याद आया, हमने सुना था कि उस समय जब हम लोग शाहदरवाजा बन्द हो जाने के कारण दुःखी हो रहे थे तब आपने ही विचित्र ढंग से वहां पहुंचकर हम लोगों की सहायता की थी। आपको इन बातों की खबर कैसे मिली थी?

कम - (लक्ष्मीदेवी की तरफ इशारा करके) उन दिनों ये ऐयारी कर रही थीं और इन्होंने ही उन बातों की खबर पहुंचाई थी तथा यह भी कहा था कि खंडहर वाली बावली साफ हो गई है। उस बावली में पहुंचने का रास्ता उसी योगिराज की समाधि के पास ही से है अगर वह बावली खुदकर साफ न हो गई होती तो मैं शाहदरवाजा खोल न सकती क्योंकि ऊपर की तरफ से खंडहर के अन्दर पहुंचना कठिन हो रहा था और भीतर मायारानी के आदमी उस तहखाने में जा पहुंचे थे। वह भी बड़ा कठिन समय था।

कमला - उसी समय राजा शिवदत्त भी वहां आकर...।

कम - हां, उस समय भूतनाथ ने बड़ी मदद दी। रूहा बनकर अगर वह राजा शिवदत्त को पकड़ न लिए होता तो गजब ही हो जाता।

भैरो - मैं तो कुमार की जिन्दगी से बिल्कुल ही नाउम्मीद हो गया था।

कम - (कुमार से) हां, यह तो बताइये कि आप वहां किस तरह पहुंचाये गये थे। इसमें तो कोई शक नहीं कि आपको मायारानी के आदमियों ने गिरफ्तार किया था मगर इस बात का पता अभी तक न लगा कि उस मकान के अन्दर आप तथा देवीसिंह वगैरह ने क्या देखा कि हंसते-हंसते उसके अन्दर कूद गये और कूदने के बाद फिर क्या हुआ?

इन्द्र - कूद पड़ने के बाद फिर मुझे तनोबदन की सुध न रही और यही हाल उन सभों का भी हुआ जो मेरे पहिले उसके अन्दर कूद चुके थे मगर यह अभी न बताऊंगा कि उसके अन्दर कौन-सी हंसाने वाली चीज थी।

कम - यही बात हम लोगों ने जब देवीसिंह से पूछी थी तो उन्होंने भी इनकार करके कहा था कि “माफ कीजिए, उस विषय में तब तक कुछ न कहूंगा जब तक इन्द्रजीतसिंह मेरे सामने मौजूद न होंगे क्योंकि उन्होंने इस बात को छिपाने के लिए मुझे सख्त ताकीद कर दी है। ताज्जुब है कि आपने अपने साथियों को भी इस तरह की ताकीद कर दी और आज स्वय भी उसके बताने से इन्कार करते हैं।

इन्द्र - इसमें कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके बताने से मुझे परहेज हो मगर मैं चाहता हूं कि वही तमाशा तुम लोगों को तथा और अपने सभों को दिखाकर बताऊं कि उस मकान के अन्दर बस यही था, निःसन्देह तुम लोगों की भी वही दशा होगी।

कम - तो आज ही वह तमाशा क्यों नहीं दिखाते?

इन्द्र - आज वह तमाशा मैं नहीं दिखा सकता हां भाई साहब (गोपालसिंह) अगर चाहें तो दिखा सकते हैं, मगर इसके लिए जल्दी ही क्या है? लक्ष्मी - खैर जाने दीजिए, आखिर एक-न-एक दिन मालूम हो ही जायगा। अच्छा यह बताइये कि आप जब इस तिलिस्म में या इसके बगल वाले बाग में आये थे तो उस बुड्ढे तिलिस्मी दारोगा से मुलाकात हुई थी या नहीं?

इन्द्र - हां हुई थी, बड़ा ही शैतान है, क्या तुम लोगों से वह नहीं मिला?

लक्ष्मी - भला वह कभी बिना मिले रह सकता है उसने तो हम लोगों को भी धोखे में डालना चाहा था मगर तुम्हारे भाई साहब ने पहिले ही उसकी शैतानी से हम लोगों को होशियार कर दिया था इसलिए हम लोगों का वह कुछ बिगाड़ न सका।

कम - मगर आपने उसकी बात मान ली और इसलिए उसने भी आपसे खुश होकर आपकी शादी करा दी। आपको तो उसका अहसान मानना चाहिए...।

लक्ष्मी - (कमलिनी को झिड़ककर) फिर उसी रास्ते पर चलीं! खामखाह एक आदमी को..।

इन्द्रजीत - अबकी अगर वह मुझे मिले तो उसे बिना मारे कभी न छोडूं चाहे जो हो।

इन्द्रजीतसिंह की इस बात पर सब हंस पड़े और इसके बाद लक्ष्मीदेवी ने कुमार से कहा, “अच्छा अब यह बताइये कि मेरे चले जाने के बाद आपने तिलिस्म में क्या किया और क्या देखा”

इसी समय सर्यू भी आ पहुंची और बोली, “चलिये पहिले खा-पी लीजिए तब बातें कीजिये।”

लक्ष्मीदेवी के जिद करने से दोनों कुमारों को उठना पड़ा और भोजन इत्यादि से छुट्टी पाने के बाद फिर उसी ठिकाने बैठकर गप्पें उड़ने लगीं। कुमार ने अपना बिल्कुल हाल बयान किया और वे सब आश्चर्य से सब कथा सुनती रहीं। इसके बाद कुमार ने इन्दिरा से उसका बाकी किस्सा पूछा।

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8