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चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5

कुंअर इन्द्रजीतसिंह की बात सुनकर वह बुढ़िया चमक उठी और नाक-भौं चढ़ाकर बोली, “बुड्ढी औरतों से दिल्लगी करते तुम्हें शर्म नहीं मालूम होती।”

इन्द्र - क्या मैं झूठ कहता हूं?

बुढ़िया - इससे बढ़कर झूठ और क्या हो सकता है लोग किसी के पीछे झूठ बोलते हैं मगर आप मुंह पर झूठ बोलके अपने को सच्चा बनाने का उद्योग करते हैं! भला इस तिलिस्म में दूसरा आ ही कौन सकता है और यह भैरोसिंह कौन है जिसका नाम आपने लिया?

इन्द्रजीत - बस-बस, मालूम हो गया। मैं अपने को तुम्हारी जबान से...।

बुड्ढा - (इन्द्रजीतसिंह को रोककर) अजी आप किससे बातें कर रहे हैं यह तो पागल है। इसकी बातों पर ध्यान देना आप ऐसे बुद्धिमानों का काम नहीं है। (बुढ़िया से) तुझे यहां किसने बुलाया जो चली आई तेरे ही दुःख से तो भागकर मैं यहां एकान्त में आ बैठा हूं मगर तू ऐसी शैतान की नानी है कि यहां भी आए बिना नहीं रहती। सबेरा हुआ नहीं और खाने की रट लग गई!

बुड्ढी - अजी तो क्या तुम कुछ खाओ-पीओगे नहीं?

बुड्ढा - जब मेरी इच्छा होगी तब खा लूंगा, तुम्हें इससे मतलब (दोनों कुमारों से) आप इस कम्बख्त का खयाल छोड़िए और मेरे साथ चले आइए। मैं आपको ऐसी जगह ले चलता हूं जहां इसकी आत्मा भी न जा सके। उसी जगह हम लोग बातचीत करेंगे, फिर आप जैसा मुनासिब समझिएगा आज्ञा दीजिएगा।

यह बात उस बुड्ढे ने ऐसे ढंग से कही और इस तरह पलटा खाकर चल पड़ा कि दोनों कुमारों को उसकी बातों का जवाब देने या उस पर शक करने का मौका न मिला और वे दोनों भी उसके पीछे-पीछे रवाना हो गए।

उस कमरे के बगल ही में एक कोठरी थी और उस कोठरी में ऊपर छत पर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं। वह बुड्ढा दोनों कुमारों को साथ-साथ लिये हुए उस कोठरी में और वहां से सीढ़ियों की राह चढ़कर उसके ऊपर वाली छत पर ले गया। उस मंजिल में भी छोटी-छोटी कई कोठरियां और कमरे थे। बुड्ढे के कहे मुताबिक दोनों कुमारों ने एक-एक कमरे की जालीदार खिड़की में से झांककर देखा तो इस इमारत के पिछले हिस्से में एक और छोटा-सा बाग दिखाई दिया जो बनिस्बत इस बाग के जिसमें कुमार एक दिन और रात रह चुके थे ज्यादे खूबसूरत और सरसब्ज नजर आता था। उसमें फूलों के पेड़ बहुतायत से थे और पानी का एक छोटा-सा साफ झरना भी बह रहा था जो इस मकान की दीवार से दूर और उस बाग के पिछले हिस्से की दीवार के पास था, और उसी चश्मे के किनारे पर कई औरतों को भी बैठे हुए दोनों कुमारों ने देखा।

पहिले तो कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को यही गुमान हुआ कि ये औरतें किशोरी, कामिनी अैर कमलिनी इत्यादि होंगी मगर जब उनकी सूरत पर गौर किया तो दूसरी ही औरतें मालूम हुईं जिन्हें आज के पहिले दोनों कुमारों ने कभी नहीं देखा था।

इन्द्रजीत - (बुड्ढे से) क्या ये वे ही औरतें हैं जिनका जिक्र तुमने किया था और जिनमें से एक औरत का नाम तुमने कमलिनी बताया था?

बुड्ढा - जी नहीं, उनकी तो मुझे कुछ भी खबर नहीं कि वे कहां गईं और क्या हुईं।

आनन्द - फिर ये सब कौन हैं?

बुड्ढा - इन सभों के बारे में इससे ज्यादे और मैं कुछ नहीं जानता कि ये सब राजा गोपालसिंह के रिश्तेदार हैं और किसी खास सबब से राजा गोपालसिंह ने इन लोगों को यहां रख छोड़ा है।

इन्द्रजीत - ये सब यहां कब से रहती हैं?

बुड्ढा - सात वर्ष से।

इन्द्रजीत - इनकी खबरगीरी कौन करता है और खाने-पीने तथा कपड़े-लत्ते का इन्तजाम क्योंकर होता है?

बुड्ढा - इसकी मुझे भी खबर नहीं। यदि मैं इन सभों से कुछ बातचीत करता या इनके पास जाता तो कदाचित् कुछ मालूम हो जाता मगर राजा साहब ने मुझे सख्त ताकीद कर दी है कि इन सभों से कुछ बातचीत न करूं बल्कि इनके पास भी न जाऊं।

इन्द्रजीत - खैर यह बताओ कि हम लोग इनके पास जा सकते हैं या नहीं?

बुड्ढा - इन सभों के पास जाना-न जाना आपकी इच्छा पर है, मैं किसी तरह की रुकावट नहीं डाल सकता और न कुछ राय ही दे सकता हूं।

इन्द्रजीत - अच्छा इस बाग में जाने का रास्ता तो बता सकते हो?

बुड्ढा - हां, मैं खुशी से आपको रास्ता बता सकता हूं मगर स्वयं आपके साथ वहां तक नहीं जा सकता, इसके अतिरिक्त यह कह देना भी उचित जान पड़ता है कि यहां से उस बाग में जाने का रास्ता बहुत पेचीदा और खराब है, इसलिये वहां जाने में कम-से-कम एक पहर तो जरूर लगेगा। इससे यही बेहतर होगा कि यदि आप उस बाग में या उन सभों के पास जाना चाहते हैं तो कमन्द लगाकर इस खिड़की की राह से नीचे उतर जायं। ऐसा आप किया चाहें तो आज्ञा दें, मैं एक कमन्द आपको ला दूं।

इन्द्रजीत - हां यह बात मुझे पसन्द है, यदि एक कमन्द ला दो तो हम दोनों भाई उसी के सहारे नीचे उतर जायं।

वह बुड्ढा दोनों कुमारों को उसी तरह, उसी जगह छोड़कर कहीं चला गया और थोड़ी ही देर में एक बहुत बड़ी कमन्द हाथ में लिये हुए आकर बोला, “लीजिये यह कमन्द हाजिर है।”

इन्द्रजीत - (कमन्द लेकर) अच्छा तो अब हम दोनों इस कमन्द के सहारे उस बाग में उतर जाते हैं।

बुड्ढा - जाइये मगर यह बताते जाइये कि आप लोग वहां से लौटकर कब आवेंगे और मुझे आपको यहां की सैर कराने का मौका कब मिलेगा?

इन्द्रजीत - सो तो मैं ठीक नहीं कह सकता मगर तुम यह बता दो कि अगर हम लौटें तो यहां किस राह से आवें?

बुड्ढा - इसी कमन्द के जरिये इसी राह से आ जाइयेगा, मैं यह खिड़की आपके लिये खुली छोड़ दूंगा।

आनन्द - अच्छा यह बताओ कि भैरोसिंह की भी कुछ खबर है?

बुड्ढा - कुछ नहीं।

इसके बाद दोनों कुमारों ने उस बुड्ढे से कुछ भी न पूछा और खिड़की खोलने के बाद कमन्द लगाकर उसी के सहारे दोनों नीचे उतर गये।

दोनों कुमारों ने उद्यपि उन औरतों को ऊपर से बखूबी देख लिया था क्योंकि वह बहुत दूर नहीं पड़ती थीं मगर इस बात का गुमान न हुआ कि उन औरतों ने भी उन्हें उस समय या कमन्द के सहारे नीचे उतरते समय देखा या नहीं।

जब दोनों कुमार नीचे उतर गये तो कमन्द को भी खेंचकर साथ ले लिया और टहलते हुए उस तरफ रवाना हुए जिधर चश्मे के किनारे बैठी हुई वे औरतें कुमार ने देखी थीं। थोड़ी देर में कुमार उस चश्मे के पास जा पहुंचे और उन औरतों को उसी तरह बैठे हुए पाया। कुमार चश्मे के इस पार थे और वे सब औरतें जो गिनती में सात थीं चश्मे के उस पार सब्ज घास के ऊपर बैठी हुई थीं।

किसी गैर को अपनी तरफ आते देख वे सब औरतें चौकन्नी होकर उठ खड़ी हुईं और बड़े गौर के साथ मगर क्रोध भरी निगाहों से कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की तरफ देखने लगीं।

जिस जगह वे औरतें बैठी थीं उससे थोड़ी ही दूर पर दक्खिन तरफ बाग की दीवार के साथ ही एक छोटा-सा मकान भी बना हुआ था जो पेड़ों की आड़ में होने के कारण दोनों कुमारों को ऊपर से दिखाई नहीं दिया था मगर अब नहर के किनारे आ जाने पर बखूबी दिखाई दे रहा था।

वे औरतें जिन्हें नहर के किनारे कुमार ने देखा था, सबकी सब नौजवान और हसीन थीं। यद्यपि इस समय वे सब बनाव-शृंगार और जेवरों के ढकोसलों से खाली थीं मगर उनका कुदरती हुस्न ऐसा न था जो किसी तरह की खूबसूरती को अपने सामने ठहरने देता। यहां पर यदि ऐसी केवल एक औरत होती तो हम उसकी खूबसूरती के बारे में कुछ लिखते भी, मगर एकदम से सात ऐसी औरतों की तारीफ में कलम चलाना हमारी ताकत के बाहर है जिन्हें प्रकृति ने खूबसूरत बनाने के समय हर तरह पर अपनी उदारता का नमूना दिखाया हो।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने जब उन औरतों को अपनी तरफ क्रोध भरी निगाहों से देखते देखा तो एक औरत से मुलायम और गम्भीर शब्दों में कहा, “हम लोग तुम्हारे पास किसी तरह की तकलीफ देने की नीयत से नहीं आए हैं बल्कि यह कहने के लिए आए हैं कि किस्मत ने हम लोगों को अकस्मात् यहां पहुंचाकर तुम लोगों का मेहमान बनाया है। हम लोग लाचार और राह भूले हुए मुसाफिर हैं और तुम लोग यहां की रहने वाली और दयावान हो, क्योंकि जिस ईश्वर ने तुम्हें इतना सुन्दर बनाकर अपनी कारीगरी का नमूना दिखाया है उसने तुम्हारे दिल को कठोर बनाकर अपनी भूल का परिचय कदापि न दिया होगा, अतएव उचित है कि तुम लोग ऐसे समय में हमारी सहायता करो और बताओ कि अब हम दोनों भाई क्या करें और कहां जायें?'

औरतें खुशामद-पसन्द तो होती ही हैं! कुंअर इन्द्रजीतसिंह की मीठी और खुशामद भरी बातें सुनकर उन सभों की चढ़ी हुई त्यौरियां उतर गईं और होंठों पर कुछ मुस्कुराहट दिखाई देने लगी। एक ने जो सबसे चतुर, चंचल और चालाक जान पड़ती थी, आगे बढ़ कुंअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, “जब आप हमारे मेहमान बनते हैं और इस बात का विश्वास दिलाते हैं कि हमारे साथ दगा न करेंगे तो हम लोग भी निःसन्देह आपको अपना मेहमान स्वीकार करके जहां तक हो सकेगा आपकी सहायता करेंगी, अच्छा ठहरिए हम लोग जरा आपस में सलाह कर लें!”

इतना कहकर वह चुप हो गई। उन लोगों ने आपस में धीरे-धीरे कुछ बातें कीं और इसके बाद फिर उसी औरत ने इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखकर कहा –

औरत - (हाथ का इशारा करके) उस तरफ एक छोटा-सा पुल बना हुआ है, उसी पर से होकर आप इस पार चले आइए।

इन्द्र - क्या इस नहर में पानी बहुत ज्यादा है?

औरत - पानी तो ज्यादा नहीं है मगर इसमें लोहे के तेज नोक वाले गोखरू बहुत पड़े हैं इसलिये इस राह से आपका आना असम्भव है।

इन्द्र - अच्छा तो हम पुल पर से होकर आवेंगे।

इतना कह कुमार उस तरफ रवाना हुए जिधर उस औरत ने हाथ के इशारे से पुल का होना बताया था। थोड़ी दूर जाने के बाद एक गुंजान और खुशनुमा झाड़ी के अन्दर वह छोटा-सा पुल दिखाई दिया। इस जगह नहर के दोनों तरफ पारिजात के कई पेड़ थे जिनकी डालियां ऊपर से मिली हुई थीं और उस पर खूबसूरत फूल-पत्तों वाली बेलें इस ढंग से चढ़ी हुई थीं कि उनकी सुन्दर छाया में छिपा हुआ वह छोटा-सा पुल बहुत खूबसूरत और स्थान बड़ा रमणीक मालूम होता था। इस जगह से न तो दोनों कुमार उन औरतों को देख सकते थे और न उन औरतों की निगाह इन पर पड़ सकती थी।

जब दोनों कुमार पुल की राह पार उतरकर और घूम-फिरकर उस जगह पहुंचे जहां उन औरतों को छोड़ आए थे तो केवल दो औरतों को मौजूद पाया जिनमें से एक तो वही थी जिससे कुंअर इन्द्रजीतसिंह से बातचीत हुई थी और दूसरी उससे उम्र में कुछ कम मगर खूबसूरती में कुछ ज्यादे थी। बाकी औरतों का पता न था कि क्या हुईं और कहां गयीं। कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने ताज्जुब में आकर उस औरत से जिसने पुल की राह इधर आने का उपदेश किया था पूछा, “यहां तुम दोनों के सिवाय और कोई नहीं दिखाई देता, सब कहां चली गईं?'

औरत - आपको उन औरतों से क्या मतलब?

इन्द्रजीत - कुछ नहीं, यों ही पूछता हूं।

औरत - (मुस्कुराती हुई) वे सब आप दोनों भाइयों की मेहमानदारी का इन्तजाम करने चली गईं, अब आप मेरे साथ चलिये।

इन्द्रजीत - कहां ले चलोगी?

औरत - जहां मेरी इच्छा होगी, जब आपने मेरी मेहमानी कबूल ही कर ली तब...।

इन्द्रजीत - खैर अब इस किस्म की बातें न पूछूंगा और जहां ले चलोगी चला चलूंगा।

औरत - (मुस्कुराकर) अच्छा तो आइए।

दोनों कुमार उन दोनों औरतों के पीछे-पीछे रवाना हुए। हम कह चुके हैं कि जहां ये औरतें बैठी थीं वहां से थोड़ी ही दूर पर एक छोटा-सा मकान बना हुआ था। वे दोनों औरतें कुमारों को लिए उसी मकान के दरवाजे पर पहुंचीं जो इस समय बन्द था मगर कोई जंजीर-कुण्डा या ताला उसमें दिखाई नहीं देता था। कुमारों को यह भी मालूम न हुआ कि किस खटके को दबाकर या क्योंकर उसने वह दरवाजा खोला। दरवाजा खुलने पर उस औरत ने पहिले दोनों कुमारों को उसके अन्दर जाने के लिए कहा, जब दोनों कुमार उसके अन्दर चले गए तब उन दोनों ने भी दरवाजे के अन्दर पैर रक्खा और इसके बाद हलकी आवाज के साथ वह दरवाजा आप से आप बन्द हो गया। इस समय दोनों कुमारों ने अपने को एक सुरंग में पाया जिसमें अन्धकार के सिवाय और कुछ दिखाई नहीं देता था और जिसकी चौड़ाई तीन हाथ और ऊंचाई चार हाथ से किसी तरह ज्यादे न थी। इस जगह कुमार को इस बात का खयाल हुआ कि कहीं इन औरतों ने मुझे धोखा तो नहीं दिया मगर यह सोचकर चुप रह गये कि अब तो जो कुछ होना था हो ही गया और ये औरतें भी तो आखिर हमारे साथ ही हैं जिनके पास किसी तरह का हर्बा देखने में नहीं आया था।

दोनों कुमारों ने अपना हाथ पसारकर दीवाल को टटोला और मालूम किया कि यह सुरंग है, उसी समय पीछे से उस औरत की यह आवाज आई, “आप दोनों भाई किसी तरह का अन्देशा न कीजिए और सीधे चले चलिये, इस सुरंग में बहुत दूर तक जाने की तकलीफ आप लोगों को न होगी!”

वास्तव में यह सुरंग बहुत बड़ी न थी, चालीस-पचास कदम से ज्यादे कुमार न गए होंगे कि सुरंग का दूसरा दरवाजा मिला और उसे लांघकर कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने अपने को एक दूसरे ही बाग में पाया जिसकी जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा मकान, कमरों, बारहदरियों तथा और इमारतों के काम में लगा हुआ था और थोड़े हिस्से में मामूली ढंग का एक छोटा-सा बाग था। हां उस बाग के बीचोंबीच में एक छोटी-सी खूबसूरत बावली जरूर थी जिसकी चार अंगुल ऊंची सीढ़ियां सफेद लहरदार पत्थरों से बनी हुई थीं। इसके चारों कोनों पर चार पेड़ कदम्ब के लगे हुए थे और एक पेड़ के नीचे एक चबूतरा संगमर्मर का इस लायक था कि उस पर बीस-पचीस आदमी खुले तौर पर बैठ सकें। इमारत का हिस्सा जो कुछ बाग में था वह सब बाहर से तो देखने में बहुत ही खूबसूरत था मगर अन्दर से वह कैसा और किस लायक था सो नहीं कह सकते।

बावली के पास पहुंचकर उस औरत ने कुंअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, “यद्यपि इस समय धूप बहुत तेज हो रही है मगर इस पेड़ (कदम्ब) की घनी छाया में इस संगमर्मर के चबूतरे पर थोड़ी देर तक बैठने में आपको किसी तरह की तकलीफ न होगी, मैं बहुत जल्द (सामने की तरफ इशारा करके) इस कमरे को खुलवाकर आपके आराम करने का इन्तजाम करूंगी, केवल आधी घड़ी के लिए आप मुझे बिदा करें।”

इन्द्र - खैर जाओ मगर इतना बताती जाओ कि तुम दोनों का नाम क्या है जिससे यदि कोई आवे और कुछ पूछे तो कह सकें कि हम लोग फलाने के मेहमान हैं।

औरत - (हंसकर) जरूर जानना चाहिए, केवल इसलिये नहीं बल्कि कई कामों के लिए हम दोनों बहिनों का नाम जान लेना आपके लिए आवश्यक है! मेरा नाम 'इन्द्रानी' (दूसरी की तरफ इशारा करके) और इसका नाम 'आनन्दी' है, यह मेरी सगी छोटी बहिन है।

इतना कहकर वे औरतें तेजी के साथ एक तरफ चली गयीं और इस बात का कुछ भी इन्तजार न किया कि कुमार कुछ जवाब देंगे या और कोई बात पूछेंगे। उन दोनों औरतों के चले जाने के बाद कुंअर आनन्दसिंह ने अपने भाई से कहा, “इन दोनों औरतों के नाम पर आपने कुछ ध्यान दिया?'

इन्द्र - हां, यदि इनका यह नाम इनके बुजुर्गों का रक्खा हुआ और इनके शरीर का सबसे पहिला साथी नहीं है तो कह सकते हैं कि हम दोनों ने धोखा खाया।

आनन्द - जी मेरा भी यही खयाल है, मगर साथ ही इसके मैं यह भी खयाल करता हूं कि अब हम लोगों को चालाक बनना...।

इन्द्र - (जल्दी से) नहीं-नहीं, अब हम लोगों को जब तक छुटकारे की साफ सूरत दिखाई न दे जाय प्रकट में नादान बने रहना ही लाभदायक होगा।

आनन्द - निःसंदेह मगर इतना तो मेरा दिल अब भी कह रहा है कि ये सब हमारी जिन्दगी के धागे में किसी तरह का खिंचाव पैदा न करेंगी।

इन्द्र - मगर उसमें लंगर की तरह लटकने के लिए इतना बड़ा बोझ जरूर लाद देंगी कि जिसको सहन करना असम्भव नहीं तो असह्य अवश्य होगा।

आनन्द - हां, अब यदि हम लोगों को कुछ सोचना है तो इसी के विषय में...।

इन्द्रजीत - अफसोस, ऐसे समय में भैरोसिंह को भी इत्तिफाक ने हम लोगों से अलग कर दिया। ऐसे मौकों पर उसकी बुद्धि अनूठा काम किया करती है। (कुछ रुककर) देखो तो सामने से वह कौन आ रहा है!

आनन्द - (खुशी भरी आवाज में ताज्जुब के साथ) यह तो भैरोसिंह ही है! अब कोई परवाह की बात नहीं है अगर यह वास्तव में भैरोसिंह ही है।

अपने से थोड़ी ही दूर पर दोनों कुमारों ने भैरोसिंह को देखा जो एक कोठरी के अन्दर से निकलकर इन्हीं की तरफ आ रहा था। दोनों कुमार उठ खड़े हुए और मिलने के लिए खुशी-खुशी भैरोसिंह की तरफ रवाना हुए। भैरोसिंह ने भी इन्हें दूर से देखा और तेजी के साथ चलकर इन दोनों भाइयों के पास आया। दोनों भाइयों ने खुशी-खुशी भैरोसिंह को गले लगाया और उसे साथ लिये हुए उसी चबूतरे पर चले आए जिस पर इन्द्रानी उनको बैठा गई थी।

इन्द्रजीत - (चबूतरे पर बैठकर) भैरो भाई, यह तिलिस्म का कारखाना है, यहां फूंक-फूंक के कदम रखना चाहिए, अस्तु यदि मैं तुम पर शक करके तुम्हें जांचने का उद्योग करूं तो तुम्हें खफा न होना चाहिए।

भैरो - नहीं नहीं नहीं, मैं ऐसा बेवकूफ नहीं हूं कि आप लोगों की चालाकी और बुद्धिमानी की बातों से खफा होऊं। तिलिस्म और दुश्मन के घर में दोस्तों की जांच बहुत जरूरी है। बगल वाला मसा और कमर का दाग दिखलाने के अतिरिक्त बहुत-सी बातें ऐसी हैं जिन्हें सिवाय मेरे और आपके दूसरा कोई भी नहीं जानता जैसे 'लड़कपन वाला मजनूं।'

इन्द्रजीत - (हंसकर) बस-बस, मुझे जांच करने की कोई जरूरत नहीं रही, अब यह बताओ कि तुम्हारा बटुआ तुम्हें मिला या नहीं।

भैरो - (ऐयारी का बटुआ कुमार के आगे रखकर) आपके तिलिस्मी खंजर की बदौलत मेरा यह बटुआ मुझे मिल गया। शुक्र है कि इसमें की कोई चीज नुकसान नहीं गई, सब ज्यों-की-त्यों मौजूद हैं। (तिलिस्मी खंजर और उसके जोड़ की अंगूठी देकर) लीजिए अपना तिलिस्मी खंजर, अब मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं, मेरे लिए मेरा बटुआ काफी है।

इन्द्र - (अंगूठी और तिलिस्मी खंजर लेकर) अब यद्यपि तुम्हारा किस्सा सुनना बहुत जरूरी है क्योंकि हम लोगों ने एक आश्चर्यजनक घटना के अन्दर तुम्हें छोड़ा था, मगर इस सबके पहले अपना हाल तुम्हें सुना देना उचित जान पड़ता है क्योंकि एकान्त का समय बहुत कम है और उन दोनों औरतों के आ जाने में बहुत विलम्ब नहीं है जिनकी बदौलत हम लोग यहां आए हैं और जिनके फेर में अपने को पड़ा हुआ समझते हैं।

भैरो - क्या किसी औरत ने आप लोगों को धोखा दिया?

इन्द्रजीत - निश्चय तो नहीं कह सकता कि धोखा दिया मगर जो कुछ हाल है उसे सुन के राय दो कि हम लोग अपने को धोखे में फंसा हुआ समझें या नहीं।

इसके बाद कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने अपना कुल हाल भैरोसिंह से जुदा होने के बाद से इस समय तक का कह सुनाया। इसके जवाब में अभी भैरोसिंह ने कुछ कहा भी न था कि सामने वाले कमरे का दरवाजा खुला और उसमें से इन्द्रानी को निकलकर अपनी तरफ आते देखा।

इन्द्रजीत - (भैरो से) लो वह आ गई, एक तो यही औरत है, इसी का नाम इन्द्रानी है। मगर इस समय वह दूसरी औरत इसके साथ नहीं है जिसे यह अपनी सगी छोटी बहिन बताती है।

भैरो - (ताज्जुब से उस औरत की तरफ देखकर) इसे तो मैं पहिचानता हूं मगर यह नहीं जानता था कि इसका नाम 'इन्द्रानी' है।

इन्द्रजीत - तुमने इसे कब देखा?

भैरो - तिलिस्मी खंजर लेकर आपसे जुदा होने के बाद बटुआ पाने के सम्बन्ध में इसने मेरी बड़ी मदद की थी, जब मैं अपना हाल सुनाऊंगा तब आपको मालूम होगा कि यह कैसी नेक औरत है, मगर इसकी छोटी बहिन को मैं नहीं जानता, शायद उसे भी देखा हो।

इतने ही में इन्द्रानी वहां आ पहुंची जहां भैरोसिंह और दोनों कुमार बैठे बातचीत कर रहे थे। जिस तरह भैरोसिंह ने इन्द्रानी को देखते ही पहिचान लिया था उसी तरह इन्द्रानी ने भी भैरोसिंह को देखते ही पहिचान लिया और कहा, “क्या आप भी यहां आ पहुंचे अच्छा हुआ, क्योंकि आपके आने से दोनों कुमारों का दिल बहलेगा, इसके अतिरिक्त मुझ पर भी किसी तरह का शक-शुबहा न रहेगा।”

भैरो - जी हां, मैं भी यहां आ पहुंचा और आपको दूर से देखते ही पहिचान लिया बल्कि कुमार से कह भी दिया कि इन्होंने मेरी बड़ी सहायता की थी।

इन्द्रानी - यह तो बताओ कि स्नान-सन्ध्या से छुट्टी पा चुके हो या नहीं?

भैरो - हां, मैं स्नान-सन्ध्या से छुट्टी पा चुका हूं और हर तरह से निश्चिन्त हूं।

इन्द्रानी - (दोनों कुमारों से) और आप लोग?

इन्द्र - हम दोनों भाई भी।

इन्द्रानी - अच्छा तो अब आप लोग कृपा करके उस कमरे में चलिए।

भैरो - बहुत अच्छी बात है, (दोनो कुमारों से) चलिए।

भैरोसिंह को लिये हुए कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह उस कमरे में आए जिसे इन्द्रानी ने इनके लिए खोला था। कुमार ने इस कमरे को देखकर बहुत पसन्द किया क्योंकि यह कमरा बहुत बड़ा और खूबसूरती के साथ सजाया हुआ था। इसकी छत बहुत ऊंची और रंगीन थी, तथा दीवारों पर भी मुसौवर ने अनोखा काम किया था। कुछ दीवारों पर जंगल, पहाड़, खोह, कंदरा, घाटी और शिकारगाह तथा बहते हुए चश्मे का अनोखा दृश्य ऐसे अच्छे ढंग से दिखाया गया था कि देखने वाला नित्य पहरों देखा करे और उसका चित्त न भरे। मौके-मौके से जंगली जानवरों की तस्वीरें भी ऐसी बनी थीं कि देखने वालों को उनके असल होने का धोखा होता था। दीवारों पर बनी हुई तस्वीरों के अतिरिक्त कागज और कपड़ों पर बनी हुई तथा सुन्दर चौखटों में जड़ी हुई तस्वीरों की भी इस कमरे में कमी न थी। ये तस्वीरें केवल हसीन और नौजवान औरतों की थीं जिनकी खूबसूरती और भाव को देखकर देखने वाला प्रेम से दीवाना हो सकता था। इन्हीं तस्वीरों में इन्द्रानी और आनन्दी की तस्वीरें भी थीं जिन्हें देखते ही कुंअर इन्द्रजीतसिंह हंस पड़े और भैरोसिंह की तरफ देखके बोले, “देखो वह तस्वीर इन्द्रानी की और यह उनकी बहिन आनन्दी की हैं। उन्हें तुमने न देखा होगा!”

भैरो - जी इनकी छोटी बहिन को तो मैंने नहीं देखा।

इन्द्र - स्वयम् जैसी खूबसूरत है वैसी ही तस्वीर भी बनी है। (इन्द्रानी की तरफ देखकर) मगर अब हमें इस तस्वीर के देखने की कोई जरूरत नहीं।

इन्द्रानी - (हंसकर) बेशक, क्योंकि अब आप स्वतन्त्र और लड़के नहीं रहे।

इन्द्रानी का जवाब सुन भैरोसिह तो खिलखिलाकर हंस पड़ा मगर आनन्दसिंह ने मुश्किल से हंसी रोकी।

इस कमरे में रोशनी का सामान (दीवारगीर, डोल हांडी इत्यादि) भी बेशकीमत खूबसूरत और अच्छे ढंग से लगा हुआ था। सुन्दर बिछावन और फर्श के अतिरिक्त चांदी और सोने की कई कुर्सियां भी उस कमरे में मौजूद थीं जिन्हें देखकर कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने एक सोने की कुर्सी पर बैठने का इरादा किया मगर इन्द्रानी ने सभ्यता के साथ रोककर कहा - “पहिले आप लोग भोजन कर लें क्योंकि भोजन का सब सामान तैयार है और ठंडा हो रहा है।”

इन्द्र - भोजन करने की तो इच्छा नहीं है।

इन्द्रानी - (चेहरा उदास बनाकर) तो फिर आप हमारे मेहमान ही क्यों बने थे क्या आप अपने को बेमुरौवत और झूठा बनाया चाहते हैं।

इन्द्रानी ने कुमार को हर तरह से कायल और मजबूर करके भोजन करने के लिए तैयार किया। इस कमरे में छोटा-सा एक दरवाजा दूसरे कमरे में जाने के लिए बना हुआ था, इसी राह से दोनों कुमार और भैरोसिंह को लिये हुए इन्द्रानी कमरे में पहुंची। यह कमरा बहुत ही छोटा और राजाओं के पूजा-पाठ तथा भोजन इत्यादि ही के योग्य बना हुआ था। कुमार ने देखा कि दोनों भाइयों के लिए उत्तम से उत्तम भोजन का सामान चांदी और सोने के बर्तनों में तैयार है और हाथ में सुन्दर पंखा लिए आनन्दी उसकी हिफाजत कर रही है। इन्द्रानी ने आनन्दी के हाथ से पंखा ले लिया और कहा, “भैरोसिंह भी आ पहुंचे हैं, इनके वास्ते भी सामान बहुत जल्द ले आओ।”

आज्ञा पाते ही आनन्दी चली गई और थोड़ी देर में कई औरतों के साथ भोजन का सामान लिए लौट आई। करीने से सब सामान लगाने के बाद उसने उन औरतों को बिदा किया जिन्हें अपने साथ लाई थी।

दोनों कुमार और भैरोसिंह भोजन करने के लिए बैठे, उस समय इन्द्रजीतसिंह ने भेद-भरी निगाह से भैरोसिंह की तरफ देखा और भैरोसिंह ने भी इशारे में ही लापरवाही दिखा दी। इस बात को इन्द्रानी और आनन्दी ने भी ताड़ लिया कि कुमार को इस भोजन में बेहोशी की दवा का शक हुआ मगर कुछ बोलना मुनासिब न समझकर चुप रह गई। जब तक दोनों कुमार भोजन करते रहे तब तक आनन्दी पंखा हांकती रही। दोनों कुमार इन दोनों औरतों का बर्ताव देखकर बहुत खुश हुए और मन में कहने लगे कि ये औरतें जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही नेक भी हैं। जिनके साथ ब्याही जायंगी उनके बड़भागी होने में कोई सन्देह नहीं (क्योंकि ये दोनों कुमारी मालूम होती थीं।)

भोजन समाप्त होने पर आनन्दी ने दोनों कुमारों और भैरोसिंह के हाथ धुलाये और इसके बाद फिर दोनों कुमार और भैरोसिंह इन्द्रानी और आनन्दी के साथ उसी पहिले वाले कमरे में आये। इन्द्रानी ने कुंअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, “अब थोड़ी देर आप लोग आराम करें और मुझे इजाजत दें तो...।”

इन्द्रजीत - मेरा जी तुम लोगों का हाल जानने के लिए बेचैन हो रहा है, इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम एक पल के लिए भी कहीं जाओ, जब तक कि मेरी बातों का पूरा-पूरा जवाब न दे लो। मगर यह तो बताओ कि तुम लोग भोजन कर चुकी हो या नहीं!

इन्द्रानी - जी अभी तो हम लोगों ने भोजन नहीं किया है, जैसी मर्जी हो...।

इन्द्रजीत - तब मैं इस समय नहीं रोक सकता, मगर इस बात का वादा जरूर ले लूंगा कि तुम घण्टे भर से ज्यादे न लगाओगी और मुझे अपने इन्तजार का दुःख न दोगी।

इन्द्रानी - जी मैं वादा करती हूं कि घण्टे भर के अन्दर ही आपकी सेवा में लौट आऊंगी।

इतना कहकर आनन्दी को साथ लिये हुए इन्द्रानी चली गई और दोनों कुमार तथा भैरोसिंह को बातचीत करने का मौका दे गई।

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
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चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8