चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10
अब हम अपने पाठकों को फिर उसी सफर में ले चलते हैं जिसमें चुनार जाने वाले राजा वीरेन्द्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। पाठकों को याद होगा कि कम्बख्त मनोरमा ने तिलिस्मी खंजर से किशोरी, कामिनी और कमला का सिर काट डाला और खुशी-भरी आवाज में कुछ कह रही थी कि पीछे की तरफ से आवाज आई, “नहीं-नहीं, ऐसा न हुआ है न होगा!”
आवाज देने वाला भैरोसिंह था जिसे मनोरमा को खोज निकालने का काम सुपुर्द किया गया था। वह मनोरमा की खोज में चक्कर लगाता और टोह लेता हुआ उसी जगह जा पहुंचा था मगर उसे इस बात का बड़ा ही अफसोस था कि उन तीनों का सिर कट जाने के बाद वह खेमे के अन्दर पहुंचा।
हमारे ऐयार की आवाज सुनकर मनोरमा चौंकी और उसने घूमकर पीछे की तरफ देखा तो हाथ में खंजर लिये हुए भैरोसिंह पर निगाह पड़ी। यद्यपि भैरोसिंह पर नजर पड़ते ही वह जिन्दगी से ना-उम्मीद हो गई फिर भी उसने तिलिस्मी खंजर का वार भैरोसिंह पर किया। भैरोसिंह पहिले से होशियार था और उसके पास भी तिलिस्मी खंजर मौजूद था। अस्तु, उसने अपने खंजर पर इस ढंग से मनोरमा के खंजर का वार रोका कि मनोरमा की कलाई भैरोसिंह के खंजर पर पड़ी और वह कटकर तिलिस्मी खंजर सहित दूर जा गिरी। भैरोसिंह ने इतने ही पर सब्र न करके उसी खंजर से मनोरमा की एक टांग काट डाली और इतने के बाद जोर से चिल्लाकर पहरे वालों को आवाज दी।
पहरे वाले तो पहिले ही से बेहोश पड़े हुए थे मगर भैरोसिंह की आवाज ने लौंडियों को होशियार कर दिया और बात की बात में बहुत-सी लौंडियां उस खेमे के अन्दर आ पहुंचीं जो वहां की अवस्था देखकर जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगीं।
थोड़ी देर में उस खेमे के अन्दर और बाहर भीड़ लग गई। जिधर देखिए उधर मशाल जल रही है और आदमी पर आदमी टूटा पड़ता है। राजा वीरेन्द्रसिंह ओर तेजसिंह भी उस खेमे में गये और वहां की अवस्था देखकर अफसोस करने लगे। तेजसिंह ने हुक्म दिया कि तीनों लाशें उसी जगह ज्यों-की-त्यों रहने दी जायें और मनोरमा (जो कि चेहरा धुल जाने के कारण पहिचानी जा चुकी थी) वहां से उठवाकर दूसरे खेमे में पहुंचाई जाय। उसके जख्म पर पट्टी लगाई जाय और उस पर सख्त पहरा रहे। इसके बाद भैरोसिंह और तेजसिंह को साथ लिए हुए राजा वीरेन्द्रसिंह अपने खेमे में आये और बातचीत करने लगे। उस समय खेमे के अन्दर सिवाय इन तीनों के और कोई भी न था। भैरोसिंह ने अपना हाल बयान किया और कहा, “मुझे इस बात का बड़ा दुःख है कि किशोरी, कामिनी और कमला का सिर कट जाने के बाद मैं उस खेमे के अन्दर पहुंचा!”
तेज - अफसोस की कोई बात नहीं है, ईश्वर की कृपा से हम लोगों को यह बात पहिले ही मालूम हो गई थी कि मनोरमा हमारे लश्कर के साथ है।
भैरो - अगर यह बात मालूम हो गई थी तो आपने इसका इन्तजाम क्यों नहीं किया और इन तीनों की तरफ से बेफिक्र क्यों रहे?
तेज - हम लोग बेफिक्र नहीं रहे बल्कि जो कुछ इन्तजाम करना वाजिब था किया गया। तुम यह सुनकर ताज्जुब करोगे कि किशोरी, कामिनी और कमला मरी नहीं बल्कि ईश्वर की कृपा से जीती हैं, और लौंडी की सूरत में हरदम पास रहने पर भी मनोरमा ने धोखा खाया।
भैरो - मनोरमा ने धोखा खाया और वे तीनों जीती हैं?
तेज - हां, ऐसा ही है। इसका खुलासा हाल हम तुमसे कहते हैं मगर पहिले बताओ कि तुमने मनोरमा को कैसे पहिचाना हम तो कई दिनों से पहिचानने की फिक्र में लगे हुए थे मगर पहिचान न सके क्योंकि मनोरमा के कब्जे में तिलिस्मी खंजर का होना हमें मालूम था और हम हर लौंडी की उंगलियों पर तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अंगूठी देखने की नीयत से निगाह रखते थे।
भैरो - मैं उसका पता लगाता हुआ इसी लश्कर में आ पहुंचा था। उस समय टोह लेता हुआ जब मैं किशोरी के खेमे के पास पहुंचा तो पहरे के सिपाही को बेहोश और खेमे का पर्दा हटा हुआ देख मुझे किसी दुश्मन के अन्दर जाने का गुमान हुआ और मैं भी उसी राह से खेमे के अन्दर चला गया। जब वहां की अवस्था देखी और उसके मुंह से निकली हुई बातें सुनीं तब शक हुआ कि यह मनोरमा है मगर निश्चय तब ही हुआ जब उसका चेहरा साफ किया गया और आपने भी पहिचाना। अब आप कृपा कर यह बताइए कि किशोरी, कामिनी और कमला क्योंकर जीती बचीं और जो तीनों मारी गईं वे कौन थीं?
तेज - हमें इस बात का पता लग चुका था कि भेष बदले हुए मनोरमा हमारे लश्कर के साथ है, मगर जैसा कि तुमसे कह चुके हैं उद्योग करने पर भी हम उसे पहिचान न सके। एक दिन हम और राजा साहब संध्या के समय टहलते हुए खेमे से दूर चले गये और एक छोटे टीले पर चढ़कर अस्त होते हुए सूर्य की शोभा देखने लगे। उस समय कृष्णा जिन्न का भेजा हुआ एक सवार हमारे पास आया और उसने एक चिट्ठी राजा साहब के हाथ में दी, राजा साहब ने चिट्ठी पढ़कर मुझे दी। उसमें लिखा हुआ था - “मुझे इस बात का पूरा-पूरा पता लग चुका है कि कई सहायकों को साथ लिए और भेष बदले हुए मनोरमा आपके लश्कर में मौजूद है और उसके अतिरिक्त और भी कई दुष्ट किशोरी और कामिनी के साथ दुश्मनी किया चाहते हैं इसलिए मेरी राय है कि बचाव तथा दुश्मनों को धोखा देने के लिए किशोरी, कामिनी और कमला को कुछ दिन तक छिपा देना चाहिए और उनकी जगह सूरत बदलकर दूसरी लौंडियों को रख देना चाहिए। इस काम के लिए मेरा एक तिलिस्मी मकान जो आपके रास्ते में ही कुछ दूर हटकर पड़ेगा मुनासिब है, और मैंने इस काम के लिए वहां पूरा इन्तजाम भी कर दिया है। लौंडियां भी सूरत बदलने और खिदमत करने के लिए भेज दी हैं क्योंकि आपकी लौंडियों की सूरत बदलना ठीक न होगा और लश्कर में लौंडियों की कमी से लोगों को शक हो जायेगा। अस्तु आप बहुत जल्द इन्तजाम करके उन तीनों को वहां पहुंचाइए, मैं भी इन्तजाम करने के लिए पहिले ही से उस मकान में जाता हूं - “ इत्यादि, इसके बाद उस मकान का पूरा-पूरा पता लिखकर अपना दस्तखत एक निशान के साथ कर दिया जिससे हम लोगों को चिट्ठी लिखने वाले पर किसी तरह का शक न हो और उस मकान के अन्दर जाने की तर्कीब भी लिख दी थी।
कृष्णा जिन्न की राय को राजा साहब ने स्वीकार किया और पत्र का उत्तर देकर वह सवार बिदा कर दिया गया। रात के समय किशोरी, कामिनी और कमला को ये बातें समझा दी गईं और उन्होंने उसी दुष्ट मनोरमा की जुबानी दोपहर के बाद यह कहला भेजा, “हमने सुना है कि यहां से थोड़ी ही दूर पर कोई तिलिस्मी मकान है, यदि आप चाहें तो हम लोग उस मकान की सैर कर सकती हैं” इत्यादि। मतलब यह कि इसी बहाने से मैं खुद उन तीनों को रथ पर सवार कराके उस मकान में ले गया और कृष्णा जिन्न को वहां मौजूद पाया। उसने अपने हाथ से अपनी तीन लौंडियों को किशोरी, कामिनी और कमला बना हमारे रथ पर सवार कराया और हम उन्हें लेकर इस लश्कर में लौट आये। तुम जानते ही हो कि कृष्णा जिन्न कितना बड़ा बुद्धिमान और होशियार तथा हम लोगों का दोस्त आदमी है।
भैरो - बेशक, उनकी हिफाजत में किशोरी, कामिनी और कमला को किसी तरह की तकलीफ नहीं हो सकती और यह आपने बड़ी खुशी की बात सुनाई मगर मैं समझता हूं कि इन भेदों को अभी आप गुप्त रक्खेंगे और यह बात जाहिर न होने देंगे कि वे तीनों जो मारी गई हैं वास्तव में किशोरी, कामिनी और कमला न थीं।
तेज - नहीं-नहीं, अभी इस भेद का खुलना उचित नहीं है। सभों को यही मालूम रहना चाहिए कि वास्तव में किशोरी, कामिनी और कमला मारी गईं। अच्छा अब दो-चार बातें तुम्हें और कहनी हैं, वह भी सुन लो।
भैरो - जो आज्ञा।
तेज - कृष्णा जिन्न तो काम-काजी आदमी ठहरा और वह ऐसे-ऐसे बखेड़ों में फंसा है कि उसे दम मारने की फुर्सत नहीं।
भैरो - निःसन्देह ऐसा ही है। इतना काम जो वह करते हैं सो भी उन्हीं की बुद्धिमानी का नतीजा है, दूसरा नहीं कर सकता।
तेज - अस्तु कृष्णा जिन्न तो ज्यादे दिनों तक उस मकान में रह नहीं सकता जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला हैं। वह अपने ठिकाने चला गया होगा। मगर उन तीनों की हिफाजत का पूरा-पूरा बन्दोबस्त कर गया होगा। अब तुम भी इसी समय उस मकान की तरफ चले जाओ और जब तक हमारा दूसरा हुक्म न पहुंचे या कोई आवश्यक काम न आ पड़े तब तक उन तीनों के साथ रहो, हम उस मकान का पता तथा उसके अन्दर जाने की तर्कीब तुम्हें बता देते हैं।
भैरो - जो आज्ञा, मैं अभी जाने के लिए तैयार हूं।
तेजसिंह ने उस मकान का पूरा-पूरा हाल भैरोसिंह को बता दिया और भैरोसिह उसी समय अपने बाप का चरण छूकर बिदा हुए।
भैरोसिंह के जाने के बाद सबेरा होने पर ब्राह्मण द्वारा नकली किशोरी, कामिनी और कमला की मृत देह की दाह-क्रिया कर दी गई। इसके पहिले ही लश्कर में जितने पढ़े-लिखे ब्राह्मण थे सभी को बटोरकर तेजसिंह ने यह व्यवस्था करा ली थी कि इन तीनों का कोई नातेदार यहां मौजूद नहीं है, इसलिए किसी ब्राह्मण द्वारा इतनी क्रिया करा देनी चाहिए। इस काम से छुट्टी पाने के बाद लश्कर कूच कर दिया और सब कोई धीरे-धीरे चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुए।