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चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11

संध्या होने में अभी दो घण्टे से कुछ ज्यादे देर थी जब कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और भैरोसिंह कमरे से बाहर निकलकर बाग के उस हिस्से में घूमने लगे जो तरह-तरह के खुशनुमा पेड़, फूल-पत्तों, गमलों और फैली हुई लताओं से सुन्दर और सुहावना मालूम पड़ता था क्योंकि इन तीनों को इन्द्रानी के मुंह से निकले हुए ये शब्द बखूबी याद थे कि 'मगर आप लोग किसी मकान के अन्दर जाने का उद्योग न करें'।

भैरो - (घूमते हुए एक फूल तोड़कर) यहां एक तो बागीचे के लिए बहुत कम जमीन छोड़ी गई है दूसरे जो कुछ जमीन छोड़ी गई है उसमें भी काम खूबी और खूबसूरती के साथ नहीं लिया गया है, जहां पर जिस ढंग के पेड़ होने चाहिए वैसे नहीं लगाए गए हैं।

आनन्द - बाग के शौकीन लोग प्रायः बेला, चमेली, जुही और गुलाब इत्यादि खुशबूदार फूलों के पेड़ क्यारियों के बीच में लगाते हैं।

इन्द्रजीत - ऐसा न होना चाहिए, क्यारियों के अन्दर केवल पहाड़ी गुलबूटों के ही लगाने में मजा है, जूही, बेला, मोतिया इत्यादि देशी खुशबूदार फूलों को रविशों के दोनों तरफ लगाना चाहिए जिससे सैर करने वाला घूमता-फिरता जब चाहे एक-दो फूल तोड़के सूंघ सके।

आनन्द - बेशक, ऐसा न होना चाहिए कि खुशबूदार फूल तोड़ने की लालच में कहीं सैर करने वाला बुद्धि विसर्जन करके क्यारी के बीच में पैर रक्खे और जूते समेत फिल्ली तक जमीन के अन्दर जा रहे क्योंकि सिंचाव का पानी क्यारियों में जमा होकर कीचड़ करता है, इसलिए क्यारियों के बीच में उन्हीं पेड़-पौधों का होना आवश्यक है जिन्हें केवल देखने ही से तृप्ति हो जाय और जिनमें ज्यादे सर्दी और पानी को बर्दाश्त करने की ताकत हो।

भैरो - मेरी भी यही राय है, मगर साथ ही इसके यह भी कहूंगा कि गुलाब के पेड़ रविशों के दोनों तरफ न लगाने चाहिए जिसमें कांटों की बदौलत सैर करने वाले के (यदि वह भूल से कुछ किनारे की तरफ जा रहे तो) कपड़ों की दुर्गति हो जाय, उसके लिए क्यारी अलग ही होनी चाहिए जिसकी जमीन बहुत नम न हो।

इन्द्रजीत - ठीक है, इसी तरह चमेली के पेड़ों की कतार भी ऐसी जगह लगाना चाहिए जहां टट्टी बनाकर आड़ कर देने का इरादा हो।

भैरो - आड़ का काम तो मेंहदी की टट्टी से भी लिया जाता है।

इन्द्रजीत - हां लिया जाता है मगर जमीन के उस हिस्से में जो बीच वाली या खास जलसे वाली इमारत से कुछ दूर हो, क्योंकि मेंहदी जब फूलती है तो अपने सिवाय और फूलों की खुशबू का आनन्द लेने की इजाजत नहीं देती।

आनन्द - जैसे कि अब भैरोसिंह को हम लोग अपने साथ चलने की इजाजत न देंगे।

भैरो - (चौंककर) हैं! इसका क्या मतलब?

आनन्द - इसका मतलब यही है कि अब आप थोड़ी देर के लिए हम दोनों भाइयों का पिण्ड छोड़िये और कुछ दूर हटकर उधर की रविशों पर पैर थिरकाइए।

भैरो - (कुछ चिढ़कर) क्या अब मुझ ऐसे साथी और ऐयार से भी बात छिपाने की नौबत आ गई?

आनन्द - (इन्द्रजीतसिंह का इशारा पाकर) हां, और इसलिए कि बात छिपाने का कायदा तुम्हारी तरफ से जारी हो गया।

भैरो - सो कैसे?

आनन्द - अपने दिल से पूछो।

भैरो - क्या मैं वास्तव में भैरोसिंह नहीं हूं?

आनन्द - तुम्हारे भैरोसिंह होने में कोई शक नहीं है बल्कि तुम्हारी बातों की सचाई में शक है।

भैरो - यह शक कब से हुआ?

आनन्द - जब से तुमने स्वयम् कहा कि राजा गोपालसिंह ने तुम्हें इस तिलिस्म में पहुंचाते समय ताकीद कर दी थी कि सब काम कमलिनी की आज्ञानुसार करना, यहां तक कि यदि कमलिनी तुम्हें सामना हो जाने पर भी कुमार से मिलने के लिए मना करे तो तुम कदापि न मिलना।1

भैरो - (कुछ सोचकर) हां ठीक है, मगर आपको यह कैसे निश्चय हुआ कि मैंने राजा गोपालसिंह की बात मान ली?

इन्द्र - यह इसी से मालूम हो गया कि तुमने अपने बटुए का जिक्र करते समय तिलिस्मी खंजर का जिक्र छोड़ दिया।

भैरो - (कुछ सोचकर और शर्माकर) बेशक यह मुझसे भूल हुई।

आनन्द - कि उस तिलिस्मी खंजर के लिए भी कोई अनूठा किस्सा गढ़कर हम लोगों को सुना न दिया।

भैरो - (और भी शर्माकर) नहीं ऐसा नहीं है, उस समय मैं इतना कहना भूल गया कि ऐयारी के बटुए के साथ-साथ वह तिलिस्मी खंजर मुझे उस नकाबपोश या पीले मकरन्द से नहीं मिला, उन्होंने कसम खाकर कहा कि तुम्हारा खंजर हममें से किसी के पास नहीं है।

आनन्द - हां - और तुमने मान लिया!

भैरो - (हिचकता हुआ) इस जरा-सी भूल के हो जाने पर ऐसा न होना चाहिए कि आप लोग अपना विश्वास मुझ पर से उठा लें।

इन्द्रजीत - नहीं-नहीं, इससे हम लोगों का खयाल ऐसा नहीं हो सकता कि तुम भैरोसिंह नहीं हो या अगर हो भी तो हमारे दुश्मनों के साथी बनकर हमें नुकसान पहुंचाया चाहते हो! कदापि

1. देखिए चंद्रकान्ता सन्तति, सत्रहवां भाग, चौदहवां बयान।

नहीं। हम लोग अब भी तुम्हारा उतना ही भरोसा रखते हैं जितना पहिले रखते थे, मगर कुछ देर के लिए जिस तरह तुम असली बातों को छिपाते हो उसी तरह हम भी छिपावेंगे।

अभी भैरोसिंह इस बात का जवाब सोच ही रहा था कि सामने से एक औरत आती हुई दिखाई पड़ी। तीनों का ध्यान उसी तरफ चला गया। कुछ पास आने और ध्यान देने पर दोनों कुमारों ने उसे पहिचान लिया कि इसे हम बाग में आने के पहिले इन्द्रानी और आनन्दी के साथ नहर के किनारे देख चुके हैं।

आनन्द - यह भी उन्हीं औरतों में से है जिन्हें हम लोग इन्द्रानी और आनन्दी के साथ पहिले बाग में नहर के किनारे देख चुके हैं!

इन्द्रजीत - बेशक, मगर सब की सब एक ही खानदान की मालूम पड़ती हैं यद्यपि उम्र में इन सभों के बहुत फर्क नहीं है।

आनन्द - देखा चाहिए यह क्या सन्देशा लाती है।

इतने में वह कुमार के और पास आ पहुंची और हाथ जोड़कर दोनों कुमारों की तरफ देखती हुई बोली, “इन्द्रानी और आनन्दी ने हाथ जोड़कर आप दोनों से इस बात की माफी मांगी है कि अब वे दोनों आप लोगों के सामने हाजिर नहीं हो सकतीं।”

इन्द्रजीत - (ताज्जुब से) सो क्यों?

औरत - उन्हें इस बात का बहुत रंज है कि वे आप लोगों की खातिरदारी अच्छी तरह से न कर सकीं और उनके गुरु महाराज ने उन्हें आप लोगों का सामना करने से रोक दिया।

इन्द्रजीत - आखिर इसका कोई सबब भी है?

औरत - इसके सिवाय तो और कोई सबब नहीं जान पड़ता कि उन दोनों की शादी आप दोनों भाइयों के साथ होने वाली है।

इन्द्रजीत - (ताज्जुब के साथ) मुझसे और आनन्द से!

औरत - जी हां।

इन्द्रजीत - हमारे या हमारे बुजुर्गों की इच्छा के बिना ही?

औरत - जी हां।

इन्द्रजीत - चाहे हम लोग राजी हों या न हों?

औरत - जी हां।

इन्द्रजीत - तब तो यह खासी जबर्दस्ती है!

औरत - जी हां।

इन्द्रजीत - क्या उनके गुरु महाराज में इतनी सामर्थ्य है कि अपनी इच्छानुसार हम लोगों के साथ बर्ताव करें?

औरत - जी हां।

इन्द्रजीत - (झुंझलाकर) कभी नहीं, कदापि नहीं!

आनन्द - ऐसा हो ही नहीं सकता! (औरत से, जो जाने के लिए अपना मुंह फेर चुकी थी) क्या तुम जाती हो?

औरत - जी हां।

इन्द्रजीत - क्या भेजने वालों ने तुम्हें कह दिया था कि 'जी हां' के सिवाय और कुछ मत बोलना?

औरत - जी हां।

इन्द्रजीतसिंह की झुंझलाहट देखकर उस औरत को भी हंसी आ गई और वह मुस्कुराती हुई जिधर से आई थी उधर ही चली गई तथा थोड़ी दूर जाकर नजरों से गायब हो गई। तब भैरोसिंह ने दिल्लगी के तौर पर कुमार से कहा, “आप लोगों की खुशकिस्मती का कोई ठिकाना है! रम्भा और उर्वशी के समान औरतें जबर्दस्ती आप लोगों के गले मढ़ी जाती हैं, तिस पर मजा यह कि आप लोग नखरा करते हैं! ऐसा ही है तो मुझे कहिए मैं आपकी सूरत बनकर ब्याह कर लूं।”

इन्द्रजीत - तब कमला किसके नाम की हांडी चढ़ावेगी?

भैरो - अजी कमला से क्या जाने कब मुलाकात हो और क्या हो! यह तो परोसी हुई थाली ठहरी।

इन्द्रजीत - ठीक है मगर भैरोसिंह, जहां तक मेरा खयाल है मैं समझता हूं कि तुम्हें इस ब्याह-शादी वाले मामले की कुछ-न-कुछ खबर जरूर है।

भैरो - अगर खबर हो भी तो अब मैं कुछ कहने का साहस नहीं कर सकता।

आनन्द - सो क्यों?

भैरो - इसलिए कि आप लोग मुझे झूठा समझ चुके हैं।

इन्द्र - सो तो जरूर है।

भैरो - (चिढ़कर) अगर ऐसा ही खयाल है तो अब मैं आप लोगों के साथ रहना भी मुनासिब नहीं समझता।

इन्द्र - मेरी भी यही राय है।

भैरो - अच्छा तो (सलाम करता हुआ) जय माया की।

इन्द्र - जय माया की!

आनन्द - जय माया की, मगर यह तो मालूम हो कि आप जायेंगे कहां?

भैरो - इससे आपको कोई मतलब नहीं।

इन्द्र - हां साहब, इससे हम लोगों को मतलब नहीं, आप जाइए और जल्द जाइए।

इसके जवाब में भैरोसिंह ने कुछ भी न कहा और वहां से रवाना होकर पूरब तरफ वाली इमारत के नीचे वाली एक कोठरी में घुस गया, इसके बाद मालूम न हुआ कि भैरोसिंह का क्या हुआ या वह कहां गया। उसके जाने के बाद दोनों कुमार भी धीरे-धीरे उसी कोठरी में चले गए मगर वहां भैरोसिंह दिखाई न पड़ा और न उस कोठरी में से किसी तरफ जाने का रास्ता ही मालूम हुआ।

इन्द्र - (आनन्द से) क्यों हम लोगों का खयाल ठीक निकला न!

आनन्द - निःसन्देह वह झूठा था, अगर ऐसा न होता तो जानकारों की तरह इस कोठरी में घुसकर गायब न हो जाता।

इन्द्र - बात तो यह है कि तिलिस्म के इस भाग में बहुत समझ-बूझकर काम करना चाहिए जहां की आबोहवा अपनों को भी पराया कर देती है।

आनन्द - मामला तो कुछ ऐसा ही नजर आता है। मेरी राय में तो अब यहां चुपचाप बैठना भी व्यर्थ जान पड़ता है। यहां से किसी तरफ जाने का उद्योग करना चाहिए।

इन्द्र - अब आज की रात तो सब्र करके बिता दो, कल सबेरे कुछ-न-कुछ बन्दोबस्त जरूर करेंगे।

इसके बाद दोनों भाई वहां से हटे और टहलते हुए बावली के पास आकर संगमर्मर वाले चबूतरे पर बैठ गए। उसी समय उन्होंने एक आदमी को सामने वाली इमारत के अन्दर से निकलकर अपनी तरफ आते देखा।

यह शख्स वही बुड्ढा दारोगा था जिससे पहले बाग में मुलाकात हो चुकी थी, जिसने नानक को गिरफ्तार किया था और जिसके दिये हुए कमन्द के सहारे दोनों कुमार उस दूसरे बाग में उतरकर इन्द्रानी और आनन्दी से मिले थे।

जब वह कुमार के पास पहुंचा तो साहब-सलामत के बाद कुमारों ने उसे इज्जत के साथ अपने पास बैठाया और यों बातचीत होने लगी –

इन्द्रजीत - आज पुनः आपसे मुलाकात होने की आशा तो न थी?

दारोगा - बेशक मुझे भी इस बात का गुमान न था परन्तु एक आवश्यक कार्य के कारण मुझे आप लोगों की सेवा में उपस्थित होना पड़ा। क्षमा कीजिएगा जिस समय आप कमन्द के सहारे उस बाग में उतरे थे उस समय मुझे इस बात की कुछ भी खबर न थी कि उन औरतों में जिन्हें देखकर आप उस बाग में गए थे दो औरतें ऐसी हैं जिन्हें और बातों के अतिरिक्त यहां की रानी कहलाने की प्रतिष्ठा भी प्राप्त है। जिन्दगी का पिछला भाग इस बुढ़ौती के लिबास में काट रहा हूं इसलिए आंखों की रोशनी और ताकत ने भी एक तौर पर जवाब ही दे दिया है, इसीलिए मैं उन औरतों को भी पहिचान न सका।

इन्द्र - खैर तो यह बात ही क्या थी जिसके लिए आप माफी मांग रहे हैं और इससे मेरा हर्ज भी क्या हुआ आप उस काम की फिक्र कीजिए जिसके लिए आपको यहां आने की तकलीफ उठानी पड़ी।

दारोगा - इस समय वे ही दोनों अर्थात् इन्द्रानी और आनन्दी मेरे यहां आने का सबब हुई हैं। मैं आपके पास इस बात की इत्तिला करने के लिए भेजा गया हूं कि परसों उन दोनों औरतों की शादी आप दोनों भाइयों के साथ होने वाली है, आशा है कि आप दोनों भाई इसे स्वीकार करेंगे।

इन्द्र - मैं अफसोस के साथ यह जवाब देने पर मजबूर हूं कि हम लोग इस शादी को मंजूर नहीं कर सकते और इसके कई सबब हैं।

दारोगा - ठीक है, मुझे भी पहिले-पहिल यही जवाब सुनने की आशा थी, मगर मैं आपको अपनी तरफ से भी नेकनीयती के साथ यह राय दूंगा कि आप इस शादी से इनकार न करें और मुझे उन सब बातों के कहने का मौका न दें जिन्हें लाचारी की हालत में निवेदन करके समझाना पड़ेगा कि आप इस शादी से इनकार नहीं कर सकते, बाकी रही यह बात कि इनकार करने के कई सबब हैं, सो यद्यपि मैं उन कारणों के जानने का दावा तो नहीं कर सकता मगर इतना तो जरूर कह सकता हूं कि सबसे बड़ा सबब जो है वह केवल मुझी को नहीं बल्कि सभों को यहां तक कि इन्द्रानी और आनन्दी को भी मालूम है। परन्तु मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि किशोरी और कामिनी को भी इस शादी से किसी तरह का दुख न होगा क्योंकि उन्हें इस बात की पूरी-पूरी खबर है कि यह शादी ही आपकी और उनकी मुलाकात का सबब होगी, बिना इस शादी के हुए वे आपको और आप उन्हें देख भी नहीं सकते।

इन्द्र - मैं आपकी बातों पर विश्वास करने की कोशिश करूंगा परन्तु और सब बातों को किनारे रखकर मैं आपसे पूछता हूं कि यह शादी किस रीति के अनुसार हो रही है विवाह के आठ प्रकार शास्त्र में कहे हैं, यह उनमें से कौन-सा प्रकार है और ऐसी शादी का नतीजा क्या निकलेगा। यद्यपि इसमें मेरी कुछ हानि नहीं हो सकती परन्तु मेरी अनिच्छा के कारण जो कुछ हानि हो सकती है इसका विचार लड़की वाले के सिर है।

दारोगा - ठीक है, मगर जहां तक मैं सोचता हूं इन सब बातों पर अच्छी तरह विचार किया जा चुका है और ज्योतिषी ने भी निश्चय दिला दिया है कि इस शादी का नतीजा दोनों तरफ बहुत अच्छा निकलेगा। यद्यपि आप इस समय प्रसन्न नहीं होते परन्तु अन्त में बहुत ही प्रसन्न होंगे। अच्छा इस समय तो मैं जाता हूं क्योंकि मैं केवल इत्तिला करने के लिए आया था वादविवाद करने के लिए नहीं। परन्तु इसका जवाब पाने के लिए कल प्रातःकाल अवश्य आऊंगा।

इतना कहकर दारोगा उठ खड़ा हुआ और जवाब का इन्तजार कुछ भी न करके जिधर से आया था उधर ही चला गया। उसके जाने के बाद कुछ देर तक तो दोनों भाई उसी जगह बातचीत करते रहे और इसके बाद जरूरी कामों से छुट्टी पा और उसी बावली पर संध्या-वन्दन कर पुनः उस कमरे में चले आये जिसमें दोपहर तक बिता चुके थे। इस समय संध्या हो चुकी थी और कुमारों को यह देखकर ताज्जुब हो रहा था कि उस कमरे में रोशनी हो चुकी थी मगर किसी गैर की सूरत दिखाई नहीं पड़ती थी।

कुमार को उस कमरे में गए बहुत देर न हुई होगी कि इन्द्रानी और आनन्दी वहां आ पहुंचीं जिन्हें देख कुमार बहुत खुश हुए और इन्द्रजीतसिंह ने इन्द्रानी से कहा, “तुमने तो कहला भेजा था कि अब मैं मुलाकात नहीं कर सकती!”

इन्द्रानी - बेशक ऐसा ही है मगर मैं छिपकर आपसे कुछ कहने के लिए आई हूं।

इन्द्रजीत - वह कौन-सी बात है जिसने तुम्हें छिपकर यहां आने के लिए मजबूर किया और वह कौन-सा कसूर है जिसने मुझे तुम्हारा मेहमान।

इन्द्रानी - (बात काटकर और मुस्कुराकर) मैं आपकी सब बातों का जवाब दूंगी, आप मेहरबानी करके जरा मेरे साथ इस दूसरे कमरे में आइए।

इन्द्रजीत - क्या मेरी चिट्ठी का जवाब भी लाई हो?

इन्द्रानी - जी हां, जवाब की चिट्ठी भी इसी समय आपको दूंगी। (इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को उठते देखकर आनन्दसिंह से) आप इसी जगह ठहरिये (आनन्दी से) तू भी इसी जगह ठहर, मैं अभी आती हूं।

इन्द्रजीतसिंह यद्यपि इन्द्रानी के साथ शादी करने से इनकार करते थे मगर इन्द्रानी और आनन्दी की खूबसूरती, बुद्धिमानी, सभ्यता और उनकी मीठी बातें इस योग्य न थीं कि कुमार के दिल पर गहरा असर न करतीं और सामना होने पर उसे अपनी तरफ न खेंचतीं। इन्द्रजीतसिंह इन्द्रानी की बात से इनकार न कर सके और खुशी-खुशी उसके साथ दूसरे कमरे में चले गए।

हम नहीं कह सकते कि इन्द्रजीतसिंह और इन्द्रानी में दो घण्टे तक क्या बातें हुईं और इधर आनन्दसिंह और आनन्दी में कैसी ठहरी, मगर इतना जरूर कहेंगे कि जब इन्द्रजीतसिंह और इन्द्रानी दोनों आदमी लौटकर कमरे में आये तो बहुत खुश थे और इसी तरह आनन्दी और आनन्दसिंह के चेहरे पर भी खुशी की निशानी पाई जाती थी। इन्द्रानी और आनन्दी के चले जाने के बाद कई औरतें खाने-पीने का सामान लेकर हाजिर हुईं और दोनों भाई भोजन करके सो रहे। सुबह को जब वह दारोगा अपनी बातों का जवाब लेने के लिए आया तो दोनों कुमार उससे खुशी-खुशी मिले और बोले कि हम दोनों भाइयों को इन्द्रानी और आनन्दी के साथ ब्याह करना स्वीकार है।

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8