विघोर लोभमूल पापकूप हा , ...
अंक तिसरा - प्रवेश चवथा - पद ५६
विघोर लोभमूल पापकूप हा, या डोहीं हे विहरति
खल अधम निज-सहज-सदनसम सकल पतित पहा ॥धृ०॥
कुलमृदुलजन-हनन बहुसुखद विलसन मानि,
तूं अवनति, तूं नरक भयद महा ॥१॥
राग अडाणा, ताल त्रिवट.
("तदेरना देरना देरना" या चालीवर.)