मर के भी कब तक निगाहे-शौक़ को रुस्वा करें ज़िन्दगी तुझको कहाँ फेंक आएँ आख़िर क्या करें ज़ख़्मे-दिल मुम्किन[1] नहीं तो चश्मे-दिल[2] ही वा करें[3] वो हमें देखें न देखें हम उन्हें देखा करें