यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है
यादे-जानाँ[1] भी अजब रूह-फ़ज़ा [2] आती है
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है
मर्गे-नाकामे-मोहब्बत[3]मेरी तक़्सीर[4]मुआफ़[5]
ज़ीस्त[6] बन-बन के मेरे हक़ में क़ज़ा [7] आती है
नहीं मालूम वो ख़ुद हैं कि मोहब्बत उनकी
पास ही से कोई बेताब सदा[8]आती है
मैं तो इस सादगी-ए-हुस्न पे[9]सदक़े
न जफ़ा आती है जिसको न वफ़ा आती है
हाय क्या चीज़ है ये तक्मिला-ए-हुस्नो-शबाब[10]
अपनी सूरत से भी अब उनको हया[11]आती है