वो अदाए-दिलबरी हो कि नवाए-आशिक़ाना
वो अदाए-दिलबरी हो कि नवाए-आशिक़ाना।
जो दिलों को फ़तह कर ले, वही फ़ातहेज़माना॥
कभी हुस्न की तबीयत न बदल सका ज़माना।
वही नाज़े-बेनियाज़ी वही शाने-ख़ुसरवाना॥
मैं हूँ उस मुक़ाम पर अब कि फ़िराक़ोवस्ल कैसे?
मेरा इश्क़ भी कहानी, तेरा हुस्न भी फ़साना॥
तेरे इश्क़ की करामत यह अगर नहीं तो क्या है।
कभी बेअदब न गुज़रा, मेरे पास से ज़माना॥
मेरे हमसफ़ीर बुलबुल! मेरा-तेरा साथ ही क्या?
मैं ज़मीरे-दश्तोदरिया तू असीरे-आशियाना॥
तुझे ऐ ‘जिगर’! हुआ क्या कि बहुत दिनों से प्यारे।
न बयाने-इश्को़-मस्ती न हदीसे-दिलबराना॥