कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं[1] रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ईमान-ओ-कुफ़्र[2] और न दुनिया-ओ- दीं [3] रहे
ऐ इश्क़ !शादबाश [4] कि तनहा हमीं रहे
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो
दस्त-ए-जुनूँ[5] रहे न रहे आस्तीं[6] रहे
जा और कोई ज़ब्त[7] की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे
मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम[8] की वुस'अतें[9]
क़िस्मत में कू-ए-यार [10] की दो ग़ज़ ज़मीं रहे
दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ [11] के ये सख़्त- मरहले[12]
हैरां[13] हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे
इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात[14] देखना
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे