न ताबे-मस्ती न होशे-हस्ती कि शुक्रे-नेमत अदा करेंगे
न ताबे-मस्ती[1] न होशे-हस्ती[2] कि शुक्रे-ने’मत[3]अदा करेंगे
ख़िज़ाँ[4] में जब है ये अपना आलम[5] बहार आई तो क्या करेंगे
हर एक ग़म को फ़रोग़ [6]देकर यहाँ तक आरस्ता[7] करेंगे
वही जो रहते हैं दूर हमसे ख़ुद अपनी आग़ोश वा[8]करेंगे
जिधर से गुज़रेंगे सरफ़रोशाना-कारनामे[9] सुना करेंगे
वो अपने दिल को हज़ार रोकें मिरी मोहब्बत का क्या करेंगे
न शुक्रे-ग़म ज़ेरे-लब करेंगे, न शिक्वा-ए-बरमला [10]करेंगे
जो हमपे गुज़रेगी दिल ही दिल में कहा करेंगे सुना करेंगे
ये ज़ाहिरी[11] जल्वा-हाय रंगीं[12] फ़रेब कब तक दिया करेंगे
नज़र की जो कर सके न तस्कीं[13] वो दिल की तस्कीन क्या करेंगे
वहाँ भी आहें भरा करेंगे, वहाँ भी नाले[14] किया करेंगे
जिन्हें है तुझसे ही सिर्फ़ निस्बत[15] वो तेरी जन्नत का क्या करेंगे
नहीं है जिनको मजाले-हस्ती[16]सिवाए इसके वो क्या करेंगे
कि जिस ज़मीं के हैं बसने वाले उसे भी रुस्वा किया करेंगे
हम अपनी क्यों तर्ज़े-फ़िक्र[17] छोड़ें हम अपनी क्यों वज़अ़-ख़ास [18] बदलें
कि इन्क़िलाबाते-नौ-ब-नौ [19] तो हुआ किए हैं हुआ करेंगे
ये सख़्ततर इश्क़ के मराहिल[20] ये हर क़दम पर हज़ार एहसाँ
जो बच रहे तो जुनुँ के हक़ में[21] जिएँगे जब तक दुआ करेंगे
ये ख़ामकाराने- इश्क़[22] सोचें ये शिक्वा-संजाने-हुस्न[23] समझें
कि ज़िन्दगी ख़ुद हसीं न होगी तो फिर तवज्जुह वो क्या करेंगे
ख़ुद अपने ही सोज़े -बातिनी[24] से निकाल इक शम्ए-ग़ैर-फ़ानी[25]
चिराग़े दैरो-हरम[26] तो ऐ दिल जला करेंगे बुझा करेंगे