भाग 90
महाराज जयसिंह और सुरेन्द्रसिंह के पूछने पर सिद्धनाथ बाबा ने इस दिलचस्प पहाड़ी और कुमारी चंद्रकान्ता का हाल कहना शुरू किया।
बाबाजी - मुझे मालूम था कि यह पहाड़ी एक छोटा - सा तिलिस्म है और चुनार के इलाके में भी कोई तिलिस्म है। जिसके हाथ से वह तिलिस्म टूटेगा उसकी शादी जिसके साथ होगी उसी के दहेज के सामान पर यह तिलिस्म बंधा है और शादी होने के पहले ही वह इसकी मालिक होगी।
सुरेन्द्र - पहले यह बताइए कि तिलिस्म किसे कहते हैं और वह कैसे बनाया जाता है?
बाबा - तिलिस्म वही शख्स तैयार कराता है जिसके पास बहुत माल - खजाना हो और वारिस न हो। तब वह अच्छे - अच्छे ज्योतिषी और नजूमियों से दरियाफ्त करता है कि उसके या उसके भाइयों के खानदान में कभी कोई प्रतापी या लायक पैदा होगा या नहीं? आखिर ज्योतिषी या नजूमी इस बात का पता देते हैं कि इतने दिनों के बाद आपके खानदान में एक लड़का प्रतापी होगा, बल्कि उसकी एक जन्म लिखकर तैयार कर देते हैं। उसी के नाम से खजाना और अच्छी - अच्छी कीमती चीजों को रखकर उस पर तिलिस्म बांधाते हैं।
आजकल तो तिलिस्म बांधाने का यह कायदा है कि थोड़ा - बहुत खजाना रखकर उसकी हिफाजत के लिए दो - एक बलि दे देते हैं, वह प्रेत या सांप होकर उसकी हिफाजत करता है और कहे हुए आदमी के सिवाय दूसरे को एक पैसा लेने नहीं देता, मगर पहले यह कायदा नहीं था। पुराने जमाने के राजाओं को जब तिलिस्म बांधाने की जरूरत पड़ती थी तो बड़े - बड़े ज्योतिषी, नजूमी, वैद्य, कारीगर और तांत्रिक लोग इकट्ठे किए जाते थे। उन्हीं लोगों के कहे मुताबिक तिलिस्म बांधाने के लिए जमीन खोदी जाती थी, उसी जमीन के अंदर खजाना रखकर ऊपर तिलिस्मी इमारत बनायी जाती थी। उसमें ज्योतिषी,नजूमी, वैद्य, कारीगर और तांत्रिक लोग अपनी ताकत के मुताबिक उसके छिपाने की बंदिश करते थे मगर साथ ही इसके उस आदमी के नक्षत्र और ग्रहों का भी ख्याल रखते थे जिसके लिए वह खजाना रखा जाता था। कुंअर वीरेन्द्रसिंह ने एक छोटा - सा तिलिस्म तोड़ा है, उनकी जुबानी आप वहां का हाल सुनिए और हर एक बात को खूब गौर से सोचिए तो आप ही मालूम हो जायगा कि ज्योतिषी, नजूमी, कारीगर और दर्शन - शास्त्र के जानने वाले क्या काम कर सकते थे।
जयसिंह - खैर इसका हाल कुछ - कुछ मालूम हो गया, बाकी कुमार की जुबानी तिलिस्म का हाल सुनने और गौर करने से मालूम हो जायगा। अब आप इस पहाड़ी और मेरी लड़की का हाल कहिए और यह भी कहिए कि महाराज शिवदत्त इस खोह से क्योंकर निकल भागे और फिर क्योंकर कैद हो गये?
बाबा - सुनिए मैं बिल्कुल हाल आपसे कहता हूं। जब कुमारी चंद्रकान्ता चुनार के तिलिस्म में फंसकर इस खोह में आईं तो दो दिनों तक तो इस बेचारी ने तकलीफ से काटा। तीसरे रोज खबर लगने पर मैं यहां पहुंचा और कुमारी को उस जगह से छुड़ाया जहां वह फंसी हुई थी और जिसको मैं आप लोगों को दिखाऊंगा।
सुरेन्द्र - सुनते हैं तिलिस्म तोड़ने में ताकत की भी जरूरत पड़ती है?
बाबा - यह ठीक है, मगर इस तिलिस्म में कुमारी को कुछ भी तकलीफ न हुई और न ताकत की जरूरत पड़ी, क्योंकि इसका लगाव उस तिलिस्म से था जिसे कुमार ने तोड़ा है। वह तिलिस्म या उसके कुछ हिस्से अगर न टूटते तो यह तिलिस्म भी न खुलता।
कुमार - (सिद्धनाथ की तरफ देखकर) आपने यह तो कहा ही नहीं कि कुमारी के पास किस राह से पहुंचे? हम लोग जब इस खोह में आए थे और कुमारी को बेबस देखा था तब बहुत सोचने पर भी कोई तरकीब ऐसी न मिली थी जिससे कुमारी के पास पहुंचकर इन्हें उस बला से छुड़ाते।
बाबा - सिर्फ सोचने से तिलिस्म का हाल नहीं मालूम हो सकता है। मैं भी सुन चुका था कि इस खोह में कुमारी चंद्रकान्ता फंसी पड़ी है और आप छुड़ाने की फिक्र कर रहे हैं मगर कुछ बन नहीं पड़ता। मैं यहां पहुंचकर कुमारी को छुड़ा सकता था लेकिन यह मुझे मंजूर न था, मैं चाहता था कि यहां का माल - असबाब कुमारी के हाथ लगे।
कुमार - आप योगी हैं, योगबल से इस जगह पहुंच सकते हैं, मगर मैं क्या कर सकता था।
बाबा - आप लोग इस बात को बिल्कुल मत सोचिए कि मैं योगी हूं, जो काम आदमी के या ऐयारों के किए नहीं हो सकता उसे मैं भी नहीं कर सकता। मैं जिस राह से कुमारी के पास पहुंचा और जो - जो किया सो कहता हूं, सुनिए।