भाग 86
पाठक, अब वह समय आ गया कि आप भी चंद्रकान्ता और कुंअर वीरेन्द्रसिंह को खुश होते देख खुश हों। यह तो आप समझते ही होंगे कि महाराज जयसिंह विजयगढ़ से रवाना होकर नौगढ़ जायेंगे और वहां से राजा सुरेन्द्रसिंह और कुमार को साथ लेकर कुमारी से मिलने की उम्मीद में तिलिस्मी खोह के अंदर जायेंगे। आपको यह भी याद होगा कि सिद्धनाथ योगी ने तहखाने (खोह) से बाहर होते वक्त कुमार को कह दिया था कि जब अपने पिता और महाराज जयसिंह को लेकर इस खोह में आना तो उन लोगों को खोह के बाहर छोड़कर पहले तुम आकर एक दफे हमसे मिल जाना। उन्हीं के कहे मुताबिक कुमार करेंगे। खैर इन लोगों को तो आप अपने काम में छोड़ दीजिए और थोड़ी देर के लिए आंखें बंद करके हमारे साथ उस खोह में चलिए और किसी कोने में छिपकर वहां रहने वालों की बातचीत सुनिये। शायद आप लोगों के जी का भ्रम यहां निकल जाय और दूसरे तीसरे भाग के बिल्कुल भेदों की बातें भी सुनते ही सुनते खुल जायं, बल्कि कुछ खुशी भी हासिल हो।
कुंअर वीरेन्द्रसिंह और महाराज जयसिंह वगैरह तो आज वहां तक पहुंचते नहीं मगर आप इसी वक्त हमारे साथ उस तहखाने (खोह) में बल्कि उस बाग में पहुंचिए जिसमें कुमार ने चंदकान्ता की तस्वीर का दरबार देखा था और जिसमें सिद्धनाथ योगी और वनकन्या से मुलाकात हुई थी।
आप उसी बाग में पहुंच गये। देखिए अस्त होते हुए सूर्य भगवान अपनी सुंदर लाल किरणों से मनोहर बाग के कुछ ऊंचे - ऊंचे पेड़ों के ऊपरी हिस्सों को चमका रहे हैं। कुछ - कुछ ठंडी हवा खुशबूदार फूलों की महक चारों तरफ फैला रही है। देखिए इस बाग के बीच वाले संगमर्मर के चबूतरे पर तीन पलंग रखे हुए हैं, जिनके ऊपर खूबसूरत लौंडियां अच्छे - अच्छे बिछौने बिछा रही हैं; खास करके बीच वाले जड़ाऊ पलंग की सजावट पर सबों का ज्यादा ध्यान है। उधरदेखिये वह घास का छोटा - सा रमना कैसे खुशनुमा बना हुआ है। उसमें की हरी - हरी दूब कैसे खूबसूरती से कटी हुई है, यकायक सब्ज मखमली फर्श में और इसमें कुछ भेद नहीं मालूम होता, और देखिए उसी सब्ज दूब के रमने के चारों तरफ रंग - बिरंगे फूलों से खूब गुथे हुए सीधो - सीधो गुलमेंहदी के पेड़ों की कतार पल्टनों की तरह कैसी शोभा दे रही है।
उसके बगल की तरफ ख्याल कीजिए, चमेली का फूला हुआ तख्ता क्या ही रंग जमा रहा है और कैसे घने पेड़ हैं कि हवा को भी उसके अंदर जाने का रास्ता मिलना मुश्किल है, और इन दोनों तख्तों के बीच वाला छोटा - सा खूबसूरत बंगला क्या मजा दे रहा है तथा उसके चारों तरफ नीचे से ऊपर तक मालती की लता कैसी घनी चढ़ी हुई और फूल भी कितने ज्यादे फूले हुए हैं। अगर जी चाहे तो किसी एक तरफ खड़े होकर बिना इधर - उधर हटे हाथ भर का चंगेर भर लीजिये। पश्चिम तरफ निगाह दौड़ाइये, फूली हुई मेंहदी की टट्टी के नीचे जंगली रंग - बिरंगे पत्तों वाले हाथ डेढ़ हाथ ऊंचे दरख्तों (करोटन) की चौहरी कतार क्या भली मालूम होती है, और उसके बुंदकीदार, सुर्खी लिए हुए सफेद लकीरों वाले, सब्ज धारियों वाले, लंबे घूंघरवाले बालों की तरह ऐंठे हुए पत्तो क्या कैफियत दिखा रहे हैं और इधर-उधर हट के दोनों तरफ तिरकोनिया तख्तों की भी रंगत देखिये जो सिर्फ हाथ भर ऊंचे रंगीन छिटकती हुई धारियों वाले पत्तो के जंगली पेड़ों (कौलियस) के गमलों से पहाड़ीनुमा सजाये हुए हैं और जिनके चारों तरफ रंग - बिरंगे देशी फूल खिले हुए हैं।
अब तो हमारी निगाह इधर - उधर और खूबसूरत क्यारियो, फूलों और छूटते हुए फव्वारों का मजा नहीं लेती, क्योंकि उन तीन औरतों के पास जाकर अटक गयी है, जो मेंहदी के पत्तो तोड़कर अपनी झोलियों में बटोर रही हैं। यहां निगाह भी अदब करती है, क्योंकि उन तीनों औरतों में से एक तो हमारी उपन्यास की ताज वनकन्या है और बाकी दोनों उसकी प्यारी सखियां हैं।
वनकन्या की पोशाक तो सफेद है, मगर उसकी दोनों सखियों की सब्ज और सुर्ख।
वे तीनों मेंहदी की पत्तियां तोड़ चुकीं, अब इस संगमर्मर के चबूतरे की तरफ चली आ रही हैं। शायद इन्हीं तीनों पलंगों पर बैठने का इरादा हो।
हमारा सोचना ठीक हुआ। वनकन्या मेंहदी की पत्तियां जमीन पर उझलकर थकावट की मुद्रा में बिचले जड़ाऊ पलंग पर लेट गयी और दोनों सखियां अगल - बगल वाले दोनों पंलगों पर बैठ गयीं। पाठक, हम और आप भी एक तरफ चुपचाप खड़े होकर इन तीनों की बातचीत सुनें।
वनकन्या - ओफ, थकावट मालूम होती है!
सब्ज कपड़े वाली सखी - घूमने में क्या कम आया है?
सुर्ख कपड़े वाली सखी - (दूसरी सखी से) क्या तू भी थक गयी है?
सब्ज सखी - मैं क्यों थकने लगी? दस - दस कोस का रोज चक्कर लगाती रही, तब तो थकी ही नहीं।
सुर्ख सखी - ओफ, उन दिनों भी कितना दौड़ना पड़ा था। कभी इधर तो कभी उधर, कभी जाओ तो कभी आओ।
सब्ज - आखिर कुमार के ऐयार हम लोगों का पता नहीं ही लगा सके।
सुर्ख - खुद ज्योतिषीजी की अक्ल चकरा गयी जो बड़े रम्माल और नजूमी कहलाते थे, दूसरों की कौन कहे!
वनकन्या - ज्योतिषीजी के रमल को तो इन यंत्रों ने बेकार कर दिया, जो सिद्धनाथ बाबा ने हम लोगों के गले में डाल दिया है और अभी तक जिसे उतारने नहीं देते।
सब्ज - मालूम नहीं इस तावीज (यंत्र) में कौन - सी ऐसी चीज है जो रमल को चलने नहीं देती!
वनकन्या - मैंने यही बात एक दफे सिद्धनाथ बाबाजी से पूछी थी, जिसके जवाब में वे बहुत कुछ बक गये। मुझे सब तो याद नहीं कि क्या - क्या कह गये हां, इतना याद है कि रमल जिस धातु से बनाई जाती है और रमल के साथी ग्रह, राशि, नक्षत्र, तारों वगैरह के असर पड़ने वाली जितनी धातुएं हैं, उनसबों को एक साथ मिलाकर यह यंत्र बनाया गया है इसलिए जिसके पास यह रहेगा, उसके बारे में कोई नजूमी या ज्योतिषी रमल के जरिये से कुछ नहीं देख सकेगा।
सुर्ख - बेशक इसमें बहुत कुछ असर है। देखिये मैं सूरजमुखी बनकर गयी थी, तब भी ज्योतिषीजी रमल से न बता सके कि यह ऐयार है।
वनकन्या - कुमार तो खूब ही छके होंगे?
सुर्ख - कुछ न पूछिये, वे बहुत ही घबराये कि यह शैतान कहां से आयी और क्या शर्त करा के अब क्या चाहती है?
सब्ज - उसी के थोड़ी देर पहले मैं प्यादा बनकर खत का जवाब लेने गयी थी और देवीसिंह को चेला बनाया था। यह कोई नहीं कह सका कि इसे मैं पहचानता हूं।
सुर्ख - यह सब तो हुई मगर किस्मत भी कोई भारी चीज है। देखिये जब शिवदत्त के ऐयारों ने तिलिस्मी किताब चुरायी थी और जंगल में ले जाकर जमीन के अंदर गाड़ रहे थे, उसी वक्त इत्तिफाक से हम लोगों ने पहुंचकर दूर से देख लिया कि कुछ गाड़ रहे हैं, उन लोगों के जाने के बाद खोदकर देखा तो तिलिस्मी किताब है।
वनकन्या - ओफ, बड़ी मुश्किल से सिद्धनाथ ने हम लोगों को घूमने का हुक्म दिया था, तिस पर भी कसम दे दी थी कि दूर - दूर से कुमार को देखना, पास मत जाना।
सुर्ख - इसमें तुम्हारा ही फायदा था, बेचारे सिद्धनाथ कुछ अपने वास्ते थोड़े ही कहते थे।
वनकन्या - यह सब सच है, मगर क्या करें बिना देखे जी जो नहीं मानता।
सब्ज - हम दोनों को तो यही हुक्म दे दिया था कि बराबर घूम - घूमकर कुमार की मदद किया करो। मालिन रूपी बद्रीनाथ से कैसा बचाया था।
सुर्ख - क्या ऐयार लोग पता लगाने की कम कोशिश करते थे? मगर यहां तो ऐयारों के गुरुघंटाल सिद्धनाथ हरदम मदद पर थे, उनके किए हो क्या सकता था? देखो गंगाजी में नाव के पास आते वक्त तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी कैसा छके, हम लोगों ने सभी कपड़े तक ले लिए।
सब्ज - हम लोग तो जान - बूझकर उन लोगों को अपने साथ लाये ही थे।
वनकन्या - चाहे वे लोग कितने ही तेज हों, मगर हमारे सिद्धनाथ को नहीं पा सकते। हां, उन लोगों में तेजसिंह बड़ा चालाक है!
सुर्ख - तेजसिंह बहुत चालाक हैं तो क्या हुआ, मगर हमारे सिद्धनाथ तेजसिंह के भी बाप हैं।
वनकन्या - (हंसकर) इसका हाल तो तुम ही जानो।
सुर्ख - आप तो दिल्लगी करती हैं।
सब्ज - हकीकत में सिद्धनाथ ने कुमार और उनके ऐयारों को बड़ा भारी धोखा दिया। उन लोगों को इस बात का ख्याल तक न आया कि इस खोह वाले तिलिस्म को सिद्धनाथ बाबा हम लोगों के हाथ फतह करा रहे हैं।
सुर्ख - जब हम लोग अंदर से इस खोह का दरवाजा बंद कर तिलिस्म तोड़ रहे थे तब तेजसिंह बद्रीनाथ की गठरी लेकर इसमें आए थे, मगर दरवाजा बंद पाकर लौट गये।
वनकन्या - बड़े ही घबराये होंगे कि अंदर से इसका दरवाजा किसने बंद कर दिया?
सुर्ख - जरूर घबराये होंगे। इसी में क्या और कई बातों में हम लोगों ने कुमार और उनके ऐयारों को धोखा दिया था। देखिये मैं उधर सूरजमुखी बनकर कह आयी कि शिवदत्त को छुड़ा दूंगी और इधर इस बात की कसम खिलाकर कि कुमार से दुश्मनी न करेगा, शिवदत्त को छोड़ दिया। उन लोगों ने भी जरूर सोचा होगा कि सूरजमुखी कोई भारी शैतान है।
वनकन्या - मगर फिर भी हरामजादे शिवदत्त ने धोखा दिया और कुमार से दुश्मनी करने पर कमर बांधी, उसके कसम का कोई एतबार नहीं।
सुर्ख - इसी से फिर हम लोगों ने गिरफ्तार भी तो कर लिया और तिलिस्मी किताब पाकर फिर कुमार को दे दी। हां, क्रूरसिंह ने एक दफे हम लोगों को पहचान लिया था। मैंने सोचा कि अब अगर यह जीता बचा तो सब भंडा फूट जायगा, बस लड़ ही तो गयी। आखिर मेरे हाथ से उसकी मौत लिखी थी मारा गया।
सब्ज - उस मुए को धुन सवार थी कि हम ही तिलिस्म फतह करके खजाना ले लें।
वनकन्या - मुझको तो इसी बात की खुशी है यह खोह वाला तिलिस्म मेरे हाथ से फतह हुआ।
सुर्ख - इसमें काम ही कितना था, तिस पर सिद्धनाथ बाबा की मदद!
वनकन्या - खैर एक बात तो है।