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भाग 55

 


तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी के जाने के बाद कुंअर वीरेन्द्रसिंह इन लोगों के वापस आने के इंतजार में रात भर जागते रह गए। ज्यों-ज्यों रात गुजरती थी कुमार की तबीयत घबड़ाती थी। सबेरा हुआ ही चाहता था जब ये तीनों ऐयार लश्कर में पहुंचे। तेजसिंह की राय हुई कि इसी तरह नंग-धाड़ंग कुमार के पास चलना चाहिए, आखिर तीनों उसी तरह उनके खेमे में गये।
कुंअर वीरेन्द्रसिंह जाग रहे थे, शमादान जल रहा था, इन तीनों ऐयारों की विचित्र सूरत देख हैरान हो गये। पूछा, “यह क्या हाल है?” तेजसिंह ने कहा, “बस अभी तो सूरत देख लीजिए बाकी हाल जरा दम ले के कहेंगे।”
तीनों ऐयारों ने अपने-अपने कपड़े मंगवाकर पहरे, इतने में साफ सबेरा हो गया। कुमार ने तेजसिंह से पूछा, “अब बताओ तुम लोग किस बला में फंस गए?”
तेज-ऐसा धोखा खाया कि जन्म भर याद करेंगे।
कुमार-वह क्या?
तेज-जिनके ऊपर आप जान दिये बैठे हैं, जिनकी खोज में हम लोग मारे-मारे फिरते हैं, इसमें तो कोई शक नहीं कि उनका भी प्रेम आपके ऊपर बहुत है,मगर न मालूम इतनी छिपी क्यों फिरती हैं और इसमें उन्होंने क्या फायदा सोचा है?
कुमार-क्या कुछ पता लगा?
तेज-पता क्या आंख से देख आये हैं तभी तो इतनी सजा मिली। उनके साथ भी एक से एक बढ़ के ऐयार हैं, अगर ऐसा जानते तो होशियारी से जाते।
कुमार-भला खुलासा कहो तो कुछ मालूम भी हो।
तेजसिंह ने सब हाल कहा, कुमार सुनकर हंसने लगे और ज्योतिषीजी से बोले, “आपके रमल को भी उन लोगों ने धोखा दिया।”
ज्यो-कुछ न पूछिए, सब आफत हैं!
कुमार-उन लोगों का खुलासा हाल नहीं मालूम हुआ तो भला इतना ही विचार लेते कि शिवदत्त के ऐयारों की कुछ ऐयारी तो नहीं है?
ज्यो-नहीं, शिवदत्त के ऐयारों से और उन लोगों से कोई वास्ता नहीं बल्कि उन लोगों को इनकी खबर भी न होगी, इस बात को मैं खूब विचार चुका हूं।
तेज-इतनी ही खैरियत है।
देवी-आज दिन ही को चलकर पता लगायेंगे।
तेज-तिलिस्म तोड़ने का काम कैसे चलेगा?
कुमार-एक रोज काम बंद रहेगा तो क्या होगा?
तेज-इसी से तो मैं कहता हूं कि चंद्रकान्ता की मुहब्बत आपके दिल से कम हो गई है।
कुमार-कभी नहीं, चंद्रकान्ता से बढ़कर मैं दुनिया में किसी को नहीं चाहता मगर न मालूम क्या सबब है कि वनकन्या का हाल मालूम करने के लिए भी जी बेचैन रहता है।
तेज-(हंसकर) खैर पहले तो पंडित बद्रीनाथ ऐयार को ले जाकर उस खोह में कैद करना है फिर दूसरा काम देखेंगे, कहीं ऐसा न हो कि वे छूट के चल दें।
कुमार-आज ही ले जाकर छोड़ आओ।
तेज-हां अभी उनको ले जाता हूं, वहां रखकर रातों-रात लौट आऊंगा, पंद्रह कोस का मामला ही क्या है, तब तक देवीसिंह और ज्योतिषीजी वनकन्या की खोज में गये।
तेजसिंह की राय पक्की ठहरी, वे स्नान-पूजा से छुट्टी पाकर तैयार हुए, खाने की चीजों में बेहोशी की दवा मिलाकर बद्रीनाथ को खिलाई गईं और जब वे बेहोश हो गये तब तेजसिंह गट्ठर बांधाकर पीठ पर लाद खोह की तरफ रवाना हुए। कुमार ने देवीसिंह और ज्योतिषीजी को वनकन्या की टोह में भेजा।
तेजसिंह पंडित बद्रीनाथ की गठरी लिये शाम होते-होते तहखाने में पहुंचे। शेर के मुंह में हाथ डाल जुबान खींची और तब दूसरा ताला खोला, मगर दरवाजा न खुला। अब तो तेजसिंह के होश उड़ गए, फिर कोशिश की, लेकिन किवाड़ न खुला। बैठ के सोचने लगे, मगर कुछ समझ में न आया। आखिर लाचार हो बद्रीनाथ की गठरी लादे वापिस हुए।