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भाग 62

 


कुंअर वीरेन्द्रसिंह के गायब होने से उनके लश्कर में खलबली पड़ गई। तेजसिंह और देवीसिंह ने घबराकर चारों तरफ खोज की मगर कुछ पता न लगा। दिन भर बीत जाने पर ज्योतिषीजी ने तेजसिंह से कहा, “रमल से जान पड़ता है कि कुमार को कई औरतें बेहोशी की दवा सुंघा बेहोश कर उठा ले गई हैं और नौगढ़ के इलाके में अपने मकान के अंदर कैद कर रखा है, इससे ज्यादे कुछ मालूम नहीं होता।”
ज्योतिषीजी की बात सुनकर तेजसिंह बोले, “नौगढ़ में तो अपना ही राज्य है, वहां कुमार के दुश्मनों का कहीं ठिकाना नहीं। महाराज सुरेन्द्रसिंह की अमलदारी से उनकी रियाया बहुत खुश तथा उनके और उनके खानदान के लिए वक्त पर जान देने को तैयार है फिर कुमार को ले जाकर कैद करने वाला कौन हो सकताहै।”
बहुत देर तक सोच-विचार करते रहने के बाद तेजसिंह कुमार की खोज में जाने के लिए तैयार हुए। देवीसिंह और ज्योतिषीजी ने भी उनका साथ दिया और ये तीनों नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। जाते वक्त महाराज शिवदत्त के दीवान को चुनार बिदा करते गये जो कुंअर वीरेन्द्रसिंह की मुलाकात को महाराज शिवदत्त की तरफ से तोहफा और सौगात लेकर आये हुए थे और तिलिस्मी किताब फतहसिंह सिपहसालार के सुपुर्द कर दी जो कुंअर वीरेन्द्रसिंह के गायब हो जाने के बाद उनके पलंग पर पड़ी हुई पाई गई थी।
ये तीनों ऐयार आधी रात गुजर जाने के बाद नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। पांच कोस तक बराबर चले गये, सबेरा होने पर तीनों एक घने जंगल में रुके और अपनी सूरतें बदलकर फिर रवाना हुए। दिन भर चलकर भूखे-प्यासे शाम को नौगढ़ की सरहद पर पहुंचे। इन लोगों ने आपस में यह राय ठहराई कि किसी से मुलाकात न करें बल्कि जाहिर भी न होकर छिपे ही छिपे कुमार की खोज करें।
तीनों ऐयारों ने अलग-अलग होकर कुमार का पता लगाना शुरू किया। कहीं मकान में घुसकर, कहीं बाग में जाकर, कहीं आदमियों से बातें करके उन लोगों ने दरियाफ्त किया मगर कहीं पता न लगा। दूसरे दिन तीनों इकट्ठे होकर सूरत बदले हुए राजा सुरेन्द्रसिंह के दरबार में गये और एक कोने में खड़े हो बातचीत सुनने लगे।
उसी वक्त कई जासूस दरबार में पहुंचे जिनकी सूरत से घबराहट और परेशानी साफ मालूम होती थी। तेजसिंह के बाप दीवान जीतसिंह ने उन जासूसों से पूछा, “क्या बात है जो तुम लोग इस तरह घबराये हुए आये हो?”
एक जासूस ने कुछ आगे बढ़के जवाब दिया, “लश्कर से कुमार की खबर लाया हूं।”
जीत-क्या हाल है, जल्द कहो।
जासूस-दो रोज से उनका कहीं पता नहीं है।
जीत-क्या कहीं चले गये?
जासूस-जी नहीं, रात को खेमे में सोये हुए थे, उसी हालत में कुछ औरतें उन्हें उठा ले गईं, मालूम नहीं कहां कैद कर रखा है।
जीत-(घबराकर) यह कैसे मालूम हुआ कि उन्हें कई औरतें ले गईं?
जासूस-उनके गायब हो जाने के बाद ऐयारों ने बहुत तलाश किया। जब कुछ पता न लगा तो ज्योतिषी जगन्नाथजी ने रमल से पता लगाकर कहा कि कई औरतें उन्हें ले गई हैं और इस नौगढ़ के इलाके में ही कहीं कैद कर रखा है?
जीत-(ताज्जुब से) इसी नौगढ़ के इलाके में! यहां तो हम लोगों का कोई दुश्मन नहीं है!
जासूस-जो कुछ हो, ज्योतिषीजी ने तो ऐसा ही कहा है।
जीत-फिर तेजसिंह कहां गया?
जासूस-कुमार की खोज में कहीं गये हैं, देवीसिंह और ज्योतिषीजी भी उनके साथ हैं। मगर उन लोगों के जाते ही हमारे लश्कर पर आफत आई?
जीत-(चौंककर) हमारे लश्कर पर क्या आफत आई?
जासूस-मौका पाकर महाराज शिवदत्त ने हमला कर दिया।
हमले का नाम सुनते ही तेजसिंह वगैरह ऐयार लोग जो सूरत बदले हुए एक कोने में खड़े थे आगे की सब बातें बड़े गौर से सुनने लगे।
जीत-पहले तो तुम लोग यह खबर लाये थे कि महाराज शिवदत्त ने कुमार की दोस्ती कबूल कर ली और उनका दीवान बहुत कुछ नजर लेकर आया है,अब क्या हुआ?
जासूस-उस वक्त की वह खबर बहुत ठीक थी पर आखिर में उसने धोखा दिया और बेईमानी पर कमर बांधा ली।
जीत-उसके हमले का क्या नतीजा हुआ?
जासूस-पहर भर तक तो फतहसिंह सिपहसालार खूब लड़े, आखिर शिवदत्त के हाथ से जख्मी होकर गिरफ्तार हो गये। उनके गिरफ्तार होते ही बेसिर की फौज तितिर-बितिर हो गई।
अभी तक सुरेन्द्रसिंह चुपचाप बैठे इन बातों को सुन रहे थे। फतहसिंह के गिरफ्तार हो जाने और लश्कर के भाग जाने का हाल सुन आंखें लाल हो गईं। दीवान जीतसिंह की तरफ देखकर बोले, “हमारे यहां इस वक्त फौज तो है नहीं, थोड़े-बहुत सिपाही जो कुछ हैं उनको लेकर इसी वक्त कूच करूंगा। ऐसे नामर्द को मारना कोई बड़ी बात नहीं है।”
जीत-ऐसा ही होना चाहिए, सरकार के कूच की बात सुनकर भागी हुई फौज भी इकट्ठी हो जायगी।
ये बातें हो ही रही थीं कि दो जासूस और दरबार में हाजिर हुए। पूछने से उन्होंने कहा, “कुमार के गायब होने, ऐयारों के उनकी खोज में जाने, फतहसिंह के गिरफ्तार हो जाने और फौज के भाग जाने की खबर सुनकर महाराज जयसिंह अपनी कुल फौज लेकर चुनार पर चढ़ गये हैं। रास्ते में खबर लगी कि फतहसिंह के गिरफ्तार होने के दो ही पहर बाद रात को महाराज शिवदत्त भी कहीं गायब हो गये और उनके पलंग पर एक पुर्जा पड़ा हुआ मिला जिसमें लिखा हुआ था कि इस बेईमान को पूरी सजा दी जायगी, जन्म भर कैद से छुट्टी न मिलेगी। बाद इसके सुनने में आया कि फतहसिंह भी छूटकर तिलिस्म के पास आ गये और कुमार की फौज फिर इकट्ठी हो रही है।”
इस खबर को सुनकर राजा सुरेन्द्रसिंह ने दीवान जीतसिंह की तरफ देखा।
जीत-जो कुछ भी हो महाराज जयसिंह ने चढ़ाई कर ही दी, मुनासिब है कि हम भी पहुंचकर चुनार का बखेड़ा ही तय कर दें, यह रोज-रोज की खटपट अच्छी नहीं!
राजा-तुम्हारा कहना ठीक है, ऐसा ही किया जाय, क्या कहें हमने सोचा था कि लड़के के ही हाथ से चुनार फतह हो जिससे उसका हौसला बढ़े मगर अब बर्दाश्त नहीं होता।
इन सब बातों और खबरों को सुन तीनों ऐयार वहां से रवाना हो गए और एकांत में जाकर आपस में सलाह करने लगे।
तेज-अब क्या करना चाहिए?
देवी-चाहे जो भी हो पहले तो कुमार को ही खोजना चाहिए।
तेज-मैं कहता हूं कि तुम लश्कर की तरफ जाओ और हम दोनों कुमार की खोज करते हैं।
ज्यो-मेरी बात मानो तो पहले एक दफे उस तहखाने (खोह) में चलो जिसमें महाराज शिवदत्त को कैद किया था।
तेज-उसका तो दरवाजा ही नहीं खुलता।
ज्यो-भला चलो तो सही, शायद किसी तरकीब से खुल जाय।
तेज-इसकी कोशिश तो आप बेफायदे करते हैं, अगर दरवाजा खुला भी तो क्या काम निकलेगा?
ज्यो-अच्छा चलो तो।
तेज-खैर चलो।
तीनों ऐयार तहखाने की तरफ रवाना हुए।