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प्रेम पुजारन

  प्रेम पुजारन
मै इस दुनिया के लिए था ,
बेमतलब ।
शायद इसलिए कि
मै नास्तिक था ।
या शायद इसलिए कि
रिश्तो चाहतो और प्रेम में ,
मेरा विश्वास न था ।
स्त्री पुरुष का सम्बन्ध
मेरे मायनो में था
मात्र वासनापूर्ति ।
तुम से पहली मुलाकात
के बाद जो टिप्पणी थी
तुम्हारे लिए मेरी वो है
" क्या माल है " ।
पर तुम से अगली कई
प्राक्रतिक मुलाकातों में
मुझे लगा तुम मेरी पूरक हो
और इतेफाक से मै तुम्हारा पूरक ।
क्यों कि जो कमिया मुझ में थी
वो तुम्हारी विशेषताए ।
और तुम्हारी कमिया
मेरी विशेषताए ।
अगर मेरे व्यक्तित्व में
कही छेद था, तो उसका
भराव तुम में था ।
मै स्तब्ध था ।
मेरी मान्यताओ
और सिद्धांतो को ठेस लगी ।
अब जिन दो चीजो
में मेरा विस्वास था
वो थी प्रकृति और इतेफाक ।
क्यों कि प्रकृति ने हमें
एक दुसरे का पूरक बनाया
और इतेफाक से हम मिल गए ।
मैंने तुम्हे अपना हमसफ़र बनाया ।
जिंदगी का एक दौर बीत गया  ।
मुझ में एक गर्व था कि,
तुम्हे पूरी तरह जान चुका हु ।
लेकिन तुम्हारी डायरी ने
मेरी मान्यताओ व सिध्दान्तो को
पूरी तरह ख़त्म कर दिया ।
क्यों कि तुम कभी मेरी पूरक थी ही नहीं ।
तुम ने पहली मुलाक़ात में मुझे
अपना सब कुछ मान लिया ।
और खुद को ऐसे सांचे में ढाल लिया
कि तुम मेरी पूरक बन गई  ।
और मै तुम्हारा पूरक ।
तुम्हारा गहरा प्रेम और समर्पण
मुझे एक नई दिशा दे गया ।
आज में आस्तिक हु।
मै तुम से प्रेम करता हु।
मै आज भी एक मूढ़ हु ।
क्यों कि तुम ने मुझे बदलने
का कोई प्रयास नहीं किया
बल्कि खुद को बदलकर मुझे बदल दिया
और में सर्वज्ञान संपन्न होने का
दंभ भरने वाला
तुम्हे आज भी पूरी तरह नहीं समझ पाया ।।।
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