चुनिन्दा अश्आर- भाग दो
११.
सुबह तक शम्अ सर को धुनती रही
क्या पतंगे ने इल्तमास[1] किया
१२.
दाग़े-फ़िराक़[2] -ओ-हसरते-वस्ल[3] , आरज़ू-ए-शौक़[4]
मैं साथ ज़ेरे-ख़ाक़[5] भी हंगामा [6] ले गया
१३.
शुक्र[7] उसकी जफ़ा [8] का हो न सका
दिल से अपने हमें गिला[9] है यह
१४.
अपने जी ही ने न चाहा कि पिएँ आबे-हयात[10]
यूँ तो हम मीर उसी चश्मे-पे[11]हुए
१५.
चमन का नाम सुना था वले[12] न देखा हाय
जहाँ में हमने क़फ़स[13] ही में ज़िन्दगानी की[14]
१६.
कैसे हैं वे कि जीते हैं सदसाल[15] हम तो ‘मीर’
इस चार दिन की ज़ीस्त[16] में बेज़ार[17] हो गए
१७.
तुमने जो अपने दिल से भुलाया हमें तो क्या
अपने तईं तो दिल से हमारे भुलाइये
१८.
परस्तिश[18] की याँ तक कि ऐ बुत[19]! तुझे
नज़र में सभू की ख़ुदा कर चले
१९.
यूँ कानों कान गुल ने न जाना चमन में आह
सर लो पटक के हम सरे बाज़ार मर गए
२०.
सदकारवाँ[20] वफ़ा[21]है कोई पूछ्ता नहीं
गोया मताए-दिल[22] के ख़रीदार मर गए
सुबह तक शम्अ सर को धुनती रही
क्या पतंगे ने इल्तमास[1] किया
१२.
दाग़े-फ़िराक़[2] -ओ-हसरते-वस्ल[3] , आरज़ू-ए-शौक़[4]
मैं साथ ज़ेरे-ख़ाक़[5] भी हंगामा [6] ले गया
१३.
शुक्र[7] उसकी जफ़ा [8] का हो न सका
दिल से अपने हमें गिला[9] है यह
१४.
अपने जी ही ने न चाहा कि पिएँ आबे-हयात[10]
यूँ तो हम मीर उसी चश्मे-पे[11]हुए
१५.
चमन का नाम सुना था वले[12] न देखा हाय
जहाँ में हमने क़फ़स[13] ही में ज़िन्दगानी की[14]
१६.
कैसे हैं वे कि जीते हैं सदसाल[15] हम तो ‘मीर’
इस चार दिन की ज़ीस्त[16] में बेज़ार[17] हो गए
१७.
तुमने जो अपने दिल से भुलाया हमें तो क्या
अपने तईं तो दिल से हमारे भुलाइये
१८.
परस्तिश[18] की याँ तक कि ऐ बुत[19]! तुझे
नज़र में सभू की ख़ुदा कर चले
१९.
यूँ कानों कान गुल ने न जाना चमन में आह
सर लो पटक के हम सरे बाज़ार मर गए
२०.
सदकारवाँ[20] वफ़ा[21]है कोई पूछ्ता नहीं
गोया मताए-दिल[22] के ख़रीदार मर गए