जिस सर को ग़रूर आज है याँ ताजवरी का
जिस सर को ग़रूर[1] आज है याँ[2] ताजवरी[3] का
कल जिस पे यहीं शोर है फिर नौहागरी[4] का
आफ़ाक़ [5] की मंज़िल से गया कौन सलामात[6]
असबाब [7] लुटा राह में याँ हर सफ़री[8] का
ज़िन्दाँ [9] में भी शोरिशन गयी अपने जुनूँ [10] की
अब संग [11] मदावा[12] है इस आशुफ़्तासरी[13] का
हर ज़ख़्म-ए-जिगर दावर-ए-महशर से हमारा
इंसाफ़ तलब है तेरी बेदादगरी का
इस रंग से झमके[14] है पलक पर के कहे तू
टुकड़ा है मेरा अश्क[15] अक़ीक़े-जिगरी[16] का
ले साँस भी आहिस्ता से नाज़ुक़ है बहुत काम
आफ़ाक़[17]है इस कारगाहे-शीशागरी[18]का
टुक[19]मीरे-जिगर सोख़्ता [20] की जल्द ख़बर ले
क्या यार भरोसा है चराग़े-सहरी[21] का