चुनिन्दा अश्आर- भाग एक
१.
नाहक़[1] हम मजबूरों पर यह तुहमत[2]है मुख़्तारी[3] की
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस[4] बदनाम किया
२.
दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके
पछताओगे सुनो हो , ये बस्ती उजाड़कर
३.
मर्ग[5] इक मान्दगी [6]का वक़्फ़ा[7] है
यानि आगे चलेंगे दम लेकर
४.
कहते तो हो यूँ कहते , यूँ कहते जो वोह आता
सब कहने की बातें हैं कुछ भी न कहा जाता
५.
तड़पै है जबकि सीने में उछले हैं दो-दो हाथ
गर दिल यही है मीर तो आराम हो चुका
६.
सरापा[8] आरज़ू[9] होने ने बन्दा[10] कर दिया हमको
वगर्ना[11] हम ख़ुदा थे,गर दिले-बे-मुद्दआ [12] होते
७.
एक महरूम[13] चले मीर हमीं आलम[14] से
वर्ना आलम को ज़माने ने दिया क्या-क्या कुछ?
८.
हम ख़ाक में मिले तो मिले , लेकिन ऐ सिपहर[15] !
उस शोख़ को[16] भी राह पे लाना ज़रूर था
९.
अहदे-जवानी[17] रो-रो काटी, पीरी[18] में लीं आँखें मूँद
यानी रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया
१०.
रख हाथ दिल पर मीर के दरियाफ़्त[19] कर लिया हाल है
रहता है अक्सर यह जवाँ, कुछ इन दिनों बेताब है