बारहा गोर दिल झुका लाया
बारहा[1] गोर[2] दिल झुका लाया
अबके शर्ते-वफ़ा बजा[3]लाया
क़द्र[4] रखती न थी मताए-दिल[5]
सारे आलम[6] को मैं दिखा लाया
दिल कि यक क़तरा-ए-ख़ूँ नहीं है बेश[7]
एक आलम[8] के सर बला[9] लाया
सब पे जिस बार[10] ने गिरानी[11] की
उसको यह नातवाँ [12] उठा लाया
दिल मुझे उस गली में ले जाकर
और भी ख़ाक में मिला लाया
अब तो जाते हैं बुतक़दे[13] ऐ ‘मीर’!
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया