श्लोक ४१ ते ४५
उस उज्जयिनीमे रातको अपने प्रेमियोके घरोको जाती हुई रमणियोको घने अन्धकारसे राजमार्गके ढँक जानेपर कुछ न दिखा पडेगा, अत: तुम कसौटीपरकी चमकती हुई सुवर्णरेखाके समान बिजलिकी रेखा चमकाकर उन्हे मार्ग दिखा देना, किन्तु गरजना और बरसना मत, क्योकि वे भीरु होती है अथवा कामके कारण व्यग्र हुई वे डर जाएँगी ॥४१॥
बहुत काल तक चमकनेसे तुम्हारी स्त्री बिजली थक जायगी, अत: किसी महलकी सुनसान छतपर, जहाँकि कबूतर भी सो गये हो, तुम उस रातको बिताकर सूर्योदय होते ही फ़िर आगेका मार्ग पूरा करने चल देना । क्योकि मित्रोके कार्यसाधनको जिन्होने अंगीकार कर लिया वे व्यक्ति शिथिलता नही करते ॥४२॥
रात अन्यत्र बितानेवाले प्रेमियोको भी सूर्योदयके बाद उन विरहिणी नायिकाओके आँसू पोछने होते है जो प्रतिक्षामे व्याकूल है । अत: तुम शीघ्र ही सूर्यके मार्गसे हट जाना अर्थात उसे ढक न देना, क्योकि वह भी रात कही बिताकर प्रात: पद्मिनीके कमलरुप आँसू मिटाने लौट रहा है । यदि तुम उसके करो ( किरणो या हाथो ) को रोकोगे तो वह तुमपर अत्यन्त रुष्ट होगा ॥४३॥
किसी गम्भीर स्वभाववाली नायिकाके निर्मल चित्तमे जिस प्रकार सुन्दर नायकका प्रतिबिंब पैठ जाता है, उसी प्रकार इस गम्भीरा नामक नदीके निर्मल जलसे तुम्हारी स्वभावत: सुन्दर छाया प्रवेश कर जायेगी इसलिये जैसे ह्रदयस्थ वह सुन्दर नायक उस नायिकाके कुमुदकी तरह विकसित नयनोकी चंचल चितवनोको व्यर्थ नही होने देता इसी प्रकार तुम भी शुभ्र और चंचल इन मछलियोकी उछालोको व्यर्थ न जाने देना ॥४४॥
कुछ-कुछ हाथसे पकडे हुएकी तरह बेनकी शाखाये जिसे छू रही है, नितम्बरुप तटको जिसने मुक्त कर दिया है ऐसे और नीले रंगवाले, उस गम्भीरा-नदी के जलरुप वस्त्रको हटाकर पसरे हुए नायककी भाँति विलम्ब करते हुये तुम आगे बडी कठीनता से जा सकोगे । क्योकि जिसे सुरतसुखका अनुभव है वह कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो उघडी जंघावाली ( नायिका ) को छोड सके॥४५॥