श्लोक ३१ ते ३५
जहाँके गाबोमे बडे बूढे आज भी उदयनकी कथाओको विस्तारसे कहा करते है, ऐसे अवन्ति देशमे पहँचकर तुम उस उज्जयिनीकी ओर चलो जिसका निर्देश मै पहिले कर चुका हूँ । धनधान्य रत्नादिसे भरी बह नगरी क्या है ? प्रतीत होता है कि पुण्य क्षीण होनेपर जो स्वर्गनिवासी भूमिपर आये वे अपने शेष पुण्योका उपभोग करनेके लिये स्वर्गका ही एक दीप्तिमान टुकडा भूमिपर ले आये है ॥३१॥
जिस उज्जयिनीमे प्रात: सारसोकी ऊंची और मदसे मधुर ध्वनिको और भी दीर्घ करता हुआ, विकसित कमलोकी मनोहर गन्धसे भरा तथा अंगोको अत्यन्त आनन्द देनेवाला शिप्रा नदी का वायु, मनानेके लिये चिकनी-चुपडी बाते करनेवाले प्रेमीकी तरह, स्त्रियोके सम्भोगजन्य श्रमको दूर कर देता है ॥३२॥
जिस उज्जयिनीमे दुकानोपर बिक्रिके लिये सजाये हुए, बीचमे लटकते हुए बहुमूल्य रत्नोवाले हारो, करोडो शंखो और सीपियो, ऊपरको अंकुरोकी तरह उठाती हुई किरणोवाले ऐसे घासके-से हरे हरे रंगके भकरतमणियो और मूंगोके तुकडोको देखकर मालूम पडता है कि रत्नाकर जलनिधिमे अब केवल जल ही रह गया होगा क्योकि रत्न तो सब यहा आ गये है ॥३३॥
जिस उज्जयिनीमे रहनेवाले लोग बाहरके आगन्तुकोको, यहाँपर उदयनने वासवदत्ताको हर लिया था, यहाँपर राजा प्रद्योतका सुनहरे ताडोका बगीचा था, यहाँ नलगिरि नामक हाथी मतवाला हो गया था, इत्यादि बताकर उनका मनोविनोद करते है ॥३४॥
जिस उज्जयिनीमे श्यामवर्ण घोडे सूर्यके घोडोसे प्रतिद्वन्द्विता करते है पहाडो जैसे ऊँचे हाथी अपने गण्डस्थलोसे ऐसे मद बरसाते है जैसे तुम जल बरसाते हो । वहाँके योद्धा लडाईमे रावणके सामने भी ठहर जाते है और उनके शरीरमे तलवारो के घाव इतने अधिक है कि उनसे आभूषणोकी कान्ति भी फ़ीकी पड जाती है ॥३५॥