श्लोक १६ ते २०
खेती करनेका सारा फ़ल ( अन्नका संपूर्ण लाभ ) तुम्हीपर निर्भर है, ऐसा जानकर किसी प्रकारकी-भौह मटकाना आदि विकृत चेष्टाओको न जानती हुई ग्रामिण कृषक बंधुएँ प्रेमपूर्ण दृष्टीसे तुम्हारी ओर देखेंगी । इसलिये तत्काल हल जोतनेसे सोंधी सोंधी मिट्टीकी गन्धवाले मालनामक क्षेत्रपर मँडराकर कुछ पश्चिमको मुडो, वहाँ बरसनेसे हलके होकर फ़िर तीव्र गतीसे उत्तरकी ओर ही चलो ॥१६॥
मूसलधार वर्षासे वनके उपद्रवो ( वनाग्नि आदि ) - को शान्त करके जब तुम आगे बढोगे तो मार्गश्रमसे थके हुए तुमको आम्रकुट पर्वत अपने शिखरपर धारण करेगा । नीच व्यक्ती भी अपने आश्रयके लिये अपने मित्रको आया देख उसके किये हुए उपकारोका विचार करके उससे मुहँ नही मोडता, फ़िर ऐसे ऊँचे ( महान व्यक्ती ) की तो बात ही क्या है ॥१७॥
स्त्रियोके केशपाशके समान काले वर्णवाले तुम, जब उसके शिखरपर चढोगे तब चारो ओरसे पके फ़लोवाले जंगली आमोसे घिरनेके कारण चमकीले पीले-पीले वर्णका वह आम्रकुट, ( बीचमे काला और चारो पीला सा ) पृथ्वीके स्तनकी तरह अवश्य ही अत्यन्त शोभाको प्राप्त होगा । जिसे देखने देवताओके ( दम्पति ) भी आयेगे ॥१८॥
किरातादि वनचारियोकी स्त्रियोने जिसकी झाडियोमे आनन्द लिया है ऐसे, उस आम्रकुटपर कुछ देर रुककर, जल बरसा देनेके कारण हलके होने शीघ्र चलते हुए तुम आगेका मार्ग पारकरके उस नर्मदा नदीको देखोगे जो विन्धागिरिकी पत्थरोसे ऊँची-नीची तलहटीमे बिखरी हुई ऐसी लगती है जैसे हाथीके शरीरमे मस्मकी रेखाओसे मण्डल बना दिया हो ॥१९॥
आम्रकुटके प्रान्तभागमे बरस जानेसे तुम खाली हो जाओगे, अत: कडवे स्वादवाले ( अथवा सुन्दर गन्धसे युक्त ) वनगजोके मदजलसे सुगन्धित और जामुनकी झाडियोसे प्रतिहत वेगवाले उस ( रेवा ) के जलको लेकर चलना । हे मेघ ! जल भर लेनेसे तुम भारी हो जाओगे और वायु तुम्हे इधर-उधर हटा नही सकेगा, क्योकि प्रत्येक रिक्त वस्तु हलकी होती है और भरी हुई भारी ॥२०॥